Monday 29 June 2020

जिद-भाग 3: शिशिर चंचल पर क्यों चिल्लाया ?

लेखिकारिजवाना बानो ‘इकरा’

‘‘हम्म… मुझे लगता था कि तेरे पास बंगला है, गाड़ी है, पैसा है, सब है तो तू तो बहुत खुश होगी. लेकिन जब अंकल ने बताया कि तुम साल में एक ही बार पीहर आती हो, तो कुछ खटका सा हुआ. सब ठीक है न चंचल? तुम बिजी रहती हो, इसीलिए कम आ पाती हो न घर?‘‘

अब बारी चंचल की थी, ‘‘हां, बिजी तो रहती हूं. 2 बच्चे, सासससुर, जेठजेठानी और पतिदेव. उस पर से इतनी बड़ी कोठी. कहां समय मिलता है?‘‘

चंचल की आंखों का शून्य, लेकिन आकांक्षा पढ़ चुकी थी, ‘‘और जौब…? तुझे तो अपनी आजादी बहुत पसंद थी. जौब क्यों नहीं की तुम ने?‘‘

‘‘शिशिर…‘‘

‘‘शिशिर? तुम ने बात की थी न शादी से पहले ही उस से तो…? फिर क्या बात हुई?‘‘

‘‘हां, की थी, लेकिन मांजी को पसंद नहीं और शिशिर भी मां का कहा नहीं टाल सकते. सो, अब सुहाना और आशु ही जौब है मेरी,‘‘ मुसकराते हुए चंचल बोली.

‘‘हम्म…तू खुश है?‘‘

‘‘हां बहुत, सबकुछ तो है मेरे पास, किस बात की कमी है?‘‘

तभी भाई का फोन आ गया, ‘‘दीदी, आशु आप को ढ़ूंढ़ रहा है तब से. रोरो कर बुरा हाल कर लिया है अपना. आप आ जाइए, जल्दी.‘‘

‘‘ओह्ह, आई मैं बस. तब तक उसे तुम किंडर जौय दिला लाओ. थोड़ा ध्यान भटकेगा उस का. मैं पहुंच ही रही हूं बस,‘‘ फोन डिस्कनैक्ट होने के साथ ही चंचल उठ खड़ी हुई.

‘‘निकलना होगा अक्कू मुझे. आशु रो रहा है. आते वक्त नाना के साथ खेलने में इतना बिजी था कि मैं ने डिस्टर्ब करना ठीक नहीं समझा.‘‘

‘‘अच्छा सुन, फोन करना… और मिलती भी रहना अब, बिजी मैडम,‘‘ गले लगाते हुए आकांक्षा ने बोला.

हड़बड़ाहट में भी चंचल के चेहरे पर मुसकान आ गई. ‘‘मिलते हैं. चल, बाय. खयाल रखना अपना. मैं फोन करती हूं.‘‘

10 मिनट बाद चंचल अपने घर थी और आशु में बिजी हो गई. उधर आकांक्षा भी अपने वीकेंड वाले काम निबटाने में लग गई है. सबकुछ रुटीन जैसा दिख रहा है, चल भी रहा है, लेकिन दोनों के मन में उथलपुथल मची है.

अपनेअपने रुटीन में बिजी ये दोनों सहेलियां, जिन के पास खुद के बारे में सोचने का समय नहीं होता, वो दोनों ही एकदूसरे के बारे में सोच रही हैं, बल्कि सोचे ही जा रही हैं.

चंचल की आंखों के सामने से आकांक्षा को रोना नहीं आ रहा. और आकांक्षा के जेहन से चंचल के ये शब्द, ‘‘सबकुछ तो है मेरे पास, किस बात की कमी है?‘‘

आकांक्षा जानती है कि इस बात का मतलब है कि जो दिख रहा है, वो सच नहीं है. इधर चंचल आकांक्षा के साथसाथ मौडल मीनाक्षी के बारे में भी सोच रही थी. सब से कमजोर बैकग्राउंड होने के बाद भी उस ने वो पा लिया, जो उस ने चाहा था. उस के पास सब से ज्यादा जो था, वो थी ‘जिद‘, वरना उस के सपनों का कौन मजाक नहीं उड़ाता था कालेज में.

रविवार के बाद सोमवार भी इसी तरह गुजर गया. न औफिस में मन लगा आकांक्षा का, न घर में. मांपापा, भाईबच्चे, सब के होते हुए भी चंचल अपने में खोई सी रही. जाने क्या था वो, जो दोनों के मन में बीज ले रहा था.

मंगल की शाम को चंचल ने भाई को आवाज लगाई, ‘‘मनु, ओ मनु…‘‘

‘‘आया दीदी.‘‘

‘‘एक बात बता… एमबीए कंपलीट हुए मुझे 10 साल हो गए न, इतना गैप हो जाने के बाद कोई जौब मिलेगी क्या मुझे?‘‘

‘‘जौब? अचानक से दीदी? जीजाजी से पूछा आप ने? और समधिनजी, उन को बुरा लगा तो…?‘‘

‘‘मैं ने जो पूछा, उस में से किसी एक बात का भी जवाब नहीं दिया तू ने. तेरे जीजाजी और समधिनजी को नहीं करनी जौब. मुझे करनी है जौब. अब तू कुछ हैल्प कर सकता है तो बता या मैं कुछ और सोचूं?‘‘

अपनी दीदी में अचानक से आए आत्मविश्वास को देख आश्चर्यमिश्रित खुशी से मनु बोला, ‘‘अरे, करूंगा क्यों नहीं? लेकिन सच बात यह है कि इतने गैप के बाद आप को अच्छा पैकेज मिलना मुश्किल है. बहुत स्ट्रगल रहेगा, जौब मिलना भी एक मुश्किल टास्क रहेगा. कंपनियां एक्सपीरियंस्ड लोगों को पहले बुलाती हंै.‘‘

‘‘अच्छा…‘‘ मायूस हो गई चंचल.

‘‘अरे, इस में उदास होने वाली क्या बात है? पूरी बात तो सुनिए.‘‘

‘‘सुना…‘‘

‘‘वर्क फ्रौम होम कर सकती हैं आप दीदी. शेयर मार्केट की करंट स्ट्रेटेजी समझने के लिए एक सर्टिफिकेट कोर्स कर लो आप. फिर आप अपने हिसाब से औनलाइन टाइम स्पैन सलैक्ट कर पाएंगी. और बच्चों को भी देख पाएंगी.‘‘

‘‘हम्म…. ठीक.‘‘

‘‘मुझे कल तक का समय दो, मैं पूरी डिटेल्स पता कर के बताता हूं आप को.‘‘

इधर, डिनर पर पंकज, हमेशा की तरह अपनी कंपनी और मालिक संचेती के बखान किए जा रहा था, लेकिन आकांक्षा का ध्यान न खाने में था और न ही पंकज की बातों में. डिनर के बाद पंकज ने पूछा भी, ‘‘तबीयत तो ठीक है न तुम्हारी? इतवार से देख रहा हूं तुम्हें, बुझीबुझी सी हो. और तुम ने बताया भी नहीं कि तुम्हारी सहेली से मुलाकात कैसी रही? क्या झटका दे दिया उस ने मेरी जान को?‘‘

‘‘कुछ भी तो नहीं,‘‘ एक फीकी मुसकान के साथ आकांक्षा उठ कर अपने काम में लग गई.

पंकज ने भी ज्यादा ध्यान नहीं दिया. वह अपनी जिम्मेदारी पूरी कर चुका है. अब न बताएं तो आकांक्षा की मरजी. आकांक्षा भी जानती थी कि औपचारिकता थी वो, दोबारा नहीं पूछने वाला पंकज.

मंगल की रात दोनों सहेलियों के लिए मंगलकारी या यों ही कहिए, क्रांतिकारी रही. आकांक्षा ने खुद को इस बात के लिए तैयार किया कि वो पंकज को साफसाफ शब्दों में बात करेगी कि वो मां बनने की खुशी से अब और दूर नहीं रह सकती और चंचल ने तमाम कोर्सेज देख कर, दिल्ली के एमिटी कालेज में एप्लाई भी कर दिया.

बुधवार की सुबह दोनों के लिए परीक्षा की घड़ी थी जैसे. चंचल शिशिर के फोन का इंतजार कर रही थी और आकांक्षा पंकज के जागने का.

‘‘हैलो, कैसी है मेरी दो जान? और जान की स्वीट सी मम्मी? सुबह हुई या नहीं?‘‘

‘‘हैलो शिशिर, हम सब अच्छे हैं. आप लोग सब कैसे हैं?‘‘

शिशिर को याद आया कि सालों से चंचल ने उसे नाम से नहीं बुलाया है, एकदम से अपना नाम सुन कर चैंक सा गया, ‘‘हम भी बढ़िया. क्या बात है चंचल? सब ठीक है न?‘‘

‘‘हां, सब बढ़िया. क्यों, क्या हुआ?‘‘

‘‘लगा मुझे, अच्छा सुहाना से बात कराओ तो…‘‘

‘‘शिशिर, मुझे आप से कुछ बात करनी है?‘‘

‘‘हां, हां, बताओ.‘‘

‘‘मैंने एमिटी से शेयर मार्केट में स्पेशलाइजेशन सर्टिफिकेट कोर्स एप्लाई किया है.‘‘

‘‘अच्छा? क्यों अपने गरीब भाई को हैल्प करनी है क्या तुम्हें?‘‘ व्यंग्यात्मक हंसी हंसते हुए शिशिर बोला.

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लेखिकारिजवाना बानो ‘इकरा’

‘‘हम्म… मुझे लगता था कि तेरे पास बंगला है, गाड़ी है, पैसा है, सब है तो तू तो बहुत खुश होगी. लेकिन जब अंकल ने बताया कि तुम साल में एक ही बार पीहर आती हो, तो कुछ खटका सा हुआ. सब ठीक है न चंचल? तुम बिजी रहती हो, इसीलिए कम आ पाती हो न घर?‘‘

अब बारी चंचल की थी, ‘‘हां, बिजी तो रहती हूं. 2 बच्चे, सासससुर, जेठजेठानी और पतिदेव. उस पर से इतनी बड़ी कोठी. कहां समय मिलता है?‘‘

चंचल की आंखों का शून्य, लेकिन आकांक्षा पढ़ चुकी थी, ‘‘और जौब…? तुझे तो अपनी आजादी बहुत पसंद थी. जौब क्यों नहीं की तुम ने?‘‘

‘‘शिशिर…‘‘

‘‘शिशिर? तुम ने बात की थी न शादी से पहले ही उस से तो…? फिर क्या बात हुई?‘‘

‘‘हां, की थी, लेकिन मांजी को पसंद नहीं और शिशिर भी मां का कहा नहीं टाल सकते. सो, अब सुहाना और आशु ही जौब है मेरी,‘‘ मुसकराते हुए चंचल बोली.

‘‘हम्म…तू खुश है?‘‘

‘‘हां बहुत, सबकुछ तो है मेरे पास, किस बात की कमी है?‘‘

तभी भाई का फोन आ गया, ‘‘दीदी, आशु आप को ढ़ूंढ़ रहा है तब से. रोरो कर बुरा हाल कर लिया है अपना. आप आ जाइए, जल्दी.‘‘

‘‘ओह्ह, आई मैं बस. तब तक उसे तुम किंडर जौय दिला लाओ. थोड़ा ध्यान भटकेगा उस का. मैं पहुंच ही रही हूं बस,‘‘ फोन डिस्कनैक्ट होने के साथ ही चंचल उठ खड़ी हुई.

‘‘निकलना होगा अक्कू मुझे. आशु रो रहा है. आते वक्त नाना के साथ खेलने में इतना बिजी था कि मैं ने डिस्टर्ब करना ठीक नहीं समझा.‘‘

‘‘अच्छा सुन, फोन करना… और मिलती भी रहना अब, बिजी मैडम,‘‘ गले लगाते हुए आकांक्षा ने बोला.

हड़बड़ाहट में भी चंचल के चेहरे पर मुसकान आ गई. ‘‘मिलते हैं. चल, बाय. खयाल रखना अपना. मैं फोन करती हूं.‘‘

10 मिनट बाद चंचल अपने घर थी और आशु में बिजी हो गई. उधर आकांक्षा भी अपने वीकेंड वाले काम निबटाने में लग गई है. सबकुछ रुटीन जैसा दिख रहा है, चल भी रहा है, लेकिन दोनों के मन में उथलपुथल मची है.

अपनेअपने रुटीन में बिजी ये दोनों सहेलियां, जिन के पास खुद के बारे में सोचने का समय नहीं होता, वो दोनों ही एकदूसरे के बारे में सोच रही हैं, बल्कि सोचे ही जा रही हैं.

चंचल की आंखों के सामने से आकांक्षा को रोना नहीं आ रहा. और आकांक्षा के जेहन से चंचल के ये शब्द, ‘‘सबकुछ तो है मेरे पास, किस बात की कमी है?‘‘

आकांक्षा जानती है कि इस बात का मतलब है कि जो दिख रहा है, वो सच नहीं है. इधर चंचल आकांक्षा के साथसाथ मौडल मीनाक्षी के बारे में भी सोच रही थी. सब से कमजोर बैकग्राउंड होने के बाद भी उस ने वो पा लिया, जो उस ने चाहा था. उस के पास सब से ज्यादा जो था, वो थी ‘जिद‘, वरना उस के सपनों का कौन मजाक नहीं उड़ाता था कालेज में.

रविवार के बाद सोमवार भी इसी तरह गुजर गया. न औफिस में मन लगा आकांक्षा का, न घर में. मांपापा, भाईबच्चे, सब के होते हुए भी चंचल अपने में खोई सी रही. जाने क्या था वो, जो दोनों के मन में बीज ले रहा था.

मंगल की शाम को चंचल ने भाई को आवाज लगाई, ‘‘मनु, ओ मनु…‘‘

‘‘आया दीदी.‘‘

‘‘एक बात बता… एमबीए कंपलीट हुए मुझे 10 साल हो गए न, इतना गैप हो जाने के बाद कोई जौब मिलेगी क्या मुझे?‘‘

‘‘जौब? अचानक से दीदी? जीजाजी से पूछा आप ने? और समधिनजी, उन को बुरा लगा तो…?‘‘

‘‘मैं ने जो पूछा, उस में से किसी एक बात का भी जवाब नहीं दिया तू ने. तेरे जीजाजी और समधिनजी को नहीं करनी जौब. मुझे करनी है जौब. अब तू कुछ हैल्प कर सकता है तो बता या मैं कुछ और सोचूं?‘‘

अपनी दीदी में अचानक से आए आत्मविश्वास को देख आश्चर्यमिश्रित खुशी से मनु बोला, ‘‘अरे, करूंगा क्यों नहीं? लेकिन सच बात यह है कि इतने गैप के बाद आप को अच्छा पैकेज मिलना मुश्किल है. बहुत स्ट्रगल रहेगा, जौब मिलना भी एक मुश्किल टास्क रहेगा. कंपनियां एक्सपीरियंस्ड लोगों को पहले बुलाती हंै.‘‘

‘‘अच्छा…‘‘ मायूस हो गई चंचल.

‘‘अरे, इस में उदास होने वाली क्या बात है? पूरी बात तो सुनिए.‘‘

‘‘सुना…‘‘

‘‘वर्क फ्रौम होम कर सकती हैं आप दीदी. शेयर मार्केट की करंट स्ट्रेटेजी समझने के लिए एक सर्टिफिकेट कोर्स कर लो आप. फिर आप अपने हिसाब से औनलाइन टाइम स्पैन सलैक्ट कर पाएंगी. और बच्चों को भी देख पाएंगी.‘‘

‘‘हम्म…. ठीक.‘‘

‘‘मुझे कल तक का समय दो, मैं पूरी डिटेल्स पता कर के बताता हूं आप को.‘‘

इधर, डिनर पर पंकज, हमेशा की तरह अपनी कंपनी और मालिक संचेती के बखान किए जा रहा था, लेकिन आकांक्षा का ध्यान न खाने में था और न ही पंकज की बातों में. डिनर के बाद पंकज ने पूछा भी, ‘‘तबीयत तो ठीक है न तुम्हारी? इतवार से देख रहा हूं तुम्हें, बुझीबुझी सी हो. और तुम ने बताया भी नहीं कि तुम्हारी सहेली से मुलाकात कैसी रही? क्या झटका दे दिया उस ने मेरी जान को?‘‘

‘‘कुछ भी तो नहीं,‘‘ एक फीकी मुसकान के साथ आकांक्षा उठ कर अपने काम में लग गई.

पंकज ने भी ज्यादा ध्यान नहीं दिया. वह अपनी जिम्मेदारी पूरी कर चुका है. अब न बताएं तो आकांक्षा की मरजी. आकांक्षा भी जानती थी कि औपचारिकता थी वो, दोबारा नहीं पूछने वाला पंकज.

मंगल की रात दोनों सहेलियों के लिए मंगलकारी या यों ही कहिए, क्रांतिकारी रही. आकांक्षा ने खुद को इस बात के लिए तैयार किया कि वो पंकज को साफसाफ शब्दों में बात करेगी कि वो मां बनने की खुशी से अब और दूर नहीं रह सकती और चंचल ने तमाम कोर्सेज देख कर, दिल्ली के एमिटी कालेज में एप्लाई भी कर दिया.

बुधवार की सुबह दोनों के लिए परीक्षा की घड़ी थी जैसे. चंचल शिशिर के फोन का इंतजार कर रही थी और आकांक्षा पंकज के जागने का.

‘‘हैलो, कैसी है मेरी दो जान? और जान की स्वीट सी मम्मी? सुबह हुई या नहीं?‘‘

‘‘हैलो शिशिर, हम सब अच्छे हैं. आप लोग सब कैसे हैं?‘‘

शिशिर को याद आया कि सालों से चंचल ने उसे नाम से नहीं बुलाया है, एकदम से अपना नाम सुन कर चैंक सा गया, ‘‘हम भी बढ़िया. क्या बात है चंचल? सब ठीक है न?‘‘

‘‘हां, सब बढ़िया. क्यों, क्या हुआ?‘‘

‘‘लगा मुझे, अच्छा सुहाना से बात कराओ तो…‘‘

‘‘शिशिर, मुझे आप से कुछ बात करनी है?‘‘

‘‘हां, हां, बताओ.‘‘

‘‘मैंने एमिटी से शेयर मार्केट में स्पेशलाइजेशन सर्टिफिकेट कोर्स एप्लाई किया है.‘‘

‘‘अच्छा? क्यों अपने गरीब भाई को हैल्प करनी है क्या तुम्हें?‘‘ व्यंग्यात्मक हंसी हंसते हुए शिशिर बोला.

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June 30, 2020 at 10:00AM

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