रवि उदास लहजे में बोला, ‘‘अरे, बहुत फेरा हो गया.’’
‘‘क्या फेरा हुआ?’’ मेनका ने पूछा.
‘‘कुछ रिश्तेदार आए थे शादी के लिए.
‘‘तुम्हारी शादी के लिए आए थे क्या?’’
‘‘अरे हां, उसी के लिए तो आए थे. तुम्हें कैसे मालूम हुआ?’’
‘‘अरे, मैं तुम्हारी एकएक चीज का पता करती रहती हूं.’’
‘‘अच्छा छोड़ो, मुझे कुछ उपाय बताओ. इस से छुटकारा कैसे मिलेगा? हम तुम्हारे बिना जी नहीं सकते. मांबाबूजी शादी करने के लिए अड़े हुए हैं. रिश्तेदार ले कर मामा आए हुए थे. हमें समझ नहीं आ रहा है कि क्या करें? तुम्हीं कुछ उपाय निकालो.’’
मेनका बोली, ‘‘एक ही उपाय है. हम लोग यहां से कहीं दूसरी जगह यानी किसी दूसरे शहर में निकल जाएं.’’
‘‘गुमटी का क्या करें?’’
‘‘बेच दो.’’
‘‘बाहर में क्या करेंगे?’’
‘‘वहां जौब ढूंढ लेना. मेरे लायक कुछ काम होगा, तो हम भी कर लेंगे.’’
‘‘लेकिन यहां मांबाबूजी का क्या होगा?’’
‘‘रवि, तुम्हें दो में से एक को छोड़ना ही पड़ेगा. मांबाबूजी को छोड़ो या फिर मुझे. इसलिए कि यहां हमारे मांपिताजी भी तुम से शादी करने के लिए किसी शर्त पर राजी नहीं होंगे.
‘‘इस की दो वजह हैं. पहली तो यही कि हम लोग अलगअलग जाति के हैं. दूसरी, हमारे मांपिताजी नौकरी करने वाले लड़के से शादी करना चाहते हैं.’’
रवि बोलने लगा, ‘‘मेरे सामने तो सांपछछूंदर वाला हाल हो गया है. मांबाबूजी को भी छोड़ना मुश्किल लग रहा है. दूसरी बात यह कि तुम्हारे बिना हम जिंदा नहीं रह सकते.’’
मेनका बोली, ‘‘सभी लड़के तो बाहर जा कर काम कर ही रहे हैं. वे लोग क्या अपने मांबाप को छोड़ दिए हैं. वहां से तुम पैसे मांबाप के पास भेजते रहना. यहां जब गुमटी बेचना, तो कुछ पैसे मांबाबूजी को भी दे देना. मांबाबूजी को पहले ही समझा देना.’’
‘‘अच्छा ठीक है. इस पर जरा विचार करते हैं,’’ रवि बोला.
रवि का दोस्त संजय गुरुग्राम दिल्ली में काम करता था. उस से मोबाइल पर बराबर बातें होती थीं. रवि और संजय दोनों ही पहली क्लास से मैट्रिक क्लास तक साथ में पढ़े थे. संजय मैट्रिक के बाद दिल्ली चला गया था. रवि पान की गुमटी खोल लिया था. दोनों की बातें मोबाइल से बराबर होती रहती थी.
संजय की शादी भी हो गई थी. संजय की पत्नी गांव में ही रहती थी. इसलिए वह साल में एक या दो बार गांव आता था.
अगले दिन रवि ने संजय को फोन किया, ‘‘यार संजय, मेरे लिए भी काम दिल्ली में खोज कर रखना. साथ ही, एक रूम भी खोज कर रखना.’’
संजय बोला, ‘‘मजाक मत कर यार.’’
‘‘नहीं यार, मैं सीरियसली बोल रहा हूं. अब गुमटी भी पहले जैसी नहीं चल रही है. बहुत दिक्कत हो गई है. घर का खर्च चलाना मुश्किल हो गया है. तुम हमारे लंगोटिया यार हो. हम अपना दुखदर्द तुम से नही ंतो किस से कहेंगे?’’
संजय बोला, ‘‘मैं यहां एक कंपनी में सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी करता हंू.तुम चाहोगे तो मैं तुझे सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी दिलवा सकता हूं. हर महीने 10,000 रुपए मिलेंगे. ओवरटाइम करोगे, तो 12,000 से 13,000 रुपए तक कमा लोगे.’’
‘‘ठीक है. एक रूम भी खोज लेना,’’ रवि बोला.
‘‘ठीक है, जब मन करे ,तब आ जाना.’’ संजय ने ऐसा बोल कर फोन काट दिया.
रवि यहां से जाने का मन बनाने लगा. मांबाबूजी से वह बोला, ‘‘मुझे बाहर में अच्छा काम मिलने वाला है. एक साल कमा कर आएंगे, तो घर बना लेंगे. उस के बाद शादी करेंगे.’’
रवि के बाबूजी बोलने लगे, ‘‘हम लोग यहां तुम्हारे बिना कैसे रहेंगें?’’
‘‘सब इंतजाम कर के जाएंगे. वहां से पैसा भेजते रहेंगे. संजय बाहर रहता है, तो उस के मांबाबूजी यहां कौन सी दिक्कत में हैं? सब पैसा कराता है. पैसा है तो सबकुछ है. अगर हाथ में पैसा नहीं है, तो कुछ भी नहीं है.’’
‘‘हां बेटा, वह तो है. तुम जिस में भलाई सोचो.’’
रवि ने 70,000 रुपए में सामान सहित गुमटी बेच दी. 30,000 रुपए अपने मांबाबूजी को दे दिया. 40,000 रुपए अपने पास रखा. अब वह यहां से निकलने के लिए प्लानिंग करने लगा.
मेनका के मोबाइल पर काल किया. उस ने बताया कि सारा इंतजाम कर लिया है. उपाय सोचो कि कैसे निकला जाएगा?
मेनका बोली, ‘‘आज हमारे पापा मामा के यहां जाने वाले हैं. हम स्कूल जाने के बहाने घर से निकलेंगे और ठीक 10 बजे बसस्टैंड रहेंगे.’’
दूसरे दिन दोनों ठीक 10 बजे बसस्टैंड पहुंचे. बस से दोनों गया स्टेशन पहुंचे. वहां से महाबोधि ऐक्सप्रेस पकड़ कर दोनों दिल्ली पहुंच गए. अपने दोस्त संजय को फोन किया.
संजय स्टेशन पर उसे लेने पहुंच गया. एक लड़की के साथ में रवि को देख कर वह हैरानी में पड़ गया. फिर भी कुछ पूछ नहीं सका. दोनों को अपने डेरे पर ले आया और नाश्ता कराया. उस के बाद दोनों को फ्रेश होने के लिए बोला. जब लड़की बाथरूम में नहाने के लिए गई, तो संजय ने पूछा, ‘‘तुम साथ में किस को ले कर आ गए हो? मुझे पहले कुछ बताया भी नहीं.’’
रवि ने सारी बातें बता दीं. संजय जहां पर रहता था, उसी मकान में एक कमरा, जो हाल में ही खाली हुआ था, उसे इन लोगों को दिलवा दिया.
रवि और संजय दोनों बाजार से जा कर बिस्तर, बेड सीट, गैस, चावलदाल वगैरह जरूरत का सामान खरीद कर लाए. रवि और मेनका दोनों साथसाथ रहने लगे.
संजय जब अपने घर फोन किया, तो उस की मां रवि के बारे में बताने लगी कि तुम्हारा दोस्त रवि एक लड़की को कहीं ले कर भाग गया है. यहां पंचायत ने रवि के मातापिता को गांव से निकल जाने का फैसला सुनाया है. दोनों गांव से निकल गए हैं. मालूम हुआ कि रवि के मामा के यहां दोनों चले गए हैं. रवि को ऐसा नहीं करना चाहिए था, लेकिन संजय इस संबंध में कुछ भी नहीं बताया.
संजय ने रवि को सारी बातें बता दीं. रवि जब अपने मामा के यहां फोन किया, तो उस के मामा ने बहुत भलाबुरा कहा. उस के मांपिताजी ने भी कहा कि अब हम लोग गांव में मुंह दिखाने लायक नहीं रहे. हम ने कभी सपने में भी नहीं सोंचा था कि तुम इस तरह का काम करोगे. लेकिन एक बात बता दे रहे हैं कि कभी भूल कर भी तुम लोग अपने गांव नहीं आना, नहीं तो लड़की के मातापिता तुम लोगों की हत्या तक कर देंगे.
रवि बोलने लगा, ‘‘आप लोग चिंता मत कीजिए. हम आप लोगों को 6,000 रुपए महीना भेजते रहेंगे. किसी तरह वहां का घरजमीन बेच कर मामा के गांव में ही जमीन ले लीजिए. अगर दिक्कत होगी, तो आप दोनो को यहां भी ला सकते हैं.’’
‘‘नहीं बाबू, हम लोग यहीं रहेंगे. शहर में नहीं जाएंगे.’’
रवि 12,000 रुपए महीना पर सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी करने लगा था.मेनका एक ब्यूटीपार्लर में रिशेप्शन पर 8,000 रुपए महीना पर काम करने लगी थी. दोनों का दिन खुशीखुशी बीत रहा था. प्रत्येक रविवार को संजय के साथ दोनों कभी इंडिया गेट तो कभी लाल किला और लोटस टेंपल घूमने के लिए चले जाते.
इसी बीच कोरोना बीमारी की चर्चा होने लगी. लोगों के बीच भी गरमागरम चर्चा थी. आज प्रधानमंत्रीजी का भाषण टीवी पर होने वाला है. प्रधानमंत्रीजी ने सभी लोगों को एक दिन का जनता कफ्र्यू की घोषणा कर दी. 21 मार्च को शाम 5 बजे 5 मिनट तक अपने बालकोनी से थाली और ताली बजाने की घोषणा की. देशभर के लोगों ने थालीताली, घंटी और शंख के साथसाथ सिंघा तक बजा दिया.
प्रधानमंत्री समझ गए. हम जो बोलेंगे, जनता मानेगी. प्रधानमंत्रीजी फिर से टीवी पर आए. उन्होंने इस बार बड़ा फैसला सुनाया. 21 दिन का संपूर्ण लौकडाउन. जो जहां हैं, वहीं रहेंगे. सभी गाड़ियां, बस, ट्रेन और हवाईजहाज तक बंद रहेंगे. सिर्फ राशन और दवा की दुकानें खुली रहंेगी.
दूसरे दिन से हर जगह पर पुलिस प्रशासन मुस्तैद हो गया. किसी तरह बंद कमरे में 21 दिन बिताए. फिर से 19 दिन का लौकडाउन बढ़ा दिया गया. अब जितने भी काम करने वाले लोग थे. हर हाल में घर जाने का मन बनाने लगे. कंपनी का मालिक ठेकेदार को पैसा देना बंद कर दिया. रवि और मेनका के अगलबगल के सारे लोग अपने घर के लिए निकल पड़े. संजय भी एक पुरानी साइकिल 12,00 रुपए में खरीद कर घर चलने का मन बना लिया.
रवि अपने मामा के यहां जब फोन किया, तो मामा ने कहा कि यहां भूल कर भी नहीं आना. अगर लड़की वाले लोगों को मालूम हो गया, तो तुम लोगों के साथसाथ हम लोग भी मुसीबत में पड़ जाएंगे.
आखिर मेनका और रवि जाएं तो जाएं कहां? मेनका पेट से हो गई थी.संजय दूसरे दिन साइकिल ले कर गांव निकल गया था. अगलबगल के सारे काम करने वाले बिहार और यूपी के भैया लोग निकल पड़े थे. पूरे मकान में सिर्फ रवि और मेनका बच गए थे. आखिर करें तो क्या? समझ में नहीं आ रहा था. अगलबगल के लोग भी बोलने लगे. यहां सुरक्षित नहीं रहोगे. यहां कोरोना के मरीज हर रोज बढ़ रहे हैं. कुछ हो गया, तो कोई साथ नहीं देगा.
रवि भी एक साइकिल खरीद लिया. मेनका से वह बोला कि चलो, हम लोग भी निकल चलें. चाहे जो भी हो, एक दिन तो सब को मरना ही है. सारा सामान मकान मालिक को 15,000 रुपए में बेच कर निकल पड़ा.
रास्ते के लिए रवि ने निमकी, खुरमा, पराठा और भुजिया बना कर रख ली. 4 बजे भोर में रवि मेनका को साइकिल की पीछे वाली सीट पर बिठा कर चल पड़ा. शाम हो गई थी. रवि को जोरो की प्यास लगी थी.
सड़क के किनारे एक आलीशान मकान था. गेट के पास एक चापाकल था. रवि रुक कर दोनों बोतलों में पानी भर रहा था. उस आलीशान मकान में से गेट तक एक बुढ़िया आई और पूछने लगी, ‘‘बेटा, तुम लोग कहां से आ रहे हो?’’
‘‘माताजी, हम लोग दिल्ली से आ रहे हैं. बिहार जाएंगे.’’
‘‘अरे, साइकिल से तुम लोग इतनी दूर जाओगे?’’
‘‘हां माताजी, क्या करें? जिस कंपनी में काम करते थे, अब वह कंपनी बंद हो गई. मकान मालिक किराया मांगने लगा. सभी मजदूर निकल गए. हम लोग क्या करते? बात समझ में नहीं आ रही थी. हम लोग भी निकल पड़े.’’
‘‘अब रात में तुम लोग कहां रुकोगे?’’
‘‘माताजी, कहीं भी रुक जाएंगे.’’
‘‘अरे, तुम दोनो यहीं रुक जाओ. यहां मेरे घर में कोई नहीं रहता. एक हम और एक खाना बनाने वाली दाई रहती है. तुम लोग चिंता मत करो. मेरे भी बेटापतोहू है, जो अमेरिका में रहता है. वहां दोनों डाक्टर हैं. आखिर कहीं तो रुकना ही था. इस से अच्छी जगह और कहां मिलती? दोनों को घर में ले गई. दाई को बोली, ‘‘2 आदमी का और खाना बना देना.’’
रवि बोला, ‘‘माताजी, हम लोगों के पास खाना है. आप रुकने के लिए जगह दे दी, यही बहुत है. कोई बात नहीं. वह खाना तुम लोगों को रास्ते में काम आएगा.’’
‘‘अच्छा ठीक है, माताजी. दोनों फ्रेश हुए. उस के बाद मेनका और बूढ़ी माताजी आपस में बातें करने लगीं. बूढ़ी माताजी कहने लगीं. मेरा भी एक ही बेटा है. अमेरिका में डाक्टर है. वहीं शादी कर लिया. 10 साल बाद वह पिछले साल यहां आया था. जब उस के पिताजी इस दुनिया में नहीं रहे.
हमारे पति आईएएस अफसर थे. बहुत अरमान से बेटे को डाक्टरी पढ़ाए थे.मुझे पैसे की कोई कमी नहीं है. 40,000 रुपए पेंशन मिलती है. जमीनजायदाद से साल में 5 लाख रुपए आमदनी हो जाती है. बेटा भी सिर्फ पैसे के लिए पूछता रहता है.
खाना खा कर बात करतेकरते काफी रात बीत गई. सुबह जब रवि और मेनका उठे, तो दिन के 8 बज गए थे. मुंहहाथ धो कर स्नान करते 9 बज गए थे. जब दोनों निकलने की तैयारी करने लगे, तो बूढ़ी माता ने कहा, ‘‘धूप बहुत हो गई है. अब कल सुबह दोनों निकलना.’’
कुछ सोच कर दोनों आज भी रुक गए थे. दाई के साथ खाना बनाने में मेनका सहयोग करने लगी थी. अहाते में फले हुए कटहल को रवि ने तोड़ा और रात में मेनका ने कटहल की सब्जी और रोटी बनाई. बूढ़ी माता बोलने लगी, ‘‘तुम तो गजब की टेस्टी सब्जी बनाई हो. ऐसी सब्जी तो बहुत दिनों के बाद खाने को मिली.’’
बूढ़ी माता रात में अपना दुखदर्द सुनाते हुए रोने लगीं. वे बोलने लगीं सिर्फ पैसे से ही खुशी नहीं मिलती. बेटे को शादी किए 10 साल से ज्यादा हो गए. आज तक पतोहू को देखा तक नहीं. एक पोता भी हुआ है, लेकिन सिर्फ सुने हैं. आज तक उसे देखने का मौका नहीं मिला.
मेनका को लगा कि मुझे मां मिल गई हैं. वह भी भावना में आ कर सारी बातें बता दी. रात में बूढ़ी माताजी को जबरदस्ती पैर दबाई और तेल लगाई. बूढ़ी माताजी को आज वास्तविक सुख का एहसास होने लगा.
सुबह जब रवि निकलने के लिए बोला, तो बूढ़ी माता जिद पर अड़ गईं और बोलीं कि तुम लोग यहीं रहो. इन लोगों को भी नया ठिकाना मिल गया और दोनों खुशीखुशी यहीं रहने लगे.
The post नया ठिकाना-भाग 3: मेनका को प्रथम पुरस्कार किसने दिया appeared first on Sarita Magazine.
from कहानी – Sarita Magazine https://ift.tt/2NCZI1l
रवि उदास लहजे में बोला, ‘‘अरे, बहुत फेरा हो गया.’’
‘‘क्या फेरा हुआ?’’ मेनका ने पूछा.
‘‘कुछ रिश्तेदार आए थे शादी के लिए.
‘‘तुम्हारी शादी के लिए आए थे क्या?’’
‘‘अरे हां, उसी के लिए तो आए थे. तुम्हें कैसे मालूम हुआ?’’
‘‘अरे, मैं तुम्हारी एकएक चीज का पता करती रहती हूं.’’
‘‘अच्छा छोड़ो, मुझे कुछ उपाय बताओ. इस से छुटकारा कैसे मिलेगा? हम तुम्हारे बिना जी नहीं सकते. मांबाबूजी शादी करने के लिए अड़े हुए हैं. रिश्तेदार ले कर मामा आए हुए थे. हमें समझ नहीं आ रहा है कि क्या करें? तुम्हीं कुछ उपाय निकालो.’’
मेनका बोली, ‘‘एक ही उपाय है. हम लोग यहां से कहीं दूसरी जगह यानी किसी दूसरे शहर में निकल जाएं.’’
‘‘गुमटी का क्या करें?’’
‘‘बेच दो.’’
‘‘बाहर में क्या करेंगे?’’
‘‘वहां जौब ढूंढ लेना. मेरे लायक कुछ काम होगा, तो हम भी कर लेंगे.’’
‘‘लेकिन यहां मांबाबूजी का क्या होगा?’’
‘‘रवि, तुम्हें दो में से एक को छोड़ना ही पड़ेगा. मांबाबूजी को छोड़ो या फिर मुझे. इसलिए कि यहां हमारे मांपिताजी भी तुम से शादी करने के लिए किसी शर्त पर राजी नहीं होंगे.
‘‘इस की दो वजह हैं. पहली तो यही कि हम लोग अलगअलग जाति के हैं. दूसरी, हमारे मांपिताजी नौकरी करने वाले लड़के से शादी करना चाहते हैं.’’
रवि बोलने लगा, ‘‘मेरे सामने तो सांपछछूंदर वाला हाल हो गया है. मांबाबूजी को भी छोड़ना मुश्किल लग रहा है. दूसरी बात यह कि तुम्हारे बिना हम जिंदा नहीं रह सकते.’’
मेनका बोली, ‘‘सभी लड़के तो बाहर जा कर काम कर ही रहे हैं. वे लोग क्या अपने मांबाप को छोड़ दिए हैं. वहां से तुम पैसे मांबाप के पास भेजते रहना. यहां जब गुमटी बेचना, तो कुछ पैसे मांबाबूजी को भी दे देना. मांबाबूजी को पहले ही समझा देना.’’
‘‘अच्छा ठीक है. इस पर जरा विचार करते हैं,’’ रवि बोला.
रवि का दोस्त संजय गुरुग्राम दिल्ली में काम करता था. उस से मोबाइल पर बराबर बातें होती थीं. रवि और संजय दोनों ही पहली क्लास से मैट्रिक क्लास तक साथ में पढ़े थे. संजय मैट्रिक के बाद दिल्ली चला गया था. रवि पान की गुमटी खोल लिया था. दोनों की बातें मोबाइल से बराबर होती रहती थी.
संजय की शादी भी हो गई थी. संजय की पत्नी गांव में ही रहती थी. इसलिए वह साल में एक या दो बार गांव आता था.
अगले दिन रवि ने संजय को फोन किया, ‘‘यार संजय, मेरे लिए भी काम दिल्ली में खोज कर रखना. साथ ही, एक रूम भी खोज कर रखना.’’
संजय बोला, ‘‘मजाक मत कर यार.’’
‘‘नहीं यार, मैं सीरियसली बोल रहा हूं. अब गुमटी भी पहले जैसी नहीं चल रही है. बहुत दिक्कत हो गई है. घर का खर्च चलाना मुश्किल हो गया है. तुम हमारे लंगोटिया यार हो. हम अपना दुखदर्द तुम से नही ंतो किस से कहेंगे?’’
संजय बोला, ‘‘मैं यहां एक कंपनी में सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी करता हंू.तुम चाहोगे तो मैं तुझे सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी दिलवा सकता हूं. हर महीने 10,000 रुपए मिलेंगे. ओवरटाइम करोगे, तो 12,000 से 13,000 रुपए तक कमा लोगे.’’
‘‘ठीक है. एक रूम भी खोज लेना,’’ रवि बोला.
‘‘ठीक है, जब मन करे ,तब आ जाना.’’ संजय ने ऐसा बोल कर फोन काट दिया.
रवि यहां से जाने का मन बनाने लगा. मांबाबूजी से वह बोला, ‘‘मुझे बाहर में अच्छा काम मिलने वाला है. एक साल कमा कर आएंगे, तो घर बना लेंगे. उस के बाद शादी करेंगे.’’
रवि के बाबूजी बोलने लगे, ‘‘हम लोग यहां तुम्हारे बिना कैसे रहेंगें?’’
‘‘सब इंतजाम कर के जाएंगे. वहां से पैसा भेजते रहेंगे. संजय बाहर रहता है, तो उस के मांबाबूजी यहां कौन सी दिक्कत में हैं? सब पैसा कराता है. पैसा है तो सबकुछ है. अगर हाथ में पैसा नहीं है, तो कुछ भी नहीं है.’’
‘‘हां बेटा, वह तो है. तुम जिस में भलाई सोचो.’’
रवि ने 70,000 रुपए में सामान सहित गुमटी बेच दी. 30,000 रुपए अपने मांबाबूजी को दे दिया. 40,000 रुपए अपने पास रखा. अब वह यहां से निकलने के लिए प्लानिंग करने लगा.
मेनका के मोबाइल पर काल किया. उस ने बताया कि सारा इंतजाम कर लिया है. उपाय सोचो कि कैसे निकला जाएगा?
मेनका बोली, ‘‘आज हमारे पापा मामा के यहां जाने वाले हैं. हम स्कूल जाने के बहाने घर से निकलेंगे और ठीक 10 बजे बसस्टैंड रहेंगे.’’
दूसरे दिन दोनों ठीक 10 बजे बसस्टैंड पहुंचे. बस से दोनों गया स्टेशन पहुंचे. वहां से महाबोधि ऐक्सप्रेस पकड़ कर दोनों दिल्ली पहुंच गए. अपने दोस्त संजय को फोन किया.
संजय स्टेशन पर उसे लेने पहुंच गया. एक लड़की के साथ में रवि को देख कर वह हैरानी में पड़ गया. फिर भी कुछ पूछ नहीं सका. दोनों को अपने डेरे पर ले आया और नाश्ता कराया. उस के बाद दोनों को फ्रेश होने के लिए बोला. जब लड़की बाथरूम में नहाने के लिए गई, तो संजय ने पूछा, ‘‘तुम साथ में किस को ले कर आ गए हो? मुझे पहले कुछ बताया भी नहीं.’’
रवि ने सारी बातें बता दीं. संजय जहां पर रहता था, उसी मकान में एक कमरा, जो हाल में ही खाली हुआ था, उसे इन लोगों को दिलवा दिया.
रवि और संजय दोनों बाजार से जा कर बिस्तर, बेड सीट, गैस, चावलदाल वगैरह जरूरत का सामान खरीद कर लाए. रवि और मेनका दोनों साथसाथ रहने लगे.
संजय जब अपने घर फोन किया, तो उस की मां रवि के बारे में बताने लगी कि तुम्हारा दोस्त रवि एक लड़की को कहीं ले कर भाग गया है. यहां पंचायत ने रवि के मातापिता को गांव से निकल जाने का फैसला सुनाया है. दोनों गांव से निकल गए हैं. मालूम हुआ कि रवि के मामा के यहां दोनों चले गए हैं. रवि को ऐसा नहीं करना चाहिए था, लेकिन संजय इस संबंध में कुछ भी नहीं बताया.
संजय ने रवि को सारी बातें बता दीं. रवि जब अपने मामा के यहां फोन किया, तो उस के मामा ने बहुत भलाबुरा कहा. उस के मांपिताजी ने भी कहा कि अब हम लोग गांव में मुंह दिखाने लायक नहीं रहे. हम ने कभी सपने में भी नहीं सोंचा था कि तुम इस तरह का काम करोगे. लेकिन एक बात बता दे रहे हैं कि कभी भूल कर भी तुम लोग अपने गांव नहीं आना, नहीं तो लड़की के मातापिता तुम लोगों की हत्या तक कर देंगे.
रवि बोलने लगा, ‘‘आप लोग चिंता मत कीजिए. हम आप लोगों को 6,000 रुपए महीना भेजते रहेंगे. किसी तरह वहां का घरजमीन बेच कर मामा के गांव में ही जमीन ले लीजिए. अगर दिक्कत होगी, तो आप दोनो को यहां भी ला सकते हैं.’’
‘‘नहीं बाबू, हम लोग यहीं रहेंगे. शहर में नहीं जाएंगे.’’
रवि 12,000 रुपए महीना पर सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी करने लगा था.मेनका एक ब्यूटीपार्लर में रिशेप्शन पर 8,000 रुपए महीना पर काम करने लगी थी. दोनों का दिन खुशीखुशी बीत रहा था. प्रत्येक रविवार को संजय के साथ दोनों कभी इंडिया गेट तो कभी लाल किला और लोटस टेंपल घूमने के लिए चले जाते.
इसी बीच कोरोना बीमारी की चर्चा होने लगी. लोगों के बीच भी गरमागरम चर्चा थी. आज प्रधानमंत्रीजी का भाषण टीवी पर होने वाला है. प्रधानमंत्रीजी ने सभी लोगों को एक दिन का जनता कफ्र्यू की घोषणा कर दी. 21 मार्च को शाम 5 बजे 5 मिनट तक अपने बालकोनी से थाली और ताली बजाने की घोषणा की. देशभर के लोगों ने थालीताली, घंटी और शंख के साथसाथ सिंघा तक बजा दिया.
प्रधानमंत्री समझ गए. हम जो बोलेंगे, जनता मानेगी. प्रधानमंत्रीजी फिर से टीवी पर आए. उन्होंने इस बार बड़ा फैसला सुनाया. 21 दिन का संपूर्ण लौकडाउन. जो जहां हैं, वहीं रहेंगे. सभी गाड़ियां, बस, ट्रेन और हवाईजहाज तक बंद रहेंगे. सिर्फ राशन और दवा की दुकानें खुली रहंेगी.
दूसरे दिन से हर जगह पर पुलिस प्रशासन मुस्तैद हो गया. किसी तरह बंद कमरे में 21 दिन बिताए. फिर से 19 दिन का लौकडाउन बढ़ा दिया गया. अब जितने भी काम करने वाले लोग थे. हर हाल में घर जाने का मन बनाने लगे. कंपनी का मालिक ठेकेदार को पैसा देना बंद कर दिया. रवि और मेनका के अगलबगल के सारे लोग अपने घर के लिए निकल पड़े. संजय भी एक पुरानी साइकिल 12,00 रुपए में खरीद कर घर चलने का मन बना लिया.
रवि अपने मामा के यहां जब फोन किया, तो मामा ने कहा कि यहां भूल कर भी नहीं आना. अगर लड़की वाले लोगों को मालूम हो गया, तो तुम लोगों के साथसाथ हम लोग भी मुसीबत में पड़ जाएंगे.
आखिर मेनका और रवि जाएं तो जाएं कहां? मेनका पेट से हो गई थी.संजय दूसरे दिन साइकिल ले कर गांव निकल गया था. अगलबगल के सारे काम करने वाले बिहार और यूपी के भैया लोग निकल पड़े थे. पूरे मकान में सिर्फ रवि और मेनका बच गए थे. आखिर करें तो क्या? समझ में नहीं आ रहा था. अगलबगल के लोग भी बोलने लगे. यहां सुरक्षित नहीं रहोगे. यहां कोरोना के मरीज हर रोज बढ़ रहे हैं. कुछ हो गया, तो कोई साथ नहीं देगा.
रवि भी एक साइकिल खरीद लिया. मेनका से वह बोला कि चलो, हम लोग भी निकल चलें. चाहे जो भी हो, एक दिन तो सब को मरना ही है. सारा सामान मकान मालिक को 15,000 रुपए में बेच कर निकल पड़ा.
रास्ते के लिए रवि ने निमकी, खुरमा, पराठा और भुजिया बना कर रख ली. 4 बजे भोर में रवि मेनका को साइकिल की पीछे वाली सीट पर बिठा कर चल पड़ा. शाम हो गई थी. रवि को जोरो की प्यास लगी थी.
सड़क के किनारे एक आलीशान मकान था. गेट के पास एक चापाकल था. रवि रुक कर दोनों बोतलों में पानी भर रहा था. उस आलीशान मकान में से गेट तक एक बुढ़िया आई और पूछने लगी, ‘‘बेटा, तुम लोग कहां से आ रहे हो?’’
‘‘माताजी, हम लोग दिल्ली से आ रहे हैं. बिहार जाएंगे.’’
‘‘अरे, साइकिल से तुम लोग इतनी दूर जाओगे?’’
‘‘हां माताजी, क्या करें? जिस कंपनी में काम करते थे, अब वह कंपनी बंद हो गई. मकान मालिक किराया मांगने लगा. सभी मजदूर निकल गए. हम लोग क्या करते? बात समझ में नहीं आ रही थी. हम लोग भी निकल पड़े.’’
‘‘अब रात में तुम लोग कहां रुकोगे?’’
‘‘माताजी, कहीं भी रुक जाएंगे.’’
‘‘अरे, तुम दोनो यहीं रुक जाओ. यहां मेरे घर में कोई नहीं रहता. एक हम और एक खाना बनाने वाली दाई रहती है. तुम लोग चिंता मत करो. मेरे भी बेटापतोहू है, जो अमेरिका में रहता है. वहां दोनों डाक्टर हैं. आखिर कहीं तो रुकना ही था. इस से अच्छी जगह और कहां मिलती? दोनों को घर में ले गई. दाई को बोली, ‘‘2 आदमी का और खाना बना देना.’’
रवि बोला, ‘‘माताजी, हम लोगों के पास खाना है. आप रुकने के लिए जगह दे दी, यही बहुत है. कोई बात नहीं. वह खाना तुम लोगों को रास्ते में काम आएगा.’’
‘‘अच्छा ठीक है, माताजी. दोनों फ्रेश हुए. उस के बाद मेनका और बूढ़ी माताजी आपस में बातें करने लगीं. बूढ़ी माताजी कहने लगीं. मेरा भी एक ही बेटा है. अमेरिका में डाक्टर है. वहीं शादी कर लिया. 10 साल बाद वह पिछले साल यहां आया था. जब उस के पिताजी इस दुनिया में नहीं रहे.
हमारे पति आईएएस अफसर थे. बहुत अरमान से बेटे को डाक्टरी पढ़ाए थे.मुझे पैसे की कोई कमी नहीं है. 40,000 रुपए पेंशन मिलती है. जमीनजायदाद से साल में 5 लाख रुपए आमदनी हो जाती है. बेटा भी सिर्फ पैसे के लिए पूछता रहता है.
खाना खा कर बात करतेकरते काफी रात बीत गई. सुबह जब रवि और मेनका उठे, तो दिन के 8 बज गए थे. मुंहहाथ धो कर स्नान करते 9 बज गए थे. जब दोनों निकलने की तैयारी करने लगे, तो बूढ़ी माता ने कहा, ‘‘धूप बहुत हो गई है. अब कल सुबह दोनों निकलना.’’
कुछ सोच कर दोनों आज भी रुक गए थे. दाई के साथ खाना बनाने में मेनका सहयोग करने लगी थी. अहाते में फले हुए कटहल को रवि ने तोड़ा और रात में मेनका ने कटहल की सब्जी और रोटी बनाई. बूढ़ी माता बोलने लगी, ‘‘तुम तो गजब की टेस्टी सब्जी बनाई हो. ऐसी सब्जी तो बहुत दिनों के बाद खाने को मिली.’’
बूढ़ी माता रात में अपना दुखदर्द सुनाते हुए रोने लगीं. वे बोलने लगीं सिर्फ पैसे से ही खुशी नहीं मिलती. बेटे को शादी किए 10 साल से ज्यादा हो गए. आज तक पतोहू को देखा तक नहीं. एक पोता भी हुआ है, लेकिन सिर्फ सुने हैं. आज तक उसे देखने का मौका नहीं मिला.
मेनका को लगा कि मुझे मां मिल गई हैं. वह भी भावना में आ कर सारी बातें बता दी. रात में बूढ़ी माताजी को जबरदस्ती पैर दबाई और तेल लगाई. बूढ़ी माताजी को आज वास्तविक सुख का एहसास होने लगा.
सुबह जब रवि निकलने के लिए बोला, तो बूढ़ी माता जिद पर अड़ गईं और बोलीं कि तुम लोग यहीं रहो. इन लोगों को भी नया ठिकाना मिल गया और दोनों खुशीखुशी यहीं रहने लगे.
The post नया ठिकाना-भाग 3: मेनका को प्रथम पुरस्कार किसने दिया appeared first on Sarita Magazine.
June 29, 2020 at 10:00AM
No comments:
Post a Comment