Wednesday 13 July 2022

लड़कियां: वह महिला कर्मचारियों के साथ काम करने से क्यों कतरा रहा था

नए औफिस में लड़कियां ज्यादा थीं. नहींनहीं यह कहना गलत होगा. दरअसल, यहां सिर्फ वह अकेला मर्द है. बाकी सब औरतें. उस ने हैड औफिस में अपने बौस से रिक्वैस्ट की है जैसे भी हो इस महिलाबहुल प्रतिष्ठान से उसे निकाल दिया जाए या एकाध पुरुष को और भेज दिया जाए. वह कुछ दिनों पहले ही यहां आया था.

ये लड़कियां पूरे समय या तो अपनी सास की बातें करती रहती हैं या फिर किसी रैसिपी पर डिसकस करतीं, कभीकभी कपड़ों की बातें करती हैं. हद तो तब हो जाती जब नैटफ्लिक्स की स्टोरी सुनाई जा रही होती है.

हैरत की बात है कि पीठ पीछे एकदूसरे की चुगली करने वाली लड़कियां लंच टाइम में एक हो जाती हैं. मिलबांट कर खाना खाया जाता है. पीछे की दुकान से समोसे मंगा कर खाए बिना उन का खाना पूरा न होता है.

‘जो जी चाहे करो. प्रजातंत्र है… सब अपनी मरजी के मालिक हो. बस इतनी कृपा करना देवियो कि जिस कंपनी की तनख्वाह ले रही हैं उस का भी कुछ काम कर देना,’ वह मन ही मन सोचता रहता.

उस की आदत है कम बोलने की और अपना काम दुरुस्त रखने की. मन ही मन गौरवान्वित होता है कि बौस ने उसे जानबू  झ कर भेजा है इस औफिस में. इन लड़कियों की मदद करने के लिए पुरुषोचित अभिमान से सीना चौड़ा हो जाता है उस का.

काम करने के गजब तरीके हैं इन लड़कियों के पहली बार जब कुछ नया काम या

नया ऐप खोलना होता तो उन में से 1-2 घबरा जातीं, एक से दूसरे के डैस्कटौप पर काम ट्रांसफर करतीं, मक्खियों की तरह भिनभिन करतीं और फिर काम पूरा होने पर ऐसे चैन की सांस लेतीं जैसे ऐवरैस्ट की चढ़ाई फतह कर ली हो.

वह सोचता है कि जितनी देर आपस में गप्पें लगाती हैं. अगर उतनी देर सैटिंग्स पर जा कर कुछ देखो, इंस्ट्रक्शन पढ़ो, सम  झो, सारा काम करना सीख जाएंगी. तभी उस की तंद्रा टूटी.

‘‘सर, आप को पता है फ्राइडे हमारे औफिस में कैजुअल्स पहन के आते हैं. आप जींस पहन कर आइए न सर,’’ इन लड़कियों में जो सब से ज्यादा बातूनी है, उस ने कहा.

वह उस की बात हवा में उड़ाते हुए रुखाई से बोला, ‘‘हैड औफिस से फोन आया था. डाइरैक्टर साहब को रिपोर्ट करनी है. अगर आप का काम पूरा हो गया हो तो हम निकलें?’’ कहतेकहते वह थोड़ा सख्त हो गया.

लड़की ने भांप लिया और फिर बोली, ‘‘जी सर, बस एक नजर डाल लूं.’’

उस के चेहरे पर पड़ती शिकनें देख कर वह हंस पड़ी, ‘‘सर काम पर नहीं, शीशे पर नजर डालनी है. जरा टचिंग कर के आती हूं… काम पूरा है सर.’’

‘अजीब बेशर्म लड़की है. कुछ भी कह लो इस पर जूं नहीं रेंगने वाली. एक आदत खास है इस में कभी पूछेगी नहीं. हमेशा कुछ बताएगी,’ वह मन ही मन भुनभुनाया.

कार में बैठते ही लड़की का रिकौर्ड चालू हो गया.

‘‘यहां पर आने से पहले 2 साल तक विदेश में थी सर, फिर लौट आई.’’

‘‘क्यों पीआर नहीं मिला क्या?’’ वह बोला.

‘‘जी नहीं यह बात नहीं है. पीआर था, नौकरी भी ठीकठाक थी, पर मेरे हस्बैंड ने कहा वापस चलते हैं तो मैं ने भी अपना मन बदल लिया. यहां पर सारे लोग हैं. मेरे मम्मीपापा, मेरे इनलौज. हम दोनों के फ्रैंड्स, फिर कामवाली बाइयां.

‘‘दरअसल, मु  झे भीड़ अच्छी लगती है, इतनी कि बस टकरातेटकराते बचो.’’

फिर वह गंभीर हो गई. बोली, ‘‘यह बात भी नहीं सर. बात कुछ और ही थी… मेरे बेटे में अपने रंग को ले कर हीनभावना आ गई थी. उस ने कहा कि टीचर गोरे (अंगरेज) बच्चों को ज्यादा प्यार करती है. बस सर, मैं ने अपना मन बदल लिया. वापस आ गए हम दोनों.

‘‘बुरा नहीं लगता आप को,’’ उस ने लड़की से पूछा.

‘‘बुरा क्यों लगेगा?’’

‘‘अपना देश है जैसा भी है… टेढ़ा है पर मेरा है.’’

तभी लालबत्ती पर कार रुक गई. लड़की ने फटाफट अपना बैग खोला और एक पोटलीनुमा पर्स निकाला. थोड़ा सा कार का शीशा नीचे किया और फिर बच्चेमहिलाएं भीख मांग रहे थे, उन्हें पैसे बांटने लगी.

तभी कार चल पड़ी.

उस ने देखा एक छोटा लड़का सड़क से फ्लाइंग किस उछाल रहा था, जिसे इस ने लपक कर कैच कर लिया.

वह बोला, ‘‘कभी भी इन लोगों को पैसे नहीं देने चाहिए. ये आप का बैग छीन कर भाग सकते हैं.’’

‘‘जी सर सही कह रहे हैं पर क्या है न अब परिस्थितियां बदल गई हैं. क्या पता कौन किस मजबूरी में भीख मांग रहा हो. इसलिए मैं ने अपने विचारों को थोड़ा बदल लिया है. मेरा छोटा सा कंट्रीब्यूशन हो सकता है किसी की भूख मिटा दे,’’ उस ने पैसों की पोटली फिर अपने बैग में रख ली.

अब वह ड्राइवर से बोली, ‘‘भैयाजी गाना बदलिए. कुछ फड़कता हुआ सा म्यूजिक लगाइए न.’’

तभी उस के बच्चे की कौल आ गई. उस ने म्यूजिक धीरे करवाया… पूरा रास्ता बच्चे का होमवर्क कराने में काट दिया.

‘‘सर, बहुत शरारती है. मेरा बेटा बिना मेरे साथ बैठे कुछ नहीं करता. इसलिए रोज आधा घंटा औफिस के साथ थोड़ी बेवफाई करती हूं. सर, आखिरकार नौकरी भी तो फैमिली के लिए ही कर रही हूं.’’

हां हूं करते उस ने अपने दिमाग और जबान में मानो संतुलन बनाया, मगर विचारों ने गति पकड़ ली थी…

वह तो पूरी तन्मयता से नौकरी कर रहा

है… पत्नी और बच्चे उस की राह देख कर थक चुके हैं. उस का बच्चा भी आठ वर्ष का है. पर स्कूल से आने के बाद उस की दिनचर्या का उसे पता नहीं है. रात के भोजन पर ही उन की मुलाकात होती है. बिटिया जरूर लाड़ दिखा जाती है.

‘‘सर,’’ लड़की ने उस के विचारों को लगाम दी.

‘‘हां बोलो.’’

‘‘आप भी हमारे साथ ही लंच किया करें. अच्छा नहीं लगता आप अकेले बैठते हैं.’’

‘‘मैं ज्यादा कुछ नहीं खाता. हैवी ब्रेकफास्ट करता हूं. लंच तो बस नाममात्र का.’’

‘‘सर, कल आइए हमारे साथ. देखिए अगर अच्छा न लगे तो फिर नहीं कहूंगी.’’

अब एक बार सिलसिला चल पड़ा तो खत्म न हुआ… दूर से जैसी दिखती थी उस के विपरीत अंदर से बहुत संवेदनशील दुनिया थी इन लड़कियों की.

कोई टूटी टांग वाली पड़ोसिन आंटी को पूरीछोले पकड़ा कर आ रही है, तो एक शाम को अपनी सहेली के तलाक के लिए वकीलों के चक्कर काट रही है.

यहां से घर जा कर किसी को ननद को मेहंदी लगवाने ले जाना है, किसी को बच्चे को साइकिल के 4 राउंड लगवाने हैं, तो किसी के घर मेहमान आए पड़े हैं, जाते ही नहीं.

फिर भी औफिस में बर्थडे, प्रमोशन, बच्चे का रिजल्ट, हस्बैंड का बर्थडे, शादी की सालगिरह हर दिन लंच टाइम पर एक उत्सव है, इन लड़कियों का. फ्राईडे को इस बात का जश्न कि शनिवार, इतवार छुट्टी है. क्या कमाल की दुनिया है.

सब के पास ढेरों काम हैं, औफिस से पहले भी और घर जा कर भी. औफिस के काम में भी पूरी भागीदारी है. उस के विचार बदलने लग पड़े हैं.

उस की हिचक भी निकलती जा रही है. अब उसे नहीं लगता कि वह औफिस में अकेला मर्द है. घर में पत्नी भी खुश… वह रोज घर जा कर बताता है कि खाना कितना अच्छा बना था. यह तारीफ करना भी इन्हीं देवियों ने सिखाया है.

आज फ्राइडे है. उस ने अपनी ब्लू जींस पहनी, पत्नी देख कर हैरान हुई. पूछा, ‘‘आप औफिस ही जा रहे हैं न?’’

‘‘हां तो क्या हुआ? कभीकभी चेंज अच्छा लगता है.’’

‘‘यह भी सही है,’’ पत्नी ने ऊपरी तौर पर सहमति जताई, जबकि वह जानती थी कि वह कितना जिद्दी है, अपने कपड़ों को ले कर. वह भी   झेंप गया था, पर   झटके से घर से निकल लिया.

रास्ते में बौस का फोन आ गया. वे बोले, ‘‘तुम्हारा ट्रांसफर कर दूं… वापस आना चाहोगे?’’

उस को मानो   झटका सा लगा, ‘‘जैसा आप कहें… मु  झे तो जो आदेश मिलेगा वही पालन करूंगा.’’

‘‘नहीं तुम कह रहे थे औफिस में खाली लड़कियां हैं.’’

‘‘सर, लड़कियां ही तो हैं. क्या फर्क पड़ता है? मु  झे तो अब अच्छा लगता है. रौनक वाली जगह है सर.’’

‘‘हाहाहा,’’ उस के बौस की हंसी गूंज उठी. ऐक्चुअली यह बैस्ट पोस्टिंग है तुम्हारी.’’

‘‘जी सर, आप ठीक कहते हैं… यहां सीखने को बहुत कुछ है,’’ और वह मुसकरा दिया.

The post लड़कियां: वह महिला कर्मचारियों के साथ काम करने से क्यों कतरा रहा था appeared first on Sarita Magazine.



from कहानी – Sarita Magazine https://ift.tt/reFZAqK

नए औफिस में लड़कियां ज्यादा थीं. नहींनहीं यह कहना गलत होगा. दरअसल, यहां सिर्फ वह अकेला मर्द है. बाकी सब औरतें. उस ने हैड औफिस में अपने बौस से रिक्वैस्ट की है जैसे भी हो इस महिलाबहुल प्रतिष्ठान से उसे निकाल दिया जाए या एकाध पुरुष को और भेज दिया जाए. वह कुछ दिनों पहले ही यहां आया था.

ये लड़कियां पूरे समय या तो अपनी सास की बातें करती रहती हैं या फिर किसी रैसिपी पर डिसकस करतीं, कभीकभी कपड़ों की बातें करती हैं. हद तो तब हो जाती जब नैटफ्लिक्स की स्टोरी सुनाई जा रही होती है.

हैरत की बात है कि पीठ पीछे एकदूसरे की चुगली करने वाली लड़कियां लंच टाइम में एक हो जाती हैं. मिलबांट कर खाना खाया जाता है. पीछे की दुकान से समोसे मंगा कर खाए बिना उन का खाना पूरा न होता है.

‘जो जी चाहे करो. प्रजातंत्र है… सब अपनी मरजी के मालिक हो. बस इतनी कृपा करना देवियो कि जिस कंपनी की तनख्वाह ले रही हैं उस का भी कुछ काम कर देना,’ वह मन ही मन सोचता रहता.

उस की आदत है कम बोलने की और अपना काम दुरुस्त रखने की. मन ही मन गौरवान्वित होता है कि बौस ने उसे जानबू  झ कर भेजा है इस औफिस में. इन लड़कियों की मदद करने के लिए पुरुषोचित अभिमान से सीना चौड़ा हो जाता है उस का.

काम करने के गजब तरीके हैं इन लड़कियों के पहली बार जब कुछ नया काम या

नया ऐप खोलना होता तो उन में से 1-2 घबरा जातीं, एक से दूसरे के डैस्कटौप पर काम ट्रांसफर करतीं, मक्खियों की तरह भिनभिन करतीं और फिर काम पूरा होने पर ऐसे चैन की सांस लेतीं जैसे ऐवरैस्ट की चढ़ाई फतह कर ली हो.

वह सोचता है कि जितनी देर आपस में गप्पें लगाती हैं. अगर उतनी देर सैटिंग्स पर जा कर कुछ देखो, इंस्ट्रक्शन पढ़ो, सम  झो, सारा काम करना सीख जाएंगी. तभी उस की तंद्रा टूटी.

‘‘सर, आप को पता है फ्राइडे हमारे औफिस में कैजुअल्स पहन के आते हैं. आप जींस पहन कर आइए न सर,’’ इन लड़कियों में जो सब से ज्यादा बातूनी है, उस ने कहा.

वह उस की बात हवा में उड़ाते हुए रुखाई से बोला, ‘‘हैड औफिस से फोन आया था. डाइरैक्टर साहब को रिपोर्ट करनी है. अगर आप का काम पूरा हो गया हो तो हम निकलें?’’ कहतेकहते वह थोड़ा सख्त हो गया.

लड़की ने भांप लिया और फिर बोली, ‘‘जी सर, बस एक नजर डाल लूं.’’

उस के चेहरे पर पड़ती शिकनें देख कर वह हंस पड़ी, ‘‘सर काम पर नहीं, शीशे पर नजर डालनी है. जरा टचिंग कर के आती हूं… काम पूरा है सर.’’

‘अजीब बेशर्म लड़की है. कुछ भी कह लो इस पर जूं नहीं रेंगने वाली. एक आदत खास है इस में कभी पूछेगी नहीं. हमेशा कुछ बताएगी,’ वह मन ही मन भुनभुनाया.

कार में बैठते ही लड़की का रिकौर्ड चालू हो गया.

‘‘यहां पर आने से पहले 2 साल तक विदेश में थी सर, फिर लौट आई.’’

‘‘क्यों पीआर नहीं मिला क्या?’’ वह बोला.

‘‘जी नहीं यह बात नहीं है. पीआर था, नौकरी भी ठीकठाक थी, पर मेरे हस्बैंड ने कहा वापस चलते हैं तो मैं ने भी अपना मन बदल लिया. यहां पर सारे लोग हैं. मेरे मम्मीपापा, मेरे इनलौज. हम दोनों के फ्रैंड्स, फिर कामवाली बाइयां.

‘‘दरअसल, मु  झे भीड़ अच्छी लगती है, इतनी कि बस टकरातेटकराते बचो.’’

फिर वह गंभीर हो गई. बोली, ‘‘यह बात भी नहीं सर. बात कुछ और ही थी… मेरे बेटे में अपने रंग को ले कर हीनभावना आ गई थी. उस ने कहा कि टीचर गोरे (अंगरेज) बच्चों को ज्यादा प्यार करती है. बस सर, मैं ने अपना मन बदल लिया. वापस आ गए हम दोनों.

‘‘बुरा नहीं लगता आप को,’’ उस ने लड़की से पूछा.

‘‘बुरा क्यों लगेगा?’’

‘‘अपना देश है जैसा भी है… टेढ़ा है पर मेरा है.’’

तभी लालबत्ती पर कार रुक गई. लड़की ने फटाफट अपना बैग खोला और एक पोटलीनुमा पर्स निकाला. थोड़ा सा कार का शीशा नीचे किया और फिर बच्चेमहिलाएं भीख मांग रहे थे, उन्हें पैसे बांटने लगी.

तभी कार चल पड़ी.

उस ने देखा एक छोटा लड़का सड़क से फ्लाइंग किस उछाल रहा था, जिसे इस ने लपक कर कैच कर लिया.

वह बोला, ‘‘कभी भी इन लोगों को पैसे नहीं देने चाहिए. ये आप का बैग छीन कर भाग सकते हैं.’’

‘‘जी सर सही कह रहे हैं पर क्या है न अब परिस्थितियां बदल गई हैं. क्या पता कौन किस मजबूरी में भीख मांग रहा हो. इसलिए मैं ने अपने विचारों को थोड़ा बदल लिया है. मेरा छोटा सा कंट्रीब्यूशन हो सकता है किसी की भूख मिटा दे,’’ उस ने पैसों की पोटली फिर अपने बैग में रख ली.

अब वह ड्राइवर से बोली, ‘‘भैयाजी गाना बदलिए. कुछ फड़कता हुआ सा म्यूजिक लगाइए न.’’

तभी उस के बच्चे की कौल आ गई. उस ने म्यूजिक धीरे करवाया… पूरा रास्ता बच्चे का होमवर्क कराने में काट दिया.

‘‘सर, बहुत शरारती है. मेरा बेटा बिना मेरे साथ बैठे कुछ नहीं करता. इसलिए रोज आधा घंटा औफिस के साथ थोड़ी बेवफाई करती हूं. सर, आखिरकार नौकरी भी तो फैमिली के लिए ही कर रही हूं.’’

हां हूं करते उस ने अपने दिमाग और जबान में मानो संतुलन बनाया, मगर विचारों ने गति पकड़ ली थी…

वह तो पूरी तन्मयता से नौकरी कर रहा

है… पत्नी और बच्चे उस की राह देख कर थक चुके हैं. उस का बच्चा भी आठ वर्ष का है. पर स्कूल से आने के बाद उस की दिनचर्या का उसे पता नहीं है. रात के भोजन पर ही उन की मुलाकात होती है. बिटिया जरूर लाड़ दिखा जाती है.

‘‘सर,’’ लड़की ने उस के विचारों को लगाम दी.

‘‘हां बोलो.’’

‘‘आप भी हमारे साथ ही लंच किया करें. अच्छा नहीं लगता आप अकेले बैठते हैं.’’

‘‘मैं ज्यादा कुछ नहीं खाता. हैवी ब्रेकफास्ट करता हूं. लंच तो बस नाममात्र का.’’

‘‘सर, कल आइए हमारे साथ. देखिए अगर अच्छा न लगे तो फिर नहीं कहूंगी.’’

अब एक बार सिलसिला चल पड़ा तो खत्म न हुआ… दूर से जैसी दिखती थी उस के विपरीत अंदर से बहुत संवेदनशील दुनिया थी इन लड़कियों की.

कोई टूटी टांग वाली पड़ोसिन आंटी को पूरीछोले पकड़ा कर आ रही है, तो एक शाम को अपनी सहेली के तलाक के लिए वकीलों के चक्कर काट रही है.

यहां से घर जा कर किसी को ननद को मेहंदी लगवाने ले जाना है, किसी को बच्चे को साइकिल के 4 राउंड लगवाने हैं, तो किसी के घर मेहमान आए पड़े हैं, जाते ही नहीं.

फिर भी औफिस में बर्थडे, प्रमोशन, बच्चे का रिजल्ट, हस्बैंड का बर्थडे, शादी की सालगिरह हर दिन लंच टाइम पर एक उत्सव है, इन लड़कियों का. फ्राईडे को इस बात का जश्न कि शनिवार, इतवार छुट्टी है. क्या कमाल की दुनिया है.

सब के पास ढेरों काम हैं, औफिस से पहले भी और घर जा कर भी. औफिस के काम में भी पूरी भागीदारी है. उस के विचार बदलने लग पड़े हैं.

उस की हिचक भी निकलती जा रही है. अब उसे नहीं लगता कि वह औफिस में अकेला मर्द है. घर में पत्नी भी खुश… वह रोज घर जा कर बताता है कि खाना कितना अच्छा बना था. यह तारीफ करना भी इन्हीं देवियों ने सिखाया है.

आज फ्राइडे है. उस ने अपनी ब्लू जींस पहनी, पत्नी देख कर हैरान हुई. पूछा, ‘‘आप औफिस ही जा रहे हैं न?’’

‘‘हां तो क्या हुआ? कभीकभी चेंज अच्छा लगता है.’’

‘‘यह भी सही है,’’ पत्नी ने ऊपरी तौर पर सहमति जताई, जबकि वह जानती थी कि वह कितना जिद्दी है, अपने कपड़ों को ले कर. वह भी   झेंप गया था, पर   झटके से घर से निकल लिया.

रास्ते में बौस का फोन आ गया. वे बोले, ‘‘तुम्हारा ट्रांसफर कर दूं… वापस आना चाहोगे?’’

उस को मानो   झटका सा लगा, ‘‘जैसा आप कहें… मु  झे तो जो आदेश मिलेगा वही पालन करूंगा.’’

‘‘नहीं तुम कह रहे थे औफिस में खाली लड़कियां हैं.’’

‘‘सर, लड़कियां ही तो हैं. क्या फर्क पड़ता है? मु  झे तो अब अच्छा लगता है. रौनक वाली जगह है सर.’’

‘‘हाहाहा,’’ उस के बौस की हंसी गूंज उठी. ऐक्चुअली यह बैस्ट पोस्टिंग है तुम्हारी.’’

‘‘जी सर, आप ठीक कहते हैं… यहां सीखने को बहुत कुछ है,’’ और वह मुसकरा दिया.

The post लड़कियां: वह महिला कर्मचारियों के साथ काम करने से क्यों कतरा रहा था appeared first on Sarita Magazine.

July 13, 2022 at 10:18AM

No comments:

Post a Comment