Thursday 7 July 2022

पुनर्जन्म- भाग 1: उसे पुनर्जन्म का अहसास क्यों हो रहा था?

परिवार की जिम्मेदारी शिखा के कंधों पर आ पड़ी तो उस ने सूरज को सलाह दी कि वह उसे भूल जाए. अपना घर न बसा कर उस ने छोटे भाई व बहन को पढ़ायालिखाया, उन की शादियां कीं. मां का पूरा खयाल रखा. इसी बीच, काम की थकान उतारने को वह एकांतवास में चली गई तो उस ने महसूस किया कि उस का पुनर्जन्म हो रहा है.

‘‘आप को मालूम है मां, दीदी का प्रोमोशन के बाद भी जन कल्याण मंत्रालय से स्थानांतरण क्यों नहीं किया जा रहा, क्योंकि दीदी को व्यक्ति की पहचान है. वे बड़ी आसानी से पहचान लेती हैं कि किस समाजसेवी संस्था के लोग समाज का भला करने वाले हैं और कौन अपना. फिर आप लोग इतनी पारखी नजर वाली दीदी की जिंदगी का फैसला बगैर उन्हें भावी वर से मिलवाए खुद कैसे कर सकती हैं?’’ ऋचा ने तल्ख स्वर से पूछा, ‘‘पहले दीदी के अनुरूप सुव्यवस्थित 2 लोगों को आप ने इसलिए नकार दिया कि वे दुहाजू हैं और अब जब एक कुंआरा मिल रहा है तो आप इसलिए मना कर रही हैं कि उस में जरूर कुछ कमी होगी जो अब तक कुंआरा है. आखिर आप चाहती क्या हैं?’’

‘‘शिखा की भलाई और क्या?’’ मां भी चिढ़े स्वर में बोलीं.

‘‘मगर यह कैसी भलाई है, मां कि बस, वर का विवरण देखते ही आप और यश भैया ऐलान कर दें कि यह शिखा के उपयुक्त नहीं है. आप ने हर तरह से उपयुक्त उस कुंआरे आदमी के बारे में यह पता लगाने की कोशिश नहीं की कि उस की अब तक शादी न करने की क्या वजह है?’’

‘‘शादी के बाद यह कुछ ज्यादा नहीं बोलने लगी है, मां?’’ यश ने व्यंग्य से पूछा.

‘‘कम तो खैर मैं कभी भी नहीं बोलती थी, भैया. बस, शादी के बाद सही बोलने की हिम्मत आ गई है,’’ ऋचा व्यंग्य से मुसकराई.

‘‘बोलने की ही हिम्मत आई है, सोचने की नहीं,’’ यश ने कटाक्ष किया, ‘‘सीधी सी बात है, 35 साल तक कुंआरा रहने वाला आदमी दिलजला होगा…’’

‘‘फिर तो वह दीदी के लिए सर्वथा उपयुक्त है,’’ ऋचा ने बात काटी, ‘‘क्योंकि दीदी भी अपने बैचमेट सूरज के साथ दिल जला कर मसूरी की सर्द वादियों में अपने प्रणय की आग लगा चुकी हैं.’’

‘‘तुम तो शादी के बाद बेशर्म भी हो गई हो ऋचा, कैसे अपने परिवार और कैरियर के प्रति संप्रीत दीदी पर इतना घिनौना आरोप लगा रही हो?’’ यश की पत्नी शशि ने पूछा.

‘‘यह आरोप नहीं हकीकत है, भाभी. दीदी की सगाई उन के बैचमेट सूरज से होने वाली थी लेकिन उस से एक सप्ताह पहले ही पापा को हार्ट अटैक पड़ गया. पापा जब आईसीयू में थे तो मैं ने दीदी को फोन पर कहते सुना था, ‘पापा अगर बच भी गए तो सामान्य जीवन नहीं जी पाएंगे, इसलिए बड़ी और कमाऊ होने के नाते परिवार के भरणपोषण की जिम्मेदारी मेरी है. सो, जब तक यश आईएएस प्रतियोगिता में उत्तीर्ण न हो जाए और ऋचा डाक्टर न बन जाए, मैं शादी नहीं कर सकती, सूरज. इस सब में कई साल लग जाएंगे, सो बेहतर होगा कि तुम मुझे भूल जाओ.’

‘‘उस के बाद दीदी ने दृढ़ता से शादी करने से मना कर दिया, रिश्तेदारों ने भी उन का साथ दिया क्योंकि अपाहिज पापा की तीमारदारी का खर्च तो उन के परिवार का कमाऊ सदस्य ही उठा सकता था और वह सिर्फ दीदी थीं. पापा ने अंतिम सांस लेने से पहले दीदी से वचन लिया था कि यश भैया और मेरे व्यवस्थित होने के बाद वे अपनी शादी के लिए मना नहीं करेंगी. आप को पता ही है कि मैं ने डब्लूएचओ की स्कालरशिप छोड़ कर अरुण से शादी क्यों की, ताकि दीदी पापा की अंतिम इच्छा पूरी कर सकें.’’

‘‘हमारे लिए उस के पापा की अंतिम इच्छा से बढ़ कर शिखा की अपनी इच्छा और भलाई जरूरी है,’’ मां ने तटस्थता से कहा.

‘‘पापा की अंतिम इच्छा पूरी करना दीदी की इच्छाओं में से एक है,’’ ऋचा बोली, ‘‘रहा भलाई का सवाल तो आप लोग केवल उपयुक्त घरवर सुझाइए, उस के अपने अनुरूप या अनुकूल होने का फैसला दीदी को करने दीजिए.’’

‘‘और अगर हम ने ऐसा नहीं किया न मां तो यह दीदी की परम हितैषिणी स्वयं दीदी के लिए घरवर ढूंढ़ने निकल पड़ेगी,’’ यश व्यंग्य से हंसा.

‘‘बिलकुल सही समझा आप ने, भैया. इस से पहले कि मैं और अरुण अमेरिका जाएं मैं चाहूंगी कि दीदी का भी अपना घरसंसार हो. आज मैं जो हूं दीदी की मेहनत और त्याग के कारण. सच कहिए, अगर दीदी न होतीं तो आप लोग मेरी डाक्टरी की पढ़ाई का खर्च उठा सकते थे?’’ ऋचा ने तल्ख स्वर में पूछा, ‘‘आप के लिए तो पापा की मृत्यु मेहनत से बचने का बहाना बन गई भैया. बगैर यह परवा किए कि पापा का सपना आप को आईएएस अधिकारी बनाना था, आप ने उन की जगह अनुकंपा में मिल रही बैंक की नौकरी ले ली क्योंकि आप पढ़ना नहीं चाहते थे. मां भी आप से मेहनत करवाना नहीं चाहतीं. और फिर पापा के समय की आनबान बनाए रखने को आईएएस अफसर दीदी तो थीं ही. नहीं तो आप के बजाय यह नौकरी मां भी कर सकती थीं, आप पढ़ाई और दीदी शादी.’’

‘‘ये गड़े मुर्दे उखाड़ कर तू कहना क्या चाहती है?’’ मां ने झल्लाए स्वर में पूछा.

‘‘यही कि पुत्रमोह में दीदी के साथ अब और अन्याय मत कीजिए. भइया की गृहस्थी चलाने के बजाय उन्हें अब अपना घरसंसार बसाने दीजिए. फिलहाल उस डाक्टर का विवरण मुझे दे दीजिए. मैं उस के बारे में पता लगाती हूं,’’ ऋचा ने उठते हुए कहा.

‘‘वह हम लगा लेंगे मगर आप चली कहां, अभी बैठो न,’’ शशि ने आग्रह किया.

‘‘अस्पताल जाने का समय हो गया है, भाभी,’’ कह कर ऋचा चल पड़ी. मां और यश ने रोका भी नहीं जबकि मां को मालूम था कि आज उस की छुट्टी है.

ऋचा सीधे शिखा के आफिस गई.

‘‘आप से कुछ जरूरी बात करनी है, दीदी. अगर आप अभी व्यस्त हैं तो मैं इंतजार कर लेती हूं,’’ उस ने बगैर किसी भूमिका के कहा.

‘‘अभी मैं एक मीटिंग में जा रही हूं, घंटे भर तक तो वह चलेगी ही. तू ऐसा कर, घर चली जा. मैं मीटिंग खत्म होते ही आ आऊंगी.’’

‘‘घर से तो आ ही रही हूं. आप ऐसा करिए मेरे घर आ जाइए, अरुण की रात 10 बजे तक ड्यूटी है, वह जब तक आएंगे हमारी बात खत्म हो जाएगी.’’

‘‘ऐसी क्या बात है ऋचा, जो मां और अरुण के सामने नहीं हो सकती?’’

‘‘बहनों की बात बहनों में ही रहने दो न दीदी.’’

‘‘अच्छी बात है,’’ शिखा मुसकराई, ‘‘मीटिंग खत्म होते ही तेरे घर पहुंचती हूं.’’

उसे लगा कि ऋचा अमेरिका जाने से पहले कुछ खास खरीदने के लिए उस की सिफारिश चाहती होगी. मीटिंग खत्म होते ही वह ऋचा के घर आ गई.

‘‘अब बता, क्या बात है?’’ शिखा ने चाय पीने के बाद पूछा.

‘‘मैं चाहती हूं दीदी कि मेरे और अरुण के अमेरिका जाने से पहले आप पापा को दिया हुआ अपना वचन कि जिम्मेदारियां पूरी होते ही आप शादी कर लेंगी, पूरा कर लें,’’ ऋचा ने बगैर किसी भूमिका के कहा, ‘‘वैसे आप की जिम्मेदारी तो मेरे डाक्टर बनते ही पूरी हो गई थी फिर भी आप मेरी शादी करवाना चाहती थीं, सो मैं ने वह भी कर ली…’’

‘‘लेकिन मेरी जिम्मेदारियां तो खत्म नहीं हुईं, बहन,’’ शिखा ने बात काटी, ‘‘यश अपना परिवार ही नहीं संभाल पाता है तो मां को कैसे संभालेगा?’’

‘‘यानी न कभी जिम्मेदारियां पूरी होंगी और न पापा की अंतिम इच्छा. जीने वालों के लिए ही नहीं दिवंगत आत्मा के प्रति भी आप का कुछ कर्तव्य है, दीदी.’’

शिखा ने एक उसांस ली.

‘‘मैं ने यह वचन पापा को ही नहीं सूरज को भी दिया था ऋचा, और जो उस ने मेरे लिए किया है उस के बाद उसे दिया हुआ वचन पूरा करना भी मेरा फर्ज बनता है लेकिन महज वचन के कारण जिम्मेदारियों से मुंह तो नहीं मोड़ सकती.’’

‘‘मां के लिए पापा की पेंशन काफी है, दीदी, और जरूरत पड़ने पर पैसे से मैं और आप दोनों ही उन की मदद कर सकते हैं, उन्हें अपने पास रख सकते हैं. यश का परिवार उस की निजी समस्या है, मेहनत करें तो दोनों मियांबीवी अच्छाखासा कमा सकते हैं, उन के लिए आप को परेशान होने की जरूरत नहीं है,’’ ऋचा ने आवेश से कहा और फिर हिचकते हुए पूछा, ‘‘माफ करना, दीदी, मगर मुझे याद नहीं आ रहा कि सूरज ने आप के लिए क्या किया?’’

‘‘मुझे रुसवाई से बचाने के लिए सूरज ने मेहनत से मिली आईएएस की नौकरी छोड़ दी क्योंकि हमारे सभी साथियों को हमारी प्रेमकहानी और होने वाली सगाई के बारे में मालूम था. एक ही विभाग में होने के कारण गाहेबगाहे मुलाकात होती और अफवाहें भी उड़तीं, सो मुझे इस सब से बचाने के लिए सूरज नौकरी छोड़ कर जाने कहां चला गया.’’

‘‘आप ने उसे तलाशने की कोशिश नहीं की?’’

‘‘उस के किएकराए यानी त्याग पर पानी फेरने के लिए?’’

‘‘यह बात भी ठीक है. देखिए दीदी, जब आप वचनबद्ध हुई थीं तब आप की जिम्मेदारी केवल भैया और मेरी पढ़ाई पूरी करवाने तक सीमित थी, लेकिन आप ने हमारी शादियां भी करवा दीं. अब उस के बाद की जिम्मेदारियां आप के वचन की परिधि से बाहर हैं और अब आप का फर्ज केवल अपना वचन निभाना है. बहुत जी लीं दूसरों के लिए और यादों के सहारे, अब अपने लिए जी कर देखिए दीदी, कुछ नए यादगार क्षण संजोने की कोशिश करिए.’’

‘‘कहती तो तू ठीक है…’’

‘‘तो फिर आज से ही इंटरनेट पर अपने मनपसंद जीवनसाथी की तलाश शुरू कर दीजिए. मां तो पुत्रमोह में आप की शादी करवाएंगी नहीं.’’

The post पुनर्जन्म- भाग 1: उसे पुनर्जन्म का अहसास क्यों हो रहा था? appeared first on Sarita Magazine.



from कहानी – Sarita Magazine https://ift.tt/4saF5mb

परिवार की जिम्मेदारी शिखा के कंधों पर आ पड़ी तो उस ने सूरज को सलाह दी कि वह उसे भूल जाए. अपना घर न बसा कर उस ने छोटे भाई व बहन को पढ़ायालिखाया, उन की शादियां कीं. मां का पूरा खयाल रखा. इसी बीच, काम की थकान उतारने को वह एकांतवास में चली गई तो उस ने महसूस किया कि उस का पुनर्जन्म हो रहा है.

‘‘आप को मालूम है मां, दीदी का प्रोमोशन के बाद भी जन कल्याण मंत्रालय से स्थानांतरण क्यों नहीं किया जा रहा, क्योंकि दीदी को व्यक्ति की पहचान है. वे बड़ी आसानी से पहचान लेती हैं कि किस समाजसेवी संस्था के लोग समाज का भला करने वाले हैं और कौन अपना. फिर आप लोग इतनी पारखी नजर वाली दीदी की जिंदगी का फैसला बगैर उन्हें भावी वर से मिलवाए खुद कैसे कर सकती हैं?’’ ऋचा ने तल्ख स्वर से पूछा, ‘‘पहले दीदी के अनुरूप सुव्यवस्थित 2 लोगों को आप ने इसलिए नकार दिया कि वे दुहाजू हैं और अब जब एक कुंआरा मिल रहा है तो आप इसलिए मना कर रही हैं कि उस में जरूर कुछ कमी होगी जो अब तक कुंआरा है. आखिर आप चाहती क्या हैं?’’

‘‘शिखा की भलाई और क्या?’’ मां भी चिढ़े स्वर में बोलीं.

‘‘मगर यह कैसी भलाई है, मां कि बस, वर का विवरण देखते ही आप और यश भैया ऐलान कर दें कि यह शिखा के उपयुक्त नहीं है. आप ने हर तरह से उपयुक्त उस कुंआरे आदमी के बारे में यह पता लगाने की कोशिश नहीं की कि उस की अब तक शादी न करने की क्या वजह है?’’

‘‘शादी के बाद यह कुछ ज्यादा नहीं बोलने लगी है, मां?’’ यश ने व्यंग्य से पूछा.

‘‘कम तो खैर मैं कभी भी नहीं बोलती थी, भैया. बस, शादी के बाद सही बोलने की हिम्मत आ गई है,’’ ऋचा व्यंग्य से मुसकराई.

‘‘बोलने की ही हिम्मत आई है, सोचने की नहीं,’’ यश ने कटाक्ष किया, ‘‘सीधी सी बात है, 35 साल तक कुंआरा रहने वाला आदमी दिलजला होगा…’’

‘‘फिर तो वह दीदी के लिए सर्वथा उपयुक्त है,’’ ऋचा ने बात काटी, ‘‘क्योंकि दीदी भी अपने बैचमेट सूरज के साथ दिल जला कर मसूरी की सर्द वादियों में अपने प्रणय की आग लगा चुकी हैं.’’

‘‘तुम तो शादी के बाद बेशर्म भी हो गई हो ऋचा, कैसे अपने परिवार और कैरियर के प्रति संप्रीत दीदी पर इतना घिनौना आरोप लगा रही हो?’’ यश की पत्नी शशि ने पूछा.

‘‘यह आरोप नहीं हकीकत है, भाभी. दीदी की सगाई उन के बैचमेट सूरज से होने वाली थी लेकिन उस से एक सप्ताह पहले ही पापा को हार्ट अटैक पड़ गया. पापा जब आईसीयू में थे तो मैं ने दीदी को फोन पर कहते सुना था, ‘पापा अगर बच भी गए तो सामान्य जीवन नहीं जी पाएंगे, इसलिए बड़ी और कमाऊ होने के नाते परिवार के भरणपोषण की जिम्मेदारी मेरी है. सो, जब तक यश आईएएस प्रतियोगिता में उत्तीर्ण न हो जाए और ऋचा डाक्टर न बन जाए, मैं शादी नहीं कर सकती, सूरज. इस सब में कई साल लग जाएंगे, सो बेहतर होगा कि तुम मुझे भूल जाओ.’

‘‘उस के बाद दीदी ने दृढ़ता से शादी करने से मना कर दिया, रिश्तेदारों ने भी उन का साथ दिया क्योंकि अपाहिज पापा की तीमारदारी का खर्च तो उन के परिवार का कमाऊ सदस्य ही उठा सकता था और वह सिर्फ दीदी थीं. पापा ने अंतिम सांस लेने से पहले दीदी से वचन लिया था कि यश भैया और मेरे व्यवस्थित होने के बाद वे अपनी शादी के लिए मना नहीं करेंगी. आप को पता ही है कि मैं ने डब्लूएचओ की स्कालरशिप छोड़ कर अरुण से शादी क्यों की, ताकि दीदी पापा की अंतिम इच्छा पूरी कर सकें.’’

‘‘हमारे लिए उस के पापा की अंतिम इच्छा से बढ़ कर शिखा की अपनी इच्छा और भलाई जरूरी है,’’ मां ने तटस्थता से कहा.

‘‘पापा की अंतिम इच्छा पूरी करना दीदी की इच्छाओं में से एक है,’’ ऋचा बोली, ‘‘रहा भलाई का सवाल तो आप लोग केवल उपयुक्त घरवर सुझाइए, उस के अपने अनुरूप या अनुकूल होने का फैसला दीदी को करने दीजिए.’’

‘‘और अगर हम ने ऐसा नहीं किया न मां तो यह दीदी की परम हितैषिणी स्वयं दीदी के लिए घरवर ढूंढ़ने निकल पड़ेगी,’’ यश व्यंग्य से हंसा.

‘‘बिलकुल सही समझा आप ने, भैया. इस से पहले कि मैं और अरुण अमेरिका जाएं मैं चाहूंगी कि दीदी का भी अपना घरसंसार हो. आज मैं जो हूं दीदी की मेहनत और त्याग के कारण. सच कहिए, अगर दीदी न होतीं तो आप लोग मेरी डाक्टरी की पढ़ाई का खर्च उठा सकते थे?’’ ऋचा ने तल्ख स्वर में पूछा, ‘‘आप के लिए तो पापा की मृत्यु मेहनत से बचने का बहाना बन गई भैया. बगैर यह परवा किए कि पापा का सपना आप को आईएएस अधिकारी बनाना था, आप ने उन की जगह अनुकंपा में मिल रही बैंक की नौकरी ले ली क्योंकि आप पढ़ना नहीं चाहते थे. मां भी आप से मेहनत करवाना नहीं चाहतीं. और फिर पापा के समय की आनबान बनाए रखने को आईएएस अफसर दीदी तो थीं ही. नहीं तो आप के बजाय यह नौकरी मां भी कर सकती थीं, आप पढ़ाई और दीदी शादी.’’

‘‘ये गड़े मुर्दे उखाड़ कर तू कहना क्या चाहती है?’’ मां ने झल्लाए स्वर में पूछा.

‘‘यही कि पुत्रमोह में दीदी के साथ अब और अन्याय मत कीजिए. भइया की गृहस्थी चलाने के बजाय उन्हें अब अपना घरसंसार बसाने दीजिए. फिलहाल उस डाक्टर का विवरण मुझे दे दीजिए. मैं उस के बारे में पता लगाती हूं,’’ ऋचा ने उठते हुए कहा.

‘‘वह हम लगा लेंगे मगर आप चली कहां, अभी बैठो न,’’ शशि ने आग्रह किया.

‘‘अस्पताल जाने का समय हो गया है, भाभी,’’ कह कर ऋचा चल पड़ी. मां और यश ने रोका भी नहीं जबकि मां को मालूम था कि आज उस की छुट्टी है.

ऋचा सीधे शिखा के आफिस गई.

‘‘आप से कुछ जरूरी बात करनी है, दीदी. अगर आप अभी व्यस्त हैं तो मैं इंतजार कर लेती हूं,’’ उस ने बगैर किसी भूमिका के कहा.

‘‘अभी मैं एक मीटिंग में जा रही हूं, घंटे भर तक तो वह चलेगी ही. तू ऐसा कर, घर चली जा. मैं मीटिंग खत्म होते ही आ आऊंगी.’’

‘‘घर से तो आ ही रही हूं. आप ऐसा करिए मेरे घर आ जाइए, अरुण की रात 10 बजे तक ड्यूटी है, वह जब तक आएंगे हमारी बात खत्म हो जाएगी.’’

‘‘ऐसी क्या बात है ऋचा, जो मां और अरुण के सामने नहीं हो सकती?’’

‘‘बहनों की बात बहनों में ही रहने दो न दीदी.’’

‘‘अच्छी बात है,’’ शिखा मुसकराई, ‘‘मीटिंग खत्म होते ही तेरे घर पहुंचती हूं.’’

उसे लगा कि ऋचा अमेरिका जाने से पहले कुछ खास खरीदने के लिए उस की सिफारिश चाहती होगी. मीटिंग खत्म होते ही वह ऋचा के घर आ गई.

‘‘अब बता, क्या बात है?’’ शिखा ने चाय पीने के बाद पूछा.

‘‘मैं चाहती हूं दीदी कि मेरे और अरुण के अमेरिका जाने से पहले आप पापा को दिया हुआ अपना वचन कि जिम्मेदारियां पूरी होते ही आप शादी कर लेंगी, पूरा कर लें,’’ ऋचा ने बगैर किसी भूमिका के कहा, ‘‘वैसे आप की जिम्मेदारी तो मेरे डाक्टर बनते ही पूरी हो गई थी फिर भी आप मेरी शादी करवाना चाहती थीं, सो मैं ने वह भी कर ली…’’

‘‘लेकिन मेरी जिम्मेदारियां तो खत्म नहीं हुईं, बहन,’’ शिखा ने बात काटी, ‘‘यश अपना परिवार ही नहीं संभाल पाता है तो मां को कैसे संभालेगा?’’

‘‘यानी न कभी जिम्मेदारियां पूरी होंगी और न पापा की अंतिम इच्छा. जीने वालों के लिए ही नहीं दिवंगत आत्मा के प्रति भी आप का कुछ कर्तव्य है, दीदी.’’

शिखा ने एक उसांस ली.

‘‘मैं ने यह वचन पापा को ही नहीं सूरज को भी दिया था ऋचा, और जो उस ने मेरे लिए किया है उस के बाद उसे दिया हुआ वचन पूरा करना भी मेरा फर्ज बनता है लेकिन महज वचन के कारण जिम्मेदारियों से मुंह तो नहीं मोड़ सकती.’’

‘‘मां के लिए पापा की पेंशन काफी है, दीदी, और जरूरत पड़ने पर पैसे से मैं और आप दोनों ही उन की मदद कर सकते हैं, उन्हें अपने पास रख सकते हैं. यश का परिवार उस की निजी समस्या है, मेहनत करें तो दोनों मियांबीवी अच्छाखासा कमा सकते हैं, उन के लिए आप को परेशान होने की जरूरत नहीं है,’’ ऋचा ने आवेश से कहा और फिर हिचकते हुए पूछा, ‘‘माफ करना, दीदी, मगर मुझे याद नहीं आ रहा कि सूरज ने आप के लिए क्या किया?’’

‘‘मुझे रुसवाई से बचाने के लिए सूरज ने मेहनत से मिली आईएएस की नौकरी छोड़ दी क्योंकि हमारे सभी साथियों को हमारी प्रेमकहानी और होने वाली सगाई के बारे में मालूम था. एक ही विभाग में होने के कारण गाहेबगाहे मुलाकात होती और अफवाहें भी उड़तीं, सो मुझे इस सब से बचाने के लिए सूरज नौकरी छोड़ कर जाने कहां चला गया.’’

‘‘आप ने उसे तलाशने की कोशिश नहीं की?’’

‘‘उस के किएकराए यानी त्याग पर पानी फेरने के लिए?’’

‘‘यह बात भी ठीक है. देखिए दीदी, जब आप वचनबद्ध हुई थीं तब आप की जिम्मेदारी केवल भैया और मेरी पढ़ाई पूरी करवाने तक सीमित थी, लेकिन आप ने हमारी शादियां भी करवा दीं. अब उस के बाद की जिम्मेदारियां आप के वचन की परिधि से बाहर हैं और अब आप का फर्ज केवल अपना वचन निभाना है. बहुत जी लीं दूसरों के लिए और यादों के सहारे, अब अपने लिए जी कर देखिए दीदी, कुछ नए यादगार क्षण संजोने की कोशिश करिए.’’

‘‘कहती तो तू ठीक है…’’

‘‘तो फिर आज से ही इंटरनेट पर अपने मनपसंद जीवनसाथी की तलाश शुरू कर दीजिए. मां तो पुत्रमोह में आप की शादी करवाएंगी नहीं.’’

The post पुनर्जन्म- भाग 1: उसे पुनर्जन्म का अहसास क्यों हो रहा था? appeared first on Sarita Magazine.

July 08, 2022 at 10:00AM

No comments:

Post a Comment