Thursday 14 July 2022

कठिनाइयां- भाग 1: लड़ाकू फौज के जवान ने उसके साथ क्या किया?

बात वर्ष 1975 की है. मेरी पहली संतान का जन्म होने वाला था. मैं उस समय हवलदार था और अरुणाचल प्रदेश के अलौंग में वर्कशाप की डिटैचमैंट में तैनात था. हमारी मेन यूनिट लेखाबाली में थी. मुझे इमरजैंसी में घर में बुलाया गया था. इस के लिए तार पहले मेन यूनिट में आया था. फिर मुझे भेजा गया था. मैं ने छुट्टी के लिए अप्लाई किया. छुट्टी मिल गई. पर मैं ऐसे ही छुट्टी पर नहीं जा सकता था, पूरे स्टोर की जिम्मेदारी मुझ पर थी. डिटैचमैंट में सभी कलपुर्जे और टूल्स की सप्लाई मेरी जिम्मेदारी थी.

जब तक मेन यूनिट से दूसरा स्टोरकीपर नहीं आ जाता, मैं छुट्टी पर नहीं जा सकता था. मेन यूनिट से दूसरा आदमी आने में 2 दिन लग गए. वह सोमवार को आया. मैं ने जल्दी से उसे चार्ज दिया और मंगलवार को मेन यूनिट में आने के लिए तैयार हुआ. वहां की सभी यूनिटों की छुट्टी पार्टी को ले कर गाड़ी केवल शनिवार को लेखाबाली जाती थी. मुझे मंगलवार को ही मेन यूनिट में पहुचना था. तभी बुधवार को मैं अपने घर जा सकता था.

सरकारी डाक ले कर ग्रैफ रोड बनाने वाली यूनिट की गाड़ी रोज लेखाबाली जाती थी. उन से गुजारिश की गई. बारिश वहां सारे साल होती है. ग्रैफ वालों ने कहा, ‘मौसम ठीक रहा तो गाड़ी जाएगी.’ मैं अपनी यूनिट की गाड़ी से वहां पहुचा. गाड़ी लेखाबाली जाने के लिए तैयार खड़ी थी. बारिश हो रही थी. सरकारी डाक को रोका नहीं जा सकता था.

गाड़ी में मैं था, ड्राइवर के साथ एक जवान था. जवान पीछे बैठ कर डंडामैन का काम करता था. पीछे से आने वाली गाड़ी को पास देना होता था तो डंडा मार कर ड्राइवर को सूचित करता था और वह पास दे देता था.

मेरे पहुंचते ही गाड़ी चल पड़ी. पता चला मौसम चाहे कैसा भी हो, गाड़ी जरूर जाती है. हम चले तो बारिश काफी तेज थी. रास्ते में कभी तेज हो जाती कभी कम. पहाड़ी रास्ता, घुमावदार सड़क, कच्चे पहाड़. डर केवल यह था कि स्लाइडिंग हो गई तो लेखाबाली पहुंचने में रात हो जाएगी. सड़क को साफ करने के लिए ग्रैफ यूनिट के जवान 24 घंटे तैयार रहते थे.

हलकीहलकी बारिश होती रही थी. एक मोड़ पर ड्राइवर से गाड़ी सीधी नहीं हुई और वह हजारों फुट नीचे खाई की ओर बढ़ी. पहाड़ी इलाके में गाड़ी तेज नहीं चलती है. ड्राइवर घबरा गया पर मैं होश में रहा. हम सैनिकों को ट्रेनिंग ऐसी दी जाती है, अगर सामने से गोलियां भी आ रहीं हों तो हम होश में रहें और अपना विवेक न खोएं. मैं ने तुरंत हैंडब्रेक खींची और ड्राइवर से कहा, ‘घबराओ मत, एक्सीलेटर से पैर हटा कर ब्रेक पर रखो. हलकेहलके ब्रेक लगाते रहो. स्पीड कम हो जाएगी और किसी न किसी वृक्ष के साथ जा कर रुक जाएगी.’

यह आश्चर्य ही था कि गाड़ी रुक गई. मैं ने ड्राइवर से कहा, ‘ब्रेक से पैर मत हटाना. पहले पीछे बैठे जवान से बोला कि डाक ले कर नीचे उतर जाओ. पहले उस ने डाक का थैला फेंका और फिर आराम से उतर गया. फिर मैं ने ड्राइवर से बोला, ‘आप अपना दरवाजा खोल लें, मैं अपना खोल लेता हूं. हम दोनों इकट्ठे कूदेंगे और तुरंत किसी झाड़ी को पकड़ कर बैठ जाएंगे. गाड़ी की परवा मत करना. वह बाद में रिकवर हो जाएगी.’ हम दोनों कूदे, थोड़ा लुढ़के और फिर झाड़ियों को पकड़ लिया. धीरेधीरे झाड़ियों को पकड़ते हुए सुरिक्षत सड़क पर आ गए. गाड़ी कहां गई, पता न चला. छुट्टी के बाद कोर्ट औफ इंक्वायरी में पता चला कि ड्राइवर का कुसूर नहीं था. स्टेरिंग लौक हो गया था. 5 दिनों बाद गाड़ी रिकवर हो सकी थी.

हम कैसे बच गए, यह कुदरत का एक करिश्मा था. हम तीनों ने कुदरत का धन्यवाद किया. जिस टहनी से गाड़ी रुकी थी, वह निहायत पतली टहनी थी. कोई सोच भी नहीं सकता था कि इतनी बड़ी गाड़ी को इस पतली टहनी ने रोका है. पर सचाई को झुठलाया नहीं जा सकता था. सुबूत और निशान उपलब्ध थे.

अब समस्या यह थी कि ग्रैफ की रोड रिपेयर पार्टी को कैसे इनफौर्म करें. उस समय आज की तरह संचार के साधन नहीं थे. वैसे रिपेयर पार्टी को अंदाजा था कि अगर 11 बजे डाक गाड़ी चली है तो 5 बजे तक उन के पास पहुंच जानी चाहिए. उन को स्टैंडिंग इंस्ट्रक्शन था कि अगर 5 बजे तक डाक गाड़ी नहीं आती है तो उस की खोज में सर्च पार्टी भेजी जाए.

सर्च पार्टी को हम तक पहुंचने में एक घंटा लग गया. उन के पास संचार के साधन थे. उन्होंने यूनिट में बताया तो आदेश मिला कि अपनी गाड़ी में डाक और वर्कशौप के जवान को भेज दो. ड्राइवर को रोक लो. गाड़ी के लिए हम रिकवरी पार्टी भेज रहे हैं.

उन की गाड़ी में हम लेखाबाली के लिए निकले. लेखाबाली तक रास्ता साफ मिला पर वहां पहुंचतेपहुंचते रात के 11 बज गए. मैस बंद था. गेट पर खड़े संतरी को अपने आने की सूचना दे कर रात भूखे ही सो गया. सुबह छुट्टी की कार्रवाई की गई. दूसरे दिन अलौंग में ऐक्सिडैंट के बारे में पता चला तो वहां के अफसर इंचार्ज ने मुझ से बात की और इस नैरो एस्केप के लिए बधाई दी. मैं ने सर का आभार व्यक्त किया और कहा, ‘ सर, सच में यह नैरो एस्केप था. मैं सोच नहीं सकता था कि हम जिंदा बचेंगे.’

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बात वर्ष 1975 की है. मेरी पहली संतान का जन्म होने वाला था. मैं उस समय हवलदार था और अरुणाचल प्रदेश के अलौंग में वर्कशाप की डिटैचमैंट में तैनात था. हमारी मेन यूनिट लेखाबाली में थी. मुझे इमरजैंसी में घर में बुलाया गया था. इस के लिए तार पहले मेन यूनिट में आया था. फिर मुझे भेजा गया था. मैं ने छुट्टी के लिए अप्लाई किया. छुट्टी मिल गई. पर मैं ऐसे ही छुट्टी पर नहीं जा सकता था, पूरे स्टोर की जिम्मेदारी मुझ पर थी. डिटैचमैंट में सभी कलपुर्जे और टूल्स की सप्लाई मेरी जिम्मेदारी थी.

जब तक मेन यूनिट से दूसरा स्टोरकीपर नहीं आ जाता, मैं छुट्टी पर नहीं जा सकता था. मेन यूनिट से दूसरा आदमी आने में 2 दिन लग गए. वह सोमवार को आया. मैं ने जल्दी से उसे चार्ज दिया और मंगलवार को मेन यूनिट में आने के लिए तैयार हुआ. वहां की सभी यूनिटों की छुट्टी पार्टी को ले कर गाड़ी केवल शनिवार को लेखाबाली जाती थी. मुझे मंगलवार को ही मेन यूनिट में पहुचना था. तभी बुधवार को मैं अपने घर जा सकता था.

सरकारी डाक ले कर ग्रैफ रोड बनाने वाली यूनिट की गाड़ी रोज लेखाबाली जाती थी. उन से गुजारिश की गई. बारिश वहां सारे साल होती है. ग्रैफ वालों ने कहा, ‘मौसम ठीक रहा तो गाड़ी जाएगी.’ मैं अपनी यूनिट की गाड़ी से वहां पहुचा. गाड़ी लेखाबाली जाने के लिए तैयार खड़ी थी. बारिश हो रही थी. सरकारी डाक को रोका नहीं जा सकता था.

गाड़ी में मैं था, ड्राइवर के साथ एक जवान था. जवान पीछे बैठ कर डंडामैन का काम करता था. पीछे से आने वाली गाड़ी को पास देना होता था तो डंडा मार कर ड्राइवर को सूचित करता था और वह पास दे देता था.

मेरे पहुंचते ही गाड़ी चल पड़ी. पता चला मौसम चाहे कैसा भी हो, गाड़ी जरूर जाती है. हम चले तो बारिश काफी तेज थी. रास्ते में कभी तेज हो जाती कभी कम. पहाड़ी रास्ता, घुमावदार सड़क, कच्चे पहाड़. डर केवल यह था कि स्लाइडिंग हो गई तो लेखाबाली पहुंचने में रात हो जाएगी. सड़क को साफ करने के लिए ग्रैफ यूनिट के जवान 24 घंटे तैयार रहते थे.

हलकीहलकी बारिश होती रही थी. एक मोड़ पर ड्राइवर से गाड़ी सीधी नहीं हुई और वह हजारों फुट नीचे खाई की ओर बढ़ी. पहाड़ी इलाके में गाड़ी तेज नहीं चलती है. ड्राइवर घबरा गया पर मैं होश में रहा. हम सैनिकों को ट्रेनिंग ऐसी दी जाती है, अगर सामने से गोलियां भी आ रहीं हों तो हम होश में रहें और अपना विवेक न खोएं. मैं ने तुरंत हैंडब्रेक खींची और ड्राइवर से कहा, ‘घबराओ मत, एक्सीलेटर से पैर हटा कर ब्रेक पर रखो. हलकेहलके ब्रेक लगाते रहो. स्पीड कम हो जाएगी और किसी न किसी वृक्ष के साथ जा कर रुक जाएगी.’

यह आश्चर्य ही था कि गाड़ी रुक गई. मैं ने ड्राइवर से कहा, ‘ब्रेक से पैर मत हटाना. पहले पीछे बैठे जवान से बोला कि डाक ले कर नीचे उतर जाओ. पहले उस ने डाक का थैला फेंका और फिर आराम से उतर गया. फिर मैं ने ड्राइवर से बोला, ‘आप अपना दरवाजा खोल लें, मैं अपना खोल लेता हूं. हम दोनों इकट्ठे कूदेंगे और तुरंत किसी झाड़ी को पकड़ कर बैठ जाएंगे. गाड़ी की परवा मत करना. वह बाद में रिकवर हो जाएगी.’ हम दोनों कूदे, थोड़ा लुढ़के और फिर झाड़ियों को पकड़ लिया. धीरेधीरे झाड़ियों को पकड़ते हुए सुरिक्षत सड़क पर आ गए. गाड़ी कहां गई, पता न चला. छुट्टी के बाद कोर्ट औफ इंक्वायरी में पता चला कि ड्राइवर का कुसूर नहीं था. स्टेरिंग लौक हो गया था. 5 दिनों बाद गाड़ी रिकवर हो सकी थी.

हम कैसे बच गए, यह कुदरत का एक करिश्मा था. हम तीनों ने कुदरत का धन्यवाद किया. जिस टहनी से गाड़ी रुकी थी, वह निहायत पतली टहनी थी. कोई सोच भी नहीं सकता था कि इतनी बड़ी गाड़ी को इस पतली टहनी ने रोका है. पर सचाई को झुठलाया नहीं जा सकता था. सुबूत और निशान उपलब्ध थे.

अब समस्या यह थी कि ग्रैफ की रोड रिपेयर पार्टी को कैसे इनफौर्म करें. उस समय आज की तरह संचार के साधन नहीं थे. वैसे रिपेयर पार्टी को अंदाजा था कि अगर 11 बजे डाक गाड़ी चली है तो 5 बजे तक उन के पास पहुंच जानी चाहिए. उन को स्टैंडिंग इंस्ट्रक्शन था कि अगर 5 बजे तक डाक गाड़ी नहीं आती है तो उस की खोज में सर्च पार्टी भेजी जाए.

सर्च पार्टी को हम तक पहुंचने में एक घंटा लग गया. उन के पास संचार के साधन थे. उन्होंने यूनिट में बताया तो आदेश मिला कि अपनी गाड़ी में डाक और वर्कशौप के जवान को भेज दो. ड्राइवर को रोक लो. गाड़ी के लिए हम रिकवरी पार्टी भेज रहे हैं.

उन की गाड़ी में हम लेखाबाली के लिए निकले. लेखाबाली तक रास्ता साफ मिला पर वहां पहुंचतेपहुंचते रात के 11 बज गए. मैस बंद था. गेट पर खड़े संतरी को अपने आने की सूचना दे कर रात भूखे ही सो गया. सुबह छुट्टी की कार्रवाई की गई. दूसरे दिन अलौंग में ऐक्सिडैंट के बारे में पता चला तो वहां के अफसर इंचार्ज ने मुझ से बात की और इस नैरो एस्केप के लिए बधाई दी. मैं ने सर का आभार व्यक्त किया और कहा, ‘ सर, सच में यह नैरो एस्केप था. मैं सोच नहीं सकता था कि हम जिंदा बचेंगे.’

The post कठिनाइयां- भाग 1: लड़ाकू फौज के जवान ने उसके साथ क्या किया? appeared first on Sarita Magazine.

July 15, 2022 at 10:26AM

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