Monday 4 July 2022

झटका- भाग 1: निशा के दरवाजे पर कौन था?

विवेक को औफिस के लिए निकले 2 मिनट भी नहीं हुए थे कि मोबाइल की घंटी बज उठी. उस की पत्नी संगीता ने बड़े थकेहारे अंदाज में फोन उठाया.

उस की ‘हैलो’ के जवाब में किसी स्त्री ने तेजतर्रार आवाज में कहा, ‘‘विवेक है क्या? फोन नहीं उठा रहा.’’

‘‘आप कौन बोल रही हैं?’’ उस स्त्री की चुभती आवाज ने संगीता की उदासी को चीर कर उस की आवाज में नापसंदगी के भाव पैदा किए.

‘‘तुम संगीता हो न?’’

‘‘हां, और आप?’’

‘‘मोटी भैंस, ज्यादा पूछताछ करने की आदत बंद कर,’’ उस स्त्री ने उसे डांट दिया.

‘‘इस तरह बदतमीजी से मेरे साथ बात करने का तुम्हें क्या अधिकार है?’’ मारे गुस्से के संगीता की आवाज कांप उठी.

‘‘मुझे अधिकार प्राप्त हैं क्योंकि मैं विवेक के दिल की रानी हूं,’’ वह किलसाने वाले अंदाज में हंसी.

‘‘शटअप,’’ संगीता का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया.

‘‘यू शटअप, मोटो,’’ एक बार वह फिर दिल जलाती हंसी हंसी और फिर फोन काट दिया.

‘‘बेवकूफ, पागल औरत,’’ बहुत परेशान और गुस्से में नजर आ रही संगीता ने जोर की आवाज के साथ फोन साइड में रखा.

‘‘भाभी, किस से झगड़ा कर रही हो?’’ संगीता की ननद अंजलि ने पीछे से सवाल पूछा, तो संगीता की आंखों में एकाएक आंसू उमड़ आए.

अंजलि ने संगीता को कंधों से पकड़ा, तो वह अपने ऊपर से पूरा नियंत्रण खो रोने लगी.

उसे सोफे पर बिठाने के बाद अंजलि उस के लिए पानी लाई. संगीता का रोना सुन कर उस के सासससुर भी बैठक में आ पहुंचे.

वे सब बड़ी मुश्किल से संगीता को चुप करा पाए. बारबार अटकते हुए फिर संगीता ने उन्हें फोन पर उस बददिमाग स्त्री से हुए वार्त्तालाप का ब्योरा दिया.

‘‘अगर विवेक ने इस औरत के साथ कोई गलत चक्कर चला रखा होगा, तो मैं अपनी जान दे दूंगी,’’ संगीता फिर से रोंआसी हो उठी.

‘‘मेरा बेटा ऐसी गलत हरकत नहीं कर सकता,’’ विवेक की मां आरती ने अपने बेटे के प्रति विश्वास व्यक्त किया.

‘‘भाभी, बिना सुबूत ऐसी बातों पर विश्वास कर अपने को परेशान मत करो,’’ अंजलि ने कोमल स्वर में उसे सलाह दी.

‘‘उस गधे ने अगर कोई ऐसी गलत हरकत करने की मूर्खता की, तो मैं लूंगा उस की खबर,’’ उस के ससुर कैलाशजी फौरन अपनी बहू के पक्ष में हो गए.

‘‘पापा, बिना आग के धुआं नहीं होता. वह लडक़ी बड़े कौन्फिडैंस से खुद को उन की प्रेमिका बता रही थी.’’

‘‘संगीता बेटा, तुम रोओ मत. हम जांच करेंगे पूरे मामले की.’’

‘‘मैं समय की मारी औरत हूं. पहले मैं ने अपना बच्चा खो दिया और अब उन्हें भी किसी ने मुझ से छीन लिया है,’’ इस बार संगीता अपनी सास की छाती से लगकर सुबकने लगी.

काफी समय लगा उन तीनों को उसे समझानेबुझाने में. फिर संगीता की कुछ देर को आंख लग गई और वे तीनों धीमी आवाज में इस नई समस्या पर विचारविमर्श करने लगे.

पिछले 2 महीनों से संगीता की बिगड़ी मानसिक स्थिति उन सभी के लिए चिंता का कारण बनी हुर्ई थी.

करीब 6 महीने तक गर्भवती रहने के बाद संगीता ने अपने बच्चे को खो दिया था. काफी कोशिशों के बावजूद डाक्टर गर्भपात होने को रोक नहीं पाए थे. कोविड की वजह से डाक्टर के पास न जाने के कारण उस ने कुछ लापरवाही भी बरती थी. 2 महीने भी पूरे नहीं हुए थे, उस ने तब ही विवाहित जीवन के आरंभिक समय को मौजमस्ती का हवाला दे कर गर्भपात कराने की इच्छा जताई थी. वह इतनी जल्दी मां नहीं बनना चाहती थी.

विवेक ने फौरन उस की इच्छा का जबरदस्त विरोध किया. दोनों के बीच इस विषय पर काफी तकरार भी हुई.

विवेक और उस के मातापिता दकियानूसी किस्म के थे और अभी भी गंडों/धागों में भरोसा रखते थे. वे बाबा की कृपा मानते थे उस बच्चे को. बड़े अनमन से अंदाज में संगीता बच्चे को अपनी कोख में रखने को तैयार हुई. शायद ज्यादा खुश न होने से उस की तबीयत कुछ ज्यादा ही ढीली रहती. उस की एक्सपोर्ट कंपनी की नौकरी भी छूट गई इस वजह से.

डाक्टर की देखभाल के बावजूद जब गर्भपात हो गया, तो संगीता जबरदस्त अपराधबोध और गहरी उदासी का शिकार हो गई.

‘मैं ने अपने बच्चे को जन्म देने से पहले ही अस्वीकार कर दिया, पहाड़ी वाले बाबा ने मुझे इसी बात की सजा दी है. अच्छी औरत नहीं हूं…’ ऐसी बातें मुंह से बारबार निकाल कर संगीता गहरे डिप्रैशन का शिकार हो गई. उन का परिवार हमेशा से गांव में रहा था और वहीं का रहनसहन अब भी अपनाए हुए था.

किसी के समझाने का उस पर कोई असर नहीं हुआ. रोने या मौन आंसू बहाने के अलावा वह कुछ न करती. दोबारा से नौकरी शुरू करने में उस ने कोई दिलचस्पी नहीं दिखार्ई थी. घर में पैसे की थोड़ी दिक्कत भी हो गई थी.

वह खाना तो बेमन से खाती, पर उस की खुराक बढ़ गई. इस कारण उस का वजन तेजी से बढ़ा.

फोन पर उस स्त्री ने उसे ‘मोटी भैंस’ कहा, तो ये शब्द संगीता के दिल को तेज धक्का लगा गए.

नींद टूटने के बाद वह यंत्रचलित सी उठी और रसोई के पास लगे शीशे के सामने जा खड़ी हुई.

काफी लंबे समय के बाद उस दिन संगीता ने खुद को ध्यान से देखा. सचमुच ही उस का शरीर फूल कर बेडौल हो गया था. चेहरे का नूर पूरी तरह गायब था. आंखों के नीचे काले निशान भयानक से लग रहे थे. वह जानती थी कि उस की मां/दादियां इसी तरह की लगती थीं क्योंकि वे धूप में रहती थीं और गांव की गपों में  समय काटा करती थीं.

अपनी बदहाली देख कर एक बार उसे धक्का लगा, पर फिर उदासी के बादलों में घिर कर वह आंसू बहाने लगी.

‘‘मुझे जीना नहीं चाहिए… जिंदगी बहुत भारी बोझ बन गई है मेरे लिए,’’ ऐसा निराशाजनक, खतरनाक विचार पहली बार उस के मन में उठा और वह अपनी बेबसी पर रो पड़ी.

उस शाम विवेक की फैक्ट्री से लौटते ही शामत आ गई. अपने मातापिता व बहन के हाथों उसे गहन पूछताछ का शिकार बनना पड़ा. वे तीनों गुस्से में थे और बिना किसी ठोस सुबूत के ही उसे अवैध प्रेमसंबंध स्थापित करने का दोषी मान रहे थे.

आखिरकार वह बुरी तरह से चिढ़ कर चिल्ला उठा, ‘‘बेकार में मेरे पीछे मत पड़ो. मेरा किसी औरत से कोई गलत संबंध नहीं  है. मेरी चिता किसी को नहीं है, पर इस कारण मैं अपने चरित्र पर धब्बा नहीं लगा रहा हूं.’’ आखिरी वाक्य बोलते हुए विवेक ने संगीता को गुस्से से घूरा और फिर पैर पटकता शयनकक्ष में चला गया.

उस के यों फट पडऩे के कारण संगीता अचानक अपने को समय की मारी समझने लगी. उसे एहसास हुआ कि सचमुच वह अपने मर्द का ख़याल न रखने की दोषी थी. अपना मोटा शरीर इस पल उसे खुद को बड़ा खराब और शर्मिंदगी पैदा करने वाला लगा.

आरती और कैलाशजी ने अपने बेटे को निर्दोष मान लिया और कुछ देर संगीता को समझा कर अपने कमरे में चले गए.

रात में सोने के समय तक विवेक का मूड खराब बना रहा. अपने को असुरक्षित व परेशान महसूस कर रही संगीता उस से लिपट कर लेटी, पर उस ने किसी भी तरह की प्रतिक्रिया व्यक्त न की.

‘‘आप मुझ से नाराज हो?’’ अपनी उपेक्षा से दुखी हो कर संगीता ने सवाल पूछा.

विवेक ने कोई जवाब नहीं दिया, तो संगीता ने फिर से अपना सवाल दोहराया.

‘‘मैं नाराज क्यों नहीं होऊंगा?’’ विवेक एकदम से चिड़ उठा, ‘‘सब घरवालों को मेरे पीछे पड़ा कर तुम्हें क्या मिला?’’

‘‘उस औरत की बातें सुन कर मैं बहुत परेशान हो गई थी,’’ संगीता ने सफाई दी.

‘‘कोई औरत तुम से फोन पर क्या कहती है, उस के लिए मैं जिम्मेदार नहीं.’’

‘‘मुझ से गलती हो गई,’’ संगीता रोंआसी हो गई.

‘‘तुम अपनेआप को संभालो, संगीता. बड़े ढीलेढाले अंदाज में जिंदगी जी रही हो तुम. अगर जल्दी अपने में बदलाव नहीं लाईं, तो बीमार पड़ जाओगी एक दिन.’’

विवेक की आंखों में अपने लिए गहरी चिंता के भाव देख कर संगीता के मन ने अजीब सी शांति महसूस की.

‘‘आप गुस्सा थूक दो, प्लीज,’’ संगीता उस की आंखों में झांकते हुए सहमे से अंदाज में मुसकराई.

विवेक ने उसे प्यार के साथ अपनी छाती से लगा लिया. मन ही मन अपनी जिंदगी को फिर से सही राह पर लाने का संकल्प ले कर संगीता जल्दी ही गहरी नींद में खो गई.

सचमुच अगले दिन से ही संगीता अपनी दिनचर्या में बदलाव लाई. वह जल्दी उठी. विवेक के लिए नाश्ता भी उसी ने तैयार किया. जल्दी नहा कर तैयार भी हुई. आदत न होने के कारण थक गई, पर फिर भी उस ने कुछ देर व्यायाम किया.

उस के इन प्रयासों को उस के सास, ससुर व अंजलि ने नोट भी किया.

संगीता खुद को काफी एनर्जी से भरा व खुश महसूस कर रही थी. लेकिन फिर उसी औरत का फोन दोपहर को आया और वह फिर से तनावग्रस्त हो गई.

‘‘तुम विवेक को आजाद कर दो, संगीता,’’ उसी स्त्री ने बिना भूमिका बांधे अपनी मांग उसे बता दी.

‘‘क्यों?’’ अपने गुस्से को काबू में रखते हुए संगीता ने एक शब्द का सवाल पूछा.

‘‘क्योंकि वह मेरे साथ खुश रहेगा.’’

‘‘तुम्हें यह गलतफहमी क्यों है कि वह मेरे साथ खुश नहीं है?’’

‘‘यह विवेक ही मुझ से रोज कहता है, मैडम. तुम उस की जिंदगी में ऐसा बोझ बन गई हो जिसे वह आगे बिलकुल नहीं ढोना चाहता.’’

‘‘कहां मिलती हो तुम उस से? कौन हो तुम?’’

पहले वह स्त्री खुल कर हंसी और फिर व्यंग्यभरे लहजे में बोली, ‘‘मोटो, मेरे बारे में पूछताछ न ही करो, तो बेहतर होगा. जिस दिन मैं तुम्हारे सामने आ गई, उस दिन शर्म के मारे जमीन में गड़ जाओगी तुम मेरी शानदार पर्सनैलिटी देख कर.’’

“पर्सनैलिटी का तो मुझे पता नहीं, पर तुम्हारे घटियापन के बारे में अंदाजा लगाना मेरे लिए मुश्किल नहीं है.”

संगीता का चुभता स्वर उस स्त्री को क्रोधित कर गया, ‘‘मेरे चालचलन पर उंगली मत उठाओ क्योंकि विवेक मुझे तुम से हजार गुणा ज्यादा चाहता है.’’

‘‘पागल औरत, ऐसे बेकार के सपने देखना बंद कर दो.’’

‘‘मोटी भैंस, सचाई का सामना करो और मेरे विवेक को आजाद कर दो.’’

‘‘विवेक का तुम से कोई संबंध नहीं है.’’

‘‘अच्छा,’’ वह गुस्से से भरी आवाज में बोली, ‘‘उस का मुझ से क्या संबंध है, इस की खबर आज शाम उस के कपड़ों से आ रही मेरे बदन की महक तुम्हें देगी.’’

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विवेक को औफिस के लिए निकले 2 मिनट भी नहीं हुए थे कि मोबाइल की घंटी बज उठी. उस की पत्नी संगीता ने बड़े थकेहारे अंदाज में फोन उठाया.

उस की ‘हैलो’ के जवाब में किसी स्त्री ने तेजतर्रार आवाज में कहा, ‘‘विवेक है क्या? फोन नहीं उठा रहा.’’

‘‘आप कौन बोल रही हैं?’’ उस स्त्री की चुभती आवाज ने संगीता की उदासी को चीर कर उस की आवाज में नापसंदगी के भाव पैदा किए.

‘‘तुम संगीता हो न?’’

‘‘हां, और आप?’’

‘‘मोटी भैंस, ज्यादा पूछताछ करने की आदत बंद कर,’’ उस स्त्री ने उसे डांट दिया.

‘‘इस तरह बदतमीजी से मेरे साथ बात करने का तुम्हें क्या अधिकार है?’’ मारे गुस्से के संगीता की आवाज कांप उठी.

‘‘मुझे अधिकार प्राप्त हैं क्योंकि मैं विवेक के दिल की रानी हूं,’’ वह किलसाने वाले अंदाज में हंसी.

‘‘शटअप,’’ संगीता का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया.

‘‘यू शटअप, मोटो,’’ एक बार वह फिर दिल जलाती हंसी हंसी और फिर फोन काट दिया.

‘‘बेवकूफ, पागल औरत,’’ बहुत परेशान और गुस्से में नजर आ रही संगीता ने जोर की आवाज के साथ फोन साइड में रखा.

‘‘भाभी, किस से झगड़ा कर रही हो?’’ संगीता की ननद अंजलि ने पीछे से सवाल पूछा, तो संगीता की आंखों में एकाएक आंसू उमड़ आए.

अंजलि ने संगीता को कंधों से पकड़ा, तो वह अपने ऊपर से पूरा नियंत्रण खो रोने लगी.

उसे सोफे पर बिठाने के बाद अंजलि उस के लिए पानी लाई. संगीता का रोना सुन कर उस के सासससुर भी बैठक में आ पहुंचे.

वे सब बड़ी मुश्किल से संगीता को चुप करा पाए. बारबार अटकते हुए फिर संगीता ने उन्हें फोन पर उस बददिमाग स्त्री से हुए वार्त्तालाप का ब्योरा दिया.

‘‘अगर विवेक ने इस औरत के साथ कोई गलत चक्कर चला रखा होगा, तो मैं अपनी जान दे दूंगी,’’ संगीता फिर से रोंआसी हो उठी.

‘‘मेरा बेटा ऐसी गलत हरकत नहीं कर सकता,’’ विवेक की मां आरती ने अपने बेटे के प्रति विश्वास व्यक्त किया.

‘‘भाभी, बिना सुबूत ऐसी बातों पर विश्वास कर अपने को परेशान मत करो,’’ अंजलि ने कोमल स्वर में उसे सलाह दी.

‘‘उस गधे ने अगर कोई ऐसी गलत हरकत करने की मूर्खता की, तो मैं लूंगा उस की खबर,’’ उस के ससुर कैलाशजी फौरन अपनी बहू के पक्ष में हो गए.

‘‘पापा, बिना आग के धुआं नहीं होता. वह लडक़ी बड़े कौन्फिडैंस से खुद को उन की प्रेमिका बता रही थी.’’

‘‘संगीता बेटा, तुम रोओ मत. हम जांच करेंगे पूरे मामले की.’’

‘‘मैं समय की मारी औरत हूं. पहले मैं ने अपना बच्चा खो दिया और अब उन्हें भी किसी ने मुझ से छीन लिया है,’’ इस बार संगीता अपनी सास की छाती से लगकर सुबकने लगी.

काफी समय लगा उन तीनों को उसे समझानेबुझाने में. फिर संगीता की कुछ देर को आंख लग गई और वे तीनों धीमी आवाज में इस नई समस्या पर विचारविमर्श करने लगे.

पिछले 2 महीनों से संगीता की बिगड़ी मानसिक स्थिति उन सभी के लिए चिंता का कारण बनी हुर्ई थी.

करीब 6 महीने तक गर्भवती रहने के बाद संगीता ने अपने बच्चे को खो दिया था. काफी कोशिशों के बावजूद डाक्टर गर्भपात होने को रोक नहीं पाए थे. कोविड की वजह से डाक्टर के पास न जाने के कारण उस ने कुछ लापरवाही भी बरती थी. 2 महीने भी पूरे नहीं हुए थे, उस ने तब ही विवाहित जीवन के आरंभिक समय को मौजमस्ती का हवाला दे कर गर्भपात कराने की इच्छा जताई थी. वह इतनी जल्दी मां नहीं बनना चाहती थी.

विवेक ने फौरन उस की इच्छा का जबरदस्त विरोध किया. दोनों के बीच इस विषय पर काफी तकरार भी हुई.

विवेक और उस के मातापिता दकियानूसी किस्म के थे और अभी भी गंडों/धागों में भरोसा रखते थे. वे बाबा की कृपा मानते थे उस बच्चे को. बड़े अनमन से अंदाज में संगीता बच्चे को अपनी कोख में रखने को तैयार हुई. शायद ज्यादा खुश न होने से उस की तबीयत कुछ ज्यादा ही ढीली रहती. उस की एक्सपोर्ट कंपनी की नौकरी भी छूट गई इस वजह से.

डाक्टर की देखभाल के बावजूद जब गर्भपात हो गया, तो संगीता जबरदस्त अपराधबोध और गहरी उदासी का शिकार हो गई.

‘मैं ने अपने बच्चे को जन्म देने से पहले ही अस्वीकार कर दिया, पहाड़ी वाले बाबा ने मुझे इसी बात की सजा दी है. अच्छी औरत नहीं हूं…’ ऐसी बातें मुंह से बारबार निकाल कर संगीता गहरे डिप्रैशन का शिकार हो गई. उन का परिवार हमेशा से गांव में रहा था और वहीं का रहनसहन अब भी अपनाए हुए था.

किसी के समझाने का उस पर कोई असर नहीं हुआ. रोने या मौन आंसू बहाने के अलावा वह कुछ न करती. दोबारा से नौकरी शुरू करने में उस ने कोई दिलचस्पी नहीं दिखार्ई थी. घर में पैसे की थोड़ी दिक्कत भी हो गई थी.

वह खाना तो बेमन से खाती, पर उस की खुराक बढ़ गई. इस कारण उस का वजन तेजी से बढ़ा.

फोन पर उस स्त्री ने उसे ‘मोटी भैंस’ कहा, तो ये शब्द संगीता के दिल को तेज धक्का लगा गए.

नींद टूटने के बाद वह यंत्रचलित सी उठी और रसोई के पास लगे शीशे के सामने जा खड़ी हुई.

काफी लंबे समय के बाद उस दिन संगीता ने खुद को ध्यान से देखा. सचमुच ही उस का शरीर फूल कर बेडौल हो गया था. चेहरे का नूर पूरी तरह गायब था. आंखों के नीचे काले निशान भयानक से लग रहे थे. वह जानती थी कि उस की मां/दादियां इसी तरह की लगती थीं क्योंकि वे धूप में रहती थीं और गांव की गपों में  समय काटा करती थीं.

अपनी बदहाली देख कर एक बार उसे धक्का लगा, पर फिर उदासी के बादलों में घिर कर वह आंसू बहाने लगी.

‘‘मुझे जीना नहीं चाहिए… जिंदगी बहुत भारी बोझ बन गई है मेरे लिए,’’ ऐसा निराशाजनक, खतरनाक विचार पहली बार उस के मन में उठा और वह अपनी बेबसी पर रो पड़ी.

उस शाम विवेक की फैक्ट्री से लौटते ही शामत आ गई. अपने मातापिता व बहन के हाथों उसे गहन पूछताछ का शिकार बनना पड़ा. वे तीनों गुस्से में थे और बिना किसी ठोस सुबूत के ही उसे अवैध प्रेमसंबंध स्थापित करने का दोषी मान रहे थे.

आखिरकार वह बुरी तरह से चिढ़ कर चिल्ला उठा, ‘‘बेकार में मेरे पीछे मत पड़ो. मेरा किसी औरत से कोई गलत संबंध नहीं  है. मेरी चिता किसी को नहीं है, पर इस कारण मैं अपने चरित्र पर धब्बा नहीं लगा रहा हूं.’’ आखिरी वाक्य बोलते हुए विवेक ने संगीता को गुस्से से घूरा और फिर पैर पटकता शयनकक्ष में चला गया.

उस के यों फट पडऩे के कारण संगीता अचानक अपने को समय की मारी समझने लगी. उसे एहसास हुआ कि सचमुच वह अपने मर्द का ख़याल न रखने की दोषी थी. अपना मोटा शरीर इस पल उसे खुद को बड़ा खराब और शर्मिंदगी पैदा करने वाला लगा.

आरती और कैलाशजी ने अपने बेटे को निर्दोष मान लिया और कुछ देर संगीता को समझा कर अपने कमरे में चले गए.

रात में सोने के समय तक विवेक का मूड खराब बना रहा. अपने को असुरक्षित व परेशान महसूस कर रही संगीता उस से लिपट कर लेटी, पर उस ने किसी भी तरह की प्रतिक्रिया व्यक्त न की.

‘‘आप मुझ से नाराज हो?’’ अपनी उपेक्षा से दुखी हो कर संगीता ने सवाल पूछा.

विवेक ने कोई जवाब नहीं दिया, तो संगीता ने फिर से अपना सवाल दोहराया.

‘‘मैं नाराज क्यों नहीं होऊंगा?’’ विवेक एकदम से चिड़ उठा, ‘‘सब घरवालों को मेरे पीछे पड़ा कर तुम्हें क्या मिला?’’

‘‘उस औरत की बातें सुन कर मैं बहुत परेशान हो गई थी,’’ संगीता ने सफाई दी.

‘‘कोई औरत तुम से फोन पर क्या कहती है, उस के लिए मैं जिम्मेदार नहीं.’’

‘‘मुझ से गलती हो गई,’’ संगीता रोंआसी हो गई.

‘‘तुम अपनेआप को संभालो, संगीता. बड़े ढीलेढाले अंदाज में जिंदगी जी रही हो तुम. अगर जल्दी अपने में बदलाव नहीं लाईं, तो बीमार पड़ जाओगी एक दिन.’’

विवेक की आंखों में अपने लिए गहरी चिंता के भाव देख कर संगीता के मन ने अजीब सी शांति महसूस की.

‘‘आप गुस्सा थूक दो, प्लीज,’’ संगीता उस की आंखों में झांकते हुए सहमे से अंदाज में मुसकराई.

विवेक ने उसे प्यार के साथ अपनी छाती से लगा लिया. मन ही मन अपनी जिंदगी को फिर से सही राह पर लाने का संकल्प ले कर संगीता जल्दी ही गहरी नींद में खो गई.

सचमुच अगले दिन से ही संगीता अपनी दिनचर्या में बदलाव लाई. वह जल्दी उठी. विवेक के लिए नाश्ता भी उसी ने तैयार किया. जल्दी नहा कर तैयार भी हुई. आदत न होने के कारण थक गई, पर फिर भी उस ने कुछ देर व्यायाम किया.

उस के इन प्रयासों को उस के सास, ससुर व अंजलि ने नोट भी किया.

संगीता खुद को काफी एनर्जी से भरा व खुश महसूस कर रही थी. लेकिन फिर उसी औरत का फोन दोपहर को आया और वह फिर से तनावग्रस्त हो गई.

‘‘तुम विवेक को आजाद कर दो, संगीता,’’ उसी स्त्री ने बिना भूमिका बांधे अपनी मांग उसे बता दी.

‘‘क्यों?’’ अपने गुस्से को काबू में रखते हुए संगीता ने एक शब्द का सवाल पूछा.

‘‘क्योंकि वह मेरे साथ खुश रहेगा.’’

‘‘तुम्हें यह गलतफहमी क्यों है कि वह मेरे साथ खुश नहीं है?’’

‘‘यह विवेक ही मुझ से रोज कहता है, मैडम. तुम उस की जिंदगी में ऐसा बोझ बन गई हो जिसे वह आगे बिलकुल नहीं ढोना चाहता.’’

‘‘कहां मिलती हो तुम उस से? कौन हो तुम?’’

पहले वह स्त्री खुल कर हंसी और फिर व्यंग्यभरे लहजे में बोली, ‘‘मोटो, मेरे बारे में पूछताछ न ही करो, तो बेहतर होगा. जिस दिन मैं तुम्हारे सामने आ गई, उस दिन शर्म के मारे जमीन में गड़ जाओगी तुम मेरी शानदार पर्सनैलिटी देख कर.’’

“पर्सनैलिटी का तो मुझे पता नहीं, पर तुम्हारे घटियापन के बारे में अंदाजा लगाना मेरे लिए मुश्किल नहीं है.”

संगीता का चुभता स्वर उस स्त्री को क्रोधित कर गया, ‘‘मेरे चालचलन पर उंगली मत उठाओ क्योंकि विवेक मुझे तुम से हजार गुणा ज्यादा चाहता है.’’

‘‘पागल औरत, ऐसे बेकार के सपने देखना बंद कर दो.’’

‘‘मोटी भैंस, सचाई का सामना करो और मेरे विवेक को आजाद कर दो.’’

‘‘विवेक का तुम से कोई संबंध नहीं है.’’

‘‘अच्छा,’’ वह गुस्से से भरी आवाज में बोली, ‘‘उस का मुझ से क्या संबंध है, इस की खबर आज शाम उस के कपड़ों से आ रही मेरे बदन की महक तुम्हें देगी.’’

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July 05, 2022 at 10:23AM

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