Thursday 14 July 2022

वो क्या जाने पीर पराई- भाग 1: हेमंत की मृत्यु के बाद विभा के साथ क्या हुआ?

आखिर किस का सहारा शेष बचा था ममता के लिए. हम दशहरे की छुट्टियां मसूरी में बिता कर लौटे. विमल ने कार से सामान निकाल कर बैडरूम में रखा और फिर लैटरबौक्स से अपनी डाक निकाल कर सोफे में धंस गए.

बहुत लगाव है उन्हें अपनी डाक से. प्रत्येक डाक का जैसे उन्हें सदियों से इंतजार रहता हो.

बच्चे आते ही टीवी चालू कर बैठ गए.

‘‘आते ही टीवी,’’ मैं ने ?ाल्ला कर कहा, ‘‘तुम लोग हफ्ताभर पूरी तरह मस्ती करते रहे. थोड़ा मेरे साथ भी हाथ बंटा दो तो घर जल्दी संभल जाए.’’

‘‘मम्मी, मैं पूरी तरह थका हूं. बैठेबैठे बोर हो गया. पापा ने चीतल के बाद गाड़ी रोकी नहीं, आप तो आते ही बस…’’ मेरा बड़ा बेटा मुंह बिचका कर बोला. छोटे से तो कोई उम्मीद वैसे भी नहीं थी.

‘‘अच्छा ठीक है,’’ मैं ने बरामदे का दरवाजा खोलते हुए कहा, ‘‘गमलों में पानी ही डाल दो, पौधे कैसे सूख गए हैं.’’

परंतु मु?ो मालूम था, मेरी बात सब अनसुनी ही कर देते हैं. जोर से बोलूंगी तो दोनों भागते हुए यहां चले आएंगे. फर्श पर पड़े सूखे पत्तों और धूल की मोटीमोटी परतों ने हिला कर रख दिया. छुट्टियों से पहले और बाद का सारा काम सारी मौजमस्ती को ?ाठला कर रख देता है. न जाने कितना समय लगेगा फिर से घर को ढंग से चलाने में.

‘‘विभा,’’ विमल ने जोर से आवाज दे कर पूछा, ‘‘कहीं से चाय मिल सकती है क्या? गाड़ी चलातेचलाते थक गया हूं. चाय मिल जाती तो थोड़ा आराम कर लेता.’’

‘‘अभी भला दूध कहां मिलेगा?

5 बजे से पहले तो दुकानें खुलती ही नहीं हैं. फिर भी सामने वाली से पूछती हूं,’’ मेरा इशारा पड़ोसिन की तरफ था.

गिलास ले कर पड़ोसिन के यहां गई तो उस ने कोरियर द्वारा आया एक लिफाफा और तार भी दिया.

‘‘एचडीएफसी से तुम्हारे लिए कोरियर है… शायद स्टेटमैंट होगी,’’ मैं ने विमल के हाथ में लिफाफा पकड़ाते हुए कहा, ‘‘और कानपुर से ममता का तार आया है.’’

‘‘तार?’’ विमल ने चौंकते हुए पूछा, ‘‘इस जमाने में भला लोग तार भेजते हैं, क्याक्या लिखा है?’’

मैं ने तार पढ़ा, उलटपलट कर 2-3 बार देखा और सवालिया भाव से विमल की ओर कांपते हाथों से बढ़ा कर कहा, ‘‘तुम्हीं पढ़ो, मु?ो तो सम?ा में नहीं आ रहा.’’

तार पढ़ते ही विमल के माथे पर पसीने की बूंदें चमकने लगीं. वे धीमी आवाज में बोले, ‘‘हेमंत नहीं रहा, 18 को डैथ हो गई है, आज चौथा था.’’

विमल ने मेरी तरफ देखते हुए आगे कहा, ‘‘ऐसा कैसे हो सकता है? 40 साल भी पूरे नहीं किए उस ने. अगली 25 तारीख को जन्मदिन था उस का.’’

यह सुन कर मेरा गला भर आया.

‘‘मसूरी जाने से पहले मेरी उस से बात हुई थी. क्रिसमस की छुट्टियों पर यहां आने का वादा था उस ने,’’ विमल संजीदा हो कर बोले, ‘‘तुम कहीं और पता करो. सीधा ममता से क्यों नहीं बात कर लेतीं.’’

‘‘नहींनहीं, यह मु?ा से नहीं होगा,’’ कहतेकहते मेरा कंठ अवरुद्ध हो गया और आंसू छलक आए. मैं ने फिर भी हिम्मत कर के हेमंत की भाभी से नोएडा में बात की. पता चला, सोते हुए ही अस्थमा का अटैक पड़ा और फिर दूसरी सांस न ले सका.

‘‘ऐसा भी होता है क्या?’’ मैं ने भावशून्यता से विमल से पूछा, ‘‘इतना तो बीमार नहीं था वह,’’ कहतेकहते मेरे शब्द बर्फ की तरह जम गए और अश्रुप्रवाह था कि रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था. चुन्नी के पल्लू से देर तक मुंह ढके मैं सोफे पर पड़ी रही. मरघट का सन्नाटा भी शायद इतना भयानक न हो जो अब हो चला था. विमल भी कुछ नहीं बोले, बस, मु?ो रो लेने दिया. उन की आंखों की कोरों से छलकते आंसू भी मु?ा से छिप न सके.

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आखिर किस का सहारा शेष बचा था ममता के लिए. हम दशहरे की छुट्टियां मसूरी में बिता कर लौटे. विमल ने कार से सामान निकाल कर बैडरूम में रखा और फिर लैटरबौक्स से अपनी डाक निकाल कर सोफे में धंस गए.

बहुत लगाव है उन्हें अपनी डाक से. प्रत्येक डाक का जैसे उन्हें सदियों से इंतजार रहता हो.

बच्चे आते ही टीवी चालू कर बैठ गए.

‘‘आते ही टीवी,’’ मैं ने ?ाल्ला कर कहा, ‘‘तुम लोग हफ्ताभर पूरी तरह मस्ती करते रहे. थोड़ा मेरे साथ भी हाथ बंटा दो तो घर जल्दी संभल जाए.’’

‘‘मम्मी, मैं पूरी तरह थका हूं. बैठेबैठे बोर हो गया. पापा ने चीतल के बाद गाड़ी रोकी नहीं, आप तो आते ही बस…’’ मेरा बड़ा बेटा मुंह बिचका कर बोला. छोटे से तो कोई उम्मीद वैसे भी नहीं थी.

‘‘अच्छा ठीक है,’’ मैं ने बरामदे का दरवाजा खोलते हुए कहा, ‘‘गमलों में पानी ही डाल दो, पौधे कैसे सूख गए हैं.’’

परंतु मु?ो मालूम था, मेरी बात सब अनसुनी ही कर देते हैं. जोर से बोलूंगी तो दोनों भागते हुए यहां चले आएंगे. फर्श पर पड़े सूखे पत्तों और धूल की मोटीमोटी परतों ने हिला कर रख दिया. छुट्टियों से पहले और बाद का सारा काम सारी मौजमस्ती को ?ाठला कर रख देता है. न जाने कितना समय लगेगा फिर से घर को ढंग से चलाने में.

‘‘विभा,’’ विमल ने जोर से आवाज दे कर पूछा, ‘‘कहीं से चाय मिल सकती है क्या? गाड़ी चलातेचलाते थक गया हूं. चाय मिल जाती तो थोड़ा आराम कर लेता.’’

‘‘अभी भला दूध कहां मिलेगा?

5 बजे से पहले तो दुकानें खुलती ही नहीं हैं. फिर भी सामने वाली से पूछती हूं,’’ मेरा इशारा पड़ोसिन की तरफ था.

गिलास ले कर पड़ोसिन के यहां गई तो उस ने कोरियर द्वारा आया एक लिफाफा और तार भी दिया.

‘‘एचडीएफसी से तुम्हारे लिए कोरियर है… शायद स्टेटमैंट होगी,’’ मैं ने विमल के हाथ में लिफाफा पकड़ाते हुए कहा, ‘‘और कानपुर से ममता का तार आया है.’’

‘‘तार?’’ विमल ने चौंकते हुए पूछा, ‘‘इस जमाने में भला लोग तार भेजते हैं, क्याक्या लिखा है?’’

मैं ने तार पढ़ा, उलटपलट कर 2-3 बार देखा और सवालिया भाव से विमल की ओर कांपते हाथों से बढ़ा कर कहा, ‘‘तुम्हीं पढ़ो, मु?ो तो सम?ा में नहीं आ रहा.’’

तार पढ़ते ही विमल के माथे पर पसीने की बूंदें चमकने लगीं. वे धीमी आवाज में बोले, ‘‘हेमंत नहीं रहा, 18 को डैथ हो गई है, आज चौथा था.’’

विमल ने मेरी तरफ देखते हुए आगे कहा, ‘‘ऐसा कैसे हो सकता है? 40 साल भी पूरे नहीं किए उस ने. अगली 25 तारीख को जन्मदिन था उस का.’’

यह सुन कर मेरा गला भर आया.

‘‘मसूरी जाने से पहले मेरी उस से बात हुई थी. क्रिसमस की छुट्टियों पर यहां आने का वादा था उस ने,’’ विमल संजीदा हो कर बोले, ‘‘तुम कहीं और पता करो. सीधा ममता से क्यों नहीं बात कर लेतीं.’’

‘‘नहींनहीं, यह मु?ा से नहीं होगा,’’ कहतेकहते मेरा कंठ अवरुद्ध हो गया और आंसू छलक आए. मैं ने फिर भी हिम्मत कर के हेमंत की भाभी से नोएडा में बात की. पता चला, सोते हुए ही अस्थमा का अटैक पड़ा और फिर दूसरी सांस न ले सका.

‘‘ऐसा भी होता है क्या?’’ मैं ने भावशून्यता से विमल से पूछा, ‘‘इतना तो बीमार नहीं था वह,’’ कहतेकहते मेरे शब्द बर्फ की तरह जम गए और अश्रुप्रवाह था कि रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था. चुन्नी के पल्लू से देर तक मुंह ढके मैं सोफे पर पड़ी रही. मरघट का सन्नाटा भी शायद इतना भयानक न हो जो अब हो चला था. विमल भी कुछ नहीं बोले, बस, मु?ो रो लेने दिया. उन की आंखों की कोरों से छलकते आंसू भी मु?ा से छिप न सके.

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July 14, 2022 at 10:12AM

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