Friday 8 July 2022

न उम्र की सीमा हो- भाग 1: क्या थी नलिनी की कहानी?

नलिनी औफिस पहुंच कर अपनी सीट पर बैठी. नजरें अपनेआप कोने की ओर उठ गईं. विकास उसे ही देख रहा था. नलिनी ने पहली बार महसूस किया कि आंखें मौन रह कर भी कितनी स्पष्ट बातें कर जाती हैं और बचपन से जिस उदासी ने उस के अंदर डेरा जमा रखा था, वह धीरेधीरे दूर होने लगा है. एक उत्साह, एक उमंग सी भरने लगी है उस के रोमरोम में. नलिनी का मन शायद वर्षों से कुछ मांग रहा था, सूखे पड़े जीवन के लिए मांग रहा था थोड़ा पानी और अचानक बिना मांगे ही जैसे सुख की मूसलाधार बारिश मिल गई हो.

नलिनी ने बैग खोला, फाइल निकाली और काम शुरू किया. फिर विकास की तरफ देखा. वह एक पुरुष की मुग्ध दृष्टि थी जो नारी के सौंदर्यभाव से दीप्त थी. नलिनी की आंखें झुक गईं. वह बस हलका सा मुसकरा दी. विकास वहीं उठ कर चला आया, बोला, ‘‘आज बड़ी देर कर दी?’’

‘‘हां, 2 बसें छोड़नी पड़ीं… बहुत भीड़ थी.’’

‘‘तुम से कितनी बार कहा है, मेरे साथ आ जाया करो. आज शाम को जल्दी न हो तो मेरे साथ बीच पर चलना पसंद करोगी?’’

नलिनी ने संभल कर उस की तरफ देखा. न जाने क्यों उस की आंखों का सामना न कर पाती थी. उस ने सिर झुका लिया. दोनों के बीच गहरी खामोशी छाई रही. नलिनी को लगा विकास की नजरें जैसे देखती नहीं थीं, छूती थीं. वे जहां से हो कर बढ़ती थीं जैसे उस के रोमरोम को सहला जाती थीं.

नलिनी के मुंह से इतना ही निकल सका, ‘‘ठीक है, चलेंगे.’’

विकास थैंक्स कह कर अपनी सीट पर जा कर काम करने लगा.

पूरा दिन दोनों अपनीअपनी जगह घड़ी देखते रहे. शायद जीवन में पहली बार नलिनी ने ठीक 5 बजे अपना बैग समेट लिया. विकास तो जैसे तैयार ही बैठा था. विकास की गाड़ी से दोनों समुद्र के किनारे पहुंच गए.

शाम सी बीच पर झागदार लहरों में अपने पांव डुबोए शीतल नम हवा के स्पंदन को अपने रोमरोम में स्पर्श करने के स्वर्गिक आनंद में कुछ देर दोनों डूबे रहे. फिर दोनों एक किनारे पत्थरों पर बैठ गए. नलिनी समझ नहीं पाई वह इतना घबरा क्यों रही है. उस ने पुरुष दृष्टि का न जाने कितनी बार सामना किया था, मगर विकास की नजर उसे बेचैन कर रही थी. विकास की दृष्टि में प्रशंसा थी और वह प्रशंसा उस के शरीर को जितना पिघला रही थी उस का मन उतना ही घबरा रहा था.

विकास कह रहा था, ‘‘तुम बहुत सुंदर हो, तन से भी और मन से भी. यहां मुंबई आए 1 साल हो गया है मुझे, कितनी बार सोचा तुम्हारे साथ यहां आऊं. आज जा कर आ पाया हूं तुम्हारे साथ.’’

अपने रूप की प्रशंसा सब को अच्छी लगती है. नलिनी भी सम्मोहित सी उसे देखती रही. सोच रही थी, वह उस से छोटा है, कई साल छोटा, चेहरे पर खुलापन था, मोह लेने वाली शराफत थी. विकास ने उसे अपने बारे में, अपने परिवार के बारे में बताया कि उस के मातापिता मेरठ में रहते हैं और वह उन का इकलौता बेटा है, यहां अपने कुछ दोस्तों के साथ फ्लैट शेयर कर के रहता है.

समुद्र में सूरज का गोला लालभभूका हो धीरेधीरे उतर रहा था और उस के जीवन की कहानी भी धीरेधीरे बंद किताब के पन्नों सी विकास के सामने फड़फड़ाने लगी.

शुरुआत विकास ने ही यह पूछ कर कर दी थी, ‘‘कई महीनों से देख रहा हूं तुम्हें, मुझे ऐसा लगता है तुम ने खुद को एक सख्त खोल में छिपा रखा हो जैसे तुम्हारी आंखों में रहने वाली एक उदासी, मुझे अपनी ओर खींचती है नलिनी, तुम मुझ पर विश्वास कर के अपना दिल हलका कर सकती हो.’’

‘‘मुझे अपने चारों ओर खोल बनाना पड़ा. खुद को बचाने के लिए, चोट खाने और दर्द से दूर रहने के लिए. अगर ऐसा न करती तो शायद पागल हो गई होती. मेरे पापा की मृत्यु हुई तो कुछ दिन मृत्यु और शोक के रस्मोरिवाज निभाते हुए मैं ने जैसे सारे जीवन के लिए मिले आंसू बहा दिए. अपने छोटे दोनों भाइयों को अंतिम संस्कार करते देख मैं बहुत रोई. मैं बड़ी थी. उन दोनों पर क्या जिम्मेदारी डालती. पापा की मृत्यु कार्यकाल में ही हुई थी, इसलिए मानवीय दृष्टिकोण से मुझे उन के विभाग में ही यह नौकरी मिल गई और इसी के साथ अपने परिवार की जरूरतों को पूरा करने की जिम्मेदारी मेरे ऊपर आ पड़ी. मां को मेरा ही सहारा था. अगर मेरे लिए कोई रिश्ता आ जाता तो मां मुझे याद दिलातीं कि शादी करने और परिवार बसाने से पहले क्या तुम्हें अपनी जिम्मेदारियां पूरी नहीं करनी चाहिए?’’

और मेरे दोनों भाई जब पढ़लिख कर अपने पैरों पर खड़े हो गए तो मां को उन के विवाह की चिंता सताने लगी. मेरे लिए रिश्ते आते. मैं इंतजार करती कि शायद मां या मेरी छोटी बहन कुसुम कुछ कहे पर उन्होंने कुछ नहीं कहा. मैं भी इस दर्द को पी गई और अपने दिल की बात अपने अंदर ही रहने दी. फिर भाइयों की भी शादी हो गई और वे अब विदेश जा बसे हैं. कुसुम की भी शादी हो गई है. मां मेरे साथ रहती हैं. अब मैं 35 साल की होने वाली हूं.’’

‘‘क्या?’’ विकास चौंक पड़ा, फिर हंसा, ‘‘अरे, लगती तो नहीं हो,’’ फिर उस के हाथ पर हाथ रख कर कहने लगा, ‘‘बहुत सोच लिया तुम ने सब के बारे में. अब दुनिया की परवाह करना बंद कर दो तो जीवन आसान हो जाएगा. बस, याद रखना कि तुम्हें ही अपना ध्यान रखना है.’’

विकास की आंखों में नलिनी ने वह सबकुछ पढ़ लिया था जिस की उम्मीद एक स्त्री किसी पुरुष से कर सकती है. वे दोनों साथसाथ चुप बैठे रहे. उस का शरीर विकास के शरीर को छू रहा था, उन के खयाल एकदूसरे के पास मंडरा रहे थे, उन का रिश्ता एक नए मोड़ पर आ पहुंचा था.

अब अचानक नलिनी के जीवन में वसंत आ गया था. धीरेधीरे विकास उस के हर खयाल, हर पल पर छा गया. औफिस में यों ही नजर भर देखना जैसे ढेरों बातें कह जाता, हाथों के मामूली स्पर्श से भी जैसे बदन में लपटें उठने लगतीं, नन्हेनन्हे शोले भड़क उठते जो हर तर्क को जला देते. वे कभी समुद्र किनारे मिलते, कभी एकांत पार्क में, लहरों के शोर से खामोश रेत में बैठे रहते एकदूसरे का हाथ थामे. वह जानती थी उस से बड़ी होने के बावजूद उस का शरीर अभी भी सुडौल और जवान है. पहले वे इसी में खुश थे, लेकिन अब ज्यादा चाहने लगे थे. जब नलिनी घर जाने के लिए उठती तो उसे हमेशा ऐसा लगता जैसे कुछ अधूरा रह गया हो. अगले दिन जब दोनों मिलते तो यह असंतोष उन्हें और बेचैन कर देता. अब नलिनी का दिल चाहता कि वे कहीं दूर चले जाएं और रातभर साथ रहें. वह विकास की बांहों में सोए पर वह कुछ कह न पाती. प्यार में सब शक्तियां होती हैं बस एक बोलने की नहीं होती.

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नलिनी औफिस पहुंच कर अपनी सीट पर बैठी. नजरें अपनेआप कोने की ओर उठ गईं. विकास उसे ही देख रहा था. नलिनी ने पहली बार महसूस किया कि आंखें मौन रह कर भी कितनी स्पष्ट बातें कर जाती हैं और बचपन से जिस उदासी ने उस के अंदर डेरा जमा रखा था, वह धीरेधीरे दूर होने लगा है. एक उत्साह, एक उमंग सी भरने लगी है उस के रोमरोम में. नलिनी का मन शायद वर्षों से कुछ मांग रहा था, सूखे पड़े जीवन के लिए मांग रहा था थोड़ा पानी और अचानक बिना मांगे ही जैसे सुख की मूसलाधार बारिश मिल गई हो.

नलिनी ने बैग खोला, फाइल निकाली और काम शुरू किया. फिर विकास की तरफ देखा. वह एक पुरुष की मुग्ध दृष्टि थी जो नारी के सौंदर्यभाव से दीप्त थी. नलिनी की आंखें झुक गईं. वह बस हलका सा मुसकरा दी. विकास वहीं उठ कर चला आया, बोला, ‘‘आज बड़ी देर कर दी?’’

‘‘हां, 2 बसें छोड़नी पड़ीं… बहुत भीड़ थी.’’

‘‘तुम से कितनी बार कहा है, मेरे साथ आ जाया करो. आज शाम को जल्दी न हो तो मेरे साथ बीच पर चलना पसंद करोगी?’’

नलिनी ने संभल कर उस की तरफ देखा. न जाने क्यों उस की आंखों का सामना न कर पाती थी. उस ने सिर झुका लिया. दोनों के बीच गहरी खामोशी छाई रही. नलिनी को लगा विकास की नजरें जैसे देखती नहीं थीं, छूती थीं. वे जहां से हो कर बढ़ती थीं जैसे उस के रोमरोम को सहला जाती थीं.

नलिनी के मुंह से इतना ही निकल सका, ‘‘ठीक है, चलेंगे.’’

विकास थैंक्स कह कर अपनी सीट पर जा कर काम करने लगा.

पूरा दिन दोनों अपनीअपनी जगह घड़ी देखते रहे. शायद जीवन में पहली बार नलिनी ने ठीक 5 बजे अपना बैग समेट लिया. विकास तो जैसे तैयार ही बैठा था. विकास की गाड़ी से दोनों समुद्र के किनारे पहुंच गए.

शाम सी बीच पर झागदार लहरों में अपने पांव डुबोए शीतल नम हवा के स्पंदन को अपने रोमरोम में स्पर्श करने के स्वर्गिक आनंद में कुछ देर दोनों डूबे रहे. फिर दोनों एक किनारे पत्थरों पर बैठ गए. नलिनी समझ नहीं पाई वह इतना घबरा क्यों रही है. उस ने पुरुष दृष्टि का न जाने कितनी बार सामना किया था, मगर विकास की नजर उसे बेचैन कर रही थी. विकास की दृष्टि में प्रशंसा थी और वह प्रशंसा उस के शरीर को जितना पिघला रही थी उस का मन उतना ही घबरा रहा था.

विकास कह रहा था, ‘‘तुम बहुत सुंदर हो, तन से भी और मन से भी. यहां मुंबई आए 1 साल हो गया है मुझे, कितनी बार सोचा तुम्हारे साथ यहां आऊं. आज जा कर आ पाया हूं तुम्हारे साथ.’’

अपने रूप की प्रशंसा सब को अच्छी लगती है. नलिनी भी सम्मोहित सी उसे देखती रही. सोच रही थी, वह उस से छोटा है, कई साल छोटा, चेहरे पर खुलापन था, मोह लेने वाली शराफत थी. विकास ने उसे अपने बारे में, अपने परिवार के बारे में बताया कि उस के मातापिता मेरठ में रहते हैं और वह उन का इकलौता बेटा है, यहां अपने कुछ दोस्तों के साथ फ्लैट शेयर कर के रहता है.

समुद्र में सूरज का गोला लालभभूका हो धीरेधीरे उतर रहा था और उस के जीवन की कहानी भी धीरेधीरे बंद किताब के पन्नों सी विकास के सामने फड़फड़ाने लगी.

शुरुआत विकास ने ही यह पूछ कर कर दी थी, ‘‘कई महीनों से देख रहा हूं तुम्हें, मुझे ऐसा लगता है तुम ने खुद को एक सख्त खोल में छिपा रखा हो जैसे तुम्हारी आंखों में रहने वाली एक उदासी, मुझे अपनी ओर खींचती है नलिनी, तुम मुझ पर विश्वास कर के अपना दिल हलका कर सकती हो.’’

‘‘मुझे अपने चारों ओर खोल बनाना पड़ा. खुद को बचाने के लिए, चोट खाने और दर्द से दूर रहने के लिए. अगर ऐसा न करती तो शायद पागल हो गई होती. मेरे पापा की मृत्यु हुई तो कुछ दिन मृत्यु और शोक के रस्मोरिवाज निभाते हुए मैं ने जैसे सारे जीवन के लिए मिले आंसू बहा दिए. अपने छोटे दोनों भाइयों को अंतिम संस्कार करते देख मैं बहुत रोई. मैं बड़ी थी. उन दोनों पर क्या जिम्मेदारी डालती. पापा की मृत्यु कार्यकाल में ही हुई थी, इसलिए मानवीय दृष्टिकोण से मुझे उन के विभाग में ही यह नौकरी मिल गई और इसी के साथ अपने परिवार की जरूरतों को पूरा करने की जिम्मेदारी मेरे ऊपर आ पड़ी. मां को मेरा ही सहारा था. अगर मेरे लिए कोई रिश्ता आ जाता तो मां मुझे याद दिलातीं कि शादी करने और परिवार बसाने से पहले क्या तुम्हें अपनी जिम्मेदारियां पूरी नहीं करनी चाहिए?’’

और मेरे दोनों भाई जब पढ़लिख कर अपने पैरों पर खड़े हो गए तो मां को उन के विवाह की चिंता सताने लगी. मेरे लिए रिश्ते आते. मैं इंतजार करती कि शायद मां या मेरी छोटी बहन कुसुम कुछ कहे पर उन्होंने कुछ नहीं कहा. मैं भी इस दर्द को पी गई और अपने दिल की बात अपने अंदर ही रहने दी. फिर भाइयों की भी शादी हो गई और वे अब विदेश जा बसे हैं. कुसुम की भी शादी हो गई है. मां मेरे साथ रहती हैं. अब मैं 35 साल की होने वाली हूं.’’

‘‘क्या?’’ विकास चौंक पड़ा, फिर हंसा, ‘‘अरे, लगती तो नहीं हो,’’ फिर उस के हाथ पर हाथ रख कर कहने लगा, ‘‘बहुत सोच लिया तुम ने सब के बारे में. अब दुनिया की परवाह करना बंद कर दो तो जीवन आसान हो जाएगा. बस, याद रखना कि तुम्हें ही अपना ध्यान रखना है.’’

विकास की आंखों में नलिनी ने वह सबकुछ पढ़ लिया था जिस की उम्मीद एक स्त्री किसी पुरुष से कर सकती है. वे दोनों साथसाथ चुप बैठे रहे. उस का शरीर विकास के शरीर को छू रहा था, उन के खयाल एकदूसरे के पास मंडरा रहे थे, उन का रिश्ता एक नए मोड़ पर आ पहुंचा था.

अब अचानक नलिनी के जीवन में वसंत आ गया था. धीरेधीरे विकास उस के हर खयाल, हर पल पर छा गया. औफिस में यों ही नजर भर देखना जैसे ढेरों बातें कह जाता, हाथों के मामूली स्पर्श से भी जैसे बदन में लपटें उठने लगतीं, नन्हेनन्हे शोले भड़क उठते जो हर तर्क को जला देते. वे कभी समुद्र किनारे मिलते, कभी एकांत पार्क में, लहरों के शोर से खामोश रेत में बैठे रहते एकदूसरे का हाथ थामे. वह जानती थी उस से बड़ी होने के बावजूद उस का शरीर अभी भी सुडौल और जवान है. पहले वे इसी में खुश थे, लेकिन अब ज्यादा चाहने लगे थे. जब नलिनी घर जाने के लिए उठती तो उसे हमेशा ऐसा लगता जैसे कुछ अधूरा रह गया हो. अगले दिन जब दोनों मिलते तो यह असंतोष उन्हें और बेचैन कर देता. अब नलिनी का दिल चाहता कि वे कहीं दूर चले जाएं और रातभर साथ रहें. वह विकास की बांहों में सोए पर वह कुछ कह न पाती. प्यार में सब शक्तियां होती हैं बस एक बोलने की नहीं होती.

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July 09, 2022 at 10:00AM

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