Thursday 28 January 2021

बोल ‘जय श्री राम’-भाग 4: आलिम आखिरी सांस लेते हुए क्या कहा था

कभी गोरक्षा के नाम पर, तो कभी छेड़छाड़, तो कभी धर्म के नाम पर, किसी न किसी वजह से भीड़ में शामिल हर आदमी आलिम को मार कर धर्म की सेवा करने में लगा हुआ था. भीड़ का मनोविज्ञान सामाजिक विज्ञान का एक छोटा सा हिस्सा रहा है. यह एक अजीब और पुराना तरीका है जिस की प्रासंगिकता समाज में स्थिरता आने और कानूनव्यवस्था के ऊपर भरोसे के बाद खत्म होती गई. आज इस समय मार डालने वाली इस भीड़ का हर आदमी स्वयं को हीरो सम झ रहा था.

भीड़ बहुसंख्य लोकतंत्र के एक हिस्से के तौर पर दिखती है जहां वह खुद ही कानून का काम करती है, खाने से ले कर पहनने तक सब पर उस का नियंत्रण होता है. यह भीड़ खुद को सही मान रही थी और अपनी हिंसा को व्यावहारिक एवं जरूरी भी बता रही थी. भीड़ खुद ही न्याय और नैतिकता के दायरे को तय कर चुकी थी. यहां भीड़ तानाशाही व्यवस्था का ही विस्तार थी.

देवीप्रसाद के कहने पर आलिम को एक पेड़ से बांध दिया गया था. पीड़ा जब अंतहीन हो जाती है, वह मनुष्य को शक्ति प्रदान कर देती है. आलिम के शरीर का हर अंग दर्द में था, लेकिन उस के हृदय और उस की जान को वे तनिक भी चोट नहीं पहुंचा पाए थे. जब भीड़ उसे सजा देने के कुछ नूतन उपाय तलाश रही थी, आलिम कल्पना के पंख लगाए उड़ रहा था. आज निरपराध वह इस धरती और शरीर को छोड़ने वाला था.

किसी ईश्वर की सत्ता को वह मानता नहीं था, इसलिए जानता था कि कोई भी उस की रक्षा करने नहीं आएगा. किंतु ये मूर्ख, जो ईश्वर को मानते थे, आज उसी के नाम पर अपनी ही नस्ल के जीव को बेरहमी से कुचल रहे थे. उन्हें इस बात का लेशमात्र भय नहीं था कि उन का दयालु ईश्वर आलिम की पीड़ा देख कर उस की रक्षा करने आ जाएगा और उन्हें दंडित करेगा. संभवतया उन्हें भय इसलिए नहीं है क्योंकि वे भी जानते हैं कि उन का ईश्वर नहीं आएगा. इस तरह से तो ये सभी भी नास्तिक हैं, अथवा एक तानाशाह के सेवक हैं. कुछ ऐसा ही सोच कर आलिम के सूखे होंठों पर मुसकान खेल गई थी.

‘‘बेटा, ये लोग जो कह रहे हैं, मान ले. तु झे छोड़ देंगे,’’ बाबा की पीड़ा आलिम को रुला गई थी.

‘‘सुन बे, जोर से बोल जय श्री राम,’’ देवीप्रसाद ने चिल्ला कर कहा था.

आलिम के बाबा और उस का छोटा भाई भी नारे लगाने लगे थे. पूरा आकाश, जय श्री राम के नारे से गूंज गया था. लेकिन, आलिम सम झ गया, आज तो भगवान राम भी स्वयं उसे नहीं बचा सकते थे. कोई भी नारा इन नरपिशाचों को उस की बलि चढ़ाने से नहीं रोक सकता था.

अत्यंत कष्टों और जीवन को कई आयामों से देखने के बाद उस ने अपनी एक विचारधारा बनाई थी. अपना छोटा सा जीवन उस ने उसी विचारधारा के साथ व्यतीत किया था. और आज अंत समय में वह अपनी इस निधि को किसी को भी छीनने नहीं देगा. उस की आजादी सदा आजाद रहेगी.

कुछ क्षण सोच कर आलिम ने सिर हिला कर देवीप्रसाद को अपने पास बुलाया था.

‘‘भाइयो, चुप हो जाओ. जो भी नारा लगाएगा,’’ देवीप्रसाद ने यह घोषणा की तो आलिम ने हां में सिर हिला दिया था.

देवीप्रसाद अब आलिम के पास आ कर बैठ गया.

‘‘चल बोल, जय श्री राम.’’

आलिम का धीमा स्वर वह अधम पुरुष सुन नहीं पाया. आलिम के मुख से राम का नाम सुनने का लोभ वह छोड़ नहीं पा रहा था, इसलिए वह उस के पास अपना चेहरा ले गया.

अपने संपूर्ण आत्मबल को कंठ में धारण कर आलिम जोर से चीखा, ‘‘जय श्री राम’’ और देवीप्रसाद के शुभ्र और शिथिल मुख पर थूक दिया था. अचानक सब शांत हो गया. उस नीरवता में, बस, आलिम का तीव्र अट्टहास आवाज कर रहा था.  द्य

 

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कभी गोरक्षा के नाम पर, तो कभी छेड़छाड़, तो कभी धर्म के नाम पर, किसी न किसी वजह से भीड़ में शामिल हर आदमी आलिम को मार कर धर्म की सेवा करने में लगा हुआ था. भीड़ का मनोविज्ञान सामाजिक विज्ञान का एक छोटा सा हिस्सा रहा है. यह एक अजीब और पुराना तरीका है जिस की प्रासंगिकता समाज में स्थिरता आने और कानूनव्यवस्था के ऊपर भरोसे के बाद खत्म होती गई. आज इस समय मार डालने वाली इस भीड़ का हर आदमी स्वयं को हीरो सम झ रहा था.

भीड़ बहुसंख्य लोकतंत्र के एक हिस्से के तौर पर दिखती है जहां वह खुद ही कानून का काम करती है, खाने से ले कर पहनने तक सब पर उस का नियंत्रण होता है. यह भीड़ खुद को सही मान रही थी और अपनी हिंसा को व्यावहारिक एवं जरूरी भी बता रही थी. भीड़ खुद ही न्याय और नैतिकता के दायरे को तय कर चुकी थी. यहां भीड़ तानाशाही व्यवस्था का ही विस्तार थी.

देवीप्रसाद के कहने पर आलिम को एक पेड़ से बांध दिया गया था. पीड़ा जब अंतहीन हो जाती है, वह मनुष्य को शक्ति प्रदान कर देती है. आलिम के शरीर का हर अंग दर्द में था, लेकिन उस के हृदय और उस की जान को वे तनिक भी चोट नहीं पहुंचा पाए थे. जब भीड़ उसे सजा देने के कुछ नूतन उपाय तलाश रही थी, आलिम कल्पना के पंख लगाए उड़ रहा था. आज निरपराध वह इस धरती और शरीर को छोड़ने वाला था.

किसी ईश्वर की सत्ता को वह मानता नहीं था, इसलिए जानता था कि कोई भी उस की रक्षा करने नहीं आएगा. किंतु ये मूर्ख, जो ईश्वर को मानते थे, आज उसी के नाम पर अपनी ही नस्ल के जीव को बेरहमी से कुचल रहे थे. उन्हें इस बात का लेशमात्र भय नहीं था कि उन का दयालु ईश्वर आलिम की पीड़ा देख कर उस की रक्षा करने आ जाएगा और उन्हें दंडित करेगा. संभवतया उन्हें भय इसलिए नहीं है क्योंकि वे भी जानते हैं कि उन का ईश्वर नहीं आएगा. इस तरह से तो ये सभी भी नास्तिक हैं, अथवा एक तानाशाह के सेवक हैं. कुछ ऐसा ही सोच कर आलिम के सूखे होंठों पर मुसकान खेल गई थी.

‘‘बेटा, ये लोग जो कह रहे हैं, मान ले. तु झे छोड़ देंगे,’’ बाबा की पीड़ा आलिम को रुला गई थी.

‘‘सुन बे, जोर से बोल जय श्री राम,’’ देवीप्रसाद ने चिल्ला कर कहा था.

आलिम के बाबा और उस का छोटा भाई भी नारे लगाने लगे थे. पूरा आकाश, जय श्री राम के नारे से गूंज गया था. लेकिन, आलिम सम झ गया, आज तो भगवान राम भी स्वयं उसे नहीं बचा सकते थे. कोई भी नारा इन नरपिशाचों को उस की बलि चढ़ाने से नहीं रोक सकता था.

अत्यंत कष्टों और जीवन को कई आयामों से देखने के बाद उस ने अपनी एक विचारधारा बनाई थी. अपना छोटा सा जीवन उस ने उसी विचारधारा के साथ व्यतीत किया था. और आज अंत समय में वह अपनी इस निधि को किसी को भी छीनने नहीं देगा. उस की आजादी सदा आजाद रहेगी.

कुछ क्षण सोच कर आलिम ने सिर हिला कर देवीप्रसाद को अपने पास बुलाया था.

‘‘भाइयो, चुप हो जाओ. जो भी नारा लगाएगा,’’ देवीप्रसाद ने यह घोषणा की तो आलिम ने हां में सिर हिला दिया था.

देवीप्रसाद अब आलिम के पास आ कर बैठ गया.

‘‘चल बोल, जय श्री राम.’’

आलिम का धीमा स्वर वह अधम पुरुष सुन नहीं पाया. आलिम के मुख से राम का नाम सुनने का लोभ वह छोड़ नहीं पा रहा था, इसलिए वह उस के पास अपना चेहरा ले गया.

अपने संपूर्ण आत्मबल को कंठ में धारण कर आलिम जोर से चीखा, ‘‘जय श्री राम’’ और देवीप्रसाद के शुभ्र और शिथिल मुख पर थूक दिया था. अचानक सब शांत हो गया. उस नीरवता में, बस, आलिम का तीव्र अट्टहास आवाज कर रहा था.  द्य

 

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January 29, 2021 at 10:00AM

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