Friday 29 January 2021

मजबूरियां -भाग 2: ज्योति और प्रकाश के रिश्ते से निशा को क्या दिक्कत थी

‘‘आई लव यू टू, ज्योति,’’ प्रकाश ने उस की आंखों को चूम कर कहा.

‘‘आई लव यू, प्रकाश,’’ ज्योति उस के कान में फुसफुसा उठी.

‘‘तुम मु झ से कभी दूर न होना, प्लीज,’’ प्रकाश बोला.

‘‘यह कभी नहीं होगा,’’ यह कह कर ज्योति प्रकाश की आगोश में समा गई थी.

निशा ने शयनकक्ष में घुसते ही प्रकाश से  झगड़ने के अंदाज में पूछा, ‘‘लंच के बाद औफिस से कहां गए थे आप?’’

‘‘क्यों जानना चाहती हो?’’ प्रकाश ने भावहीन लहजे में उलटा सवाल किया.

‘‘तुम्हारी पत्नी होने के नाते मु झे यह सवाल पूछने का अधिकार है.’’

‘पत्नी के अधिकार तुम कभी नहीं भूलीं और अपने कर्तव्यों के बारे में कभी प्रेम से सोचा ही नहीं तुम ने,’ प्रकाश बहुत धीमे स्वर में बुदबुदाया.

‘‘मुंह ही मुंह में क्या बड़बड़ा रहे हो, अगर गालियां देनी हैं तो सामने जोर से दो,’’ निशा चिढ़ उठी.

‘‘मैं गाली नहीं दे रहा हूं तुम्हें,’’ प्रकाश ने गहरी सांस छोड़ कर कहा.

‘‘कहां गए थे आप लंच के बाद?’’ निशा ने अपना सवाल दोहराया.

‘‘तुम्हें अच्छी तरह पता है मैं कहां गया था,’’ प्रकाश बोला.

‘‘उसी चुड़ैल ज्योति के पास?’’ निशा ने विषैले अंदाज में पूछा.

प्रकाश ने जब काफी देर तक उसे कोई जवाब नहीं दिया तो निशा क्रोधित हो कर बोली, ‘‘ऐसे चुप्पी मारने से काम नहीं चलेगा, यह आप सम झ लीजिए कि जवान होता बेटा कालेज जाने की तैयारी कर रहा है. लड़की जवान हो गई है तुम्हारी और तुम्हें खुद को इश्क करने से फुरसत नहीं है. क्यों अपने और हम सब के चेहरों पर कालिख पुतवाने का इंतजाम कर रहे हैं आप?’’

‘‘तुम बेकार की बातें कर के अपना और मेरा दिमाग खराब मत करो, निशा. ज्योति के कारण बच्चों की या तुम्हारी जिंदगी पर कुछ भी असर नहीं पड़ने वाला है. तुम लोगों से छीन कर मैं उसे कुछ भी नहीं दे रहा हूं, फिर तुम उस से शिकायत क्यों रखती हो?’’

‘‘क्योंकि जिस समाज में हम जी रहे हैं वह समाज ऐसे नाजायज संबंधों पर उंगलियां उठाता है. लोग हम पर हंसें, मेरा मजाक उड़ाएं, तुम्हारे इश्क के कारण हम महल्ले में सिर  झुका कर चलने को मजबूर हो जाएं, ऐसी हालत मैं कभी सहन नहीं कर सकती.’’

‘‘महल्ले वाले ज्योति के वजूद से परिचित ही नहीं हैं. उन्हें बीच में ला कर बेकार शोरशराबा मत करो. ज्योति के पास कुछ वक्त गुजार कर मु झे सुकून मिलता है. मेरे सुख की, मेरी खुशियों की चिंता तुम्हें कभी नहीं रही. फिर ज्योति और मेरे प्रेम संबंध को ले कर शिकायत क्यों करती हो तुम?’’ प्रकाश का स्वर ऊंचा हो उठा.

‘‘प्रेम संबंध… रखैल के साथ बने संबंध को प्रेम का नाम नहीं दिया जाता. रखैलें पुरुषों की जरूरतें पूरी करती हैं. तुम ने उसे रहने को फ्लैट ले कर दिया है. उस पर अनापशनाप पैसा खर्च करते हो. बदले में वह चुडै़ल तुम्हारे सामने कपड़े उतार डालती है. अपनी वासना को प्रेम मत कहो और मैं इस संबंध का बिलकुल सही विरोध करती हूं, क्योंकि मैं समाज में इज्जत से सिर उठा कर रहना चाहती हूं,’’ निशा की आवाज गुस्से से कांप रही थी.

‘‘और मु झे इस मामले में समाज की कोई चिंता नहीं रही है. ज्योति से मिलनाजुलना मैं किसी कीमत पर बंद नहीं करूंगा,’’ प्रकाश ने कहा.

‘‘आप की तो मति भ्रष्ट हो गई है. मेरी सम झ में कभी नहीं आया कि तुम क्यों उस के पीछे पागल हुए जा रहे हो. उस के साधारण नैननक्श हैं. वह बैंक में साधारण सी नौकरी करती है. व्यक्तित्व में उस के कोई जान नहीं है. कौन से सुरखाब के पर लगे दिखाई देते हैं तुम्हें उस में, जरा मु झे भी तो बताओ?’’ निशा ने चुभते लहजे में कहा.

‘‘उस का दिल सोने जैसा है,’’ प्रकाश भावावेश से भर उठा, ‘‘मु झ पर जान छिड़कती है वह. प्रेम बांटने की कला आती है उसे. पूरी तरह से समर्पित है वह मेरी सुखशांति के लिए. मु झे उस से वह सब मिला है जो कभी मैं ने अपनी पत्नी से पाने की कामना की थी और जो कभी मु झे तुम से नहीं मिला.’’

‘‘मु झ में  झूठेसच्चे दोष निकाल कर तुम अपनी चरित्रहीनता को सही ठहराने की कोशिश मत करो. तुम ने कभी मु झे दिल से प्रेम किया ही नहीं. फिर कैसे उम्मीद करते हो कि मैं तुम्हारे पैर धोधो कर पीती रहती? आदमी संसार में जैसा बोता है वैसा ही काटता है,’’  निशा ने कड़वे स्वर में जवाब दिया.

‘‘तब तो तुम ने भी कुछ जरूर गलत बोया होगा जो आज मैं तुम से दूर हो गया हूं. तुम गोरी हो, सुंदर हो, स्कूल की पिं्रसिपल हो, शानदार व्यक्तित्व है तुम्हारा लेकिन तुम्हारा दिल मेरे प्रेम में नहीं धड़कता. इस घर में सुखसुविधा की हर चीज है. यहां रसोई में बढि़या खाना बनता है. लोग हमारी खुशहाली देख कर शायद हम से कुढ़ते होंगे, लेकिन मु झे इस घर में कभी सुखशांति नहीं मिली. ज्योति, सिर्फ सादी चाय भी मु झे अगर पिलाती है, तो मेरा मन तृप्त हो जाता है. वह कभी मु झ से ऊंचे स्वर में नहीं बोली. मु झ से ज्यादा महत्त्वपूर्ण उस के जीवन में न पैसा है, न कैरियर और न ही सामाजिक प्रतिष्ठा. उस के असीम प्रेम ने, उस के समर्पण ने और उस के कभी मु झ से कुछ न मांगने के गुण ने लगाए हैं उस में सुरखाब के पर,’’  प्रकाश ने अपनी बात समाप्त कर के निशा की तरफ से मुंह फेर लिया.

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‘‘आई लव यू टू, ज्योति,’’ प्रकाश ने उस की आंखों को चूम कर कहा.

‘‘आई लव यू, प्रकाश,’’ ज्योति उस के कान में फुसफुसा उठी.

‘‘तुम मु झ से कभी दूर न होना, प्लीज,’’ प्रकाश बोला.

‘‘यह कभी नहीं होगा,’’ यह कह कर ज्योति प्रकाश की आगोश में समा गई थी.

निशा ने शयनकक्ष में घुसते ही प्रकाश से  झगड़ने के अंदाज में पूछा, ‘‘लंच के बाद औफिस से कहां गए थे आप?’’

‘‘क्यों जानना चाहती हो?’’ प्रकाश ने भावहीन लहजे में उलटा सवाल किया.

‘‘तुम्हारी पत्नी होने के नाते मु झे यह सवाल पूछने का अधिकार है.’’

‘पत्नी के अधिकार तुम कभी नहीं भूलीं और अपने कर्तव्यों के बारे में कभी प्रेम से सोचा ही नहीं तुम ने,’ प्रकाश बहुत धीमे स्वर में बुदबुदाया.

‘‘मुंह ही मुंह में क्या बड़बड़ा रहे हो, अगर गालियां देनी हैं तो सामने जोर से दो,’’ निशा चिढ़ उठी.

‘‘मैं गाली नहीं दे रहा हूं तुम्हें,’’ प्रकाश ने गहरी सांस छोड़ कर कहा.

‘‘कहां गए थे आप लंच के बाद?’’ निशा ने अपना सवाल दोहराया.

‘‘तुम्हें अच्छी तरह पता है मैं कहां गया था,’’ प्रकाश बोला.

‘‘उसी चुड़ैल ज्योति के पास?’’ निशा ने विषैले अंदाज में पूछा.

प्रकाश ने जब काफी देर तक उसे कोई जवाब नहीं दिया तो निशा क्रोधित हो कर बोली, ‘‘ऐसे चुप्पी मारने से काम नहीं चलेगा, यह आप सम झ लीजिए कि जवान होता बेटा कालेज जाने की तैयारी कर रहा है. लड़की जवान हो गई है तुम्हारी और तुम्हें खुद को इश्क करने से फुरसत नहीं है. क्यों अपने और हम सब के चेहरों पर कालिख पुतवाने का इंतजाम कर रहे हैं आप?’’

‘‘तुम बेकार की बातें कर के अपना और मेरा दिमाग खराब मत करो, निशा. ज्योति के कारण बच्चों की या तुम्हारी जिंदगी पर कुछ भी असर नहीं पड़ने वाला है. तुम लोगों से छीन कर मैं उसे कुछ भी नहीं दे रहा हूं, फिर तुम उस से शिकायत क्यों रखती हो?’’

‘‘क्योंकि जिस समाज में हम जी रहे हैं वह समाज ऐसे नाजायज संबंधों पर उंगलियां उठाता है. लोग हम पर हंसें, मेरा मजाक उड़ाएं, तुम्हारे इश्क के कारण हम महल्ले में सिर  झुका कर चलने को मजबूर हो जाएं, ऐसी हालत मैं कभी सहन नहीं कर सकती.’’

‘‘महल्ले वाले ज्योति के वजूद से परिचित ही नहीं हैं. उन्हें बीच में ला कर बेकार शोरशराबा मत करो. ज्योति के पास कुछ वक्त गुजार कर मु झे सुकून मिलता है. मेरे सुख की, मेरी खुशियों की चिंता तुम्हें कभी नहीं रही. फिर ज्योति और मेरे प्रेम संबंध को ले कर शिकायत क्यों करती हो तुम?’’ प्रकाश का स्वर ऊंचा हो उठा.

‘‘प्रेम संबंध… रखैल के साथ बने संबंध को प्रेम का नाम नहीं दिया जाता. रखैलें पुरुषों की जरूरतें पूरी करती हैं. तुम ने उसे रहने को फ्लैट ले कर दिया है. उस पर अनापशनाप पैसा खर्च करते हो. बदले में वह चुडै़ल तुम्हारे सामने कपड़े उतार डालती है. अपनी वासना को प्रेम मत कहो और मैं इस संबंध का बिलकुल सही विरोध करती हूं, क्योंकि मैं समाज में इज्जत से सिर उठा कर रहना चाहती हूं,’’ निशा की आवाज गुस्से से कांप रही थी.

‘‘और मु झे इस मामले में समाज की कोई चिंता नहीं रही है. ज्योति से मिलनाजुलना मैं किसी कीमत पर बंद नहीं करूंगा,’’ प्रकाश ने कहा.

‘‘आप की तो मति भ्रष्ट हो गई है. मेरी सम झ में कभी नहीं आया कि तुम क्यों उस के पीछे पागल हुए जा रहे हो. उस के साधारण नैननक्श हैं. वह बैंक में साधारण सी नौकरी करती है. व्यक्तित्व में उस के कोई जान नहीं है. कौन से सुरखाब के पर लगे दिखाई देते हैं तुम्हें उस में, जरा मु झे भी तो बताओ?’’ निशा ने चुभते लहजे में कहा.

‘‘उस का दिल सोने जैसा है,’’ प्रकाश भावावेश से भर उठा, ‘‘मु झ पर जान छिड़कती है वह. प्रेम बांटने की कला आती है उसे. पूरी तरह से समर्पित है वह मेरी सुखशांति के लिए. मु झे उस से वह सब मिला है जो कभी मैं ने अपनी पत्नी से पाने की कामना की थी और जो कभी मु झे तुम से नहीं मिला.’’

‘‘मु झ में  झूठेसच्चे दोष निकाल कर तुम अपनी चरित्रहीनता को सही ठहराने की कोशिश मत करो. तुम ने कभी मु झे दिल से प्रेम किया ही नहीं. फिर कैसे उम्मीद करते हो कि मैं तुम्हारे पैर धोधो कर पीती रहती? आदमी संसार में जैसा बोता है वैसा ही काटता है,’’  निशा ने कड़वे स्वर में जवाब दिया.

‘‘तब तो तुम ने भी कुछ जरूर गलत बोया होगा जो आज मैं तुम से दूर हो गया हूं. तुम गोरी हो, सुंदर हो, स्कूल की पिं्रसिपल हो, शानदार व्यक्तित्व है तुम्हारा लेकिन तुम्हारा दिल मेरे प्रेम में नहीं धड़कता. इस घर में सुखसुविधा की हर चीज है. यहां रसोई में बढि़या खाना बनता है. लोग हमारी खुशहाली देख कर शायद हम से कुढ़ते होंगे, लेकिन मु झे इस घर में कभी सुखशांति नहीं मिली. ज्योति, सिर्फ सादी चाय भी मु झे अगर पिलाती है, तो मेरा मन तृप्त हो जाता है. वह कभी मु झ से ऊंचे स्वर में नहीं बोली. मु झ से ज्यादा महत्त्वपूर्ण उस के जीवन में न पैसा है, न कैरियर और न ही सामाजिक प्रतिष्ठा. उस के असीम प्रेम ने, उस के समर्पण ने और उस के कभी मु झ से कुछ न मांगने के गुण ने लगाए हैं उस में सुरखाब के पर,’’  प्रकाश ने अपनी बात समाप्त कर के निशा की तरफ से मुंह फेर लिया.

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January 30, 2021 at 10:00AM

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