Thursday 28 January 2021

बोल ‘जय श्री राम’-भाग 1: आलिम आखिरी सांस लेते हुए क्या कहा था

देवीप्रसाद के कहने पर आलिम को एक पेड़ से बांध दिया गया था. पीड़ा जब अंतहीन हो जाती है, वह मनुष्य को शक्ति प्रदान कर देती है. आलिम के शरीर का हर अंग दर्द में था, लेकिन उस के हृदय और उस की जान को वे तनिक भी चोट नहीं पहुंचा पाए थे.

मानव की उत्पति के स्वाभाविक से प्रश्न का उत्तर शातिर लोगों ने कपोलकल्पित कहानियों के जरिए एक ईश्वर गढ़ लिया और फिर दुकानदारी बढ़ाते हुए उस कपोलकल्पित ईश्वर के एजेंटों की एक लंबी सूची तैयार कर ली गई. हर दुकानदार ने अपने ग्राहकों को उल झाया और मतिभ्रम कर उस का अपना खुद का वजूद उस नितांत कल्पित ईश्वर के मौजमस्ती करने वाले दुकानदारों के आगे सूक्ष्म कर डाला.

लेकिन आज तक एक प्रश्न उस के अंतर में संशय बन विराजमान है और वह प्रश्न है, इस ‘धरा पर जीवन की उत्पति’. इस एक प्रश्न ने ईश्वर जैसी किसी शक्ति के होने के संयोग पर मुहर लगा दी. कोई ईश्वर इस ब्रह्मांड का रचनाकार नहीं है, किंतु, शातिर मनुष्य कपोलकल्पित ईश्वर का रचनाकार है, यह निर्विवाद है. धर्म कोई भी हो, प्रार्थना की शैली भले ही भिन्न हो, आराध्य का रूप भी भिन्न हो, किंतु उस आराध्य, उस के विचारों तथा प्रार्थना की शैली को लोगों के मध्य स्थापित करने वाला मनुष्य ही था.

सभी धर्मों का मार्ग स्वर्ग में बैठी उस शक्ति तक जाता है जिस ने, उन के मतानुसार, यह सृष्टि बनाई तथा फिर सुदूर जा बैठा. एक प्रश्न यह भी है कि, उस ने इस संपूर्ण ब्रह्मांड में मात्र पृथ्वी को मनुष्यों के लिए बनाया, अथवा अन्य ग्रहों पर भी वह पूजनीय है. हालाकि धार्मिक ग्रंथ ईश्वर की सत्ता का संपूर्ण ब्रह्मांड में होने का दावा करते हैं किंतु विज्ञान अभी दूसरे ग्रहों पर जीवन के होने की पुष्टि नहीं कर पाया है. दूसरे ग्रहों की तो छोडि़ए, इसी पृथ्वी के पशुपक्षी इस ईश्वर की कल्पना के शिकार नहीं हैं.

जो ईश्वर का अस्तित्व स्वीकार करता है, वह नहीं स्वीकार करने वालों के सामने कभी सिद्ध नहीं कर सकता, ठीक उसी प्रकार ईश्वर का अस्तित्व नहीं मानने वाला भी भक्तों को ईश्वर की भक्ति से नहीं हटा सकता. एक नास्तिक यह तर्क रख सकता है कि, ईश्वर जैसी कोई शक्ति प्रत्यक्ष उपकरणों से सिद्ध नहीं होती. वहीं, एक आस्तिक इस जटिल संसार के स्वयं उत्पन्न हो जाने के तथ्य को अंगीकार नहीं करेगा. उस के अनुसार आस्था, प्रेम और विश्वास को किसी प्रमाण की आवश्यकता नहीं है.

अब तक जितना वैज्ञानिक विकास हुआ है, वह पूर्ण नहीं है. सृष्टि के संपूर्ण रहस्य का पता लगाना अभी शेष है. विज्ञान अभी अपूर्ण है, इसलिए सृष्टिकर्ता पर संशय बना रहेगा. इस संशय का लाभ उठा कर धर्मगुरुओं, बाबाओं, मौलवियों के व्यापार का विकाशन होता रहेगा. उन के दृष्टिकोण को परमपिता की राय बना कर प्रचारित किया जाता रहेगा. मानव प्रजाति एक अदृश्य, अलख तथा अलक्ष्य ईश्वर के नाम पर फैलाई जा रही विषैली हवा में सांस लेती रहेगी. हर मजहब नफरत सिखाता ही है और यह भी सत्य है कि संसार में अत्यधिक हिंसा धार्मिक उन्माद के कारण ही हुई है.

इतना आडंबर, मिथ्याचार, अत्याचार, असहिष्णुता तथा पीड़ा देख कर भी वह ईश्वर इस संसार में न्याय की स्थापना करने नहीं आता. इस का एक ही कारण हो सकता है कि उस का अस्तित्व है ही नहीं.

मेरठ कालेज की लाइब्रेरी के एक कोने में बैठा आलिम अपने विचारों को लिपिबद्ध करने में व्यस्त था. उस की प्रज्ञता तथा विद्वत्ता उस के नाम को चरितार्थ करती थी, आलिम अर्थात ज्ञान. हिंदी में स्नातक की डिग्री उस ने स्वर्णपदक के साथ अर्जित की थी. अब स्नातकोत्तर के प्रथम वर्ष में था. कालेज की पढ़ाई और सिविल सर्विसेज की तैयारी के मध्य जब भी समय मिलता, वह अपने आभ्यंतर के युद्ध को पन्नों पर उतार दिया करता था. कुछ पत्रिकाओं में उस के इन विचारों को स्थान भी मिल जाया करता था. समयसमय पर अनेक वादविवाद प्रतियोगिताओं में शामिल हो कर वह अपने सुवक्ता होने का प्रमाण भी दे दिया करता था.

?जब वह लिखता, उस के आसपास की दुनिया उस के लिए गौण हो जाया करती थी. आज भी वैसा ही हुआ था. लाइब्रेरी में असंख्य लोगों के मध्य भी वह एकाकी था. इसलिए वह जान ही नहीं पाया कि आधे घंटे से वैदेही उसे सामने वाली टेबल से निहार रही थी.

आलिम और वैदेही मुजफ्फरनगर के एक ही गांव से थे. उन का विषय और वर्ष भी समान था. किंतु, उन के बीच विरले ही कभी कोई संवाद हुआ था. इस का प्रयोजन उन दोनों की भिन्न पृष्ठभूमि में निहित था. उन के गांव में एक ब्राह्मण परिवार की लड़की का मुसलमान लड़के के साथ मित्रता तो दूर की बात थी, साधारण परिचय भी गुनाह था. वहां स्त्री को शिक्षा की अनुमति थी, व्यवसाय करने की भी थी लेकिन चयन तथा निर्णय का अधिकार उस के परिवार के पुरुषों को प्राप्त था. शिक्षा तथा नौकरी का अधिकार स्त्री को कृपा के रूप में प्राप्त हुआ था. परिवार वाले, येनकेन प्रकारेण, स्त्री को इस कृपा से अवगत कराना नहीं भूलते थे.

 

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देवीप्रसाद के कहने पर आलिम को एक पेड़ से बांध दिया गया था. पीड़ा जब अंतहीन हो जाती है, वह मनुष्य को शक्ति प्रदान कर देती है. आलिम के शरीर का हर अंग दर्द में था, लेकिन उस के हृदय और उस की जान को वे तनिक भी चोट नहीं पहुंचा पाए थे.

मानव की उत्पति के स्वाभाविक से प्रश्न का उत्तर शातिर लोगों ने कपोलकल्पित कहानियों के जरिए एक ईश्वर गढ़ लिया और फिर दुकानदारी बढ़ाते हुए उस कपोलकल्पित ईश्वर के एजेंटों की एक लंबी सूची तैयार कर ली गई. हर दुकानदार ने अपने ग्राहकों को उल झाया और मतिभ्रम कर उस का अपना खुद का वजूद उस नितांत कल्पित ईश्वर के मौजमस्ती करने वाले दुकानदारों के आगे सूक्ष्म कर डाला.

लेकिन आज तक एक प्रश्न उस के अंतर में संशय बन विराजमान है और वह प्रश्न है, इस ‘धरा पर जीवन की उत्पति’. इस एक प्रश्न ने ईश्वर जैसी किसी शक्ति के होने के संयोग पर मुहर लगा दी. कोई ईश्वर इस ब्रह्मांड का रचनाकार नहीं है, किंतु, शातिर मनुष्य कपोलकल्पित ईश्वर का रचनाकार है, यह निर्विवाद है. धर्म कोई भी हो, प्रार्थना की शैली भले ही भिन्न हो, आराध्य का रूप भी भिन्न हो, किंतु उस आराध्य, उस के विचारों तथा प्रार्थना की शैली को लोगों के मध्य स्थापित करने वाला मनुष्य ही था.

सभी धर्मों का मार्ग स्वर्ग में बैठी उस शक्ति तक जाता है जिस ने, उन के मतानुसार, यह सृष्टि बनाई तथा फिर सुदूर जा बैठा. एक प्रश्न यह भी है कि, उस ने इस संपूर्ण ब्रह्मांड में मात्र पृथ्वी को मनुष्यों के लिए बनाया, अथवा अन्य ग्रहों पर भी वह पूजनीय है. हालाकि धार्मिक ग्रंथ ईश्वर की सत्ता का संपूर्ण ब्रह्मांड में होने का दावा करते हैं किंतु विज्ञान अभी दूसरे ग्रहों पर जीवन के होने की पुष्टि नहीं कर पाया है. दूसरे ग्रहों की तो छोडि़ए, इसी पृथ्वी के पशुपक्षी इस ईश्वर की कल्पना के शिकार नहीं हैं.

जो ईश्वर का अस्तित्व स्वीकार करता है, वह नहीं स्वीकार करने वालों के सामने कभी सिद्ध नहीं कर सकता, ठीक उसी प्रकार ईश्वर का अस्तित्व नहीं मानने वाला भी भक्तों को ईश्वर की भक्ति से नहीं हटा सकता. एक नास्तिक यह तर्क रख सकता है कि, ईश्वर जैसी कोई शक्ति प्रत्यक्ष उपकरणों से सिद्ध नहीं होती. वहीं, एक आस्तिक इस जटिल संसार के स्वयं उत्पन्न हो जाने के तथ्य को अंगीकार नहीं करेगा. उस के अनुसार आस्था, प्रेम और विश्वास को किसी प्रमाण की आवश्यकता नहीं है.

अब तक जितना वैज्ञानिक विकास हुआ है, वह पूर्ण नहीं है. सृष्टि के संपूर्ण रहस्य का पता लगाना अभी शेष है. विज्ञान अभी अपूर्ण है, इसलिए सृष्टिकर्ता पर संशय बना रहेगा. इस संशय का लाभ उठा कर धर्मगुरुओं, बाबाओं, मौलवियों के व्यापार का विकाशन होता रहेगा. उन के दृष्टिकोण को परमपिता की राय बना कर प्रचारित किया जाता रहेगा. मानव प्रजाति एक अदृश्य, अलख तथा अलक्ष्य ईश्वर के नाम पर फैलाई जा रही विषैली हवा में सांस लेती रहेगी. हर मजहब नफरत सिखाता ही है और यह भी सत्य है कि संसार में अत्यधिक हिंसा धार्मिक उन्माद के कारण ही हुई है.

इतना आडंबर, मिथ्याचार, अत्याचार, असहिष्णुता तथा पीड़ा देख कर भी वह ईश्वर इस संसार में न्याय की स्थापना करने नहीं आता. इस का एक ही कारण हो सकता है कि उस का अस्तित्व है ही नहीं.

मेरठ कालेज की लाइब्रेरी के एक कोने में बैठा आलिम अपने विचारों को लिपिबद्ध करने में व्यस्त था. उस की प्रज्ञता तथा विद्वत्ता उस के नाम को चरितार्थ करती थी, आलिम अर्थात ज्ञान. हिंदी में स्नातक की डिग्री उस ने स्वर्णपदक के साथ अर्जित की थी. अब स्नातकोत्तर के प्रथम वर्ष में था. कालेज की पढ़ाई और सिविल सर्विसेज की तैयारी के मध्य जब भी समय मिलता, वह अपने आभ्यंतर के युद्ध को पन्नों पर उतार दिया करता था. कुछ पत्रिकाओं में उस के इन विचारों को स्थान भी मिल जाया करता था. समयसमय पर अनेक वादविवाद प्रतियोगिताओं में शामिल हो कर वह अपने सुवक्ता होने का प्रमाण भी दे दिया करता था.

?जब वह लिखता, उस के आसपास की दुनिया उस के लिए गौण हो जाया करती थी. आज भी वैसा ही हुआ था. लाइब्रेरी में असंख्य लोगों के मध्य भी वह एकाकी था. इसलिए वह जान ही नहीं पाया कि आधे घंटे से वैदेही उसे सामने वाली टेबल से निहार रही थी.

आलिम और वैदेही मुजफ्फरनगर के एक ही गांव से थे. उन का विषय और वर्ष भी समान था. किंतु, उन के बीच विरले ही कभी कोई संवाद हुआ था. इस का प्रयोजन उन दोनों की भिन्न पृष्ठभूमि में निहित था. उन के गांव में एक ब्राह्मण परिवार की लड़की का मुसलमान लड़के के साथ मित्रता तो दूर की बात थी, साधारण परिचय भी गुनाह था. वहां स्त्री को शिक्षा की अनुमति थी, व्यवसाय करने की भी थी लेकिन चयन तथा निर्णय का अधिकार उस के परिवार के पुरुषों को प्राप्त था. शिक्षा तथा नौकरी का अधिकार स्त्री को कृपा के रूप में प्राप्त हुआ था. परिवार वाले, येनकेन प्रकारेण, स्त्री को इस कृपा से अवगत कराना नहीं भूलते थे.

 

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January 29, 2021 at 10:00AM

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