Sunday, 26 July 2020

छुट्टी का दिन-भाग 3 : नागेश ने अम्मी से क्या वादा किया था?

उम्मी भावुक हो उठी थी. आखिर क्यों होता है ऐसा? उस की हर इच्छाअनिच्छा का ध्यान रखने वाला सहृदय प्रेमी, ब्याह के कुछेक महीनों में ही क्यों बदल गया? पहले तो कांटे की सी नुकीली चुभन भी उसे रक्तरंजित करती, तो उस पर स्नेह का लेप लगा कर, समूल नष्ट करने का प्रयास करता था नागेश और अब उस की हृदयभावना से भी अनभिज्ञ रहता है. तभी उम्मी के मन में एक कुविचार कौंधा कि यह भी तो हो सकता है कि नागेश उसे अब प्यार ही न करता हो. तभी तो प्रशंसा के दो शब्द भी नहीं निकलते कभी उस के मुंह से. प्रशंसा के दो शब्द कहने में शब्दों के कलेवर ही तो चढ़ाने होते हैं. उसे महसूस होने लगा कि नागेश का कहा हुआ हर वाक्य निरर्थक था, निराधार था. सबकुछ झूठ था, मिथ्या था मृगमरीचिका सा. न जाने कब तक विचारों के भंवरजाल में फंसी रही थी वह.

नागेश को गए हुए 2 घंटे हो गए थे. उम्मी के दिल का आवेश अब थम गया था. उसे चिंता सताने लगी थी कि नागेश को गए हुए काफी समय बीत चुका है. दूध की थैलियां तो नुक्कड़ वाली दुकान पर ही मिल जाती हैं. अब तक तो उसे लौट आना चाहिए था. दूसरे ही पल, विचार कौंधा कि अच्छा ही है कुछ देर और बाहर रहे, नहीं तो फिर कोई बखेड़ा खड़ा हो जाएगा. ब्याह के बाद 6 महीनों का वृत्तांत क्रम से साकार हो उठा था.

सूरज की तेज रोशनी एक बार फिर बादलों के पीछे छिप गई थी. चारों ओर गहरा अंधेरा पसरने लगा था. गली में इक्कादुक्का लोग ही दिखाई दे रहे थे. उस का दिल जोरजोर से धड़कने लगा कि कहां चला गया होगा नागेश? कहीं कोई अनहोनी न घट गई हो? रोज अखबार अजीबोगरीब वारदातों से रंगा रहता है. क्रोध के आवेश में इंसान कुछ भी कर सकता है. उस का दिल जोरजोर से धड़कने लगा. कहीं नागेश घर छोड़ कर तो नहीं चला गया? पर ऐसा भी वह क्यों करेगा. यह घर तो उस का है? वह तो घर का पोषक है.

उम्मी की आंखों से आंसुओं की अविरल धारा फूट पड़ी. गलती सिर्फ नागेश की ही तो नहीं, उस की भी है. अगर नागेश किसी बात पर उलझता है तो वह भी चुप कहां रहती है. फौरन तूतड़ाक पर उतर आती है. मां कहती थी, ‘एक चुप सौ सुख.’ छोटी सी बात थी, दूध की थैली ही तो लानी थी, और महाभारत छिड़ गया. अगर नागेश मना कर रहा था तो वह खुद भी तो

ला सकती थी. घर को कुरुक्षेत्र का मैदान बनाने से तो बेहतर था समर्पण ही कर देती.

वह बेबसी से नागेश की प्रतीक्षा करने लगी. कभी खिड़की के परदे हटा कर बाहर झांकती, कभी घर के बाहर कदमों की आहट सुन कर चौकन्नी हो जाती. उसे धीरेधीरे विश्वास होने लगा कि अब नागेश नहीं लौटेगा, फिर सोचने लगी कि यह भी तो हो सकता है, उस का मन ही भर गया हो मुझ से. तो फिर मैं यहां क्यों रहूं? नहीं रहूंगी इस घर में मैं. अभी चली जाऊंगी. उस ने उठ कर अलमारी खोली और अपनी साडि़यां, सूटकेस में सहेज कर रखने लगी.

तभी दरवाजे की घंटी बजी. कौन होगा इस समय? मन ही मन सोचते हुए उस ने दरवाजा खोला तो सामने नागेश खड़ा था. उस की जान में जान आ गई. हलका सा हवा का झोंका भी उसे सुखद अनुभूति दे गया था. थकाहारा सा नागेश घर में घुसते ही कमरे में बिछे पलंग पर लेट गया. अजीब सी खामोशी छाई थी हर तरफ. दोनों ही दुविधा में थे कि हर तरफ पसरे हुए मौन को भंग कौन करे? पलंग के सिरहाने रखे हुए सूटकेस पर एक नजर डालते हुए आखिर नागेश ने ही पहल की, ‘‘कहीं जा रही हो?’’

‘‘हां, हमेशा के लिए, तुम्हारा घर छोड़ कर जा रही हूं.’’

‘‘कहां जाओगी?’’ नागेश का स्वर भीगने लगा.

‘‘तुम्हें इस से क्या? तुम्हें तो मेरी सूरत भी अच्छी नहीं लगती न?’’ उस ने उड़ती सी निगाह नागेश पर डाली.

‘‘उम्मी, अब भी नाराज हो मुझ से?’’ नागेश के स्वर में पश्चात्ताप के भाव थे.

‘‘नाराज मैं नहीं, तुम्हीं रहते हो मुझ से, हर वक्त. हर समय झगड़ते रहते हो…’’

‘‘मैं लड़ता हूं कि तुम झगड़ती हो हर समय?’’

‘‘तुम लड़ते हो. जानते हो, तुम्हारे जाने के बाद पड़ोसिनें कैसेकैसे सवाल पूछती हैं मुझ से? मुझे तो शर्म आने लगती है.’’

इसी बीच उस ने अपना सूटकेस उठा लिया था. मगर पिछले कुछ घंटों में नागेश की अनुपस्थिति ने उसे एहसास दिला दिया था कि वह उस के बिना नहीं रह सकती. एकएक पल जैसे युग सा प्रतीत हुआ था उसे तब. और बचाखुचा मैल नागेश के साथ हुई अब तक की जिरह से यों भी धुलपुंछ गया था. फिर भी झुकने के लिए वह कतई तैयार नहीं थी. ऊहापोह के चक्रवात में उलझी उम्मी ने जैसे ही दरवाजे की सिटकिनी खोलने का प्रयास किया, नागेश ने उस के हाथ से बैग छीन लिया और उस का हाथ पकड़ कर अंदर खींच लिया, ‘‘पागल मत बनो, उम्मी. तुम चली गईं तो मेरा क्या होगा? तुम्हारी अनुपस्थिति में कैसे रहूंगा इस घर में, कम से कम यह तो सोचो.’’

‘‘क्यों, घर में झगड़ा करने के लिए कोई नहीं मिलेगा, इसलिए?’’ वह मन ही मन मुसकरा दी थी. नागेश के शब्दों ने उस के अंदर श्रेष्ठता का एहसास भर दिया था.

‘‘अच्छा बाबा, गलती मेरी ही है. अब तो माफ कर दो,’’ नागेश बोला.

नागेश का भोलाभाला चेहरा देख कर उम्मी जोर से हंस दी. फिर मन ही मन सोचने लगी कि कितना सुखद है नागेश का साहचर्य? उस की अनुपस्थिति में तो ऐसा लग रहा था जैसे वह भीड़भाड़ में कहीं खो गई हो.

कुछ ही पलों में नागेश ने अपनी बांहें फैला दीं तो वह सिमटती चली गई उस की आगोश में. फिर नागेश का हाथ अपने हाथ में ले कर उस ने नागेश के कंधे पर सिर टिका दिया और बोली, ‘‘अच्छा बताओ तो, इतनी देर कहां चले गए थे तुम?’’

‘‘फिल्म देखने चला गया था. मुझे मालूम था, घर वापस लौटूंगा तो

तुम बात भी नहीं करोगी. रूठी रहोगी मुझ से.’’

नागेश की मासूमियत पर उम्मी को तरस आ गया. फिर भी वह बात उसे बुरी लगी कि वह अकेला ही फिल्म क्यों देख आया? मचलते हुए उस ने शिकायत की, ‘‘कितनी अच्छी फिल्म थी और तुम अकेले ही देख आए? अब मैं किस के साथ देखूंगी?’’

नागेश ने मेज पर रखा कैलेंडर अपनी ओर घुमाया. फिर तारीखों पर नजर दौड़ाता हुआ बोला, ‘‘इस बुधवार को 26 जनवरी है, उस दिन चलेंगे. टिकट मैं एक दिन पहले ही ले आऊंगा, तुम सुबह ही तैयार हो जाना.’’

उम्मी नागेश का चेहरा देखते हुए सोचने लगी कि अगर अगली छुट्टी वाले दिन भी यही सब हुआ जो आज हुआ है तो फिर क्या होगा? कितना अच्छा होता अगर छुट्टी का दिन टल जाता?

अब तक आसमान पर चांद निकल आया था. फिर उम्मी शीघ्र रसोई में घुस गई क्योंकि सुबह के दोनों भूखे जो थे.

 

 

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उम्मी भावुक हो उठी थी. आखिर क्यों होता है ऐसा? उस की हर इच्छाअनिच्छा का ध्यान रखने वाला सहृदय प्रेमी, ब्याह के कुछेक महीनों में ही क्यों बदल गया? पहले तो कांटे की सी नुकीली चुभन भी उसे रक्तरंजित करती, तो उस पर स्नेह का लेप लगा कर, समूल नष्ट करने का प्रयास करता था नागेश और अब उस की हृदयभावना से भी अनभिज्ञ रहता है. तभी उम्मी के मन में एक कुविचार कौंधा कि यह भी तो हो सकता है कि नागेश उसे अब प्यार ही न करता हो. तभी तो प्रशंसा के दो शब्द भी नहीं निकलते कभी उस के मुंह से. प्रशंसा के दो शब्द कहने में शब्दों के कलेवर ही तो चढ़ाने होते हैं. उसे महसूस होने लगा कि नागेश का कहा हुआ हर वाक्य निरर्थक था, निराधार था. सबकुछ झूठ था, मिथ्या था मृगमरीचिका सा. न जाने कब तक विचारों के भंवरजाल में फंसी रही थी वह.

नागेश को गए हुए 2 घंटे हो गए थे. उम्मी के दिल का आवेश अब थम गया था. उसे चिंता सताने लगी थी कि नागेश को गए हुए काफी समय बीत चुका है. दूध की थैलियां तो नुक्कड़ वाली दुकान पर ही मिल जाती हैं. अब तक तो उसे लौट आना चाहिए था. दूसरे ही पल, विचार कौंधा कि अच्छा ही है कुछ देर और बाहर रहे, नहीं तो फिर कोई बखेड़ा खड़ा हो जाएगा. ब्याह के बाद 6 महीनों का वृत्तांत क्रम से साकार हो उठा था.

सूरज की तेज रोशनी एक बार फिर बादलों के पीछे छिप गई थी. चारों ओर गहरा अंधेरा पसरने लगा था. गली में इक्कादुक्का लोग ही दिखाई दे रहे थे. उस का दिल जोरजोर से धड़कने लगा कि कहां चला गया होगा नागेश? कहीं कोई अनहोनी न घट गई हो? रोज अखबार अजीबोगरीब वारदातों से रंगा रहता है. क्रोध के आवेश में इंसान कुछ भी कर सकता है. उस का दिल जोरजोर से धड़कने लगा. कहीं नागेश घर छोड़ कर तो नहीं चला गया? पर ऐसा भी वह क्यों करेगा. यह घर तो उस का है? वह तो घर का पोषक है.

उम्मी की आंखों से आंसुओं की अविरल धारा फूट पड़ी. गलती सिर्फ नागेश की ही तो नहीं, उस की भी है. अगर नागेश किसी बात पर उलझता है तो वह भी चुप कहां रहती है. फौरन तूतड़ाक पर उतर आती है. मां कहती थी, ‘एक चुप सौ सुख.’ छोटी सी बात थी, दूध की थैली ही तो लानी थी, और महाभारत छिड़ गया. अगर नागेश मना कर रहा था तो वह खुद भी तो

ला सकती थी. घर को कुरुक्षेत्र का मैदान बनाने से तो बेहतर था समर्पण ही कर देती.

वह बेबसी से नागेश की प्रतीक्षा करने लगी. कभी खिड़की के परदे हटा कर बाहर झांकती, कभी घर के बाहर कदमों की आहट सुन कर चौकन्नी हो जाती. उसे धीरेधीरे विश्वास होने लगा कि अब नागेश नहीं लौटेगा, फिर सोचने लगी कि यह भी तो हो सकता है, उस का मन ही भर गया हो मुझ से. तो फिर मैं यहां क्यों रहूं? नहीं रहूंगी इस घर में मैं. अभी चली जाऊंगी. उस ने उठ कर अलमारी खोली और अपनी साडि़यां, सूटकेस में सहेज कर रखने लगी.

तभी दरवाजे की घंटी बजी. कौन होगा इस समय? मन ही मन सोचते हुए उस ने दरवाजा खोला तो सामने नागेश खड़ा था. उस की जान में जान आ गई. हलका सा हवा का झोंका भी उसे सुखद अनुभूति दे गया था. थकाहारा सा नागेश घर में घुसते ही कमरे में बिछे पलंग पर लेट गया. अजीब सी खामोशी छाई थी हर तरफ. दोनों ही दुविधा में थे कि हर तरफ पसरे हुए मौन को भंग कौन करे? पलंग के सिरहाने रखे हुए सूटकेस पर एक नजर डालते हुए आखिर नागेश ने ही पहल की, ‘‘कहीं जा रही हो?’’

‘‘हां, हमेशा के लिए, तुम्हारा घर छोड़ कर जा रही हूं.’’

‘‘कहां जाओगी?’’ नागेश का स्वर भीगने लगा.

‘‘तुम्हें इस से क्या? तुम्हें तो मेरी सूरत भी अच्छी नहीं लगती न?’’ उस ने उड़ती सी निगाह नागेश पर डाली.

‘‘उम्मी, अब भी नाराज हो मुझ से?’’ नागेश के स्वर में पश्चात्ताप के भाव थे.

‘‘नाराज मैं नहीं, तुम्हीं रहते हो मुझ से, हर वक्त. हर समय झगड़ते रहते हो…’’

‘‘मैं लड़ता हूं कि तुम झगड़ती हो हर समय?’’

‘‘तुम लड़ते हो. जानते हो, तुम्हारे जाने के बाद पड़ोसिनें कैसेकैसे सवाल पूछती हैं मुझ से? मुझे तो शर्म आने लगती है.’’

इसी बीच उस ने अपना सूटकेस उठा लिया था. मगर पिछले कुछ घंटों में नागेश की अनुपस्थिति ने उसे एहसास दिला दिया था कि वह उस के बिना नहीं रह सकती. एकएक पल जैसे युग सा प्रतीत हुआ था उसे तब. और बचाखुचा मैल नागेश के साथ हुई अब तक की जिरह से यों भी धुलपुंछ गया था. फिर भी झुकने के लिए वह कतई तैयार नहीं थी. ऊहापोह के चक्रवात में उलझी उम्मी ने जैसे ही दरवाजे की सिटकिनी खोलने का प्रयास किया, नागेश ने उस के हाथ से बैग छीन लिया और उस का हाथ पकड़ कर अंदर खींच लिया, ‘‘पागल मत बनो, उम्मी. तुम चली गईं तो मेरा क्या होगा? तुम्हारी अनुपस्थिति में कैसे रहूंगा इस घर में, कम से कम यह तो सोचो.’’

‘‘क्यों, घर में झगड़ा करने के लिए कोई नहीं मिलेगा, इसलिए?’’ वह मन ही मन मुसकरा दी थी. नागेश के शब्दों ने उस के अंदर श्रेष्ठता का एहसास भर दिया था.

‘‘अच्छा बाबा, गलती मेरी ही है. अब तो माफ कर दो,’’ नागेश बोला.

नागेश का भोलाभाला चेहरा देख कर उम्मी जोर से हंस दी. फिर मन ही मन सोचने लगी कि कितना सुखद है नागेश का साहचर्य? उस की अनुपस्थिति में तो ऐसा लग रहा था जैसे वह भीड़भाड़ में कहीं खो गई हो.

कुछ ही पलों में नागेश ने अपनी बांहें फैला दीं तो वह सिमटती चली गई उस की आगोश में. फिर नागेश का हाथ अपने हाथ में ले कर उस ने नागेश के कंधे पर सिर टिका दिया और बोली, ‘‘अच्छा बताओ तो, इतनी देर कहां चले गए थे तुम?’’

‘‘फिल्म देखने चला गया था. मुझे मालूम था, घर वापस लौटूंगा तो

तुम बात भी नहीं करोगी. रूठी रहोगी मुझ से.’’

नागेश की मासूमियत पर उम्मी को तरस आ गया. फिर भी वह बात उसे बुरी लगी कि वह अकेला ही फिल्म क्यों देख आया? मचलते हुए उस ने शिकायत की, ‘‘कितनी अच्छी फिल्म थी और तुम अकेले ही देख आए? अब मैं किस के साथ देखूंगी?’’

नागेश ने मेज पर रखा कैलेंडर अपनी ओर घुमाया. फिर तारीखों पर नजर दौड़ाता हुआ बोला, ‘‘इस बुधवार को 26 जनवरी है, उस दिन चलेंगे. टिकट मैं एक दिन पहले ही ले आऊंगा, तुम सुबह ही तैयार हो जाना.’’

उम्मी नागेश का चेहरा देखते हुए सोचने लगी कि अगर अगली छुट्टी वाले दिन भी यही सब हुआ जो आज हुआ है तो फिर क्या होगा? कितना अच्छा होता अगर छुट्टी का दिन टल जाता?

अब तक आसमान पर चांद निकल आया था. फिर उम्मी शीघ्र रसोई में घुस गई क्योंकि सुबह के दोनों भूखे जो थे.

 

 

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July 27, 2020 at 10:00AM

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