Friday 31 July 2020

सुवीरा-भाग 1: सुवीरा के जीवन में किस चीज की कमी थी?

विनोद औफिस से चहकता हुआ आया तो सुवीरा ने पूछा, ‘‘कुछ खास बात है क्या?’’

‘‘हां, कितने दिनों से इच्छा थी आस्ट्रेलिया जाने की, कंपनी अब भेज रही है.’’

सुवीरा मुसकराई, ‘‘अच्छा, वाह, कब तक जाना है?’’

‘‘पेपर्स तो मेरे तैयार ही हैं, बस, जल्दी ही समझ लो.’’

‘‘लेकिन मेरा तो पासपोर्ट भी नहीं बना है, इतनी जल्दी बन जाएगा?’’

‘‘अभी मैं अकेला ही जा रहा हूं.’’

‘‘और मैं?’’ सुवीरा को धक्का लगा.

‘‘अभी फैमिली नहीं ले जा सकते, तुम्हारा बाद में देखेंगे.’’

‘‘मैं कैसे रहूंगी अकेले? फिर तुम्हें क्यों इतनी खुशी हो रही है?’’

‘‘यह मौका बड़ी मुश्किल से मिला है, मैं इसे नहीं छोड़ूंगा.’’

‘‘तो ठीक है, पर मुझे भी तो ले जाओ.’’

‘‘नहीं, अभी तो यह असंभव है.’’

‘‘शादी के 6 महीने बाद ही मुझे अकेला छोड़ कर जाओगे और वह भी तब जब मुझे तुम्हारी सब से ज्यादा जरूरत है.’’

‘‘सुवीरा अभी तुम प्रैग्नैंट हो, 5 महीने बाद डिलीवरी है, मैं तब तक आ ही जाऊंगा और आनाजाना तो लगा ही रहेगा.’’

‘‘डिलीवरी के बाद ले कर जाओगे?’’

‘‘हां, अभी बहुत टाइम है, अभी तो तुम मेरे साथ खुशी मनाओ.’’ सुवीरा आंखों में आए आंसू छिपाते हुए विनोद की फैली बांहों में समा गई. विनोद भविष्य के प्रति बहुत उत्साहित था. लेकिन सुवीरा का मूड ठीक होने को नहीं आ रहा था. सुवीरा ने कई बार अपने आंसू पोंछते हुए डिनर तैयार किया और विनोद के साथ बैठ कर बहुत बेमन से खाया. विनोद तो आराम से सो गया लेकिन सुवीरा को चैन नहीं आ रहा था. पूरी रात करवटें ही बदलती रही वह.

और देखते ही देखते तेजी से दिन बीतते गए. विनोद डिलीवरी के समय वापस आने का वादा कर आस्ट्रेलिया चला गया. सुवीरा की मम्मी बीना आ चुकी थीं. हमेशा लखनऊ में ही रही बीना का मन मुंबई में नहीं लग रहा था. वे कहतीं, ‘‘यहां तो न आसपड़ोस है न कोई जानपहचान, कैसे कटेगा टाइम. मांबेटी दोनों की तबीयत ढीली रहने लगी थी. विनोद से वैबकैम के माध्यम से बात तो हो जाती लेकिन सुवीरा की बेचैनी और बढ़ जाती. 2-2 मेड होने से सुवीरा को आराम तो था लेकिन एक तो गर्भावस्था, उस पर इतना अकेलापन. एक दिन मां ने कहा, ‘‘सुवीरा, मैं यहां नहीं रह पाऊंगी ज्यादा दिन, मन बिलकुल नहीं लगता यहां, कोई कितना टीवी देखे, कितना आराम करे. ऐसा कर, तू ही लखनऊ चल.’’

‘‘नहीं मां, विनोद चाहते हैं कि मैं यहीं रहूं. डिलीवरी के बाद आप चली जाना.’’ डिलीवरी की डेट से एक हफ्ता पहले आ गया विनोद. सुवीरा खिल उठी. सुवीरा के ऐडमिट होने की सारी तैयारी शुरू हो गई. सुवीरा ने एक सुंदर, स्वस्थ बच्ची को जन्म दिया. विनोद ने बेटी का नाम सिद्धि रखा. सब खुश थे. एक महीना हो चुका था. विनोद ने कोई बात नहीं छेड़ी तो एक दिन सुवीरा ने ही कहा, ‘‘अब तो ले चलोगे न हमें?’’

‘‘सिद्धि अभी छोटी है. वहां नई जगह इसे संभालने में तुम्हें दिक्कत होगी. बाद में देखते हैं.’’ मां ने पतिपत्नी की बात में हस्तक्षेप करना उचित नहीं समझा. बस, इतना ही कहा, ‘‘मैं तो अब जाने की सोच रही हूं.’’

‘‘हां मां, आप अब चली जाओ,’’ सुवीरा ने अपने दिल पर पत्थर रखते हुए कहा. मां ने कहा, ‘‘अकेली कैसे रहोगी? मेरे साथ ही चलो.’’

‘‘नहीं मां, मैं रह लूंगी, मेड और मेरी सहेली सीमा है. वह आतीजाती रहती है. मैं मैनेज कर लूंगी.’’ बीना बेटी को बहुत सारी हिदायतें दे कर चिंतित मन से चली गईं. कुछ दिनों बाद जल्दी आने का वादा कर विनोद भी चला गया. सुवीरा ने अपनेआप को सिद्धि में रमा दिया. सीमा ने एक बहुत शरीफ और मेहनती महिला नैना को सुवीरा और सिद्धि की देखरेख के लिए ढूंढ़ लिया. नैना के दोनों बच्चे गांव में उस की मां के पास रहते थे. वह तलाकशुदा थी. उस ने बहुत उत्साह से नन्ही सिद्धि की देखभाल में सुवीरा का साथ दिया. सुवीरा विनोद के साथ रहने की आस में दिन गिनती रही. 1 साल बाद विनोद आया. आते ही उस ने सुवीरा और सिद्धि पर महंगे उपहारों की बरसात कर दी. विनोद को देख खुशी के मारे सुवीरा अकेले बिताया पूरा साल भूल सी गई. एक दिन विनोद ने कहा, ‘‘मैं वापस आने की कोशिश कर रहा हूं. बौस से बात की है. वे भी कुछ तैयार से लग रहे हैं. रहूंगा यहीं लेकिन विदेश के दौरे चलते रहेंगे. पोस्ट बढ़ी है तो काम भी बढ़ेगा ही और इस बार तो 6 महीने में ही आ जाऊंगा.’’

‘‘ठीक है विनोद, इस बार आ ही जाओ तो ठीक है. अकेले रहा नहीं जाता.’’ विनोद 6 महीने में आने के लिए कह कर फिर से चला गया. उस के चैक लगातार समय पर आते रहे. नैना ने सुवीरा को कभी शिकायत का मौका नहीं दिया था. नैना, सिद्धि, सीमा, अंजना और बाकी सहेलियों के साथ सुवीरा अपना दिन तो बिता देती लेकिन रात को जब बिस्तर पर लेटती तो विनोद की अनुपस्थिति उस का कलेजा होम कर देती. दिन में सब के सामने वह एक हिम्मती लड़की थी लेकिन उस का दिल किस अकेलेपन से भरा था, यह वही जानती थी. विनोद 6 महीने बाद सचमुच आ गया है. सुवीरा की खुशी का ठिकाना नहीं था. अब सब ठीक हो गया था. बस, बीचबीच में विनोद को टूर पर जाना था. सिद्धि 4 साल की हुई तो सुवीरा ने एक और बेटी को जन्म दिया जिस का नाम विनोद ने समृद्धि रखा. दोनों बेटियों को  सुवीरा ने कलेजे से लगा लिया. उसे इस समय अपनी मां की बहुत याद आई जिन की एक सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो चुकी थी. उस के पिता लखनऊ में अकेले ही रह रहे थे.

अब वह रातदिन बेटियों की परवरिश में व्यस्त थी. विनोद को अपने काम की जिम्मेदारियों से फुरसत नहीं थी. समय अपनी रफ्तार से चलता रहा. सिद्धि, समृद्धि बड़ी हो रही थीं पर कहीं कुछ ऐसा था जो सुवीरा को उदास कर देता था. वह जो चाहती थी, उसे मिल नहीं पा रहा था. वह चाहती थी विनोद उसे और समय दे, बैठ कर बातें करे, कुछ अपनी कहे व कुछ उस की सुने. लेकिन विनोद के पास किसी भी भावना में बहने का समय नहीं था अब. वह हर समय व्यस्त दिखता. सुवीरा उस का मुंह देखती रह जाती. वह बिलकुल प्रैक्टिकल, मशीनी इंसान हो गया था. सुवीरा दिन पर दिन अकेली होती जा रही थी. सुवीरा ने एक दिन  कहा भी, ‘‘विनोद, थोड़ा तो टाइम निकालो कभी मेरे लिए.’’

‘‘सुवीरा, यही टाइम है बढि़या लाइफस्टाइल के लिए खूब भागदौड़ करने का. कितनों के पास है मुंबई में ऐसा शानदार घर. सब सुखसुविधाएं तो हैं घर में. तुम, बस आराम से ऐश करो. फोन, इंटरनैट, कार, क्या नहीं है तुम्हारे पास.’’ सुवीरा क्या कहती, मन मार कर रह गई. वह विनोद के मशीनी जीवन से उकता चुकी थी. या तो बाहर, या घर पर फोन, लैपटौप पर व्यस्त रहना. रात को अंतरंग पलों में भी उस का रोबोटिक ढंग सुवीरा को आहत कर जाता.

एक दिन विनोद बाहर से आया तो उस के साथ में उस की हमउम्र का एक पुरुष था. विनोद ने परिचय करवाते हुए कहा, ‘‘सुवीरा, यह महेश है. एक साथ ही पढ़े हैं. यह सीए है.’’ महेश और सुवीरा ने एकदूसरे का अभिवादन किया. महेश बहुत सादा सा इंसान लगा सुवीरा को. महेश ने विनोद के घर की खुलेदिल से तारीफ की. सुवीरा महेश के लिए कुछ लाने रसोई में गई तो विनोद भी वहीं पहुंच गया, बोला, ‘‘मेरे अच्छे दोस्तों में से एक रहा है यह. बहुत अच्छा स्वभाव है लेकिन कमाई में मुझ से बहुत पीछे रह गया. आज अचानक एक होटल के बाहर मिल गया. इस का अपना औफिस है मुलुंड में. एक कोचिंग सैंटर में अकाउंटैंसी की क्लासेज लेता है. बहुत इंटैलिजैंट है. मैं ने सोचा है, इसे यहीं ऊपर के रूम में रहने के लिए कह दूं. बच्चों की पढ़ाई भी देख लेगा, इस पर एहसान भी हो जाएगा और बच्चों को ट्यूशन के लिए कहीं जाना नहीं पड़ेगा.’’

‘‘इस का परिवार?’’

‘‘शादी नहीं की इस ने, किसी लड़की को चाहता तो था लेकिन घरपरिवार की जिम्मेदारी, अपनी 2 बहनों

की शादी निबटातेनिबटाते खुद को भूल गया. उस लड़की ने कहीं और शादी कर ली थी किसी अमीर लड़के से. बस, दूसरों के बारे में ही सोच कर जीता रहा बेवकूफ.’’ सुवीरा को दिल ही दिल में विनोद की आखिरी कही गई बात पर तेज गुस्सा आया, लेकिन इतना ही बोली, ‘‘जैसे तुम ठीक समझो.’’ विनोद ने दिल ही दिल में पूरा हिसाबकिताब लगा कर महेश से कहा, ‘‘देख, घर होते हुए तू कहीं और नहीं रहेगा.’’

‘‘नहीं यार, मैं आराम से एक लड़के के साथ शेयर कर के एक फ्लैट में रह रहा हूं. कोई प्रौब्लम नहीं है. सुबह अपनी क्लास ले कर औफिस चला जाता हूं.  औफिस पास ही है.’’

‘‘नहीं, मैं तेरी एक नहीं सुनूंगा. अभी ड्राइवर के साथ जा और अपना सामान ले कर आ,’’ विनोद ने उसे कुछ बोलने का मौका ही नहीं दिया और ड्राइवर को बुला कर आदेश भी दे दिया  दोनों की बातचीत में सुवीरा ने कोई हिस्सा नहीं लिया था. महेश के जाने के बाद विनोद ने सिद्धि, समृद्धि से कहा, ‘‘लो भई, तुम्हारे लिए टीचर का इंतजाम घर में ही कर दिया, अब जितना चाहो, जब चाहो इस से पढ़ लेना.’’ दोनों ‘‘थैंक्यू पापा,’’ कह कर हंसते हुए पिता से लिपट गईं. सुवीरा को चुप देख कर विनोद ने पूछा, ‘‘तुम क्यों सीरियस हो? तुम पर इस का कोई काम नहीं बढ़ेगा. अरे, इसे रखना नुकसानदायक नहीं होगा.’’ सुवीरा मन ही मन विनोद के हिसाबकिताब पर झुंझला गई. कैसा है विनोद, हर बात में हिसाबकिताब, दिल में किसी के लिए कोई कोमल भावनाएं नहीं, दोस्ती में भी स्वार्थ, क्या सोच है.

महेश अपना सामान ले कर आ गया. सामान क्या, एक बौक्स में किताबें ही किताबें थीं. कपड़े कम, किताबें ज्यादा थीं. सुवीरा से झिझकते हुए कहने लगा, ‘‘मेरे आने से आप को प्रौब्लम तो होगी?’’

‘‘नहीं, प्रौब्लम कैसी. आप आराम से रहें. किसी चीज की भी जरूरत हो तो जरूर कह दें.’’ डिनर के समय विनोद ने सुवीरा से कहा, ‘‘ऐसा करते हैं, आज पहला दिन है, इसे नीचे बुला लेते हैं. कल से महेश का नाश्ता और डिनर ऊपर ही भिजवा देना. लंच टाइम में तो यह रहेगा नहीं.’’ सुवीरा ने हां में सिर हिला दिया. महेश नीचे आ गया. उस की बातों ने, आकर्षक हंसी ने सब को प्रभावित किया. सिद्धि, समृद्धि तो खाना खत्म होने तक उस से फ्री हो चुकी थीं. विनोद अपनी कंपनी टूर के बारे

में बताता रहा. डिनर के बाद महेश सब को ‘गुडनाइट’ और ‘थैंक्स’ बोल कर ऊपर चला गया. थोड़ी देर बाद विनोद और सुवीरा अपने बैडरूम में आए. सुवीरा कपड़े बदल कर लेट गई. विनोद ने पूछा, ‘‘इसे रख कर ठीक किया न?’’

‘‘अभी क्या कह सकते हैं? अभी तो एक दिन भी नहीं हुआ.’’

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विनोद औफिस से चहकता हुआ आया तो सुवीरा ने पूछा, ‘‘कुछ खास बात है क्या?’’

‘‘हां, कितने दिनों से इच्छा थी आस्ट्रेलिया जाने की, कंपनी अब भेज रही है.’’

सुवीरा मुसकराई, ‘‘अच्छा, वाह, कब तक जाना है?’’

‘‘पेपर्स तो मेरे तैयार ही हैं, बस, जल्दी ही समझ लो.’’

‘‘लेकिन मेरा तो पासपोर्ट भी नहीं बना है, इतनी जल्दी बन जाएगा?’’

‘‘अभी मैं अकेला ही जा रहा हूं.’’

‘‘और मैं?’’ सुवीरा को धक्का लगा.

‘‘अभी फैमिली नहीं ले जा सकते, तुम्हारा बाद में देखेंगे.’’

‘‘मैं कैसे रहूंगी अकेले? फिर तुम्हें क्यों इतनी खुशी हो रही है?’’

‘‘यह मौका बड़ी मुश्किल से मिला है, मैं इसे नहीं छोड़ूंगा.’’

‘‘तो ठीक है, पर मुझे भी तो ले जाओ.’’

‘‘नहीं, अभी तो यह असंभव है.’’

‘‘शादी के 6 महीने बाद ही मुझे अकेला छोड़ कर जाओगे और वह भी तब जब मुझे तुम्हारी सब से ज्यादा जरूरत है.’’

‘‘सुवीरा अभी तुम प्रैग्नैंट हो, 5 महीने बाद डिलीवरी है, मैं तब तक आ ही जाऊंगा और आनाजाना तो लगा ही रहेगा.’’

‘‘डिलीवरी के बाद ले कर जाओगे?’’

‘‘हां, अभी बहुत टाइम है, अभी तो तुम मेरे साथ खुशी मनाओ.’’ सुवीरा आंखों में आए आंसू छिपाते हुए विनोद की फैली बांहों में समा गई. विनोद भविष्य के प्रति बहुत उत्साहित था. लेकिन सुवीरा का मूड ठीक होने को नहीं आ रहा था. सुवीरा ने कई बार अपने आंसू पोंछते हुए डिनर तैयार किया और विनोद के साथ बैठ कर बहुत बेमन से खाया. विनोद तो आराम से सो गया लेकिन सुवीरा को चैन नहीं आ रहा था. पूरी रात करवटें ही बदलती रही वह.

और देखते ही देखते तेजी से दिन बीतते गए. विनोद डिलीवरी के समय वापस आने का वादा कर आस्ट्रेलिया चला गया. सुवीरा की मम्मी बीना आ चुकी थीं. हमेशा लखनऊ में ही रही बीना का मन मुंबई में नहीं लग रहा था. वे कहतीं, ‘‘यहां तो न आसपड़ोस है न कोई जानपहचान, कैसे कटेगा टाइम. मांबेटी दोनों की तबीयत ढीली रहने लगी थी. विनोद से वैबकैम के माध्यम से बात तो हो जाती लेकिन सुवीरा की बेचैनी और बढ़ जाती. 2-2 मेड होने से सुवीरा को आराम तो था लेकिन एक तो गर्भावस्था, उस पर इतना अकेलापन. एक दिन मां ने कहा, ‘‘सुवीरा, मैं यहां नहीं रह पाऊंगी ज्यादा दिन, मन बिलकुल नहीं लगता यहां, कोई कितना टीवी देखे, कितना आराम करे. ऐसा कर, तू ही लखनऊ चल.’’

‘‘नहीं मां, विनोद चाहते हैं कि मैं यहीं रहूं. डिलीवरी के बाद आप चली जाना.’’ डिलीवरी की डेट से एक हफ्ता पहले आ गया विनोद. सुवीरा खिल उठी. सुवीरा के ऐडमिट होने की सारी तैयारी शुरू हो गई. सुवीरा ने एक सुंदर, स्वस्थ बच्ची को जन्म दिया. विनोद ने बेटी का नाम सिद्धि रखा. सब खुश थे. एक महीना हो चुका था. विनोद ने कोई बात नहीं छेड़ी तो एक दिन सुवीरा ने ही कहा, ‘‘अब तो ले चलोगे न हमें?’’

‘‘सिद्धि अभी छोटी है. वहां नई जगह इसे संभालने में तुम्हें दिक्कत होगी. बाद में देखते हैं.’’ मां ने पतिपत्नी की बात में हस्तक्षेप करना उचित नहीं समझा. बस, इतना ही कहा, ‘‘मैं तो अब जाने की सोच रही हूं.’’

‘‘हां मां, आप अब चली जाओ,’’ सुवीरा ने अपने दिल पर पत्थर रखते हुए कहा. मां ने कहा, ‘‘अकेली कैसे रहोगी? मेरे साथ ही चलो.’’

‘‘नहीं मां, मैं रह लूंगी, मेड और मेरी सहेली सीमा है. वह आतीजाती रहती है. मैं मैनेज कर लूंगी.’’ बीना बेटी को बहुत सारी हिदायतें दे कर चिंतित मन से चली गईं. कुछ दिनों बाद जल्दी आने का वादा कर विनोद भी चला गया. सुवीरा ने अपनेआप को सिद्धि में रमा दिया. सीमा ने एक बहुत शरीफ और मेहनती महिला नैना को सुवीरा और सिद्धि की देखरेख के लिए ढूंढ़ लिया. नैना के दोनों बच्चे गांव में उस की मां के पास रहते थे. वह तलाकशुदा थी. उस ने बहुत उत्साह से नन्ही सिद्धि की देखभाल में सुवीरा का साथ दिया. सुवीरा विनोद के साथ रहने की आस में दिन गिनती रही. 1 साल बाद विनोद आया. आते ही उस ने सुवीरा और सिद्धि पर महंगे उपहारों की बरसात कर दी. विनोद को देख खुशी के मारे सुवीरा अकेले बिताया पूरा साल भूल सी गई. एक दिन विनोद ने कहा, ‘‘मैं वापस आने की कोशिश कर रहा हूं. बौस से बात की है. वे भी कुछ तैयार से लग रहे हैं. रहूंगा यहीं लेकिन विदेश के दौरे चलते रहेंगे. पोस्ट बढ़ी है तो काम भी बढ़ेगा ही और इस बार तो 6 महीने में ही आ जाऊंगा.’’

‘‘ठीक है विनोद, इस बार आ ही जाओ तो ठीक है. अकेले रहा नहीं जाता.’’ विनोद 6 महीने में आने के लिए कह कर फिर से चला गया. उस के चैक लगातार समय पर आते रहे. नैना ने सुवीरा को कभी शिकायत का मौका नहीं दिया था. नैना, सिद्धि, सीमा, अंजना और बाकी सहेलियों के साथ सुवीरा अपना दिन तो बिता देती लेकिन रात को जब बिस्तर पर लेटती तो विनोद की अनुपस्थिति उस का कलेजा होम कर देती. दिन में सब के सामने वह एक हिम्मती लड़की थी लेकिन उस का दिल किस अकेलेपन से भरा था, यह वही जानती थी. विनोद 6 महीने बाद सचमुच आ गया है. सुवीरा की खुशी का ठिकाना नहीं था. अब सब ठीक हो गया था. बस, बीचबीच में विनोद को टूर पर जाना था. सिद्धि 4 साल की हुई तो सुवीरा ने एक और बेटी को जन्म दिया जिस का नाम विनोद ने समृद्धि रखा. दोनों बेटियों को  सुवीरा ने कलेजे से लगा लिया. उसे इस समय अपनी मां की बहुत याद आई जिन की एक सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो चुकी थी. उस के पिता लखनऊ में अकेले ही रह रहे थे.

अब वह रातदिन बेटियों की परवरिश में व्यस्त थी. विनोद को अपने काम की जिम्मेदारियों से फुरसत नहीं थी. समय अपनी रफ्तार से चलता रहा. सिद्धि, समृद्धि बड़ी हो रही थीं पर कहीं कुछ ऐसा था जो सुवीरा को उदास कर देता था. वह जो चाहती थी, उसे मिल नहीं पा रहा था. वह चाहती थी विनोद उसे और समय दे, बैठ कर बातें करे, कुछ अपनी कहे व कुछ उस की सुने. लेकिन विनोद के पास किसी भी भावना में बहने का समय नहीं था अब. वह हर समय व्यस्त दिखता. सुवीरा उस का मुंह देखती रह जाती. वह बिलकुल प्रैक्टिकल, मशीनी इंसान हो गया था. सुवीरा दिन पर दिन अकेली होती जा रही थी. सुवीरा ने एक दिन  कहा भी, ‘‘विनोद, थोड़ा तो टाइम निकालो कभी मेरे लिए.’’

‘‘सुवीरा, यही टाइम है बढि़या लाइफस्टाइल के लिए खूब भागदौड़ करने का. कितनों के पास है मुंबई में ऐसा शानदार घर. सब सुखसुविधाएं तो हैं घर में. तुम, बस आराम से ऐश करो. फोन, इंटरनैट, कार, क्या नहीं है तुम्हारे पास.’’ सुवीरा क्या कहती, मन मार कर रह गई. वह विनोद के मशीनी जीवन से उकता चुकी थी. या तो बाहर, या घर पर फोन, लैपटौप पर व्यस्त रहना. रात को अंतरंग पलों में भी उस का रोबोटिक ढंग सुवीरा को आहत कर जाता.

एक दिन विनोद बाहर से आया तो उस के साथ में उस की हमउम्र का एक पुरुष था. विनोद ने परिचय करवाते हुए कहा, ‘‘सुवीरा, यह महेश है. एक साथ ही पढ़े हैं. यह सीए है.’’ महेश और सुवीरा ने एकदूसरे का अभिवादन किया. महेश बहुत सादा सा इंसान लगा सुवीरा को. महेश ने विनोद के घर की खुलेदिल से तारीफ की. सुवीरा महेश के लिए कुछ लाने रसोई में गई तो विनोद भी वहीं पहुंच गया, बोला, ‘‘मेरे अच्छे दोस्तों में से एक रहा है यह. बहुत अच्छा स्वभाव है लेकिन कमाई में मुझ से बहुत पीछे रह गया. आज अचानक एक होटल के बाहर मिल गया. इस का अपना औफिस है मुलुंड में. एक कोचिंग सैंटर में अकाउंटैंसी की क्लासेज लेता है. बहुत इंटैलिजैंट है. मैं ने सोचा है, इसे यहीं ऊपर के रूम में रहने के लिए कह दूं. बच्चों की पढ़ाई भी देख लेगा, इस पर एहसान भी हो जाएगा और बच्चों को ट्यूशन के लिए कहीं जाना नहीं पड़ेगा.’’

‘‘इस का परिवार?’’

‘‘शादी नहीं की इस ने, किसी लड़की को चाहता तो था लेकिन घरपरिवार की जिम्मेदारी, अपनी 2 बहनों

की शादी निबटातेनिबटाते खुद को भूल गया. उस लड़की ने कहीं और शादी कर ली थी किसी अमीर लड़के से. बस, दूसरों के बारे में ही सोच कर जीता रहा बेवकूफ.’’ सुवीरा को दिल ही दिल में विनोद की आखिरी कही गई बात पर तेज गुस्सा आया, लेकिन इतना ही बोली, ‘‘जैसे तुम ठीक समझो.’’ विनोद ने दिल ही दिल में पूरा हिसाबकिताब लगा कर महेश से कहा, ‘‘देख, घर होते हुए तू कहीं और नहीं रहेगा.’’

‘‘नहीं यार, मैं आराम से एक लड़के के साथ शेयर कर के एक फ्लैट में रह रहा हूं. कोई प्रौब्लम नहीं है. सुबह अपनी क्लास ले कर औफिस चला जाता हूं.  औफिस पास ही है.’’

‘‘नहीं, मैं तेरी एक नहीं सुनूंगा. अभी ड्राइवर के साथ जा और अपना सामान ले कर आ,’’ विनोद ने उसे कुछ बोलने का मौका ही नहीं दिया और ड्राइवर को बुला कर आदेश भी दे दिया  दोनों की बातचीत में सुवीरा ने कोई हिस्सा नहीं लिया था. महेश के जाने के बाद विनोद ने सिद्धि, समृद्धि से कहा, ‘‘लो भई, तुम्हारे लिए टीचर का इंतजाम घर में ही कर दिया, अब जितना चाहो, जब चाहो इस से पढ़ लेना.’’ दोनों ‘‘थैंक्यू पापा,’’ कह कर हंसते हुए पिता से लिपट गईं. सुवीरा को चुप देख कर विनोद ने पूछा, ‘‘तुम क्यों सीरियस हो? तुम पर इस का कोई काम नहीं बढ़ेगा. अरे, इसे रखना नुकसानदायक नहीं होगा.’’ सुवीरा मन ही मन विनोद के हिसाबकिताब पर झुंझला गई. कैसा है विनोद, हर बात में हिसाबकिताब, दिल में किसी के लिए कोई कोमल भावनाएं नहीं, दोस्ती में भी स्वार्थ, क्या सोच है.

महेश अपना सामान ले कर आ गया. सामान क्या, एक बौक्स में किताबें ही किताबें थीं. कपड़े कम, किताबें ज्यादा थीं. सुवीरा से झिझकते हुए कहने लगा, ‘‘मेरे आने से आप को प्रौब्लम तो होगी?’’

‘‘नहीं, प्रौब्लम कैसी. आप आराम से रहें. किसी चीज की भी जरूरत हो तो जरूर कह दें.’’ डिनर के समय विनोद ने सुवीरा से कहा, ‘‘ऐसा करते हैं, आज पहला दिन है, इसे नीचे बुला लेते हैं. कल से महेश का नाश्ता और डिनर ऊपर ही भिजवा देना. लंच टाइम में तो यह रहेगा नहीं.’’ सुवीरा ने हां में सिर हिला दिया. महेश नीचे आ गया. उस की बातों ने, आकर्षक हंसी ने सब को प्रभावित किया. सिद्धि, समृद्धि तो खाना खत्म होने तक उस से फ्री हो चुकी थीं. विनोद अपनी कंपनी टूर के बारे

में बताता रहा. डिनर के बाद महेश सब को ‘गुडनाइट’ और ‘थैंक्स’ बोल कर ऊपर चला गया. थोड़ी देर बाद विनोद और सुवीरा अपने बैडरूम में आए. सुवीरा कपड़े बदल कर लेट गई. विनोद ने पूछा, ‘‘इसे रख कर ठीक किया न?’’

‘‘अभी क्या कह सकते हैं? अभी तो एक दिन भी नहीं हुआ.’’

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August 01, 2020 at 10:00AM

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