Friday 31 July 2020

Friendship Day Special: उसकी दोस्त

नेहा घबराई हुई थी, सागर की रिपोर्ट्स जो आनी थीं आज. नेहा ने सोते हुए सागर के चेहरे पर नजर डाली, क्या हुआ है सागर को, कितना कमजोर होता चला जा रहा है. फिर वह मुंबई के मुलुंड इलाके में तीसरे फ्लोर पर स्थित अपने फ्लैट की बालकनी में आ खड़ी हुई. यहां से उसे सोसाइटी का मेनगेट दिखाई पड़ता है. उस ने दूर से ही देख लिया कि रिया अपनी स्कूटी से आ रही है. उस का मन और बु झ गया.

यह रिया भी उसे चैन से नहीं जीने दे रही है. सागर के बचपन की इस दोस्त पर उसे बहुत गुस्सा आता है. कभी कुछ कह नहीं पाती. सोचती है, कह दिया तो सागर की नजरों में गिर जाएगी. पर कभी वह सागर और रिया की दोस्ती पर शक करती, कभी जासूसी करती, कभी उन के हावभाव देखती.

सागर को नेहा के मातापिता ने पसंद किया था. सागर का स्वभाव, व्यवहार देख कर नेहा को अपने पर गर्व ही हुआ था. वह सागर के साथ अपने वैवाहिक जीवन में पूरी तरह सुखी और संतुष्ट थी.

अब नेहा के मातापिता नहीं रहे थे. बहनभाई कोई था नहीं. सागर के भी मातापिता का सालों पहले देहांत हो चुका था. एक बड़ा भाई था, जो अपने परिवार के साथ अमेरिका में ही बस गया था. विवाह के बाद ही सागर का ट्रांसफर दिल्ली से मुंबई हो गया था. और एक दिन यहां उसे अचानक एक मौल में रिया मिल गई थी. सागर जबरदस्ती रिया को साथ घर ले कर आया था. फिर तो दोनों की बातें खत्म ही नहीं हुई थीं.

ये भी पढ़ें- वक्त की अदालत में

सागर ने उसे बताया था कि दिल्ली में एक ही गली में दोनों के घर थे. दोनों साथ ही पढ़े थे. पढ़ाई के बाद रिया जौब के लिए मुंबई आ गई थी. बीच में कभीकभार दोनों की फोन पर ही बात हुई थी. रिया अपने मातापिता की एकमात्र संतान थी. उस के मातापिता इस समय दिल्ली में ही रह रहे थे.

अब तो रिया कभी भी उन के घर आ धमकती थी. रिया वैसे नेहा को पसंद आई थी. स्मार्ट, सुंदर, मस्तमौला, खुशमिजाज लड़की थी. यहां एक एमएनसी में अच्छे पद पर कार्यरत थी. वह 2 लड़कियों के साथ फ्लैट शेयर कर रहती थी.

डोरबैल की आवाज से नेहा की तंद्रा भंग हुई. हाथ में खूब सारे पैकेट ले कर रिया अंदर आई. सब पैकेट टेबल पर रख कर सीधे सागर को देखने बैडरूम में गई. कुछ आहट पा कर सागर ने आंखें खोलीं.

‘‘कैसे हो?’’ रिया ने पूछा.

‘‘ठीक हूं.’’ सागर मुसकरा दिया.

‘‘कुछ नाश्ता लेती हुई आई हूं, सब खाते हैं,’’ रिया बोली.

नेहा ने कहा, ‘‘तुम खा लो, मेरा मन नहीं है.’’

रिया ने नेहा को स्नेहपूर्वक, अधिकार के साथ आंखें दिखाईं, ‘‘चुपचाप खा लो. अभी तुम्हारा राजकुमार भी स्कूल से आने वाला होगा. फिर उस की सेवा में लग जाओगी. चलो, अब शांति से बैठ कर कुछ खा लो.’’

नेहा अब मना नहीं कर पाई. वह सागर के लिए फल काट कर लाई और अपने दोनों के लिए चाय. सागर ने 2 टुकडे़ ही खाए थे कि फिर उस के पेट में तेज दर्द उठा. वह पसीनेपसीने हो गया. नेहा फिर घबरा गई.

रिया ने कहा, ‘‘रहने दो, सागर. तुम

कुछ मत खाओ. अब रिपोर्ट्स

आ ही जाएंगी, पता चलेगा क्या परेशानी है. लो, थोड़ा पानी पियो.’’ रिया ने सागर के मुंह में 2 चम्मच पानी डाला. नेहा के हाथपांव फूल रहे थे. रिया ने कहा, ‘‘अब तुम लोगों का डाक्टर के पास जाने का टाइम हो रहा है. मैं यहीं रुकती हूं. यश स्कूल से आएगा तो मैं उसे देख लूंगी.’’

नेहा ने उस की तरफ कृतज्ञताभरी नजरों से देखा तो रिया हंस पड़ी.

‘‘ज्यादा मत सोचो, तैयार हो जाओ. कभी मेरी तबीयत खराब होगी न, तो इतनी सेवा करवाऊंगी कि याद रखोगे.’’

दर्द में भी हंसी आ गई सागर को, बोला, ‘‘तुम हमेशा बकवास ही करना.’’ रिया ने उसे घूरा तो नेहा दोनों को देखती रह गई. अकसर दोनों की खुली दोस्ती को सम झने की नेहा कोशिश ही करती रह जाती थी.

यश स्कूल से आ गया तो नेहा उस के साथ व्यस्त हो गई. रिया आराम से सागर के पास बैठ कर बातें कर रही थी. अब तक यश भी रिया से काफी घुलमिल चुका था. यश को रिया के पास छोड़ सागर और नेहा अस्पताल चले गए.

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नेहा रिपोर्ट्स ले कर डाक्टर के रूम के बाहर अपने नंबर की प्रतीक्षा कर रही थी. सागर निढाल बैठा हुआ था. नेहा चिंतामग्न थी. उस के विवाह को 8 साल ही तो हुए थे. सागर के पेट में काफी समय से बहुत तेज दर्द की शिकायत थी. वह कोई पेनकिलर खा लेता था, दर्द ठीक हो जाता था. पर इस बार नेहा की जिद पर वह अपना चैकअप करवाने आया था. बहुत सारे टैस्ट हुए थे.

अपना नंबर आने पर नेहा डाक्टर सतीश के हाथ में रिपोर्ट देते हुए मन ही मन बहुत घबरा रही थी. उस की हथेलियां पसीने से भीग उठी थीं. वह सागर की गिरती सेहत को ले कर बहुत फिक्रमंद थी. डाक्टर की गंभीरता देख कर तो सागर भी असहज हो उठा.

‘‘सब ठीक तो है न, डाक्टर साहब?’’

‘‘नहीं, मिस्टर सागर, कुछ ठीक नहीं है. आप को आंतों का कैंसर है.’’

‘‘नहीं, डाक्टर,’’ नेहा लगभग चीख ही पड़ी, ‘‘यह कैसे हो सकता है.’’ सागर तो जैसे पत्थर का हो गया था.

‘‘ज्यादा चिंता मत करें. आप ऐडमिट हो जाइए, इलाज शुरू करते हैं, कीमोथेरैपी होगी. आजकल हर बीमारी का इलाज है. आप लोग देर न करें. इलाज शुरू करते हैं.’’ लगातार बरसती आंखों से सागर को ऐडमिट करवा कर नेहा फिर डाक्टर के पास गई, पूछने लगी, ‘‘डाक्टर, सागर ठीक तो हो जाएंगे न?’’

‘‘कोशिश तो पूरी की जाएगी लेकिन रिपोर्ट्स के हिसाब से इन के पास मुश्किल से 6 महीने ही हैं. कैंसर पूरी तरह से फैल चुका है. आप लोगों ने आने में बहुत देर कर दी है.’’

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अपनेआप को संभालती, रोतीसिसकती नेहा ने रिया को सब बताया तो उसे भी तेज  झटका लगा. फिर तुरंत अपनेआप पर काबू रखते हुए कहा, ‘‘तुम वहीं रहो, मैं रात को भी यहीं घर पर रहूंगी. कल यश को स्कूल भेज अस्पताल आ जाऊंगी. फिर तुम फ्रैश होने घर आ जाना. किसी भी बात की चिंता मत करना. मैं औफिस से छुट्टी ले लूंगी.’’ नेहा को सम झा कर, तसल्ली दे कर, फोन रख कर रिया भी फूटफूट कर रो पड़ी. यह क्या हो गया, उस का दोस्त इतनी बड़ी बीमारी की चपेट में आ गया. अब क्या होगा. नेहा अकेले कैसे सब करेगी. इन दोनों का तो कोई है भी नहीं यहां. अब उसे ही इन का सहारा बनना है.

अगले दिन यश को स्कूल भेज, सब का खाना बना कर, मेड से घर की साफसफाई करवा कर रिया अस्पताल पहुंच गई. वह सामान्य ढंग से सागर और नेहा से बातें करती रही. सागर तो अब मानसिक रूप से भी निढाल हो चुका था. उस ने नेहा को जबरदस्ती घर भेज दिया. उस के वापस आने तक रिया सागर से हमेशा की तरह हलकीफुलकी बातें करती रही. एकदो बार सागर को हंसा भी दिया. फिर सागर भी थोड़ा सहज हो कर बातें करता रहा.

नेहा वापस आई तो तीनों अपनेआप को सामान्य करने की कोशिश करते रहे. अब यही नियम बन गया. रात को रिया ही यश के पास रहती. वह अपना काफी सामान नेहा के घर ही उठा लाई थी. यश को स्कूल भेज वह भी अस्पताल चली आती. फिर यश के आने के समय नेहा घर आ जाती. उस के साथ कुछ समय बिता कर रात को फिर सागर के पास चली जाती.

एक हफ्ता सागर अस्पताल में ऐडमिट रहा. कीमो का पहला सैशन सागर के लिए काफी कष्टप्रद रहा. सागर की पीड़ा देख कर नेहा तड़प जाती. आंखें हर पल भीगी रहतीं. एक हफ्ते बाद डाक्टर ने कहा, ‘‘अब ये घर जा सकते हैं. इलाज तो चलता रहेगा. इन्हें हर हफ्ते कीमोथेरैपी के लिए आना है.’’ बहुत सारे निर्देशों के साथ तीनों घर लौट आए.

रिया ने ही सागर के औफिस फोन कर सब जानकारी दे दी. सब को सुन कर धक्का लगा था. फिर सागर से मिलने जानपहचान का कोई न कोई आता रहता था. वैसे तो मुंबई में हर व्यक्ति व्यस्त ही रहता है पर जिन पड़ोसियों से आतेजाते जानपहचान हो गई थी, उन्हें रिया ने सागर की बीमारी का हलका सा संकेत दे दिया था. रिया को महसूस हुआ था कि सागर को कभी भी तबीयत खराब होने पर समयअसमय हौस्पिटल ले कर भागना पड़ सकता है. सो, कम से कम कोई पड़ोसी तो ऐसा हो जिस पर नेहा भरोसा कर सके.

कीमोथेरैपी के हर सैशन में रिया ही नेहा और सागर को अस्पताल ले कर जाती. नेहा को ड्राइविंग नहीं आती थी. रिया को जैसे हर चीज की जानकारी थी. कीमो के सैशन हो रहे थे पर सागर की हालत में कोईर् सुधार नहीं था. उस के दर्द से नेहा कांप जाती. कभी चुपचाप बैठी रिया की हर बात सोचती तो पलकें आंसुओं से भीग जातीं. यह कैसी दोस्त है जिस ने उन लोगों के लिए अपना हर सुख, हर आराम भुला दिया है. उसे अब सम झ आया था कि दोस्ती तो एक ऐसा सच्चा रिश्ता है जो किसी मांग पर आधारित नहीं है, एक आंतरिक अनुभूति है, स्वार्थ से परे है.

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कई हफ्ते बीत रहे थे पर सागर की हालत में कोई सुधार नहीं था. अब तो नेहा को हर पल अनिष्ट की आशंका बनी रहती और फिर एक दिन वही हुआ जिस का डर था. सागर सोया तो उठा ही नहीं. नेहा चीत्कार कर उठी. उस की चीख सुन कर पड़ोसी भी आ गए. नेहा और यश को अपनी बांहों में भर कर रिया भी फूटफूट कर रो पड़ी.

उस के बाद नेहा को कुछ होश नहीं रहा. कैसे रिया ने सागर के बड़े भाई रवि को फोन किया. रवि कब पहुंचा. कब अंतिम संस्कार की तैयारियां हुईं. कैसे सब हुआ. नेहा को कुछ होश नहीं था. बारबार बेहोश होती. फिर होश आता, फिर रोती. उस का संसार लुट चुका था. उसे चुप करवाने वाली पड़ोसिनें भी रो देतीं. उस की हालत देखी नहीं जा रही थी. रिया ने ही सब संभाला.

अंतिम संस्कार के बाद यश के सिर पर हाथ रखते हुए रवि ने कहा, ‘‘नेहा, मेरे साथ चलोगी?’’

‘‘नहीं, भैया.’’

वहीं बैठी रिया ने कहा, ‘‘भैया, आप चिंता न करें. मैं यहीं हूं यश और नेहा के साथ.’’

‘‘पर तुम भी कब तक सब देखोगी?’’

‘‘हमेशा, भैया. इस में परेशानी क्या है?’’

‘‘फिर भी, रिया, कल तुम्हें अपने भी काम होंगे.’’

‘‘नहीं भैया, नेहा और यश से बढ़ कर मु झे कभी कोई काम नहीं होगा. मेरे दोस्त के अपने, मेरे अपने हैं अब.’’

‘‘रिया, यह भावनाओं में बहने वाली बात नहीं है. कल तुम्हारा विवाह होगा, परिवार होगा.’’

‘‘वह जब होगा, देखा जाएगा. फिलहाल तो मैं इस के बारे में सोच भी नहीं सकती, भैया. आप चिंता न करें. मैं हूं इन के साथ.’’

रवि इस प्रेम, मित्रता और इंसानियत की मूरत को देखता ही रह गया. उस की आंखें रिया के प्रति सम्मान से भर उठीं. एक हफ्ते बाद रवि चला गया.

नेहा बुरी तरह डिप्रैशन का शिकार हो गई थी. कभी रिया के गले लग कर तो कभी यश को सीने से लगा कर फूटफूट कर रोती रही. रिया ने अपनी छुट्टियां और बढ़ा ली थीं. उस ने नेहा और यश की पूरी देखभाल की. उस की कोशिशों से नेहा सामान्य होने लगी. नेहा सामान्य हुई तो रिया ने औफिस जाना शुरू किया. वह अपना सारा सामान नेहा के घर ही ले आई थी. सागर की सारी जमापूंजी, बीमे की रकम, सब जानकारी नेहा को दी. हर पल उसे यश के लिए जीने का हौसला बंधाती रहती.

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4-5 महीने और बीत गए. नेहा को अब यश के भविष्य की सुध आई. उस ने रिया से कहा, ‘‘रिया, क्या मु झे नौकरी मिल सकती है कहीं?’’

‘‘क्यों नेहा, मैं हूं न, सब कर लूंगी.’’

‘‘कब तक? रिया, प्लीज मेरी नौकरी ढूंढ़ने में मदद करो.’’

‘‘अच्छा, ठीक है, तुम कहती हो तो देखती हूं. तुम्हारा मन भी लगा रहेगा.’’

रिया ने हर तरफ कोशिश करते हुए घर से थोड़ी दूर ही स्थित एक अच्छे स्कूल में नेहा के लिए टीचिंग की जौब ढूंढ़ ली. मुसकराते हुए रिया बोली, ‘‘यह स्कूल घर के पास भी है, यश का ऐडमिशन भी यहीं करवा लेंगे, दोनों मांबेटा साथ आनाजाना, खुश?’’

नेहा ने रिया के दोनों हाथ पकड़ लिए, ‘‘रिया, कुदरत ने शायद तुम्हें मेरे लिए ही भेजा था. तुम्हारा एहसान मैं…’’ कहतेकहते नेहा का स्वर भर्रा गया.

‘‘चलो, तुम्हें मेरी कुछ तो कद्र है. एक नालायक से दोस्ती की थी वह तो छोड़ कर चला गया,’’ कह कर मुसकराने की कोशिश करतेकरते भी रिया का गला रुंध गया. दोनों एकदूसरे के गले लग कर रो पड़ीं.

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आज नेहा के दिल में रिया के लिए प्यार ही प्यार था. सारे संदेह, शंका निर्मूल साबित हुए थे. अपने मन के सारे संदेहों पर वह दिल से शर्मिंदा थी. सागर तो हमेशा के लिए चला गया था पर वह ऐसी दोस्त दे गया था जो अब नेहा के मनप्राण का हिस्सा बन चुकी थी. जीवन में आए इस तूफान में, दुखभरे बादलों के बीच उस की दोस्त ही तो थी उस के साथ. दोस्ती की मिसाल तो अब सम झ आई थी. नेहा को महसूस हो चुका था कि दोस्ती स्त्रीपुरुष की मुहताज नहीं है. भीगी पलकों से नेहा अपने मृत पति की प्यारी दोस्त को देखती रह गई.

अब लग रहा था उसे कि उन की दोस्ती तो वर्षा की तरह थी. उन की दोस्ती के केंद्र में तो मात्र संवेदना, करुणा और प्रत्येक परिस्थिति में संबल बनने की प्रेरणा सांसें लेती थीं. मृत पति और सामने खड़ी उस की दोस्त के पावन रिश्ते की गहराई महसूस कर नेहा की आंखें भीगती चली गई थीं.

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नेहा घबराई हुई थी, सागर की रिपोर्ट्स जो आनी थीं आज. नेहा ने सोते हुए सागर के चेहरे पर नजर डाली, क्या हुआ है सागर को, कितना कमजोर होता चला जा रहा है. फिर वह मुंबई के मुलुंड इलाके में तीसरे फ्लोर पर स्थित अपने फ्लैट की बालकनी में आ खड़ी हुई. यहां से उसे सोसाइटी का मेनगेट दिखाई पड़ता है. उस ने दूर से ही देख लिया कि रिया अपनी स्कूटी से आ रही है. उस का मन और बु झ गया.

यह रिया भी उसे चैन से नहीं जीने दे रही है. सागर के बचपन की इस दोस्त पर उसे बहुत गुस्सा आता है. कभी कुछ कह नहीं पाती. सोचती है, कह दिया तो सागर की नजरों में गिर जाएगी. पर कभी वह सागर और रिया की दोस्ती पर शक करती, कभी जासूसी करती, कभी उन के हावभाव देखती.

सागर को नेहा के मातापिता ने पसंद किया था. सागर का स्वभाव, व्यवहार देख कर नेहा को अपने पर गर्व ही हुआ था. वह सागर के साथ अपने वैवाहिक जीवन में पूरी तरह सुखी और संतुष्ट थी.

अब नेहा के मातापिता नहीं रहे थे. बहनभाई कोई था नहीं. सागर के भी मातापिता का सालों पहले देहांत हो चुका था. एक बड़ा भाई था, जो अपने परिवार के साथ अमेरिका में ही बस गया था. विवाह के बाद ही सागर का ट्रांसफर दिल्ली से मुंबई हो गया था. और एक दिन यहां उसे अचानक एक मौल में रिया मिल गई थी. सागर जबरदस्ती रिया को साथ घर ले कर आया था. फिर तो दोनों की बातें खत्म ही नहीं हुई थीं.

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सागर ने उसे बताया था कि दिल्ली में एक ही गली में दोनों के घर थे. दोनों साथ ही पढ़े थे. पढ़ाई के बाद रिया जौब के लिए मुंबई आ गई थी. बीच में कभीकभार दोनों की फोन पर ही बात हुई थी. रिया अपने मातापिता की एकमात्र संतान थी. उस के मातापिता इस समय दिल्ली में ही रह रहे थे.

अब तो रिया कभी भी उन के घर आ धमकती थी. रिया वैसे नेहा को पसंद आई थी. स्मार्ट, सुंदर, मस्तमौला, खुशमिजाज लड़की थी. यहां एक एमएनसी में अच्छे पद पर कार्यरत थी. वह 2 लड़कियों के साथ फ्लैट शेयर कर रहती थी.

डोरबैल की आवाज से नेहा की तंद्रा भंग हुई. हाथ में खूब सारे पैकेट ले कर रिया अंदर आई. सब पैकेट टेबल पर रख कर सीधे सागर को देखने बैडरूम में गई. कुछ आहट पा कर सागर ने आंखें खोलीं.

‘‘कैसे हो?’’ रिया ने पूछा.

‘‘ठीक हूं.’’ सागर मुसकरा दिया.

‘‘कुछ नाश्ता लेती हुई आई हूं, सब खाते हैं,’’ रिया बोली.

नेहा ने कहा, ‘‘तुम खा लो, मेरा मन नहीं है.’’

रिया ने नेहा को स्नेहपूर्वक, अधिकार के साथ आंखें दिखाईं, ‘‘चुपचाप खा लो. अभी तुम्हारा राजकुमार भी स्कूल से आने वाला होगा. फिर उस की सेवा में लग जाओगी. चलो, अब शांति से बैठ कर कुछ खा लो.’’

नेहा अब मना नहीं कर पाई. वह सागर के लिए फल काट कर लाई और अपने दोनों के लिए चाय. सागर ने 2 टुकडे़ ही खाए थे कि फिर उस के पेट में तेज दर्द उठा. वह पसीनेपसीने हो गया. नेहा फिर घबरा गई.

रिया ने कहा, ‘‘रहने दो, सागर. तुम

कुछ मत खाओ. अब रिपोर्ट्स

आ ही जाएंगी, पता चलेगा क्या परेशानी है. लो, थोड़ा पानी पियो.’’ रिया ने सागर के मुंह में 2 चम्मच पानी डाला. नेहा के हाथपांव फूल रहे थे. रिया ने कहा, ‘‘अब तुम लोगों का डाक्टर के पास जाने का टाइम हो रहा है. मैं यहीं रुकती हूं. यश स्कूल से आएगा तो मैं उसे देख लूंगी.’’

नेहा ने उस की तरफ कृतज्ञताभरी नजरों से देखा तो रिया हंस पड़ी.

‘‘ज्यादा मत सोचो, तैयार हो जाओ. कभी मेरी तबीयत खराब होगी न, तो इतनी सेवा करवाऊंगी कि याद रखोगे.’’

दर्द में भी हंसी आ गई सागर को, बोला, ‘‘तुम हमेशा बकवास ही करना.’’ रिया ने उसे घूरा तो नेहा दोनों को देखती रह गई. अकसर दोनों की खुली दोस्ती को सम झने की नेहा कोशिश ही करती रह जाती थी.

यश स्कूल से आ गया तो नेहा उस के साथ व्यस्त हो गई. रिया आराम से सागर के पास बैठ कर बातें कर रही थी. अब तक यश भी रिया से काफी घुलमिल चुका था. यश को रिया के पास छोड़ सागर और नेहा अस्पताल चले गए.

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नेहा रिपोर्ट्स ले कर डाक्टर के रूम के बाहर अपने नंबर की प्रतीक्षा कर रही थी. सागर निढाल बैठा हुआ था. नेहा चिंतामग्न थी. उस के विवाह को 8 साल ही तो हुए थे. सागर के पेट में काफी समय से बहुत तेज दर्द की शिकायत थी. वह कोई पेनकिलर खा लेता था, दर्द ठीक हो जाता था. पर इस बार नेहा की जिद पर वह अपना चैकअप करवाने आया था. बहुत सारे टैस्ट हुए थे.

अपना नंबर आने पर नेहा डाक्टर सतीश के हाथ में रिपोर्ट देते हुए मन ही मन बहुत घबरा रही थी. उस की हथेलियां पसीने से भीग उठी थीं. वह सागर की गिरती सेहत को ले कर बहुत फिक्रमंद थी. डाक्टर की गंभीरता देख कर तो सागर भी असहज हो उठा.

‘‘सब ठीक तो है न, डाक्टर साहब?’’

‘‘नहीं, मिस्टर सागर, कुछ ठीक नहीं है. आप को आंतों का कैंसर है.’’

‘‘नहीं, डाक्टर,’’ नेहा लगभग चीख ही पड़ी, ‘‘यह कैसे हो सकता है.’’ सागर तो जैसे पत्थर का हो गया था.

‘‘ज्यादा चिंता मत करें. आप ऐडमिट हो जाइए, इलाज शुरू करते हैं, कीमोथेरैपी होगी. आजकल हर बीमारी का इलाज है. आप लोग देर न करें. इलाज शुरू करते हैं.’’ लगातार बरसती आंखों से सागर को ऐडमिट करवा कर नेहा फिर डाक्टर के पास गई, पूछने लगी, ‘‘डाक्टर, सागर ठीक तो हो जाएंगे न?’’

‘‘कोशिश तो पूरी की जाएगी लेकिन रिपोर्ट्स के हिसाब से इन के पास मुश्किल से 6 महीने ही हैं. कैंसर पूरी तरह से फैल चुका है. आप लोगों ने आने में बहुत देर कर दी है.’’

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अपनेआप को संभालती, रोतीसिसकती नेहा ने रिया को सब बताया तो उसे भी तेज  झटका लगा. फिर तुरंत अपनेआप पर काबू रखते हुए कहा, ‘‘तुम वहीं रहो, मैं रात को भी यहीं घर पर रहूंगी. कल यश को स्कूल भेज अस्पताल आ जाऊंगी. फिर तुम फ्रैश होने घर आ जाना. किसी भी बात की चिंता मत करना. मैं औफिस से छुट्टी ले लूंगी.’’ नेहा को सम झा कर, तसल्ली दे कर, फोन रख कर रिया भी फूटफूट कर रो पड़ी. यह क्या हो गया, उस का दोस्त इतनी बड़ी बीमारी की चपेट में आ गया. अब क्या होगा. नेहा अकेले कैसे सब करेगी. इन दोनों का तो कोई है भी नहीं यहां. अब उसे ही इन का सहारा बनना है.

अगले दिन यश को स्कूल भेज, सब का खाना बना कर, मेड से घर की साफसफाई करवा कर रिया अस्पताल पहुंच गई. वह सामान्य ढंग से सागर और नेहा से बातें करती रही. सागर तो अब मानसिक रूप से भी निढाल हो चुका था. उस ने नेहा को जबरदस्ती घर भेज दिया. उस के वापस आने तक रिया सागर से हमेशा की तरह हलकीफुलकी बातें करती रही. एकदो बार सागर को हंसा भी दिया. फिर सागर भी थोड़ा सहज हो कर बातें करता रहा.

नेहा वापस आई तो तीनों अपनेआप को सामान्य करने की कोशिश करते रहे. अब यही नियम बन गया. रात को रिया ही यश के पास रहती. वह अपना काफी सामान नेहा के घर ही उठा लाई थी. यश को स्कूल भेज वह भी अस्पताल चली आती. फिर यश के आने के समय नेहा घर आ जाती. उस के साथ कुछ समय बिता कर रात को फिर सागर के पास चली जाती.

एक हफ्ता सागर अस्पताल में ऐडमिट रहा. कीमो का पहला सैशन सागर के लिए काफी कष्टप्रद रहा. सागर की पीड़ा देख कर नेहा तड़प जाती. आंखें हर पल भीगी रहतीं. एक हफ्ते बाद डाक्टर ने कहा, ‘‘अब ये घर जा सकते हैं. इलाज तो चलता रहेगा. इन्हें हर हफ्ते कीमोथेरैपी के लिए आना है.’’ बहुत सारे निर्देशों के साथ तीनों घर लौट आए.

रिया ने ही सागर के औफिस फोन कर सब जानकारी दे दी. सब को सुन कर धक्का लगा था. फिर सागर से मिलने जानपहचान का कोई न कोई आता रहता था. वैसे तो मुंबई में हर व्यक्ति व्यस्त ही रहता है पर जिन पड़ोसियों से आतेजाते जानपहचान हो गई थी, उन्हें रिया ने सागर की बीमारी का हलका सा संकेत दे दिया था. रिया को महसूस हुआ था कि सागर को कभी भी तबीयत खराब होने पर समयअसमय हौस्पिटल ले कर भागना पड़ सकता है. सो, कम से कम कोई पड़ोसी तो ऐसा हो जिस पर नेहा भरोसा कर सके.

कीमोथेरैपी के हर सैशन में रिया ही नेहा और सागर को अस्पताल ले कर जाती. नेहा को ड्राइविंग नहीं आती थी. रिया को जैसे हर चीज की जानकारी थी. कीमो के सैशन हो रहे थे पर सागर की हालत में कोईर् सुधार नहीं था. उस के दर्द से नेहा कांप जाती. कभी चुपचाप बैठी रिया की हर बात सोचती तो पलकें आंसुओं से भीग जातीं. यह कैसी दोस्त है जिस ने उन लोगों के लिए अपना हर सुख, हर आराम भुला दिया है. उसे अब सम झ आया था कि दोस्ती तो एक ऐसा सच्चा रिश्ता है जो किसी मांग पर आधारित नहीं है, एक आंतरिक अनुभूति है, स्वार्थ से परे है.

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कई हफ्ते बीत रहे थे पर सागर की हालत में कोई सुधार नहीं था. अब तो नेहा को हर पल अनिष्ट की आशंका बनी रहती और फिर एक दिन वही हुआ जिस का डर था. सागर सोया तो उठा ही नहीं. नेहा चीत्कार कर उठी. उस की चीख सुन कर पड़ोसी भी आ गए. नेहा और यश को अपनी बांहों में भर कर रिया भी फूटफूट कर रो पड़ी.

उस के बाद नेहा को कुछ होश नहीं रहा. कैसे रिया ने सागर के बड़े भाई रवि को फोन किया. रवि कब पहुंचा. कब अंतिम संस्कार की तैयारियां हुईं. कैसे सब हुआ. नेहा को कुछ होश नहीं था. बारबार बेहोश होती. फिर होश आता, फिर रोती. उस का संसार लुट चुका था. उसे चुप करवाने वाली पड़ोसिनें भी रो देतीं. उस की हालत देखी नहीं जा रही थी. रिया ने ही सब संभाला.

अंतिम संस्कार के बाद यश के सिर पर हाथ रखते हुए रवि ने कहा, ‘‘नेहा, मेरे साथ चलोगी?’’

‘‘नहीं, भैया.’’

वहीं बैठी रिया ने कहा, ‘‘भैया, आप चिंता न करें. मैं यहीं हूं यश और नेहा के साथ.’’

‘‘पर तुम भी कब तक सब देखोगी?’’

‘‘हमेशा, भैया. इस में परेशानी क्या है?’’

‘‘फिर भी, रिया, कल तुम्हें अपने भी काम होंगे.’’

‘‘नहीं भैया, नेहा और यश से बढ़ कर मु झे कभी कोई काम नहीं होगा. मेरे दोस्त के अपने, मेरे अपने हैं अब.’’

‘‘रिया, यह भावनाओं में बहने वाली बात नहीं है. कल तुम्हारा विवाह होगा, परिवार होगा.’’

‘‘वह जब होगा, देखा जाएगा. फिलहाल तो मैं इस के बारे में सोच भी नहीं सकती, भैया. आप चिंता न करें. मैं हूं इन के साथ.’’

रवि इस प्रेम, मित्रता और इंसानियत की मूरत को देखता ही रह गया. उस की आंखें रिया के प्रति सम्मान से भर उठीं. एक हफ्ते बाद रवि चला गया.

नेहा बुरी तरह डिप्रैशन का शिकार हो गई थी. कभी रिया के गले लग कर तो कभी यश को सीने से लगा कर फूटफूट कर रोती रही. रिया ने अपनी छुट्टियां और बढ़ा ली थीं. उस ने नेहा और यश की पूरी देखभाल की. उस की कोशिशों से नेहा सामान्य होने लगी. नेहा सामान्य हुई तो रिया ने औफिस जाना शुरू किया. वह अपना सारा सामान नेहा के घर ही ले आई थी. सागर की सारी जमापूंजी, बीमे की रकम, सब जानकारी नेहा को दी. हर पल उसे यश के लिए जीने का हौसला बंधाती रहती.

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4-5 महीने और बीत गए. नेहा को अब यश के भविष्य की सुध आई. उस ने रिया से कहा, ‘‘रिया, क्या मु झे नौकरी मिल सकती है कहीं?’’

‘‘क्यों नेहा, मैं हूं न, सब कर लूंगी.’’

‘‘कब तक? रिया, प्लीज मेरी नौकरी ढूंढ़ने में मदद करो.’’

‘‘अच्छा, ठीक है, तुम कहती हो तो देखती हूं. तुम्हारा मन भी लगा रहेगा.’’

रिया ने हर तरफ कोशिश करते हुए घर से थोड़ी दूर ही स्थित एक अच्छे स्कूल में नेहा के लिए टीचिंग की जौब ढूंढ़ ली. मुसकराते हुए रिया बोली, ‘‘यह स्कूल घर के पास भी है, यश का ऐडमिशन भी यहीं करवा लेंगे, दोनों मांबेटा साथ आनाजाना, खुश?’’

नेहा ने रिया के दोनों हाथ पकड़ लिए, ‘‘रिया, कुदरत ने शायद तुम्हें मेरे लिए ही भेजा था. तुम्हारा एहसान मैं…’’ कहतेकहते नेहा का स्वर भर्रा गया.

‘‘चलो, तुम्हें मेरी कुछ तो कद्र है. एक नालायक से दोस्ती की थी वह तो छोड़ कर चला गया,’’ कह कर मुसकराने की कोशिश करतेकरते भी रिया का गला रुंध गया. दोनों एकदूसरे के गले लग कर रो पड़ीं.

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आज नेहा के दिल में रिया के लिए प्यार ही प्यार था. सारे संदेह, शंका निर्मूल साबित हुए थे. अपने मन के सारे संदेहों पर वह दिल से शर्मिंदा थी. सागर तो हमेशा के लिए चला गया था पर वह ऐसी दोस्त दे गया था जो अब नेहा के मनप्राण का हिस्सा बन चुकी थी. जीवन में आए इस तूफान में, दुखभरे बादलों के बीच उस की दोस्त ही तो थी उस के साथ. दोस्ती की मिसाल तो अब सम झ आई थी. नेहा को महसूस हो चुका था कि दोस्ती स्त्रीपुरुष की मुहताज नहीं है. भीगी पलकों से नेहा अपने मृत पति की प्यारी दोस्त को देखती रह गई.

अब लग रहा था उसे कि उन की दोस्ती तो वर्षा की तरह थी. उन की दोस्ती के केंद्र में तो मात्र संवेदना, करुणा और प्रत्येक परिस्थिति में संबल बनने की प्रेरणा सांसें लेती थीं. मृत पति और सामने खड़ी उस की दोस्त के पावन रिश्ते की गहराई महसूस कर नेहा की आंखें भीगती चली गई थीं.

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August 01, 2020 at 10:00AM

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