Thursday 30 July 2020

Friendship Day Special : सहेली की सीख- प्रज्ञा पल्लवी की मां को देखकर क्या सोच रही थी?

पल्लवी और प्रज्ञा की कुछ दिन पहले ही मित्रता हुई थी. एक दिन स्कूल से घर लौटते समय प्रज्ञा ने पल्लवी को अपने घर चलने के लिए कहा तो पल्लवी अपनी असमर्थता जताती हुई बोली, ‘‘नहीं, आज नहीं. मैं फिर किसी दिन आऊंगी.’’

‘‘आज क्यों नहीं? तुम्हें आज ही चलना होगा,’’ प्रज्ञा जिद करती हुई आगे बोली, ‘‘हमारे गराज में आज सुबह ही क्रोकोडायल ने 3 बच्चे दिए हैं.’’ क्रोकोडायल प्रज्ञा की पालतू पामेरियन कुतिया का नाम था.

‘‘2 सुंदरसुंदर सफेद और एक काला चितकबरा है,’’ प्रज्ञा हाथों को नचाते हुए पिल्लों की सुंदरता का वर्णन करने लगी.

‘‘अच्छा, तब तो मैं उन्हें देखने कल जरूर आऊंगी.’’

‘‘जरूर आओगी न?’’

ये भी पढ़ें-Short Story: मौडर्न सिंड्रेला

‘‘वादा रहा,’’ कहती हुई पल्लवी अपने घर की ओर जाने वाली गली में मुड़ गई. दूसरे दिन शाम को पल्लवी प्रज्ञा के घर पहुंची. पल्लवी का हाथ पकड़ कर लगभग खींचते हुए प्रज्ञा उसे अपने गराज की ओर ले गई, ‘‘देखो, हैं न सुंदरसुंदर पिल्ले? बताओ इन का क्या नाम रखें?’’ अपनी सहेली की ओर देखती हुई प्रज्ञा ने अपनी गोलगोल आंखें मटकाते हुए पूछा.

‘‘आहा, इतने सुंदर पिल्ले? नाम भी इन के इतने ही सुंदर होने चाहिए,’’ कुछ सोचती हुई पल्लवी काले चितकबरे  पिल्ले की ओर इशारा करती हुई बोली, ‘‘इस का नाम ‘ब्राउनी’ ठीक रहेगा.’’

‘‘हां, बिलकुल ठीक. इन दोनों का नाम ‘व्हाइटी’ और ‘ब्राउनी’ रख लेते हैं.’’ दोनों सहेलियां पिल्लों को प्यार करने में मग्न थीं. पल्लवी सफेद पिल्ले ‘व्हाइटी’ को गोद में उठा कर पुचकार रही थी कि व्हाइटी झट से अपनी मां की ओर कूद गया और चपरचपर अपनी मां का दूध पीने लगा. यह देख प्रज्ञा पिल्ले की पीठ सहलाती हुई कहने लगी, ‘‘भूख लगी है तुझे व्हाइटी? ठीक है, जा दूध पी ले अपनी मां का.’’ इतने में प्रज्ञा को मां ने आवाज दी पर प्रज्ञा ने सुन कर भी अनसुना कर दिया. यह देख पल्लवी बोली, ‘‘प्रज्ञा, तुम्हें तुम्हारी मां पुकार रही हैं.’’

‘‘पुकारने दो, मां की तो आदत है,’’ लापरवाही से कंधे उचकाती हुई प्रज्ञा बोली और दोबारा पिल्लों से खेलने लगी. फिर मां की आवाज सुनाई दी तो पल्लवी बोली, ‘‘प्रज्ञा, तुम्हारी मां नाराज हो जाएंगी.’’

‘‘होने दो, मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता. मां तो हर बात पर नाराज होती हैं.’’ प्रज्ञा की यह हरकत पल्लवी को बिलकुल अच्छी नहीं लगी.

‘‘अच्छा, अब मैं चलती हूं,’’ कहती हुई पल्लवी उठ खड़ी हुई.

ये भी पढ़ें-घर का चिराग-भाग 1: क्या अपनी गलती समझ पाई नीता?

‘‘रुको न, हम थोड़ी देर और पिल्लों से खेलेंगे.’’

‘‘नहींनहीं, मेरी मां मेरा इंतजार कर रही होंगी,’’ कहती हुई पल्लवी फाटक खोल कर बाहर निकल गई. दूसरे दिन स्कूल में प्रज्ञा का पैन पल्लवी के पास रह गया था. घर आ कर प्रज्ञा जब स्कूल का काम करने लगी तो उसे पैन की याद आई. वह तुरंत पल्लवी के घर पहुंची. उस समय पल्लवी पलंग पर बैठी धुले हुए सूखे कपड़ों की तह बना कर समेट रही थी.

‘‘आओ प्रज्ञा,’’ प्रज्ञा को देख पल्लवी ने कहा और प्रज्ञा का परिचय अपनी मां से कराया. पल्लवी की मां खुश होते हुए बोलीं, ‘‘बैठो बेटी, मैं अभी तुम्हारे लिए आइसक्रीम ले कर आती हूं.’’ प्रज्ञा को आइसक्रीम बहुत पसंद थी. वह मन ही मन खुश होती हुई सोच रही थी कि पल्लवी की मां कितनी अच्छी हैं. वह पल्लवी की मां और अपनी मां की तुलना करने लगी, ‘कभी कोई सहेली आ जाती है, तब भी मेरी मां खयाल नहीं करतीं और ऊपर से किसी न किसी काम के लिए पुकारती रहती हैं.’ प्रज्ञा को पल्लवी के यहां बहुत अच्छा लगा. उस के बाद वह अकसर पल्लवी के यहां जाने लगी. वह देखती पल्लवी कभी रसोई में रखे गीले बरतनों को पोंछ कर रख रही है तो कभी फर्श पर पोंछा लगा रही है. उस के आते ही वह झट से उस के साथ खेलने लग जाती पर पल्लवी की मां कभी पल्लवी को बीच में नहीं पुकारतीं और ऊपर से वे हमेशा कुछ न कुछ खाने को भी देतीं.

एक दिन तो उस के आश्चर्य की हद हो गई. उस दिन टीवी पर एक बढि़या फिल्म आ रही थी और पल्लवी मां के साथ आलू के चिप्स सुखाने में मग्न थी. ‘‘उफ, कितना उबाऊ काम करती हो तुम?’’ प्रज्ञा पल्लवी के कानोें के पास मुंह ले जा कर फुसफुसाती हुई बोली, ‘‘चलो, टीवी देखते हैं.’’ ‘‘नहीं, अभी बहुत चिप्स बाकी हैं, जाओ तुम देखो.’’

ये भी पढ़ें-Short Story: दैहिक भूख

‘‘चलो न, छोड़ो. यह काम तो मां कर ही लेंगी.’’

‘‘मां अकेली क्याक्या करें? थक जाती हैं. फिर वे ये सब बनाती भी तो हमारे लिए ही हैं,’’ पल्लवी चिप्स सुखाती हुई बोली. विवश हो कर प्रज्ञा भी पल्लवी के साथ चिप्स सुखाने लगी. दोनों के इकट्ठे काम करने से काम जल्दी खत्म हो गया. पल्लवी की मां दोनों को अंदर बैठक में बैठाती हुई बोलीं, ‘‘क्या खाओगी बेटी?’’ ‘‘मां, बड़ी जोर से भूख लगी है,’’ पल्लवी ने कहा तो उस की मां उस के सिर पर स्नेह से हाथ फेरते व पुचकारते हुए बोलीं, ‘‘मैं अभी तुम्हारे लिए बिस्कुट व नमकीन लाती हूं.’’

प्रज्ञा को उदास देख पल्लवी ने पूछा, ‘‘बुरा मान गई?’’

‘‘नहीं,’’ गरदन हिलाते हुए प्रज्ञा बोली, ‘‘तुम्हारी मां बहुत अच्छी हैं.’’

‘‘मां तो सब की अच्छी होती हैं.’’

प्रज्ञा कुछ नहीं बोली. वह उदास सी चुपचाप बैठी रही. बिस्कुट खाते समय भी वह बहुत गंभीर रही. अपने घर लौटते समय वह मन ही मन सोच रही थी कि मेरी मां तो बहुत चिड़चिड़ी हैं. जराजरा सी बात पर डांटने लगती हैं और पल्लवी की मां उस का कितना खयाल रखती हैं. यह सोच कर प्रज्ञा बहुत दुखी हो गई. ऐसा लग रहा था जैसे अभी उस की रुलाई फूट पड़ेगी. घर पहुंचते ही प्रज्ञा से उस की मां ने कहा, ‘‘देखो प्रज्ञा, कल स्कूल से आ कर तुम ने अपनी स्कूल ड्रैस भी धोने के लिए नहीं रखी. यहां तक कि तुम्हारा बस्ता भी अभी तक डाइनिंग टेबल की कुरसी पर पड़ा है.’’ प्रज्ञा की मां प्रज्ञा से और भी बहुत कुछ कह रही थीं किंतु उसे कुछ सुनाई नहीं दे रहा था. वह चुपचाप बुझेबुझे कदमों से अपना बस्ता उठा कर अपने कमरे में चली गई. ‘क्या खाओगी बेटी,’ पल्लवी की मां की आवाज उस के कानों में बारबार गूंज रही थी. वह दुखी मन से वहीं पलंग पर भूखी ही लेट गई.

शाम को जब पल्लवी पिल्लों के साथ खेलने के लिए प्रज्ञा के घर पहुंची तो प्रज्ञा को उदास पाया.

‘‘क्या बात है प्रज्ञा? आज तुम सुबह से ही उदास हो?’’

प्रज्ञा कुछ नहीं बोली.

‘‘बताओ न क्या बात हुई? क्या मुझ से नाराज हो?’’

‘‘नहीं.’’

ये भी पढ़ें-Short Story:पछतावा-रजनीश रात में क्या चीखता था?

‘‘सब की मांएं अपने बच्चों को प्यार करती हैं. एक मेरी मां हैं जो बस हर समय डांटती ही रहती हैं.’’ प्रज्ञा के मुंह से यह बात सुन कर आश्चर्यचकित पल्लवी बोली, ‘‘कैसी बातें करती हो प्रज्ञा? तुम्हारी मां तो इतनी बड़ी लेखिका हैं. तुम्हें तो अपनी मां पर गर्व होना चाहिए?’’ ‘‘होंगी बड़ी लेखिका,’’ मुंह बिचकाती हुई प्रज्ञा बोली, ‘‘बातबात पर डांटना, ऐसा क्यों कर दिया, वहां क्यों रख दिया, यह नहीं किया, वह नहीं किया…’’ कहतेकहते प्रज्ञा की बड़ीबड़ी आंखों से आंसू छलछला आए.

अपने नन्हेनन्हे हाथों से प्रज्ञा के आंसू पोंछती हुई पल्लवी बोली, ‘‘एक बात कहूं प्रज्ञा, बुरा तो नहीं मानोगी?’’

‘‘नहीं,’’ गरदन हिलाती प्रज्ञा आंखें पोंछती हुई बोली, ‘‘कहो, क्या कहना है तुम्हें?’’

पल्लवी बोली, ‘‘एक बात बताओ प्रज्ञा, तुम अपनी मां का कितना ध्यान रखती हो?’’

‘‘मां कोई छोटी बच्ची हैं जो मैं उन का ध्यान रखूं?’’ खीजती हुई प्रज्ञा बोली.

‘‘मेरे कहने का मतलब है कि मां जब तुम्हें कुछ कहती हैं तो तुम अनसुना कर देती हो. मां के काम बताते ही तुम मना कर देती हो. यदि तुम छोटेमोटे कामों में मां का सहयोग कर दो तो उन का काम काफी हलका हो जाएगा. मुझे देखो, मैं मां के बिना बताए ही काम कर देती हूं. मेरे छोटेमोटे काम कर देने से मां को बहुत राहत मिलती है. जब मां अकेली सारे घर का काम देखेंगी व अस्तव्यस्त सामान देखेंगी तो उन्हें समेटतेसमेटते स्वाभाविक रूप से गुस्सा तो आ ही जाएगा.’’ प्रज्ञा को मन ही मन अपनी गलती का एहसास हो रहा था. पल्लवी के जाने के बाद प्रज्ञा ने मन ही मन कुछ निश्चय किया.

सुबह प्रज्ञा मां के बिना उठाए ही उठ गई, यहां तक कि उस ने अपनी चादर भी समेट कर अलमारी में रख दी. प्रज्ञा को उठा देख कर मां ने दूध का गिलास मेज पर रख दिया था. हमेशा दूध के लिए नानुकुर करने वाली प्रज्ञा ने चुपचाप दूध पी लिया. खाली गिलास उठा कर रसोई में रखने चली गई व सिंक में रखे सभी प्यालेगिलासों को धोपोंछ कर ठीक से यथावत रख दिया. ‘‘क्या खाओगी बेटी, आज क्या बनाऊं?’’ प्रज्ञा की मां उस से पूछ रही थीं. प्रज्ञा ने कनखियों से मां का मुसकराता हुआ चेहरा देख लिया था. यह देख उसे बड़ी खुशी हुई. हमेशा शाम को स्कूल से लौट कर प्रज्ञा बस्ता पटक कर जूतेमोजे इधरउधर फेंक, बिना स्कूल ड्रैस बदले ही बाहर खेलने के लिए भाग जाती थी. मां आवाज देती रह जातीं किंतु वह सुनती कहां थी? उस दिन प्रज्ञा ने स्कूल से आ कर अपना सामान यथावत रखा. स्कूल की पोशाक बदली और हाथमुंह धो कर कमरे में झांक कर देखा तो पता चला कि मां कुछ लिखने में तल्लीन थीं. लिखते समय मां को तंग करने वाली प्रज्ञा उस दिन चुपचाप दबेपांव, रसोई की ओर मुड़ गई. देखा, सारी रसोई बिखरी पड़ी थी. ‘दिन में शायद मां से मिलने कुछ मेहमान आए होंगे,’ सोच कर प्रज्ञा ने सारा सामान समेट कर सफाई की व पूरी रसोई सुव्यवस्थित कर दी. बैठक से भी चायनाश्ते के बरतन उस ने बिना आवाज किए समेट दिए. यह सब करने के बाद वह खुद अपने हाथों से डब्बों में से केक व बिस्कुट निकाल कर प्लेट में रख कर चुपचाप खाने लगी. वहीं से वह मां को लिखते हुए देख रही थी. आज उसे पहली बार मां बहुत सुंदर लग रही थीं. पहली बार प्रज्ञा को यह सोच कर गर्व हो रहा था कि उस की मां बड़ी लेखिका हैं.

जब मां का लेखन कार्य पूरा हुआ तो वे कमरे से बाहर निकलीं. जब उन की नजरें पूरे घर में घूमीं तो उन्होंने खुशी के मारे प्रज्ञा को अपने सीने से लगा लिया, ‘‘ओह, मेरी बेटी अब समझदार हो गई है.’’ दूर बैठी क्रोकोडायल अपने पिल्लों को दूध पिला रही थी और बच्चे उस के ऊपर उछलकूद कर रहे थे. क्रोकोडायल पिल्लों को चाट रही थी. यह देख प्रज्ञा भी मां की बांहों में झूम उठी.

The post Friendship Day Special : सहेली की सीख- प्रज्ञा पल्लवी की मां को देखकर क्या सोच रही थी? appeared first on Sarita Magazine.



from कहानी – Sarita Magazine https://ift.tt/2ZtnZwb

पल्लवी और प्रज्ञा की कुछ दिन पहले ही मित्रता हुई थी. एक दिन स्कूल से घर लौटते समय प्रज्ञा ने पल्लवी को अपने घर चलने के लिए कहा तो पल्लवी अपनी असमर्थता जताती हुई बोली, ‘‘नहीं, आज नहीं. मैं फिर किसी दिन आऊंगी.’’

‘‘आज क्यों नहीं? तुम्हें आज ही चलना होगा,’’ प्रज्ञा जिद करती हुई आगे बोली, ‘‘हमारे गराज में आज सुबह ही क्रोकोडायल ने 3 बच्चे दिए हैं.’’ क्रोकोडायल प्रज्ञा की पालतू पामेरियन कुतिया का नाम था.

‘‘2 सुंदरसुंदर सफेद और एक काला चितकबरा है,’’ प्रज्ञा हाथों को नचाते हुए पिल्लों की सुंदरता का वर्णन करने लगी.

‘‘अच्छा, तब तो मैं उन्हें देखने कल जरूर आऊंगी.’’

‘‘जरूर आओगी न?’’

ये भी पढ़ें-Short Story: मौडर्न सिंड्रेला

‘‘वादा रहा,’’ कहती हुई पल्लवी अपने घर की ओर जाने वाली गली में मुड़ गई. दूसरे दिन शाम को पल्लवी प्रज्ञा के घर पहुंची. पल्लवी का हाथ पकड़ कर लगभग खींचते हुए प्रज्ञा उसे अपने गराज की ओर ले गई, ‘‘देखो, हैं न सुंदरसुंदर पिल्ले? बताओ इन का क्या नाम रखें?’’ अपनी सहेली की ओर देखती हुई प्रज्ञा ने अपनी गोलगोल आंखें मटकाते हुए पूछा.

‘‘आहा, इतने सुंदर पिल्ले? नाम भी इन के इतने ही सुंदर होने चाहिए,’’ कुछ सोचती हुई पल्लवी काले चितकबरे  पिल्ले की ओर इशारा करती हुई बोली, ‘‘इस का नाम ‘ब्राउनी’ ठीक रहेगा.’’

‘‘हां, बिलकुल ठीक. इन दोनों का नाम ‘व्हाइटी’ और ‘ब्राउनी’ रख लेते हैं.’’ दोनों सहेलियां पिल्लों को प्यार करने में मग्न थीं. पल्लवी सफेद पिल्ले ‘व्हाइटी’ को गोद में उठा कर पुचकार रही थी कि व्हाइटी झट से अपनी मां की ओर कूद गया और चपरचपर अपनी मां का दूध पीने लगा. यह देख प्रज्ञा पिल्ले की पीठ सहलाती हुई कहने लगी, ‘‘भूख लगी है तुझे व्हाइटी? ठीक है, जा दूध पी ले अपनी मां का.’’ इतने में प्रज्ञा को मां ने आवाज दी पर प्रज्ञा ने सुन कर भी अनसुना कर दिया. यह देख पल्लवी बोली, ‘‘प्रज्ञा, तुम्हें तुम्हारी मां पुकार रही हैं.’’

‘‘पुकारने दो, मां की तो आदत है,’’ लापरवाही से कंधे उचकाती हुई प्रज्ञा बोली और दोबारा पिल्लों से खेलने लगी. फिर मां की आवाज सुनाई दी तो पल्लवी बोली, ‘‘प्रज्ञा, तुम्हारी मां नाराज हो जाएंगी.’’

‘‘होने दो, मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता. मां तो हर बात पर नाराज होती हैं.’’ प्रज्ञा की यह हरकत पल्लवी को बिलकुल अच्छी नहीं लगी.

‘‘अच्छा, अब मैं चलती हूं,’’ कहती हुई पल्लवी उठ खड़ी हुई.

ये भी पढ़ें-घर का चिराग-भाग 1: क्या अपनी गलती समझ पाई नीता?

‘‘रुको न, हम थोड़ी देर और पिल्लों से खेलेंगे.’’

‘‘नहींनहीं, मेरी मां मेरा इंतजार कर रही होंगी,’’ कहती हुई पल्लवी फाटक खोल कर बाहर निकल गई. दूसरे दिन स्कूल में प्रज्ञा का पैन पल्लवी के पास रह गया था. घर आ कर प्रज्ञा जब स्कूल का काम करने लगी तो उसे पैन की याद आई. वह तुरंत पल्लवी के घर पहुंची. उस समय पल्लवी पलंग पर बैठी धुले हुए सूखे कपड़ों की तह बना कर समेट रही थी.

‘‘आओ प्रज्ञा,’’ प्रज्ञा को देख पल्लवी ने कहा और प्रज्ञा का परिचय अपनी मां से कराया. पल्लवी की मां खुश होते हुए बोलीं, ‘‘बैठो बेटी, मैं अभी तुम्हारे लिए आइसक्रीम ले कर आती हूं.’’ प्रज्ञा को आइसक्रीम बहुत पसंद थी. वह मन ही मन खुश होती हुई सोच रही थी कि पल्लवी की मां कितनी अच्छी हैं. वह पल्लवी की मां और अपनी मां की तुलना करने लगी, ‘कभी कोई सहेली आ जाती है, तब भी मेरी मां खयाल नहीं करतीं और ऊपर से किसी न किसी काम के लिए पुकारती रहती हैं.’ प्रज्ञा को पल्लवी के यहां बहुत अच्छा लगा. उस के बाद वह अकसर पल्लवी के यहां जाने लगी. वह देखती पल्लवी कभी रसोई में रखे गीले बरतनों को पोंछ कर रख रही है तो कभी फर्श पर पोंछा लगा रही है. उस के आते ही वह झट से उस के साथ खेलने लग जाती पर पल्लवी की मां कभी पल्लवी को बीच में नहीं पुकारतीं और ऊपर से वे हमेशा कुछ न कुछ खाने को भी देतीं.

एक दिन तो उस के आश्चर्य की हद हो गई. उस दिन टीवी पर एक बढि़या फिल्म आ रही थी और पल्लवी मां के साथ आलू के चिप्स सुखाने में मग्न थी. ‘‘उफ, कितना उबाऊ काम करती हो तुम?’’ प्रज्ञा पल्लवी के कानोें के पास मुंह ले जा कर फुसफुसाती हुई बोली, ‘‘चलो, टीवी देखते हैं.’’ ‘‘नहीं, अभी बहुत चिप्स बाकी हैं, जाओ तुम देखो.’’

ये भी पढ़ें-Short Story: दैहिक भूख

‘‘चलो न, छोड़ो. यह काम तो मां कर ही लेंगी.’’

‘‘मां अकेली क्याक्या करें? थक जाती हैं. फिर वे ये सब बनाती भी तो हमारे लिए ही हैं,’’ पल्लवी चिप्स सुखाती हुई बोली. विवश हो कर प्रज्ञा भी पल्लवी के साथ चिप्स सुखाने लगी. दोनों के इकट्ठे काम करने से काम जल्दी खत्म हो गया. पल्लवी की मां दोनों को अंदर बैठक में बैठाती हुई बोलीं, ‘‘क्या खाओगी बेटी?’’ ‘‘मां, बड़ी जोर से भूख लगी है,’’ पल्लवी ने कहा तो उस की मां उस के सिर पर स्नेह से हाथ फेरते व पुचकारते हुए बोलीं, ‘‘मैं अभी तुम्हारे लिए बिस्कुट व नमकीन लाती हूं.’’

प्रज्ञा को उदास देख पल्लवी ने पूछा, ‘‘बुरा मान गई?’’

‘‘नहीं,’’ गरदन हिलाते हुए प्रज्ञा बोली, ‘‘तुम्हारी मां बहुत अच्छी हैं.’’

‘‘मां तो सब की अच्छी होती हैं.’’

प्रज्ञा कुछ नहीं बोली. वह उदास सी चुपचाप बैठी रही. बिस्कुट खाते समय भी वह बहुत गंभीर रही. अपने घर लौटते समय वह मन ही मन सोच रही थी कि मेरी मां तो बहुत चिड़चिड़ी हैं. जराजरा सी बात पर डांटने लगती हैं और पल्लवी की मां उस का कितना खयाल रखती हैं. यह सोच कर प्रज्ञा बहुत दुखी हो गई. ऐसा लग रहा था जैसे अभी उस की रुलाई फूट पड़ेगी. घर पहुंचते ही प्रज्ञा से उस की मां ने कहा, ‘‘देखो प्रज्ञा, कल स्कूल से आ कर तुम ने अपनी स्कूल ड्रैस भी धोने के लिए नहीं रखी. यहां तक कि तुम्हारा बस्ता भी अभी तक डाइनिंग टेबल की कुरसी पर पड़ा है.’’ प्रज्ञा की मां प्रज्ञा से और भी बहुत कुछ कह रही थीं किंतु उसे कुछ सुनाई नहीं दे रहा था. वह चुपचाप बुझेबुझे कदमों से अपना बस्ता उठा कर अपने कमरे में चली गई. ‘क्या खाओगी बेटी,’ पल्लवी की मां की आवाज उस के कानों में बारबार गूंज रही थी. वह दुखी मन से वहीं पलंग पर भूखी ही लेट गई.

शाम को जब पल्लवी पिल्लों के साथ खेलने के लिए प्रज्ञा के घर पहुंची तो प्रज्ञा को उदास पाया.

‘‘क्या बात है प्रज्ञा? आज तुम सुबह से ही उदास हो?’’

प्रज्ञा कुछ नहीं बोली.

‘‘बताओ न क्या बात हुई? क्या मुझ से नाराज हो?’’

‘‘नहीं.’’

ये भी पढ़ें-Short Story:पछतावा-रजनीश रात में क्या चीखता था?

‘‘सब की मांएं अपने बच्चों को प्यार करती हैं. एक मेरी मां हैं जो बस हर समय डांटती ही रहती हैं.’’ प्रज्ञा के मुंह से यह बात सुन कर आश्चर्यचकित पल्लवी बोली, ‘‘कैसी बातें करती हो प्रज्ञा? तुम्हारी मां तो इतनी बड़ी लेखिका हैं. तुम्हें तो अपनी मां पर गर्व होना चाहिए?’’ ‘‘होंगी बड़ी लेखिका,’’ मुंह बिचकाती हुई प्रज्ञा बोली, ‘‘बातबात पर डांटना, ऐसा क्यों कर दिया, वहां क्यों रख दिया, यह नहीं किया, वह नहीं किया…’’ कहतेकहते प्रज्ञा की बड़ीबड़ी आंखों से आंसू छलछला आए.

अपने नन्हेनन्हे हाथों से प्रज्ञा के आंसू पोंछती हुई पल्लवी बोली, ‘‘एक बात कहूं प्रज्ञा, बुरा तो नहीं मानोगी?’’

‘‘नहीं,’’ गरदन हिलाती प्रज्ञा आंखें पोंछती हुई बोली, ‘‘कहो, क्या कहना है तुम्हें?’’

पल्लवी बोली, ‘‘एक बात बताओ प्रज्ञा, तुम अपनी मां का कितना ध्यान रखती हो?’’

‘‘मां कोई छोटी बच्ची हैं जो मैं उन का ध्यान रखूं?’’ खीजती हुई प्रज्ञा बोली.

‘‘मेरे कहने का मतलब है कि मां जब तुम्हें कुछ कहती हैं तो तुम अनसुना कर देती हो. मां के काम बताते ही तुम मना कर देती हो. यदि तुम छोटेमोटे कामों में मां का सहयोग कर दो तो उन का काम काफी हलका हो जाएगा. मुझे देखो, मैं मां के बिना बताए ही काम कर देती हूं. मेरे छोटेमोटे काम कर देने से मां को बहुत राहत मिलती है. जब मां अकेली सारे घर का काम देखेंगी व अस्तव्यस्त सामान देखेंगी तो उन्हें समेटतेसमेटते स्वाभाविक रूप से गुस्सा तो आ ही जाएगा.’’ प्रज्ञा को मन ही मन अपनी गलती का एहसास हो रहा था. पल्लवी के जाने के बाद प्रज्ञा ने मन ही मन कुछ निश्चय किया.

सुबह प्रज्ञा मां के बिना उठाए ही उठ गई, यहां तक कि उस ने अपनी चादर भी समेट कर अलमारी में रख दी. प्रज्ञा को उठा देख कर मां ने दूध का गिलास मेज पर रख दिया था. हमेशा दूध के लिए नानुकुर करने वाली प्रज्ञा ने चुपचाप दूध पी लिया. खाली गिलास उठा कर रसोई में रखने चली गई व सिंक में रखे सभी प्यालेगिलासों को धोपोंछ कर ठीक से यथावत रख दिया. ‘‘क्या खाओगी बेटी, आज क्या बनाऊं?’’ प्रज्ञा की मां उस से पूछ रही थीं. प्रज्ञा ने कनखियों से मां का मुसकराता हुआ चेहरा देख लिया था. यह देख उसे बड़ी खुशी हुई. हमेशा शाम को स्कूल से लौट कर प्रज्ञा बस्ता पटक कर जूतेमोजे इधरउधर फेंक, बिना स्कूल ड्रैस बदले ही बाहर खेलने के लिए भाग जाती थी. मां आवाज देती रह जातीं किंतु वह सुनती कहां थी? उस दिन प्रज्ञा ने स्कूल से आ कर अपना सामान यथावत रखा. स्कूल की पोशाक बदली और हाथमुंह धो कर कमरे में झांक कर देखा तो पता चला कि मां कुछ लिखने में तल्लीन थीं. लिखते समय मां को तंग करने वाली प्रज्ञा उस दिन चुपचाप दबेपांव, रसोई की ओर मुड़ गई. देखा, सारी रसोई बिखरी पड़ी थी. ‘दिन में शायद मां से मिलने कुछ मेहमान आए होंगे,’ सोच कर प्रज्ञा ने सारा सामान समेट कर सफाई की व पूरी रसोई सुव्यवस्थित कर दी. बैठक से भी चायनाश्ते के बरतन उस ने बिना आवाज किए समेट दिए. यह सब करने के बाद वह खुद अपने हाथों से डब्बों में से केक व बिस्कुट निकाल कर प्लेट में रख कर चुपचाप खाने लगी. वहीं से वह मां को लिखते हुए देख रही थी. आज उसे पहली बार मां बहुत सुंदर लग रही थीं. पहली बार प्रज्ञा को यह सोच कर गर्व हो रहा था कि उस की मां बड़ी लेखिका हैं.

जब मां का लेखन कार्य पूरा हुआ तो वे कमरे से बाहर निकलीं. जब उन की नजरें पूरे घर में घूमीं तो उन्होंने खुशी के मारे प्रज्ञा को अपने सीने से लगा लिया, ‘‘ओह, मेरी बेटी अब समझदार हो गई है.’’ दूर बैठी क्रोकोडायल अपने पिल्लों को दूध पिला रही थी और बच्चे उस के ऊपर उछलकूद कर रहे थे. क्रोकोडायल पिल्लों को चाट रही थी. यह देख प्रज्ञा भी मां की बांहों में झूम उठी.

The post Friendship Day Special : सहेली की सीख- प्रज्ञा पल्लवी की मां को देखकर क्या सोच रही थी? appeared first on Sarita Magazine.

July 31, 2020 at 10:00AM

No comments:

Post a Comment