Monday 28 September 2020

अजाबे जिंदगी -भाग 2 : क्या एक औरत होना ही कुसूर था नईमा का

‘‘मुकीम नईमा और बच्चों को घर ले जाने के लिए कह रहा है,’’ वजू के लिए पानी बरतन में डालते हुए नईमा की अम्मी ने अब्बू को बतलाया. उन के मिसवाक करते हाथ एकदम से थम गए.

‘‘ठीक है, आज हाफिज साहब से बात करूंगा, कोई न कोई रास्ता तो कलामे पाक में लिखा होगा. लेकिन याद रखना, मुकीम को मेरी गैरहाजरी में घर में कदम मत रखने देना. तलाक के बाद बीवी शौहर के लिए हराम होती है.’’ हाफिज साहब ने मुकीम के पछतावे और नईमा के बिखरते परिवार के तिनके फिर से जोड़ने की पुरजोर कोशिश पर गौर करते हुए ‘हलाला’ की हिदायत दी. ‘हलाला’, बीड़ी वाले सेठ की पढ़ीलिखी बीवी ने यह सुना तो आश्चर्य और शर्म से मुंह पर हाथ रख लिया. छी, इस से ज्यादा जलालत एक औरत की पुरुष समाज में और क्या हो सकती है? अपने शौहर के जुल्मों को माफ कर के, उस के हाथों बेइज्जत हो कर, फिर उसी के साथ दोबारा जिंदगी गुजारने के लिए गैरमर्द को अपना जिस्म सौंपना पड़े. छी, गलती मर्द करे, लेकिन सजा औरत भुगते. ये बंदिशें, ये सख्तियां सिर्फ औरत को ही क्यों सहनी पड़ती हैं? मर्द इस इम्तिहान से क्यों नहीं गुजारे जाते. क्या यही हैं इसलाम में मर्द और औरत को बराबरी का दरजा देने की दलीलें? सुन कर उन की कौन्वैंट में पढ़ी बेटी बोल पड़ी, ‘‘सब झूठ, सब बकवास. हदीसों में औरत के मकाम को बहुत बेहतर बताया गया है लेकिन 21वीं सदी में भी मुसलमान औरतों के इख्तियारों को मर्द जात अपनी सहूलियत के मुताबिक तोड़मरोड़ कर अपनी मर्दानगी का सिक्का जमाने का मौका नहीं चूकती है.’’

नईमा ने घर की वापसी की यह तजवीज सुनी तो हक्काबक्का रह गई. उस ने सोचा, आग के दरिया से गुजरना होगा? कई दिन चुपचाप बीड़ी के पत्तों की पोंगली बना कर उस में तंबाकू भरती, फिर उसे कोंच कर बंद करती और धागे से लपेट कर सील बंद कर देती. औरत की स्थिति मुसलिम समाज में बीड़ी की तरह ही तो है जो हर तरफ से कोंचकोंच कर बंद किए जाने पर भी जलाई जाने पर धुंआ और जोर से कश लेने पर खांसी का दौरा उठा देती है. कशमकश भरे लमहों की काली भयानक रातों में दूर कहीं एक चिराग टिमटिमाता सा नजर आया नईमा को. मगर किसी गैर को जिस्म सौंपने से पहले किस पुल से गुजरना होगा, इस की दहशत से ही नईमा टूटटूट कर बिखर रही थी, फिर पता नहीं क्या सोच कर सालों से बिना धुला काला नकाब ओढ़ कर अपनी बचपन की दांतकाटी रोटी जैसी सहेली और मौसेरी बहन आमना की चौखट पर पहुंच गई.

‘‘आमना, अपने मियां से मेरी तरफ से गुजारिश करो कि वे मुझ से निकाह कर के दूसरे दिन तलाक दे दें ताकि मैं बिट्टू के अब्बू से दोबारा निकाह कर सकूं.’’ नईमा की आवाज की थरथराहट में आंसुओं का खारापन मौजूद था. शादी के 10 साल के बाद भी आमना के घर सोहर गीत नहीं गाए जा सके थे. रिश्तेदार, गली, महल्ले वाले उसे बांझ कहने में न चूकते थे. बच्चों की पैदाइश और सालगिरह पर आमना की मौजूदगी बदशगुनी समझी जाती. इसी गम ने आमना के चेहरे पर झांइयां पैदा कर जिस्म को सूखा कर ठटरी सा बना दिया था. आमना के विवेक ने उस को खुद को झकझोरा था, ‘अगर मेरा शौहर हमदर्दी के नाते नईमा से निकाह कर ले तो? फलतीफूलती बेल है. कहीं उसी रात हमल ठहर जाए कमबख्त को, तो मेरी लाखों की जायदाद का कानूनन वारिस पैदा होने में 9 महीने से ज्यादा वक्त नहीं लगेगा. अपना सिंहासन डोलता सा नजर आने लगा आमना को. झट किसी चालाक सियासतबाज की तरह नईमा का हाथ अपने हाथों में ले कर वह बड़े प्यार से बोली, ‘‘नम्मो, बहन मैं तेरे दर्द में बराबर की शरीक हूं. बहन, जिस दिन मुझे पता चला कि तेरा तलाक हो गया, उस दिन, दिनभर मेरे हलक से खाना नीचे नहीं उतरा. लेकिन, सच्ची बात कहूं बहन, इन्होंने आधी उम्र में अगर तुम से निकाह कर लिया तो आने वाली सात पीढि़यों के मुंह पर कालिख पुत जाएगी. महल्ले के लोग मजाक उड़ाएंगे, रास्ता चलना मुहाल कर देंगे? देख, बुरा मत मानना. इन्हें छोड़ दे, बहन.’’ जिल्लत का जहर पी कर थकेथके कदमों से नईमा अम्मी के घर लौट आई. दूसरे दिन वह चल पड़ी थी नूरी साइकिल वाले अपने मामूजात भाई के घर, अपने घर के टूटे टुकड़ों का जोड़ने की कोशिश करने के लिए.

नईमा का गदराया बदन, उजली रंगत और हंसमुख चेहरे ने, भाभी के मन में अनजाना सा खौफ पैदा कर दिया. ‘कहीं ऐसा न हो कि मेरी कंकाल सी काया को छोड़ कर मेरा शौहर इस चमकचांदनी सी औरत के आगोश में डूब जाए, और निकाह करने के बाद तलाक देने से इनकार ही कर दे. तो मेरा क्या हाल होगा? न बाबा, न, ऐसी भलाई से क्या फायदा कि अपना ही घर जल कर राख हो जाए.’ भाभी ने झट पैंतरा बदल कर नईमा के कान के पास मुंह ले जा कर फुसफुसा कर कहा, ‘‘अरे, मेरे सामने कहा तो कहा, अपने भाईजान के सामने मत कहना. ये तो मर्दों के 2 निकाह करने के सख्त खिलाफ हैं. कम से कम आप तो बुढ़ापे में इन की सफेद दाढ़ी पर तोहमत लगाने का काम न करें.’’ नईमा खून का घूंट पी कर रह गई.

हर तरफ से नाउम्मीदी और कशमकशभरे दिनों से गुजरती नईमा कैंची से बीड़ी के पत्ते काट रही थी कि एक जानीपहचानी सी खुरदुरी दबंग आवाज ने चौंकाया, ‘‘भाभीजान, अस्सलाम अलैकुम.’’ ‘इस चंडाल सजायाफ्ता, तड़ीपार को किस दुश्मन ने खबर दे दी कि मैं अम्मी के घर पर हूं,’ यह सोचती नईमा बदहवास सी दुपट्टे को सीने पर ठीक से फैला कर सिर को ढांकते हुए जर्जर दरवाजे पर लगे साड़ी के परदे को थोड़ा सा सरका कर बोली, ‘‘भाईजान आप?’’

‘‘हां भाभीजान, मैं? आप का मामूजात देवर करामत अली. आप को शौहर की परवा तो है नहीं, जो आप से देवर की फिक्र की उम्मीद की जा सके. सुना है मुकीम भाईजान ने आप को तलाक दे दिया. बड़े अजीब हैं. सच भाभीजान, मुझे बड़ा अफसोस हुआ यह सुन कर. मैं ने सोचा कि आप और बच्चे परेशान होंगे, इसलिए खैरियत मालूम करने चला आया. मेरे लायक कोई खिदमत हो तो बेहिचक हुक्म कीजिए, बंदा हर वक्त हाजिर है. नईमा शादी के बाद से ही करामत अली की बुरी नजर का शिकार थी. रिश्तेदारी की शादीब्याह में देवर, भाभी के रिश्ते का फायदा उठा कर करामत अली नईमा के गालों पर अकसर हलदीउबटन मल देता. कभी चाय का कप या पानी का गिलास पकड़ाते हुए वह नईमा की उंगली दबा कर बेशर्मी से आंख मार देता.

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‘‘मुकीम नईमा और बच्चों को घर ले जाने के लिए कह रहा है,’’ वजू के लिए पानी बरतन में डालते हुए नईमा की अम्मी ने अब्बू को बतलाया. उन के मिसवाक करते हाथ एकदम से थम गए.

‘‘ठीक है, आज हाफिज साहब से बात करूंगा, कोई न कोई रास्ता तो कलामे पाक में लिखा होगा. लेकिन याद रखना, मुकीम को मेरी गैरहाजरी में घर में कदम मत रखने देना. तलाक के बाद बीवी शौहर के लिए हराम होती है.’’ हाफिज साहब ने मुकीम के पछतावे और नईमा के बिखरते परिवार के तिनके फिर से जोड़ने की पुरजोर कोशिश पर गौर करते हुए ‘हलाला’ की हिदायत दी. ‘हलाला’, बीड़ी वाले सेठ की पढ़ीलिखी बीवी ने यह सुना तो आश्चर्य और शर्म से मुंह पर हाथ रख लिया. छी, इस से ज्यादा जलालत एक औरत की पुरुष समाज में और क्या हो सकती है? अपने शौहर के जुल्मों को माफ कर के, उस के हाथों बेइज्जत हो कर, फिर उसी के साथ दोबारा जिंदगी गुजारने के लिए गैरमर्द को अपना जिस्म सौंपना पड़े. छी, गलती मर्द करे, लेकिन सजा औरत भुगते. ये बंदिशें, ये सख्तियां सिर्फ औरत को ही क्यों सहनी पड़ती हैं? मर्द इस इम्तिहान से क्यों नहीं गुजारे जाते. क्या यही हैं इसलाम में मर्द और औरत को बराबरी का दरजा देने की दलीलें? सुन कर उन की कौन्वैंट में पढ़ी बेटी बोल पड़ी, ‘‘सब झूठ, सब बकवास. हदीसों में औरत के मकाम को बहुत बेहतर बताया गया है लेकिन 21वीं सदी में भी मुसलमान औरतों के इख्तियारों को मर्द जात अपनी सहूलियत के मुताबिक तोड़मरोड़ कर अपनी मर्दानगी का सिक्का जमाने का मौका नहीं चूकती है.’’

नईमा ने घर की वापसी की यह तजवीज सुनी तो हक्काबक्का रह गई. उस ने सोचा, आग के दरिया से गुजरना होगा? कई दिन चुपचाप बीड़ी के पत्तों की पोंगली बना कर उस में तंबाकू भरती, फिर उसे कोंच कर बंद करती और धागे से लपेट कर सील बंद कर देती. औरत की स्थिति मुसलिम समाज में बीड़ी की तरह ही तो है जो हर तरफ से कोंचकोंच कर बंद किए जाने पर भी जलाई जाने पर धुंआ और जोर से कश लेने पर खांसी का दौरा उठा देती है. कशमकश भरे लमहों की काली भयानक रातों में दूर कहीं एक चिराग टिमटिमाता सा नजर आया नईमा को. मगर किसी गैर को जिस्म सौंपने से पहले किस पुल से गुजरना होगा, इस की दहशत से ही नईमा टूटटूट कर बिखर रही थी, फिर पता नहीं क्या सोच कर सालों से बिना धुला काला नकाब ओढ़ कर अपनी बचपन की दांतकाटी रोटी जैसी सहेली और मौसेरी बहन आमना की चौखट पर पहुंच गई.

‘‘आमना, अपने मियां से मेरी तरफ से गुजारिश करो कि वे मुझ से निकाह कर के दूसरे दिन तलाक दे दें ताकि मैं बिट्टू के अब्बू से दोबारा निकाह कर सकूं.’’ नईमा की आवाज की थरथराहट में आंसुओं का खारापन मौजूद था. शादी के 10 साल के बाद भी आमना के घर सोहर गीत नहीं गाए जा सके थे. रिश्तेदार, गली, महल्ले वाले उसे बांझ कहने में न चूकते थे. बच्चों की पैदाइश और सालगिरह पर आमना की मौजूदगी बदशगुनी समझी जाती. इसी गम ने आमना के चेहरे पर झांइयां पैदा कर जिस्म को सूखा कर ठटरी सा बना दिया था. आमना के विवेक ने उस को खुद को झकझोरा था, ‘अगर मेरा शौहर हमदर्दी के नाते नईमा से निकाह कर ले तो? फलतीफूलती बेल है. कहीं उसी रात हमल ठहर जाए कमबख्त को, तो मेरी लाखों की जायदाद का कानूनन वारिस पैदा होने में 9 महीने से ज्यादा वक्त नहीं लगेगा. अपना सिंहासन डोलता सा नजर आने लगा आमना को. झट किसी चालाक सियासतबाज की तरह नईमा का हाथ अपने हाथों में ले कर वह बड़े प्यार से बोली, ‘‘नम्मो, बहन मैं तेरे दर्द में बराबर की शरीक हूं. बहन, जिस दिन मुझे पता चला कि तेरा तलाक हो गया, उस दिन, दिनभर मेरे हलक से खाना नीचे नहीं उतरा. लेकिन, सच्ची बात कहूं बहन, इन्होंने आधी उम्र में अगर तुम से निकाह कर लिया तो आने वाली सात पीढि़यों के मुंह पर कालिख पुत जाएगी. महल्ले के लोग मजाक उड़ाएंगे, रास्ता चलना मुहाल कर देंगे? देख, बुरा मत मानना. इन्हें छोड़ दे, बहन.’’ जिल्लत का जहर पी कर थकेथके कदमों से नईमा अम्मी के घर लौट आई. दूसरे दिन वह चल पड़ी थी नूरी साइकिल वाले अपने मामूजात भाई के घर, अपने घर के टूटे टुकड़ों का जोड़ने की कोशिश करने के लिए.

नईमा का गदराया बदन, उजली रंगत और हंसमुख चेहरे ने, भाभी के मन में अनजाना सा खौफ पैदा कर दिया. ‘कहीं ऐसा न हो कि मेरी कंकाल सी काया को छोड़ कर मेरा शौहर इस चमकचांदनी सी औरत के आगोश में डूब जाए, और निकाह करने के बाद तलाक देने से इनकार ही कर दे. तो मेरा क्या हाल होगा? न बाबा, न, ऐसी भलाई से क्या फायदा कि अपना ही घर जल कर राख हो जाए.’ भाभी ने झट पैंतरा बदल कर नईमा के कान के पास मुंह ले जा कर फुसफुसा कर कहा, ‘‘अरे, मेरे सामने कहा तो कहा, अपने भाईजान के सामने मत कहना. ये तो मर्दों के 2 निकाह करने के सख्त खिलाफ हैं. कम से कम आप तो बुढ़ापे में इन की सफेद दाढ़ी पर तोहमत लगाने का काम न करें.’’ नईमा खून का घूंट पी कर रह गई.

हर तरफ से नाउम्मीदी और कशमकशभरे दिनों से गुजरती नईमा कैंची से बीड़ी के पत्ते काट रही थी कि एक जानीपहचानी सी खुरदुरी दबंग आवाज ने चौंकाया, ‘‘भाभीजान, अस्सलाम अलैकुम.’’ ‘इस चंडाल सजायाफ्ता, तड़ीपार को किस दुश्मन ने खबर दे दी कि मैं अम्मी के घर पर हूं,’ यह सोचती नईमा बदहवास सी दुपट्टे को सीने पर ठीक से फैला कर सिर को ढांकते हुए जर्जर दरवाजे पर लगे साड़ी के परदे को थोड़ा सा सरका कर बोली, ‘‘भाईजान आप?’’

‘‘हां भाभीजान, मैं? आप का मामूजात देवर करामत अली. आप को शौहर की परवा तो है नहीं, जो आप से देवर की फिक्र की उम्मीद की जा सके. सुना है मुकीम भाईजान ने आप को तलाक दे दिया. बड़े अजीब हैं. सच भाभीजान, मुझे बड़ा अफसोस हुआ यह सुन कर. मैं ने सोचा कि आप और बच्चे परेशान होंगे, इसलिए खैरियत मालूम करने चला आया. मेरे लायक कोई खिदमत हो तो बेहिचक हुक्म कीजिए, बंदा हर वक्त हाजिर है. नईमा शादी के बाद से ही करामत अली की बुरी नजर का शिकार थी. रिश्तेदारी की शादीब्याह में देवर, भाभी के रिश्ते का फायदा उठा कर करामत अली नईमा के गालों पर अकसर हलदीउबटन मल देता. कभी चाय का कप या पानी का गिलास पकड़ाते हुए वह नईमा की उंगली दबा कर बेशर्मी से आंख मार देता.

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September 29, 2020 at 10:00AM

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