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उस दिन उस के प्रिय अभिनेता ने भी यही शब्द कहा था और उस समय सुप्रिया को जो सुख प्राप्त हुआ था, वह उसे अभी अमित तक पहुंचा नहीं सकी थी. अमित उस स्वप्नलोक जैसा कहां था. यह तो देखने की बात है, वर्णन करने की नहीं. नंदा तो जैसे मौका ही खोज रही थी. अन्य दोस्त भी कहां पीछे रहते.
सभी ने उसे छेड़ते हुए कहा, ‘‘यार अमित, यू रियली मिस्ड समथिंग. क्या ठसक थी सुप्रिया की. वह जैसे सचमुच प्रेम कर रहा हो और प्रपोज कर रहा हो… इस तरह घुटने के बल बैठ कर… मान गए यार.’’
‘‘अरे इन एक्टरों के लिए तो यह रोज का खेल है. दिन में दस बार प्रपोज करते हैं ये. यही अभिनय करना तो उन का काम है. यह उन के लिए बहुत आसान है.’’
‘‘सुप्रिया की आंखों में आंखें डाल कर अपलक ताक रहा था और बैकग्राउंड में वह गाना बज रहा था… कि तुम बन गए हो मेरे खुदा…ही वाज सो इंटेंस, सो इमोशनल, माई गौड. अमित, तुम देखते तो पता चलता. उस सब को शब्दों में नहीं व्यक्त किया जा सकता.’’
‘‘इस का मतलब अमित ने उस प्रोग्राम की डीवीडी नहीं देखी. इसे जलन हो रही होगी.’’ रौल ने कहा.
‘‘नो यंगमैन, जलन किस बात की. मुझे इन नाटकों में जरा भी रुचि नहीं है. यह सब दिखावा है. इस सब के लिए मेरे पास जरा भी समय नहीं है.’’
अमित की इन बातों पर सुप्रिया एकदम से उदास हो गई. उस का चेहरा एकदम से उतर गया.
‘‘अमित, तुम जिसे पल भर का नाटक कह रहे हो, उसी पल भर के नाटक में सुप्रिया किस तरह आनंद समाधि में समा गई थी, इस से पूछो. इस का हाथ पकड़ कर जब उस ने अपने होंठों से लगाया तो यह सहम सी गई. सच है न सुप्रिया?’’ सुप्रिया ने हां में सिर हिलाया.
नंदा ने उस के सिर पर ठपकी मार कर कहा, ‘‘चिंता में क्यों पड़ गई, अमित तुझे खा नहीं जाएगा. यह कोई 18वीं सदी का मेलपिग नहीं है.’’
अमित ने नंदा के कंधे पर हाथ रख कर कहा, ‘‘थैंक्यू.’’
सुप्रिया उस समय बड़ी दी को याद कर रही थी. उन्होंने कहा, ‘‘लड़की के व्यवस्थित होने तक तमाम चीजों का ध्यान रखना पड़ता है. हर चीज बतानी पड़ती है. कांटेस्ट में भाग लिया है, इस में क्या बताना. भूल हो गई, कह देना. पर यह झूठ है. कांटेस्ट में हिस्सा लेने के लिए किसी ने जबरदस्ती तो नहीं की थी. अपनी मरजी से हिस्सा लिया था और जीतने की इच्छा के साथ. यह भी सच है कि जीतने की तीव्र इच्छा थी जीत का नशा भी चढ़ा था, इस में कोई झूठ भी नहीं, अब बचाव में कुछ कहना भी नहीं. जो अच्छा लगा, व किया. कोई अपराध तो नहीं किया. साथ रहना है तो यह स्पष्टता होनी ही चाहिए.’’
मन नहीं था, फिर भी सुप्रिया अमित के साथ इंडिया गेट आ गई थी. अब आ ही गई तो इस बारे में क्या सोचना, आने से पहले ही उस ने काफी सोचविचार कर तय कर लिया था कि उसे अपनी बात किस तरह कहनी है. इस के बावजूद काफी गुणाभाग और सुधार कर उस ने कहा, ‘‘अमित, तुम्हें मेरा यह निर्णय खराब तो नहीं लगा?’’
‘‘खराब, किस बारे में?’’
‘‘वही टीवी और कांटेस्ट वाली बात.’’
‘‘छोड़ो न, डोंट टाक रबिश, तुम्हें यह पूछना पड़े, इस का मतलब तुम ने मुझे अभी जानापहचाना नहीं.’’
‘‘ऐसा नहीं है अमित, तुम मुझे मूडलेस लगते हो. तुम ने मुझ से कांटेस्ट की कोई बात तक नहीं की. घर में किसी ने प्रोग्राम देखा हो और किसी को कुछ न अच्छा लगा हो.’’
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‘‘तुम्हें पता है मेरे यहां कोई रुढि़वादी या पुरानी सोच वाला नहीं है.’’
‘‘भले ही पुराने विचारों वाला नहीं है. पर कुछ न अच्छा लगा हो.’’
‘‘नहीं ऐसी कोई बात नहीं है.’’
अमित ने दोनों हाथ ऊपर की ओर कर के सूरज की ओर देखते हुए कहा, ‘‘सूर्यास्त देख कर चलना है न?’’
सुप्रिया थोड़ा खीझ कर बोली, ‘‘सूर्यास्त को छोड़ो, तुम अपनी बात करो. चेन्नै से आने के बाद तुम काफी गंभीर हो गए हो. ऐसा क्यों?’’
‘‘नथिंग पार्टिक्युलर. तुम्हें ऐसे ही लग रहा है. तुम्हें इस चिंतित अनुभव के बाद तुम्हें सब कुछ डल और लाइफलेस लग रहा है.’’
‘‘अब आए न लाइन पर. सो यू डिड नाट लाइक इट. सही कहा जा सकता है.’’
‘‘तुम्हें जो अच्छा लगा. तुम ने वह किया. इस में मुझे अच्छा या खराब लगने का कोई सवाल ही नहीं उठता. हमारे संबंधों के बीच अब ये बातें नहीं आनी चाहिए.’’
‘‘सवाल है न. कुछ दिनों बाद हमें साथ जीना है. इसलिए यह महत्त्वपूर्ण है.’’
‘‘तुम बेकार में पीछे पड़ी हो, फारगेट इट. कोई दूसरी बात करते हैं. कुछ खाते हैं.’’
‘‘अमित, तुम बात बदलने की कोशिश मत करो. मैं आज तुम्हारा पीछा छोड़ने वाली नहीं. चलो, दूसरी तरह से बात करती हूं. तुम ने डीवीडी क्यों नहीं देखी? वैसे तो तुम मुझ में बहुत रुचि लेते हो, भले ही इस बात को तुम चीप इंटरटेनमेंट मानते हो, इस के बाद भी तुम्हें मेरा प्रोग्राम देखना चाहिए था. मेरा प्रोग्राम देखने का तुम्हारा मन क्यों नहीं हुआ? मेरी खातिर तुम्हारे पास इतना समय भी नहीं है?’’
‘‘इस में समय की बात नहीं है. तुम्हें पता है, मुझे ऐसावैसा देखना पसंद नहीं है.’’
‘‘ऐसावैसा मतलब? अमित ऊपर देख कर चलने की जरूरत नहीं है और जिसे तुम चीप कह रहे हो, उसी तरह के अन्य प्रोग्राम तुम देखते हो. यह जो तुम क्रिकेट देखते हो, वह क्या है.’’
‘‘जाने दो न सुप्रिया, बेकार की बहस कर के क्यों शाम खराब कर रही हो.’’
‘‘शाम खराब हो रही है, भले हो खराब. आज मैं यह जान कर रहूंगी कि आखिर तुम्हारे मन में मेरे प्रति क्या है. सचसच बता दो. बात खत्म.’’
अमित ने एक लंबी सांस ली. शाम को पंक्षी अपने बसेरे की ओर जाने लगे थे. उस ने सुप्रिया की आंखों में आंखें डाल कर कहा, ‘‘तुम ने कांटेस्ट में हिस्सा लिया, तुम्हारी मरजी. ठीक है न?’’
‘‘एकदम ठीक.’’
‘‘तुम्हें जीतना था, जिस की मुख्य वजह यह थी कि जीतने पर तुम्हारा फेवरिट हीरो तुम्हारे साथ परफोर्म करता. सच है न?’’
‘‘एकदम सच.’’
‘‘तुम जीतीं और तुम्हारा सपना पूरा हुआ, जिस से तुम्हें खुशी हुई. यह स्वाभाविक भी है. आई एम राइट?’’
‘‘एकदम सही, पर यह क्या मुझे गोलगोल घुमा रहे हो. मुद्दे की बात करो न. शाम हो रही है, मुझे घर भी जाना है. दीदी की तबीयत ठीक नहीं है. उन्हें आराम की जरूरत है.’’
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‘‘चलो मुद्दे की बात करते हैं. वह अभिनेता, जो इस जीवन में कभी नहीं मिलने वाला तुम से झूठमूठ में प्रपोज किया, तुम से मिलने को आतुर हो इस तरह का नाटक किया, मात्र नाटक, इस झूठमूठ के नाटक में तुम मारे खुशी के रो पड़ीं. सचमुच में रो पड़ीं. तुम्हारी खुशी कोई एक्टिंग नहीं थी. सच कह रहा हूं न?’’
‘‘हां, मैं एकदम भावविभोर हो गई थी. वह खुशी… इट वाज जस्ट टू मच. अकल्पनीय आनंद की अनुभूति हुई थी मुझे.’’
‘‘तुम ने जो कहा, यह सब… अब याद करो, मैं ने तुम्हें प्रपोज किया, अंगूठी पहनाई, गुलाब दिया, हाथ में हाथ लिया, मेरे लिए तुम्हारी आंखें कभी भी एक बार भी प्यार में नहीं छलकीं. सो आई वाज जस्ट थिंकिंग कि यह सब क्या है? सचमुच, मैं यही सोचते हुए यहां आया था. तब से यही सोचे जा रहा हूं. खैर, चलो अब चलते हैं.’’
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उस दिन उस के प्रिय अभिनेता ने भी यही शब्द कहा था और उस समय सुप्रिया को जो सुख प्राप्त हुआ था, वह उसे अभी अमित तक पहुंचा नहीं सकी थी. अमित उस स्वप्नलोक जैसा कहां था. यह तो देखने की बात है, वर्णन करने की नहीं. नंदा तो जैसे मौका ही खोज रही थी. अन्य दोस्त भी कहां पीछे रहते.
सभी ने उसे छेड़ते हुए कहा, ‘‘यार अमित, यू रियली मिस्ड समथिंग. क्या ठसक थी सुप्रिया की. वह जैसे सचमुच प्रेम कर रहा हो और प्रपोज कर रहा हो… इस तरह घुटने के बल बैठ कर… मान गए यार.’’
‘‘अरे इन एक्टरों के लिए तो यह रोज का खेल है. दिन में दस बार प्रपोज करते हैं ये. यही अभिनय करना तो उन का काम है. यह उन के लिए बहुत आसान है.’’
‘‘सुप्रिया की आंखों में आंखें डाल कर अपलक ताक रहा था और बैकग्राउंड में वह गाना बज रहा था… कि तुम बन गए हो मेरे खुदा…ही वाज सो इंटेंस, सो इमोशनल, माई गौड. अमित, तुम देखते तो पता चलता. उस सब को शब्दों में नहीं व्यक्त किया जा सकता.’’
‘‘इस का मतलब अमित ने उस प्रोग्राम की डीवीडी नहीं देखी. इसे जलन हो रही होगी.’’ रौल ने कहा.
‘‘नो यंगमैन, जलन किस बात की. मुझे इन नाटकों में जरा भी रुचि नहीं है. यह सब दिखावा है. इस सब के लिए मेरे पास जरा भी समय नहीं है.’’
अमित की इन बातों पर सुप्रिया एकदम से उदास हो गई. उस का चेहरा एकदम से उतर गया.
‘‘अमित, तुम जिसे पल भर का नाटक कह रहे हो, उसी पल भर के नाटक में सुप्रिया किस तरह आनंद समाधि में समा गई थी, इस से पूछो. इस का हाथ पकड़ कर जब उस ने अपने होंठों से लगाया तो यह सहम सी गई. सच है न सुप्रिया?’’ सुप्रिया ने हां में सिर हिलाया.
नंदा ने उस के सिर पर ठपकी मार कर कहा, ‘‘चिंता में क्यों पड़ गई, अमित तुझे खा नहीं जाएगा. यह कोई 18वीं सदी का मेलपिग नहीं है.’’
अमित ने नंदा के कंधे पर हाथ रख कर कहा, ‘‘थैंक्यू.’’
सुप्रिया उस समय बड़ी दी को याद कर रही थी. उन्होंने कहा, ‘‘लड़की के व्यवस्थित होने तक तमाम चीजों का ध्यान रखना पड़ता है. हर चीज बतानी पड़ती है. कांटेस्ट में भाग लिया है, इस में क्या बताना. भूल हो गई, कह देना. पर यह झूठ है. कांटेस्ट में हिस्सा लेने के लिए किसी ने जबरदस्ती तो नहीं की थी. अपनी मरजी से हिस्सा लिया था और जीतने की इच्छा के साथ. यह भी सच है कि जीतने की तीव्र इच्छा थी जीत का नशा भी चढ़ा था, इस में कोई झूठ भी नहीं, अब बचाव में कुछ कहना भी नहीं. जो अच्छा लगा, व किया. कोई अपराध तो नहीं किया. साथ रहना है तो यह स्पष्टता होनी ही चाहिए.’’
मन नहीं था, फिर भी सुप्रिया अमित के साथ इंडिया गेट आ गई थी. अब आ ही गई तो इस बारे में क्या सोचना, आने से पहले ही उस ने काफी सोचविचार कर तय कर लिया था कि उसे अपनी बात किस तरह कहनी है. इस के बावजूद काफी गुणाभाग और सुधार कर उस ने कहा, ‘‘अमित, तुम्हें मेरा यह निर्णय खराब तो नहीं लगा?’’
‘‘खराब, किस बारे में?’’
‘‘वही टीवी और कांटेस्ट वाली बात.’’
‘‘छोड़ो न, डोंट टाक रबिश, तुम्हें यह पूछना पड़े, इस का मतलब तुम ने मुझे अभी जानापहचाना नहीं.’’
‘‘ऐसा नहीं है अमित, तुम मुझे मूडलेस लगते हो. तुम ने मुझ से कांटेस्ट की कोई बात तक नहीं की. घर में किसी ने प्रोग्राम देखा हो और किसी को कुछ न अच्छा लगा हो.’’
ये भी पढ़ें- तिकोनी डायरी: भाग 2
‘‘तुम्हें पता है मेरे यहां कोई रुढि़वादी या पुरानी सोच वाला नहीं है.’’
‘‘भले ही पुराने विचारों वाला नहीं है. पर कुछ न अच्छा लगा हो.’’
‘‘नहीं ऐसी कोई बात नहीं है.’’
अमित ने दोनों हाथ ऊपर की ओर कर के सूरज की ओर देखते हुए कहा, ‘‘सूर्यास्त देख कर चलना है न?’’
सुप्रिया थोड़ा खीझ कर बोली, ‘‘सूर्यास्त को छोड़ो, तुम अपनी बात करो. चेन्नै से आने के बाद तुम काफी गंभीर हो गए हो. ऐसा क्यों?’’
‘‘नथिंग पार्टिक्युलर. तुम्हें ऐसे ही लग रहा है. तुम्हें इस चिंतित अनुभव के बाद तुम्हें सब कुछ डल और लाइफलेस लग रहा है.’’
‘‘अब आए न लाइन पर. सो यू डिड नाट लाइक इट. सही कहा जा सकता है.’’
‘‘तुम्हें जो अच्छा लगा. तुम ने वह किया. इस में मुझे अच्छा या खराब लगने का कोई सवाल ही नहीं उठता. हमारे संबंधों के बीच अब ये बातें नहीं आनी चाहिए.’’
‘‘सवाल है न. कुछ दिनों बाद हमें साथ जीना है. इसलिए यह महत्त्वपूर्ण है.’’
‘‘तुम बेकार में पीछे पड़ी हो, फारगेट इट. कोई दूसरी बात करते हैं. कुछ खाते हैं.’’
‘‘अमित, तुम बात बदलने की कोशिश मत करो. मैं आज तुम्हारा पीछा छोड़ने वाली नहीं. चलो, दूसरी तरह से बात करती हूं. तुम ने डीवीडी क्यों नहीं देखी? वैसे तो तुम मुझ में बहुत रुचि लेते हो, भले ही इस बात को तुम चीप इंटरटेनमेंट मानते हो, इस के बाद भी तुम्हें मेरा प्रोग्राम देखना चाहिए था. मेरा प्रोग्राम देखने का तुम्हारा मन क्यों नहीं हुआ? मेरी खातिर तुम्हारे पास इतना समय भी नहीं है?’’
‘‘इस में समय की बात नहीं है. तुम्हें पता है, मुझे ऐसावैसा देखना पसंद नहीं है.’’
‘‘ऐसावैसा मतलब? अमित ऊपर देख कर चलने की जरूरत नहीं है और जिसे तुम चीप कह रहे हो, उसी तरह के अन्य प्रोग्राम तुम देखते हो. यह जो तुम क्रिकेट देखते हो, वह क्या है.’’
‘‘जाने दो न सुप्रिया, बेकार की बहस कर के क्यों शाम खराब कर रही हो.’’
‘‘शाम खराब हो रही है, भले हो खराब. आज मैं यह जान कर रहूंगी कि आखिर तुम्हारे मन में मेरे प्रति क्या है. सचसच बता दो. बात खत्म.’’
अमित ने एक लंबी सांस ली. शाम को पंक्षी अपने बसेरे की ओर जाने लगे थे. उस ने सुप्रिया की आंखों में आंखें डाल कर कहा, ‘‘तुम ने कांटेस्ट में हिस्सा लिया, तुम्हारी मरजी. ठीक है न?’’
‘‘एकदम ठीक.’’
‘‘तुम्हें जीतना था, जिस की मुख्य वजह यह थी कि जीतने पर तुम्हारा फेवरिट हीरो तुम्हारे साथ परफोर्म करता. सच है न?’’
‘‘एकदम सच.’’
‘‘तुम जीतीं और तुम्हारा सपना पूरा हुआ, जिस से तुम्हें खुशी हुई. यह स्वाभाविक भी है. आई एम राइट?’’
‘‘एकदम सही, पर यह क्या मुझे गोलगोल घुमा रहे हो. मुद्दे की बात करो न. शाम हो रही है, मुझे घर भी जाना है. दीदी की तबीयत ठीक नहीं है. उन्हें आराम की जरूरत है.’’
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‘‘चलो मुद्दे की बात करते हैं. वह अभिनेता, जो इस जीवन में कभी नहीं मिलने वाला तुम से झूठमूठ में प्रपोज किया, तुम से मिलने को आतुर हो इस तरह का नाटक किया, मात्र नाटक, इस झूठमूठ के नाटक में तुम मारे खुशी के रो पड़ीं. सचमुच में रो पड़ीं. तुम्हारी खुशी कोई एक्टिंग नहीं थी. सच कह रहा हूं न?’’
‘‘हां, मैं एकदम भावविभोर हो गई थी. वह खुशी… इट वाज जस्ट टू मच. अकल्पनीय आनंद की अनुभूति हुई थी मुझे.’’
‘‘तुम ने जो कहा, यह सब… अब याद करो, मैं ने तुम्हें प्रपोज किया, अंगूठी पहनाई, गुलाब दिया, हाथ में हाथ लिया, मेरे लिए तुम्हारी आंखें कभी भी एक बार भी प्यार में नहीं छलकीं. सो आई वाज जस्ट थिंकिंग कि यह सब क्या है? सचमुच, मैं यही सोचते हुए यहां आया था. तब से यही सोचे जा रहा हूं. खैर, चलो अब चलते हैं.’’
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September 28, 2019 at 10:25AM
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