Monday 30 August 2021

फ्रेम – भाग 3 : पति के मौत के बाद अमृता के जीवन में क्या बदलाव आया?

उस दिन की शाम तो अच्छी तरह कट गई पर पूरे हफ्ते पिछली घटना उस के अचेतन मन पर छाई रही. अमृता ने बहुत कोशिश की पर वह इसे हटा नहीं पाई थी. जब वह ऐसी मानसिकता के भंवर में उल झी घूम ही रही थी उसी समय सुषमा उस से मिलने चली आई थी. औपचारिकता खत्म होने के बाद कौफी के प्यालों के साथ जब बात शुरू हुई तो बातों को यहां तक आना ही था. सो, बातें यहां चली आईं. सारी बातें सुन कर सुषमा पूछ बैठी, ‘‘जब तुम राजेशजी को इतना पसंद करती हो तो तुम उन से शादी क्यों नहीं कर लेतीं?’’

‘‘शादी क्यों…?’’ अमृता उल झने के तेवर में पूछ बैठी.

‘‘साथ के लिए.’’

‘‘आप को अपना नौकर भी अच्छा लग सकता है पर उस से तो कोई शादी की बात नहीं करता. मेरी सम झ से शादी के लिए शारीरिक आकर्षण बहुत जरूरी है. संतानोंत्पत्ति की इच्छा भी जरूरी है, आर्थिक आवलंबन भी एक मजबूत कड़ी है और तब समाज की भूमिका की जरूरत पड़ती है. पर अब मेरी उम्र में तो कोई शारीरिक आर्कषण बच नहीं गया है. बच्चा अब मैं पैदा कर नहीं सकती, आर्थिक आवलंबन के लिए मेरी पैंशन ही काफी है. फिर शादी क्यों?’’

‘‘अच्छे से समय काटने के लिए सम झ लो.’’

‘‘सुषमा तुम भी मेरी उम्र की हो. तुम सम झ सकती हो कि शादी के शुरुआती दिनों में अगर शरीर का आकर्षण न रहता तो एडजस्टमैंट कितना कठिन होता. इस के अलावा मां बन जाना एक अलग आर्कषण का विषय रहता है. उम्र कम रहती है, तो आप के व्यक्तित्व में बदलाव की गुंजाइश भी रहती है, आप की सोच बदल सकती है, आप का आकार बदल सकता है पर इस उम्र तक आतेआते सबकुछ अपना आकार ले चुका होता है. इस में बदलाव की गुंजाइश बहुत कम हो जाती है.’’

‘‘पर बदलाव की बात कहां आती है, तुम्हें राजेशजी अच्छे लगते हैं.’’

‘‘एक फैज अहमद फैज की गजल है, ‘मु झ से पहली सी मोहब्बत मेरे महबूब न मांग, और भी दुख हैं जमाने में मोहब्बत के सिवा. राहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा…’ और फिर मैं राजेशजी का एक ही पक्ष जानती हूं वे बातें अच्छी करते हैं. इस के अलावा मैं उन के बारे में कुछ भी नहीं जानती, मसलन उन की रुचियां क्या हैं, रिश्तों की गंभीरता उन की नजर में क्या है आदि मैं नहीं जानती. तब, बस, एक छोटे से रिश्ते के सहारे एक इतने अनावश्यक रिश्ते से मैं अपने को क्यों बांध लूं, क्या यह बेवकूफी नहीं होगी?’’

अमृता सांस लेने के लिए रुकी, फिर कहा, ‘‘राजेशजी की बात छोड़ो, मैं अपनी बात कहती हूं, मेरे बिस्तर का तकिया भी कोई दूसरी जगह रखे तो मैं चिढ़ जाती हूं. वर्षों से मैं अपनी चीजें अपनी जगह रखने की आदी हो गई  हूं. ऐसे में दिनरात दूसरे का दखल न  पटा तो…?’’

‘‘तो तुम्हारे पास दूसरा रास्ता क्या है?’’

‘‘क्यों, मैं जैसी रहती आई हूं वैसे ही रहूंगी. हम एक अच्छे दोस्त की तरह क्यों नहीं रह सकते. बस, केवल इसलिए न कि राजेशजी मर्द हैं और मैं औरत. पर इस उम्र तक आतेआते हम केवल इंसान ही बचे, न औरत न मर्द. और 2 इंसानों को एकदूसरे की हरदम जरूरत पड़ती है. अगर यह नहीं होता तो जंगल से होता हुआ समाज का यह सफर यहां तक न पहुंचता.’’

‘‘लोग बुरा कहेंगे तो?’’

‘‘अब युग बदल गया है सुषमा. अब नए लड़के लिवइन के रिश्ते बिना शादी के जीने लगे हैं. उन्हें कानूनी संरक्षण भी प्राप्त है. हम तो 60 के ऊपर के लोग हैं. हमारी तो बस इतनी ही मांग है कि समय अच्छी तरह से कट जाए और एक की गर्दिश में दूसरा खड़ा हो जाए. वह भी इसलिए क्योंकि आधुनिक भारत में न तो समाज और न सरकार गर्दिश में खड़ी होती है.’’

‘‘पर लोग तो कहेंगे,’’ सुषमा अब जाने के लिए उठ खड़ी हुई.

‘‘कब तक?’’

‘‘जब तक उन की इच्छा होगी.’’

अभी अमृता सुषमा को छोड़ने के लिए खड़ी ही हुई थी कि उस की नजर सीता पर पड़ी. उस ने इशारे से जानना चाहा कि उस के असमय आने का क्या कारण है, ‘‘कुछ नहीं  मेमसाहब, बाद में बताऊंगी.’’

‘‘अरे, ये अपनी ही हैं.  बता क्या बात है?’’

‘‘वो नए फ्लैट में जो नया जोड़ा आया है न, उन के यहां आज मारपीट हुई है. साहब का किसी और औरत के साथ और मेमसाहब को किसी और से मोहब्बत है.’’

अमृता ने एक गहरी सांस लेते हुए सुषमा की तरफ देखा जैसे वे कहना चाहती हों, ‘देखा, बातों का विषय. अब मैं नहीं, कोई और हो गया है समाज के फ्रेम में. एक ही तसवीर हमेशा जकड़ी नहीं रहती. तसवीरें बदलती रहती हैं. आज एक, तो कल दूसरी. बस, थोड़े समय का यह खेल होता है. शायद, अमृता यह बात खुद को भी सम झाना चाहती थी.

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उस दिन की शाम तो अच्छी तरह कट गई पर पूरे हफ्ते पिछली घटना उस के अचेतन मन पर छाई रही. अमृता ने बहुत कोशिश की पर वह इसे हटा नहीं पाई थी. जब वह ऐसी मानसिकता के भंवर में उल झी घूम ही रही थी उसी समय सुषमा उस से मिलने चली आई थी. औपचारिकता खत्म होने के बाद कौफी के प्यालों के साथ जब बात शुरू हुई तो बातों को यहां तक आना ही था. सो, बातें यहां चली आईं. सारी बातें सुन कर सुषमा पूछ बैठी, ‘‘जब तुम राजेशजी को इतना पसंद करती हो तो तुम उन से शादी क्यों नहीं कर लेतीं?’’

‘‘शादी क्यों…?’’ अमृता उल झने के तेवर में पूछ बैठी.

‘‘साथ के लिए.’’

‘‘आप को अपना नौकर भी अच्छा लग सकता है पर उस से तो कोई शादी की बात नहीं करता. मेरी सम झ से शादी के लिए शारीरिक आकर्षण बहुत जरूरी है. संतानोंत्पत्ति की इच्छा भी जरूरी है, आर्थिक आवलंबन भी एक मजबूत कड़ी है और तब समाज की भूमिका की जरूरत पड़ती है. पर अब मेरी उम्र में तो कोई शारीरिक आर्कषण बच नहीं गया है. बच्चा अब मैं पैदा कर नहीं सकती, आर्थिक आवलंबन के लिए मेरी पैंशन ही काफी है. फिर शादी क्यों?’’

‘‘अच्छे से समय काटने के लिए सम झ लो.’’

‘‘सुषमा तुम भी मेरी उम्र की हो. तुम सम झ सकती हो कि शादी के शुरुआती दिनों में अगर शरीर का आकर्षण न रहता तो एडजस्टमैंट कितना कठिन होता. इस के अलावा मां बन जाना एक अलग आर्कषण का विषय रहता है. उम्र कम रहती है, तो आप के व्यक्तित्व में बदलाव की गुंजाइश भी रहती है, आप की सोच बदल सकती है, आप का आकार बदल सकता है पर इस उम्र तक आतेआते सबकुछ अपना आकार ले चुका होता है. इस में बदलाव की गुंजाइश बहुत कम हो जाती है.’’

‘‘पर बदलाव की बात कहां आती है, तुम्हें राजेशजी अच्छे लगते हैं.’’

‘‘एक फैज अहमद फैज की गजल है, ‘मु झ से पहली सी मोहब्बत मेरे महबूब न मांग, और भी दुख हैं जमाने में मोहब्बत के सिवा. राहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा…’ और फिर मैं राजेशजी का एक ही पक्ष जानती हूं वे बातें अच्छी करते हैं. इस के अलावा मैं उन के बारे में कुछ भी नहीं जानती, मसलन उन की रुचियां क्या हैं, रिश्तों की गंभीरता उन की नजर में क्या है आदि मैं नहीं जानती. तब, बस, एक छोटे से रिश्ते के सहारे एक इतने अनावश्यक रिश्ते से मैं अपने को क्यों बांध लूं, क्या यह बेवकूफी नहीं होगी?’’

अमृता सांस लेने के लिए रुकी, फिर कहा, ‘‘राजेशजी की बात छोड़ो, मैं अपनी बात कहती हूं, मेरे बिस्तर का तकिया भी कोई दूसरी जगह रखे तो मैं चिढ़ जाती हूं. वर्षों से मैं अपनी चीजें अपनी जगह रखने की आदी हो गई  हूं. ऐसे में दिनरात दूसरे का दखल न  पटा तो…?’’

‘‘तो तुम्हारे पास दूसरा रास्ता क्या है?’’

‘‘क्यों, मैं जैसी रहती आई हूं वैसे ही रहूंगी. हम एक अच्छे दोस्त की तरह क्यों नहीं रह सकते. बस, केवल इसलिए न कि राजेशजी मर्द हैं और मैं औरत. पर इस उम्र तक आतेआते हम केवल इंसान ही बचे, न औरत न मर्द. और 2 इंसानों को एकदूसरे की हरदम जरूरत पड़ती है. अगर यह नहीं होता तो जंगल से होता हुआ समाज का यह सफर यहां तक न पहुंचता.’’

‘‘लोग बुरा कहेंगे तो?’’

‘‘अब युग बदल गया है सुषमा. अब नए लड़के लिवइन के रिश्ते बिना शादी के जीने लगे हैं. उन्हें कानूनी संरक्षण भी प्राप्त है. हम तो 60 के ऊपर के लोग हैं. हमारी तो बस इतनी ही मांग है कि समय अच्छी तरह से कट जाए और एक की गर्दिश में दूसरा खड़ा हो जाए. वह भी इसलिए क्योंकि आधुनिक भारत में न तो समाज और न सरकार गर्दिश में खड़ी होती है.’’

‘‘पर लोग तो कहेंगे,’’ सुषमा अब जाने के लिए उठ खड़ी हुई.

‘‘कब तक?’’

‘‘जब तक उन की इच्छा होगी.’’

अभी अमृता सुषमा को छोड़ने के लिए खड़ी ही हुई थी कि उस की नजर सीता पर पड़ी. उस ने इशारे से जानना चाहा कि उस के असमय आने का क्या कारण है, ‘‘कुछ नहीं  मेमसाहब, बाद में बताऊंगी.’’

‘‘अरे, ये अपनी ही हैं.  बता क्या बात है?’’

‘‘वो नए फ्लैट में जो नया जोड़ा आया है न, उन के यहां आज मारपीट हुई है. साहब का किसी और औरत के साथ और मेमसाहब को किसी और से मोहब्बत है.’’

अमृता ने एक गहरी सांस लेते हुए सुषमा की तरफ देखा जैसे वे कहना चाहती हों, ‘देखा, बातों का विषय. अब मैं नहीं, कोई और हो गया है समाज के फ्रेम में. एक ही तसवीर हमेशा जकड़ी नहीं रहती. तसवीरें बदलती रहती हैं. आज एक, तो कल दूसरी. बस, थोड़े समय का यह खेल होता है. शायद, अमृता यह बात खुद को भी सम झाना चाहती थी.

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August 31, 2021 at 10:00AM

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