Monday 30 August 2021

फ्रेम – भाग 1 : पति के मौत के बाद अमृता के जीवन में क्या बदलाव आया?

अमृताजी ने अपनी गाड़ी का दरवाजा खोला ही था कि सामने से सीता ने आवाज दी, ‘‘मेमसाहब, हम आ गए हैं.’’उसे थोड़ी उल झन हुई कि क्या करे क्या न करे, दरअसल, मैडिटेशन क्लास जाने का उस का पहला ही दिन था. पहले वह गुरुजी को घर ही बुला लिया करती थी, लेकिन सुषमा हफ्तों से उसे सम झा रही थी कि क्लास में जाने के क्याक्या फायदे हैं. उस के अनुसार, क्लास में सब लोगों की सोच एक ही तरह की रहती है तो बातें करना आसान हो जाता है. फिर आप को खुद अपनी गलती सुधारने का मौका भी मिल जाता है. एक हलकी प्रतिस्पर्धा रहने पर आप जल्दी सीखते हैं.

सुषमा की बातों में सचाई थी. घर में तो गुरुजी के आने पर ही तैयारी शुरू करती. कुछ समय तो उसी में निकल जाता, कभीकभी कुछ आलस में भी और सब से बड़ी बात यह थी कि घर में वह अपने प्रिंसिपलशिप का चोला उतार गुरुजी को सहजता से गुरु स्वीकार नहीं कर पाती थी. सारी बातें सोचतेसोचते उस ने फैसला किया था कि वह भी क्लास जौइन करेगी. गुरुजी से बात कर के सवेरे के समय में क्लास जाने की बात तय भी हो गई थी. पर वह सीता से कहना भूल गई थी, इसलिए आज जब वह जा रही थी तब, ‘‘ऐसा करो सीता, आज तुम 2 घंटे के बाद आ जाओ, फिर हम तय करेंगे कि कल से हम क्या करेंगे.’’

क्लास पहुंची तो उसे थोड़ी सी मानसिक समस्या हुई. 30-35 साल के अधिकतर लोगों के बीच उस का 65 साल का होना उसे कुछ भारी पड़ने लगा था और सब से भारी पड़ने लगा उस का अपना व्यवहार, उस का अपना आदेश देने वाला व्यक्तित्व. वह करीबन 10 साल एक स्कूल के प्रिंसिपल के पद पर रही और इन 10 सालों में आदेश देना उस के व्यक्तित्व का अंग बन चुका था. ऐसे में परिस्थितियों से सम झौता असंभव नहीं तो कठिन जरूर हो गया था.

ऐसा नहीं कि उस ने पहले काम नहीं किया था. वह शादी के पहले अपने मायके के शहर में स्कूल टीचर थी. उस के पिता ने शादी में यह शर्त भी रखी थी कि लड़की नौकरी करना चाहेगी तो आप उसे मना नहीं कीजिएगा. अमृता दबंग बाप की दबंग बेटी थी. उस का कभी पापा से टकराव भी होता था मां को ले कर. उस का भाई तो मां की तरह का सीधासाधा इंसान था. पर वह पापा द्वारा मां पर की हुई ज्यादतियों पर सीधे लड़ जाती थी. पापा कहा भी करते थे, ‘पता नहीं यह ससुराल में कैसे रहेगी.’

‘मां की तरह तो हरगिज नहीं पापा,’ वह फौरन जवाब देती. पापा भी हंस कर कहते, ‘तुम मेरी पत्नी को बहकाया मत करो,’ फिर बात हंसी में उड़ जाती.

ससुराल में केवल 2 ही व्यक्ति थे, एक पति और एक सास. दोनों ही बहुत सीधेसादे. उसे ससुराल के शहर के एक स्कूल में नौकरी मिल गई. पति केवल सीधेसादे ही नहीं, सहज और दिलचस्प इंसान भी थे. सकारात्मकता उन में कूटकूट कर भरी हुई थी. उन की पुशतैनी कपड़े की दुकान थी. पिताजी के गुजरने के बाद वे ही दुकान के सर्वेसर्वा थे, इसलिए वे सुबह के 9 बजे से रात के 9 बजे तक वहीं उल झे रहते थे. हां, इतवार जरूर खुशनुमा होता था दोनों छुट्टी पर जो रहते थे और उस दिन के खुशनुमा एहसास में हफ्ता अच्छी तरह बीत जाता था. शुरू के दिनों में अमृता को न घूम पाने की कसक जरूर रहती थी पर बाद में उस ने उस का रास्ता भी निकाल लिया था. कभी स्कूल के साथ ट्रिप पर कभी दोस्तों के साथ घूमफिर आती थी. अम्मा के कारण बच्चे भी उस के घूमने में बाधक नहीं बनते थे.

घर चलाना, बच्चे पालना उस का जिम्मा कभी नहीं रहा. ये सारे काम अम्मा ही करती थीं. वह कभीकभी सोचती जरूर थी कि वह अम्मा के उपकारों का बदला कैसे चुकाएगी. फिर यह कह कर खुद को तसल्ली दे लेती थी कि उन का बुढ़ापा आएगा तो वह जीभर सेवा कर देगी. पर उन्होंने इस का भी अवसर नहीं दिया, एक रात सोईं तो सोई रह गईं.

उस समय तक बच्चे बड़े हो चुके थे. उन का साथ अब केवल छुट्टियों में ही मिल पाता था और वह भी कुछ ही साल. उन की पढ़ाई खत्म हुई तो नौकरी और नौकरी को ले कर विदेश गए तो वहीं के हो कर रह गए. दोनों लड़कों ने वहीं शादी कर ली. एक ने तो कम से कम गुजराती चुना, दूसरे ने तो सीधे जरमन लड़की से शादी कर ली. इसलिए बहुओं से उस का रिश्ता पनपा ही नहीं. बस, रस्मीतौर पर फोन पर संपर्क करने के अलावा कोई रिश्ता नहीं था. चूंकि बहुओं से वह कोई रिश्ता नही पनपा पाई, इसलिए बेटों से भी रिश्ता सूखता गया.

इस बीच उस के जीवन में 2 बड़ी घटनाएं घटीं- पति की आकास्मिक मृत्यु और खुद का उसी स्कूल में प्रिंसिपल हो जाना.  बच्चे बाप के मरने पर आए, उस को साथ चलने के लिए कहने की औपचारिकता भी निभाई. उस ने भी रिटायरमैंट के बाद कह कर  औपचारिकता का जवाब औपचारिकता से दे दिया. बस, उस के बाद मिलने के सूखे वादे ही उस की ममता की  झोली में गिरते रहे. वह भी बिना किसी भावुकता के इस की आदी होती चली गई. यानी, उस की जिंदगी का निचोड़ यह था कि उसे कभी रिश्तों में सम झौता करने कि जरूरत ही नहीं पड़ी थी.

रिटायरमैंट के बाद सारा परिदृश्य ही बदल गया. पति के मरने के बाद अभी तक वह स्कूल के ही प्रिंसिपल क्वार्टर में रहती थी, इसलिए वहां से मिलने वाली सारी सुविधाओं की वह आदी हो गई थी. पर फिर से फ्लैट में आ कर रहना, वहां की परेशानियों से रूबरू होना उस को बहुत भारी पड़ने लगा था. क्वार्टर में किसी दाई या चपरासी की मजाल थी कि उस का कहा न सुने. पर यहां दाई, माली, धोबी, सब अपने मन की ही करते और उसे सम झौता करना ही पड़ता था. पर सब से अधिक जो उस पर भारी पड़ता था वह था उस का अपना अकेलापन. व्यस्त जिंदगी के बीच वह अपना कोई शौक पनपा नहीं पाई थी. पढ़ने की तो आदत थी पर उपन्यास या कहानी नहीं. काम की अधिकता या फिर कर्मठ व्यक्तित्व होने के कारण मोबाइल से समय काटने की आदत वह अपने अंदर पनपा ही नहीं पाई थी. परिचितों के दायरे को भी उस ने सीमित ही रखा था. बस, एक दोस्त के नाम पर सुषमा थी. वह शिक्षिका वाले दिनों की एकमात्र सहेली थी, जिस से वह निसंकोच हो कर अपनी समस्या बांटती थी. एक दिन अपने ही घर में कौफी पीतेपीते उस ने पूछा था, ‘सुषमा, आखिर वह समय कैसे काटे?’

‘किसी संस्था से जुड़ जाओ,’ सुषमा के यह कहने के पहले ही वह कई संस्थाओं का दरवाजा खटखटा चुकी थी. पर हर जगह उसे काम से ज्यादा दिखावा या फिर पैसे कि लूटखसोट ही देखने को मिली थी. जिंदगीभर ईमानदारी से काम करने वाली अमृता की ये बातें, गले से नीचे नहीं उतर पाई थीं. सुषमा से की इन्हीं बहसों के बीच मैडिटेशन सीखने का विचार आया था क्योंकि मन तो मन, अब कभीकभी शरीर भी विद्रोह करने लगा था. इसलिए सुषमा का दिया यह प्रस्ताव उसे पसंद आया था और थोड़ी मेहनत कर गुरु भी खोज लिया था पर बाद में क्लास जाना ही तय हुआ था.

इसलिए पहले दिन मैडिटेशन क्लास में उसे सबकुछ विचित्र सा लगा. थोड़ी ऊब, थोड़ी निराशा सी हुई. दूसरे दिन बड़ी अनिच्छा से उस का क्लास जाना हुआ था. लेकिन प्रैक्टिस करने के बाद फूलती सांस को सामान्य बनाने के लिए  जब वह कुरसी पर बैठी तो उस ने देखा कि उसी की उम्र का एक आदमी बगल वाली कुरसी पर बैठा उस से कुछ पूछ रहा है.

‘‘आप का पहला दिन है क्या?’’ ‘‘हां,’’ अपनी सांसों पर नियंत्रण रख कर मुश्किल से वह यह कह पाई. ‘‘मैं तो पिछले साल से आ रहा हूं. मैं सेना से रिटायर्ड हुआ हूं, इसलिए मैडिटेशन मेरे लिए शौक नहीं, जरूरत है.’’‘‘मैं रिटायर्ड प्रिंसिपल हूं. मु झे शरीर के लिए कम, मन के लिए मैडिटेशन की ज्यादा जरूरत है.’’

 

The post फ्रेम – भाग 1 : पति के मौत के बाद अमृता के जीवन में क्या बदलाव आया? appeared first on Sarita Magazine.



from कहानी – Sarita Magazine https://ift.tt/3BFwpSX

अमृताजी ने अपनी गाड़ी का दरवाजा खोला ही था कि सामने से सीता ने आवाज दी, ‘‘मेमसाहब, हम आ गए हैं.’’उसे थोड़ी उल झन हुई कि क्या करे क्या न करे, दरअसल, मैडिटेशन क्लास जाने का उस का पहला ही दिन था. पहले वह गुरुजी को घर ही बुला लिया करती थी, लेकिन सुषमा हफ्तों से उसे सम झा रही थी कि क्लास में जाने के क्याक्या फायदे हैं. उस के अनुसार, क्लास में सब लोगों की सोच एक ही तरह की रहती है तो बातें करना आसान हो जाता है. फिर आप को खुद अपनी गलती सुधारने का मौका भी मिल जाता है. एक हलकी प्रतिस्पर्धा रहने पर आप जल्दी सीखते हैं.

सुषमा की बातों में सचाई थी. घर में तो गुरुजी के आने पर ही तैयारी शुरू करती. कुछ समय तो उसी में निकल जाता, कभीकभी कुछ आलस में भी और सब से बड़ी बात यह थी कि घर में वह अपने प्रिंसिपलशिप का चोला उतार गुरुजी को सहजता से गुरु स्वीकार नहीं कर पाती थी. सारी बातें सोचतेसोचते उस ने फैसला किया था कि वह भी क्लास जौइन करेगी. गुरुजी से बात कर के सवेरे के समय में क्लास जाने की बात तय भी हो गई थी. पर वह सीता से कहना भूल गई थी, इसलिए आज जब वह जा रही थी तब, ‘‘ऐसा करो सीता, आज तुम 2 घंटे के बाद आ जाओ, फिर हम तय करेंगे कि कल से हम क्या करेंगे.’’

क्लास पहुंची तो उसे थोड़ी सी मानसिक समस्या हुई. 30-35 साल के अधिकतर लोगों के बीच उस का 65 साल का होना उसे कुछ भारी पड़ने लगा था और सब से भारी पड़ने लगा उस का अपना व्यवहार, उस का अपना आदेश देने वाला व्यक्तित्व. वह करीबन 10 साल एक स्कूल के प्रिंसिपल के पद पर रही और इन 10 सालों में आदेश देना उस के व्यक्तित्व का अंग बन चुका था. ऐसे में परिस्थितियों से सम झौता असंभव नहीं तो कठिन जरूर हो गया था.

ऐसा नहीं कि उस ने पहले काम नहीं किया था. वह शादी के पहले अपने मायके के शहर में स्कूल टीचर थी. उस के पिता ने शादी में यह शर्त भी रखी थी कि लड़की नौकरी करना चाहेगी तो आप उसे मना नहीं कीजिएगा. अमृता दबंग बाप की दबंग बेटी थी. उस का कभी पापा से टकराव भी होता था मां को ले कर. उस का भाई तो मां की तरह का सीधासाधा इंसान था. पर वह पापा द्वारा मां पर की हुई ज्यादतियों पर सीधे लड़ जाती थी. पापा कहा भी करते थे, ‘पता नहीं यह ससुराल में कैसे रहेगी.’

‘मां की तरह तो हरगिज नहीं पापा,’ वह फौरन जवाब देती. पापा भी हंस कर कहते, ‘तुम मेरी पत्नी को बहकाया मत करो,’ फिर बात हंसी में उड़ जाती.

ससुराल में केवल 2 ही व्यक्ति थे, एक पति और एक सास. दोनों ही बहुत सीधेसादे. उसे ससुराल के शहर के एक स्कूल में नौकरी मिल गई. पति केवल सीधेसादे ही नहीं, सहज और दिलचस्प इंसान भी थे. सकारात्मकता उन में कूटकूट कर भरी हुई थी. उन की पुशतैनी कपड़े की दुकान थी. पिताजी के गुजरने के बाद वे ही दुकान के सर्वेसर्वा थे, इसलिए वे सुबह के 9 बजे से रात के 9 बजे तक वहीं उल झे रहते थे. हां, इतवार जरूर खुशनुमा होता था दोनों छुट्टी पर जो रहते थे और उस दिन के खुशनुमा एहसास में हफ्ता अच्छी तरह बीत जाता था. शुरू के दिनों में अमृता को न घूम पाने की कसक जरूर रहती थी पर बाद में उस ने उस का रास्ता भी निकाल लिया था. कभी स्कूल के साथ ट्रिप पर कभी दोस्तों के साथ घूमफिर आती थी. अम्मा के कारण बच्चे भी उस के घूमने में बाधक नहीं बनते थे.

घर चलाना, बच्चे पालना उस का जिम्मा कभी नहीं रहा. ये सारे काम अम्मा ही करती थीं. वह कभीकभी सोचती जरूर थी कि वह अम्मा के उपकारों का बदला कैसे चुकाएगी. फिर यह कह कर खुद को तसल्ली दे लेती थी कि उन का बुढ़ापा आएगा तो वह जीभर सेवा कर देगी. पर उन्होंने इस का भी अवसर नहीं दिया, एक रात सोईं तो सोई रह गईं.

उस समय तक बच्चे बड़े हो चुके थे. उन का साथ अब केवल छुट्टियों में ही मिल पाता था और वह भी कुछ ही साल. उन की पढ़ाई खत्म हुई तो नौकरी और नौकरी को ले कर विदेश गए तो वहीं के हो कर रह गए. दोनों लड़कों ने वहीं शादी कर ली. एक ने तो कम से कम गुजराती चुना, दूसरे ने तो सीधे जरमन लड़की से शादी कर ली. इसलिए बहुओं से उस का रिश्ता पनपा ही नहीं. बस, रस्मीतौर पर फोन पर संपर्क करने के अलावा कोई रिश्ता नहीं था. चूंकि बहुओं से वह कोई रिश्ता नही पनपा पाई, इसलिए बेटों से भी रिश्ता सूखता गया.

इस बीच उस के जीवन में 2 बड़ी घटनाएं घटीं- पति की आकास्मिक मृत्यु और खुद का उसी स्कूल में प्रिंसिपल हो जाना.  बच्चे बाप के मरने पर आए, उस को साथ चलने के लिए कहने की औपचारिकता भी निभाई. उस ने भी रिटायरमैंट के बाद कह कर  औपचारिकता का जवाब औपचारिकता से दे दिया. बस, उस के बाद मिलने के सूखे वादे ही उस की ममता की  झोली में गिरते रहे. वह भी बिना किसी भावुकता के इस की आदी होती चली गई. यानी, उस की जिंदगी का निचोड़ यह था कि उसे कभी रिश्तों में सम झौता करने कि जरूरत ही नहीं पड़ी थी.

रिटायरमैंट के बाद सारा परिदृश्य ही बदल गया. पति के मरने के बाद अभी तक वह स्कूल के ही प्रिंसिपल क्वार्टर में रहती थी, इसलिए वहां से मिलने वाली सारी सुविधाओं की वह आदी हो गई थी. पर फिर से फ्लैट में आ कर रहना, वहां की परेशानियों से रूबरू होना उस को बहुत भारी पड़ने लगा था. क्वार्टर में किसी दाई या चपरासी की मजाल थी कि उस का कहा न सुने. पर यहां दाई, माली, धोबी, सब अपने मन की ही करते और उसे सम झौता करना ही पड़ता था. पर सब से अधिक जो उस पर भारी पड़ता था वह था उस का अपना अकेलापन. व्यस्त जिंदगी के बीच वह अपना कोई शौक पनपा नहीं पाई थी. पढ़ने की तो आदत थी पर उपन्यास या कहानी नहीं. काम की अधिकता या फिर कर्मठ व्यक्तित्व होने के कारण मोबाइल से समय काटने की आदत वह अपने अंदर पनपा ही नहीं पाई थी. परिचितों के दायरे को भी उस ने सीमित ही रखा था. बस, एक दोस्त के नाम पर सुषमा थी. वह शिक्षिका वाले दिनों की एकमात्र सहेली थी, जिस से वह निसंकोच हो कर अपनी समस्या बांटती थी. एक दिन अपने ही घर में कौफी पीतेपीते उस ने पूछा था, ‘सुषमा, आखिर वह समय कैसे काटे?’

‘किसी संस्था से जुड़ जाओ,’ सुषमा के यह कहने के पहले ही वह कई संस्थाओं का दरवाजा खटखटा चुकी थी. पर हर जगह उसे काम से ज्यादा दिखावा या फिर पैसे कि लूटखसोट ही देखने को मिली थी. जिंदगीभर ईमानदारी से काम करने वाली अमृता की ये बातें, गले से नीचे नहीं उतर पाई थीं. सुषमा से की इन्हीं बहसों के बीच मैडिटेशन सीखने का विचार आया था क्योंकि मन तो मन, अब कभीकभी शरीर भी विद्रोह करने लगा था. इसलिए सुषमा का दिया यह प्रस्ताव उसे पसंद आया था और थोड़ी मेहनत कर गुरु भी खोज लिया था पर बाद में क्लास जाना ही तय हुआ था.

इसलिए पहले दिन मैडिटेशन क्लास में उसे सबकुछ विचित्र सा लगा. थोड़ी ऊब, थोड़ी निराशा सी हुई. दूसरे दिन बड़ी अनिच्छा से उस का क्लास जाना हुआ था. लेकिन प्रैक्टिस करने के बाद फूलती सांस को सामान्य बनाने के लिए  जब वह कुरसी पर बैठी तो उस ने देखा कि उसी की उम्र का एक आदमी बगल वाली कुरसी पर बैठा उस से कुछ पूछ रहा है.

‘‘आप का पहला दिन है क्या?’’ ‘‘हां,’’ अपनी सांसों पर नियंत्रण रख कर मुश्किल से वह यह कह पाई. ‘‘मैं तो पिछले साल से आ रहा हूं. मैं सेना से रिटायर्ड हुआ हूं, इसलिए मैडिटेशन मेरे लिए शौक नहीं, जरूरत है.’’‘‘मैं रिटायर्ड प्रिंसिपल हूं. मु झे शरीर के लिए कम, मन के लिए मैडिटेशन की ज्यादा जरूरत है.’’

 

The post फ्रेम – भाग 1 : पति के मौत के बाद अमृता के जीवन में क्या बदलाव आया? appeared first on Sarita Magazine.

August 31, 2021 at 10:00AM

No comments:

Post a Comment