‘‘रिटायरमैंट के बाद न चाहते हुए भी जिंदगी की शाम तो आ ही जाती है. किसी को शरीर पर पहले, किसी को मन पर पहले, पर शाम का धुंधलका अपने जीवन का अंग तो बन ही जाता है.’’
‘‘मैं ने अभी तक तो महसूस नहीं किया था पर अब… थोड़ीथोड़ी दिक्कत होने लगी है. दरअसल, मेरी असली समस्या है अकेलापन,’’ इतना कह कर अमृता अचानक चुप हो गई. उसे लगा कि एक अजनबी से वह अपनी व्यक्तिगत बातें क्यों कर रही है. फिर उस ने बात बदलने के लिए पूछा, ‘‘आप रहते कहां हैं?’’
‘‘इंदिरारानगर में.’’
‘‘मैं भी तो वहीं रहती हूं. आप का मकान नंबर?’’
‘‘44.’’
‘‘वही कहूं आप का चेहरा पहचानापहचाना सा क्यों लग रहा है. दरअसल, मैं भी वहीं रहती हूं गंगा एपार्टमैंट के एक फ्लैट में. अकसर आप को सड़क पर आतेजाते देखा होगा, इसीलिए पहचानापहचाना सा लगा. वैसे इस घर में आए मु झे अभी 6 ही महीने हुए हैं.’’
काफी देर तक इधरउधर, राजनीति आदि पर बातें होती रहीं. अचानक उसे सीता को समय देने की याद आई. वह उठती हुई बोली, ‘‘आप के पास अपनी सवारी है?’’
‘‘नहीं.’’
‘‘आइए, मैं आप को घर छोड़ दूं.’’
उतरते समय अमृता ने उन का नाम पूछा, ‘‘अरे इतनी बातें हो गईं, मैं ने न अपना नाम बताया, न आप से नाम पूछा. मेरा नाम अमृता है.’’
‘‘मैं राजेश, पर आप भी उतरिए एक कप चाय हो जाए.’’
‘‘फिर कभी, अभी मैं ने एक आदमी को बुलाया है.’’
अमृता घर पहुंची तो सीता को इंतजार करते पाया. ताला खोलने के बाद जो काम का सिलसिला शुरू हुआ वह बहुत देर तक चलता रहा और वह सुबह की सारी बातें भूल गई थी. पर शाम को चाय ले कर बैठी तो उसे सारी बातें याद आईं. उसे आश्चर्य हुआ कि 2 घंटे कितने आराम से बीत गए थे. समय काटना ही तो उस के जीवन की सब से बड़ी परेशानी थी और वह परेशानी इतनी आसानी से…?
धीरेधीरे उस की ओर राजेशजी की घनिष्ठता बढ़ती गई. अमृता ने महसूस किया कि उस की और राजेशजी की रुचियां मिलतीजुलती हैं. बगीचे का रखरखाव दोनों की रुचियों का मुख्य केंद्र था. आध्यात्म पर अकसर वे बहस किया करते थे. अमृता को धार्मिक औपचारिकताओं पर विश्वास नहीं के बराबर था. पंडित, मंत्र, उपवास आदि पर उस का विश्वास नहीं था. वहीं राजेश यह मानते थे कि ये सारी चीजें महत्त्वपूर्ण हैं, केवल उन को सम झाने और करने का ढंग गलत है. राजेशजी किताबें बहुत पढ़ते थे. इतिहास उन का प्रिय विषय था. चाहे भाषा का इतिहास हो, संस्कृति का या साहित्य का, वे पढ़ते ही रहते थे.
एक दिन शाम को चाय पीते हुए
राजेशजी बताने लगे, ‘‘जानती हैं अमृताजी, 7 बुद्ध हुए हैं और ये अंतिम बुद्ध, जिन्हें हम गौतम बुद्ध कहते हैं, ईसा से 500 वर्ष पूर्व हुए थे. अभी जो खुदाई हो रही है उस में 7 बुद्ध की मूर्तियों वाले स्तूप मिल रहे हैं…’’
अमृता मंत्रमुग्ध चुपचाप सुनती रही. उसे आश्चर्य हुआ कि वह खुद नहीं जानती थी कि ऐसे शुष्क विषय भी उसे इतना सम्मोहित कर सकते हैं. यह विषय का सम्मोहन था या राजेशजी के बोलने के ढंग का. वह थोड़ी उल झ सी गई. फिलहाल उस का रिश्ता इतना करीबी का जरूर हो गया था कि शाम की चाय वे एकदूसरे के यहां पिएं, एकदूसरे के बीमार पढ़ने पर पूरी ईमानदारी से तीमारदारी करें.
उन दोनों की करीबी पर समाज अब चौकन्ना हो चला था. समाज की प्रतिक्रियाएं हवा में उड़तेउड़ते उन तक पहुंचने लगी थीं. अपनी ही बिल्ंिडग के किसी समारोह में लोगों की आंखों में अमृता पढ़ चुकी थी कि समाज इस रिश्ते को किस तरह से लेता है. अमृता के दबंग व्यक्तित्व को देखते हुए अभी आंखों की भाषा जबान पर तो नहीं आ पाई थी पर कामवालियों के माध्यम से सुनसुन कर उस को इस की गंभीरता का एहसास तो हो ही गया था.
एक दिन शाम की चाय पीते राजेशजी कुछ ज्यादा ही चुप थे. जब उन की चुप्पी अखरी, तो अमृता ने पूछ ही लिया, ‘‘कुछ खास बात है क्या?’’
‘‘है भी और नहीं भी. वे सुभाषजी हैं न. कल एक पार्टी में मिले थे. वे एकांत में ले जा कर मु झ से पूछने लगे कि मैं आप से शादी क्यों नहीं कर लेता. अब आप ही बताइए इस बेहूदे प्रश्न का मैं क्या जवाब देता.’’
‘‘कह देते कि, बस, आप के आदेश का इंतजार था,’’ यह कह कर अमृता जोरों से हंस पड़ी. बात हंसी में उड़ गई. पर हफ्ता भी नहीं बीता था, अपनी ही बिल्ंिडग के गृहप्रवेश की एक पार्टी में चुलबुली फैशनपरस्त गरिमा ने उस से पूछ ही लिया था, ‘‘मैडम, सुना है आप शादी करने जा रही हैं, मेरी बधाई स्वीकार कीजिए.’’
‘‘मैं तो आज पहली बार सुन रही हूं. इस पर कभी सोचा नहीं. पर कभी अगर सोचा तो आप से बधाई लेना नहीं भूलूंगी.’’
उचित जवाब दे देने के बाद भी अमृता अपनी खी झ से उबर नहीं पाई. आसपास खड़ी महिलाओं की आंखों में छिपी व्यंग्य की खुशी को नकारना जब उसे कठिन जान पड़ने लगा तो वह पेट की तकलीफ का बहाना बना मेजबान से छुट्टी मांग घर चली आई.
दूसरे दिन शाम की चाय पीते हुए राजेशजी बहुत खुश नजर आ रहे थे. अमृता से नहीं रहा गया, तो वे पूछ ही बैठी, ‘‘आज आप बहुत खुश हैं राजेशजी?’’
‘‘हां, आज मैं बहुत खुश हूं. मु झे एक ऐसी किताब हाथ लगी है कि मु झे लगने लगा है कि अगर मैं चाहूं तो अपना भविष्य अपने अनुकूल बना सकता हूं.’’
‘‘यह तो बहुत अच्छी बात है पर कैसे?’’
‘‘केवल अपनी बात को अपने अचेतन मन तक पहुंचाना है और पहुंचाने के लिए उसे बारबार दोहराना है और खासकर सोने से पहले जब चेतन मन की पकड़ थोड़ी ढीली पड़ जाती है तब जरूर दोहराना है.’’
‘‘किताब का नाम?’’
‘‘पावर औफ अनकौनशियस माइंड.’’
उस की उस दिन की शाम उसी किताब के बारे में सुनते हुए बीती थी. राजेशजी बहुत अच्छे वक्ता थे. उन के बोलने की शैली कुछकुछ कथावाचक जैसी हुआ करती थी जो श्रोता को अपनी गिरफ्त में कैद कर लेती थी. उस दिन उन्होंने सम झाया कि अपने मन को समरस, स्वस्थ, शांत और प्रसन्न रखने की कोशिश कीजिए. आप कोशिश कर के अपने अंदर शांति, प्रसन्नता, अच्छाई और समृद्धि का संकल्परूपी बीज बोना शुरू कीजिए तब देखिए कि चमत्कार क्या होता है, कैसे असंभव संभव हो जाता है, मन की खेती कैसे लहलहा उठती है.’’
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‘‘रिटायरमैंट के बाद न चाहते हुए भी जिंदगी की शाम तो आ ही जाती है. किसी को शरीर पर पहले, किसी को मन पर पहले, पर शाम का धुंधलका अपने जीवन का अंग तो बन ही जाता है.’’
‘‘मैं ने अभी तक तो महसूस नहीं किया था पर अब… थोड़ीथोड़ी दिक्कत होने लगी है. दरअसल, मेरी असली समस्या है अकेलापन,’’ इतना कह कर अमृता अचानक चुप हो गई. उसे लगा कि एक अजनबी से वह अपनी व्यक्तिगत बातें क्यों कर रही है. फिर उस ने बात बदलने के लिए पूछा, ‘‘आप रहते कहां हैं?’’
‘‘इंदिरारानगर में.’’
‘‘मैं भी तो वहीं रहती हूं. आप का मकान नंबर?’’
‘‘44.’’
‘‘वही कहूं आप का चेहरा पहचानापहचाना सा क्यों लग रहा है. दरअसल, मैं भी वहीं रहती हूं गंगा एपार्टमैंट के एक फ्लैट में. अकसर आप को सड़क पर आतेजाते देखा होगा, इसीलिए पहचानापहचाना सा लगा. वैसे इस घर में आए मु झे अभी 6 ही महीने हुए हैं.’’
काफी देर तक इधरउधर, राजनीति आदि पर बातें होती रहीं. अचानक उसे सीता को समय देने की याद आई. वह उठती हुई बोली, ‘‘आप के पास अपनी सवारी है?’’
‘‘नहीं.’’
‘‘आइए, मैं आप को घर छोड़ दूं.’’
उतरते समय अमृता ने उन का नाम पूछा, ‘‘अरे इतनी बातें हो गईं, मैं ने न अपना नाम बताया, न आप से नाम पूछा. मेरा नाम अमृता है.’’
‘‘मैं राजेश, पर आप भी उतरिए एक कप चाय हो जाए.’’
‘‘फिर कभी, अभी मैं ने एक आदमी को बुलाया है.’’
अमृता घर पहुंची तो सीता को इंतजार करते पाया. ताला खोलने के बाद जो काम का सिलसिला शुरू हुआ वह बहुत देर तक चलता रहा और वह सुबह की सारी बातें भूल गई थी. पर शाम को चाय ले कर बैठी तो उसे सारी बातें याद आईं. उसे आश्चर्य हुआ कि 2 घंटे कितने आराम से बीत गए थे. समय काटना ही तो उस के जीवन की सब से बड़ी परेशानी थी और वह परेशानी इतनी आसानी से…?
धीरेधीरे उस की ओर राजेशजी की घनिष्ठता बढ़ती गई. अमृता ने महसूस किया कि उस की और राजेशजी की रुचियां मिलतीजुलती हैं. बगीचे का रखरखाव दोनों की रुचियों का मुख्य केंद्र था. आध्यात्म पर अकसर वे बहस किया करते थे. अमृता को धार्मिक औपचारिकताओं पर विश्वास नहीं के बराबर था. पंडित, मंत्र, उपवास आदि पर उस का विश्वास नहीं था. वहीं राजेश यह मानते थे कि ये सारी चीजें महत्त्वपूर्ण हैं, केवल उन को सम झाने और करने का ढंग गलत है. राजेशजी किताबें बहुत पढ़ते थे. इतिहास उन का प्रिय विषय था. चाहे भाषा का इतिहास हो, संस्कृति का या साहित्य का, वे पढ़ते ही रहते थे.
एक दिन शाम को चाय पीते हुए
राजेशजी बताने लगे, ‘‘जानती हैं अमृताजी, 7 बुद्ध हुए हैं और ये अंतिम बुद्ध, जिन्हें हम गौतम बुद्ध कहते हैं, ईसा से 500 वर्ष पूर्व हुए थे. अभी जो खुदाई हो रही है उस में 7 बुद्ध की मूर्तियों वाले स्तूप मिल रहे हैं…’’
अमृता मंत्रमुग्ध चुपचाप सुनती रही. उसे आश्चर्य हुआ कि वह खुद नहीं जानती थी कि ऐसे शुष्क विषय भी उसे इतना सम्मोहित कर सकते हैं. यह विषय का सम्मोहन था या राजेशजी के बोलने के ढंग का. वह थोड़ी उल झ सी गई. फिलहाल उस का रिश्ता इतना करीबी का जरूर हो गया था कि शाम की चाय वे एकदूसरे के यहां पिएं, एकदूसरे के बीमार पढ़ने पर पूरी ईमानदारी से तीमारदारी करें.
उन दोनों की करीबी पर समाज अब चौकन्ना हो चला था. समाज की प्रतिक्रियाएं हवा में उड़तेउड़ते उन तक पहुंचने लगी थीं. अपनी ही बिल्ंिडग के किसी समारोह में लोगों की आंखों में अमृता पढ़ चुकी थी कि समाज इस रिश्ते को किस तरह से लेता है. अमृता के दबंग व्यक्तित्व को देखते हुए अभी आंखों की भाषा जबान पर तो नहीं आ पाई थी पर कामवालियों के माध्यम से सुनसुन कर उस को इस की गंभीरता का एहसास तो हो ही गया था.
एक दिन शाम की चाय पीते राजेशजी कुछ ज्यादा ही चुप थे. जब उन की चुप्पी अखरी, तो अमृता ने पूछ ही लिया, ‘‘कुछ खास बात है क्या?’’
‘‘है भी और नहीं भी. वे सुभाषजी हैं न. कल एक पार्टी में मिले थे. वे एकांत में ले जा कर मु झ से पूछने लगे कि मैं आप से शादी क्यों नहीं कर लेता. अब आप ही बताइए इस बेहूदे प्रश्न का मैं क्या जवाब देता.’’
‘‘कह देते कि, बस, आप के आदेश का इंतजार था,’’ यह कह कर अमृता जोरों से हंस पड़ी. बात हंसी में उड़ गई. पर हफ्ता भी नहीं बीता था, अपनी ही बिल्ंिडग के गृहप्रवेश की एक पार्टी में चुलबुली फैशनपरस्त गरिमा ने उस से पूछ ही लिया था, ‘‘मैडम, सुना है आप शादी करने जा रही हैं, मेरी बधाई स्वीकार कीजिए.’’
‘‘मैं तो आज पहली बार सुन रही हूं. इस पर कभी सोचा नहीं. पर कभी अगर सोचा तो आप से बधाई लेना नहीं भूलूंगी.’’
उचित जवाब दे देने के बाद भी अमृता अपनी खी झ से उबर नहीं पाई. आसपास खड़ी महिलाओं की आंखों में छिपी व्यंग्य की खुशी को नकारना जब उसे कठिन जान पड़ने लगा तो वह पेट की तकलीफ का बहाना बना मेजबान से छुट्टी मांग घर चली आई.
दूसरे दिन शाम की चाय पीते हुए राजेशजी बहुत खुश नजर आ रहे थे. अमृता से नहीं रहा गया, तो वे पूछ ही बैठी, ‘‘आज आप बहुत खुश हैं राजेशजी?’’
‘‘हां, आज मैं बहुत खुश हूं. मु झे एक ऐसी किताब हाथ लगी है कि मु झे लगने लगा है कि अगर मैं चाहूं तो अपना भविष्य अपने अनुकूल बना सकता हूं.’’
‘‘यह तो बहुत अच्छी बात है पर कैसे?’’
‘‘केवल अपनी बात को अपने अचेतन मन तक पहुंचाना है और पहुंचाने के लिए उसे बारबार दोहराना है और खासकर सोने से पहले जब चेतन मन की पकड़ थोड़ी ढीली पड़ जाती है तब जरूर दोहराना है.’’
‘‘किताब का नाम?’’
‘‘पावर औफ अनकौनशियस माइंड.’’
उस की उस दिन की शाम उसी किताब के बारे में सुनते हुए बीती थी. राजेशजी बहुत अच्छे वक्ता थे. उन के बोलने की शैली कुछकुछ कथावाचक जैसी हुआ करती थी जो श्रोता को अपनी गिरफ्त में कैद कर लेती थी. उस दिन उन्होंने सम झाया कि अपने मन को समरस, स्वस्थ, शांत और प्रसन्न रखने की कोशिश कीजिए. आप कोशिश कर के अपने अंदर शांति, प्रसन्नता, अच्छाई और समृद्धि का संकल्परूपी बीज बोना शुरू कीजिए तब देखिए कि चमत्कार क्या होता है, कैसे असंभव संभव हो जाता है, मन की खेती कैसे लहलहा उठती है.’’
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August 31, 2021 at 10:00AM
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