Friday 31 January 2020

आजकल की लड़कियां : भाग 3

खैर, जब प्रथम की शादी की बात नातेरिश्तेदारों में वायरल हुई तो हर रोज कहीं न कहीं से लड़कियों के फोटो और बायोडाटा आने लगे. हर शाम पहले रमा उन्हें देखतीपरखती, फिर रमा की चुनी हुई लिस्ट पर योगेश की सहमति की मुहर लगती और फिर फाइनल अप्रूवल के लिए सारा डाटा प्रथम को भेज दिया जाता.

महीनों की कवायद के बाद आखिर सर्वसम्मति से सलोनी के नाम पर अंतिम मुहर लग गई. 5 फुट, 4 इंच लंबी, रंग गोरा, कालेघने बाल, और आकर्षक व्यक्तित्व की स्वामिनी सलोनी यथा नाम यथा गुण, एक ही नजर में सब को पसंद आ गई. ऊपर से एमटैक की डिगरी सोने पर सुहागा. जिस ने सुना उसी ने प्रथम को उत्तम चयन के लिए बधाई दी.

रमा खुश थी, लेकिन एक डर अभी भी उसे भीतर खाए जा रहा था. डर यह कि कहीं सलोनी भी सोने की परत चढ़ा हुआ पीतल तो नहीं है. आखिर यह भी आज के जमाने की ही लड़की है न, क्या शादी को निबाह लेगी?

सगाई के 4 महीने बाद शादी होना तय हुआ. इन 4 महीनों में रमा ने चाहे कपड़े हों या गहने, शादी का जोड़ा हो या हनीमून डैस्टिनेशन, सबकुछ सलोनी की पसंद को ध्यान में रखते हुए ही फाइनल किया. रमा सभी के अनुभवों से सबक लेते हुए बहुत ही सेफ साइड चल रही थी.

धूमधाम से शादी हो गई. कुछ रमा को, तो कुछ सलोनी को हिदायतेंनसीहतें देतेदेते मेहमानों से भरा हुआ घर धीरेधीरे खाली हो गया. प्रथम और सलोनी अपने हनीमून से भी लौट आए. दोनों ही खुश और संतुष्ट लग रहे थे. रमा ने चैन की सांस ली. अब तक तो सबकुछ किसी सुंदर सपने सा चल रहा था. हकीकत से सामना होना अभी बाकी था.

शादी के बाद प्रथम और सलोनी का बेंगलुरु जाना तो तय ही था. रमा पैकिंग में उन की मदद कर रही थी. हालांकि वह चाहती थी कि अभी कुछ दिन और सलोनी को लाड़ कर ले लेकिन दूध का जला छाछ भी फूंकफूंक कर पीता है. आसपास के उदाहरण देखते हुए रमा कोई रिस्क नहीं लेना चाहती थी. वह नहीं चाहती थी कि उस की किसी भी बात से सलोनी का मूड खराब हो और उसे प्रथम से अपने शादी के फैसले पर पछतावा हो.

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‘‘लो, अब मैडम की नई जिद सुनो, कहती हैं कि मम्मीजी के साथ रहना है. अरे भई, जब मम्मी के साथ ही रहना था तो इस बंदे से शादी ही क्यों की थी?’’ प्रथम ने डाइनिंग टेबल पर सलोनी को छेड़ा, तो रमा आश्चर्य से सलोनी की तरफ देखने लगी. योगेश ने भी चौंक कर देखा.

‘पता नहीं वहां जा कर कौन सा तिरिया चरितर दिखाएगी,’ रमा आशंकित हो गई. उस ने बेंगलुरु जाने में बहुत आनाकानी की, लेकिन बहुमत कहो या बहूमत, उस की एक न चली और चारों सदस्य बेंगलुरु आ गए.

पढ़ाई के सिलसिले में कभी होस्टल, तो कभी पीजी में रही सलोनी को घर में रहने के तौरतरीके नहीं आते थे. पूरा घर होस्टल की तरह ही बिखरा रहता था. घर का बुरा हाल देख कर रमा को बहुत कोफ्त होती थी. बाकी घर तो रमा सहेज लेती थी, लेकिन सलोनी की चीजों को हाथ लगाने की उस की हिम्मत नहीं होती थी. इस बात से डरती वह बहू को कुछ बोल नहीं पाती थी कि कहीं उसे बुरा न लग जाए और वह ससुराल छोड़ कर मायके जाने की न सोचने लगे.

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साफसफाई की तो छोडि़ए, रसोई में भी सलोनी दक्ष नहीं थी. शौक कहो या मजबूरी, आएदिन उसे बाहर से पिज्जाबर्गर और्डर करने की आदत थी. सो, यहां भी रोज बाहर से खाना आने लगा.

‘उफ्फ, यह रोजरोज बाहर का खाना. जेब और पेट दोनों का भट्ठा बिठा देगा. लेकिन सलोनी को समझ आए तब न. मैं ने कुछ कह दिया तो खामखां बात का बतंगड़ बन जाएगा,’ यह सोच कर रमा चुप्पी साध लेती.

रमा सलोनी से मन ही मन भयभीत सी रहती थी. घर में सौहार्दपूर्ण वातावरण होते हुए भी एक अनजानी सी दूरी उस ने अपने दोनों के बीच बना रखी थी. सहमीसहमी सी रमा ने खुद को एक खोल में बंद कर के अपने चारों तरफ लक्ष्मणरेखा खींच ली.

रमा ने खुद को तो ऐडजस्ट कर लिया लेकिन पेट तो आखिर पेट ही था. अधिक सहन नहीं कर पाया और एक दिन योगेश की तबीयत खराब हो गई.

‘‘क्या रमा, तुम भी, बहू के आते ही फिल्मों वाली सास बन गईं. एकदम आलसी हो गई हो, आलसी. अरे भई, जरा रसोई में भी झांक लिया करो, यह रोजरोज का मैदामिर्च मेरा पेट अब बरदाश्त नहीं कर रहा. बाहर का खातेखाते मुझे होटल की सी फील आने लगी. अब कुछ घरवाली फीलिंग आने दो,’’ योगेश ने मजाकिया लहजे में कहा.

‘‘अगर सलोनी को बुरा लग गया तो, कहीं वह घर छोड़ कर चली गई तो? जानते हो न, आजकल की लड़कियां कुछ भी टौलरेट नहीं करतीं. न बाबा न, मैं कोई रिस्क नहीं लूंगी. तुम थोड़ा सा बरदाश्त कर लो. अपने घर चल कर सब तुम्हारे हिसाब से बना दूंगी. बरदाश्त न हो, तो कुछ दिन एसिडिटी या हाजमे की दवाएं ले लो,’’ योगेश को समझाती रमा कमरे से बाहर निकल गई. तभी वह प्रथम के कमरे से आती सलोनी की आवाज सुन कर ठिठक गई. सलोनी किसी से फोन पर बात कर रही थी.

‘‘समझने की कोशिश करो, इस तरह तो यहां मेरा दम घुट जाएगा. यह माहौल ज्यादा दिन रहा तो मैं बरदाश्त नहीं कर पाऊंगी.’’ सलोनी हालांकि बहुत धीरेधीरे बोल रही थी लेकिन रमा का तो रोमरोम कान बना हुआ था. सलोनी की बातें सुन कर उसे चक्कर सा आ गया. वह वहीं लौबी में कुरसी पकड़ कर बैठ गई. उन के परिवार की हंसी उड़ाते नातेरिश्तेदार, चटखारे लेते पड़ोसी, उदास, नर्वस सा प्रथम, मुंह छिपाते योगेश, और भी न जाने कितनी ही तसवीरें उस की आंखों के सामने घूमने लगीं.

नहींनहीं, वह इस तरह की स्थिति नहीं आने देगी. अपने परिवार की इज्जत और प्रथम की आने वाली जिंदगी के लिए सलोनी के पांव पकड़ लेगी, लेकिन उसे यह घर छोड़ कर नहीं जाने देगी. रमा ने निश्चय किया और किसी तरह उठ कर सलोनी के कमरे की तरफ बढ़ गई.

‘‘सलोनी बिटिया, मैं तो तुम्हें कुछ कहती भी नहीं, तुम पर किसी तरह की कोई पाबंदी भी हम ने नहीं लगाई. देखो, अगर फिर भी तुम्हें मेरी किसी बात से तकलीफ हुई है तो प्लीज, तुम प्रथम को कोई सजा मत देना. वह तुम से बहुत प्यार करता है. तुम जैसे चाहो वैसे रहो, लेकिन घर छोड़ कर जाने की बात मत सोचना. हम कल ही यहां से चले जाएंगे,’’ रमा सलोनी के आगे गिड़गिड़ा कर बोली.

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सलोनी हतप्रभ सी उसे देख रही थी. पहले तो उसे कुछ भी समझ में नहीं आया, फिर अचानक उस का ध्यान अपने हाथ में पकड़े मोबाइल की तरफ गया और उसे अपनी मां से होने वाली बातचीत याद हो आई. सारा माजरा समझ में आते ही सलोनी की हंसी छूट गई. वह खिलखिलाते हुए रमा के गले से झूल गई.

‘‘ओह मां, आप कितनी क्यूट हो, अब तक मुझ से इसलिए दूरी बनाए हुए थीं कि कहीं मुझे कुछ बुरा न लग जाए, और मैं नासमझ इसे आप का ऐटीट्यूड समझ रही थी. मां, यह सच है कि हम आजकल की लड़कियां अपने अधिकारों के लिए जागरूक हैं. हम ज्यादती बरदाश्त नहीं करतीं, तो किसी पर ज्यादती करती भी नहीं. परिवार में रहना हमें भी अच्छा लगता है, लेकिन अपने स्वाभिमान की कीमत पर नहीं. शायद आप ने भी आजकल की लड़कियों को ठीक से नहीं समझा. लेकिन इतना पढ़लिख कर आखिर में भी तो बौड़म ही रही न. मैं भी आप को कहां समझ पाई,’’ सलोनी ने प्यार से रमा के गाल खींच लिए.

‘‘लो, कर लो बात. भई, यह तो गजब ही हुआ. सास अपनी बहू से डर रही थी और बहू अपनी सास से. अरे रमा रानी, रिश्तों के समीकरण गणित की तरह नहीं होते कि 2 और 2 हमेशा 4 ही होंगे. यहां 2 और 2, 22 भी हो सकते हैं. जिस तरह से पांचों उंगलियां बराबर नहीं होतीं उसी तरह से यह भी जरूरी नहीं कि जो सब के साथ हुआ वही तुम्हारे साथ भी हो.  समझीं तुम,’’ यह कह कर योगेश ने ठहाका लगाया.

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‘‘जी पापा, आप एकदम सही कह रहे हैं. चलिए, आज हम सब आप की पसंद की सब्जियां ले कर आते हैं. यों तो यूट्यूब पर कुछ भी बनाना सीखा जा सकता है लेकिन जो रैसिपी मां के हाथ की हो उस का भला किसी से क्या मुकाबला. मां, मुझे भी खाना बनाना सीखना है, सिखाओगी न?’ सलोनी ने रमा के गले में बांहें डाल दीं.

‘‘क्यों नहीं, जरूर,’’ रमा मुसकरा दी.

इस मुसकराहट में डर की परछाईं बिलकुल भी नहीं थी.

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खैर, जब प्रथम की शादी की बात नातेरिश्तेदारों में वायरल हुई तो हर रोज कहीं न कहीं से लड़कियों के फोटो और बायोडाटा आने लगे. हर शाम पहले रमा उन्हें देखतीपरखती, फिर रमा की चुनी हुई लिस्ट पर योगेश की सहमति की मुहर लगती और फिर फाइनल अप्रूवल के लिए सारा डाटा प्रथम को भेज दिया जाता.

महीनों की कवायद के बाद आखिर सर्वसम्मति से सलोनी के नाम पर अंतिम मुहर लग गई. 5 फुट, 4 इंच लंबी, रंग गोरा, कालेघने बाल, और आकर्षक व्यक्तित्व की स्वामिनी सलोनी यथा नाम यथा गुण, एक ही नजर में सब को पसंद आ गई. ऊपर से एमटैक की डिगरी सोने पर सुहागा. जिस ने सुना उसी ने प्रथम को उत्तम चयन के लिए बधाई दी.

रमा खुश थी, लेकिन एक डर अभी भी उसे भीतर खाए जा रहा था. डर यह कि कहीं सलोनी भी सोने की परत चढ़ा हुआ पीतल तो नहीं है. आखिर यह भी आज के जमाने की ही लड़की है न, क्या शादी को निबाह लेगी?

सगाई के 4 महीने बाद शादी होना तय हुआ. इन 4 महीनों में रमा ने चाहे कपड़े हों या गहने, शादी का जोड़ा हो या हनीमून डैस्टिनेशन, सबकुछ सलोनी की पसंद को ध्यान में रखते हुए ही फाइनल किया. रमा सभी के अनुभवों से सबक लेते हुए बहुत ही सेफ साइड चल रही थी.

धूमधाम से शादी हो गई. कुछ रमा को, तो कुछ सलोनी को हिदायतेंनसीहतें देतेदेते मेहमानों से भरा हुआ घर धीरेधीरे खाली हो गया. प्रथम और सलोनी अपने हनीमून से भी लौट आए. दोनों ही खुश और संतुष्ट लग रहे थे. रमा ने चैन की सांस ली. अब तक तो सबकुछ किसी सुंदर सपने सा चल रहा था. हकीकत से सामना होना अभी बाकी था.

शादी के बाद प्रथम और सलोनी का बेंगलुरु जाना तो तय ही था. रमा पैकिंग में उन की मदद कर रही थी. हालांकि वह चाहती थी कि अभी कुछ दिन और सलोनी को लाड़ कर ले लेकिन दूध का जला छाछ भी फूंकफूंक कर पीता है. आसपास के उदाहरण देखते हुए रमा कोई रिस्क नहीं लेना चाहती थी. वह नहीं चाहती थी कि उस की किसी भी बात से सलोनी का मूड खराब हो और उसे प्रथम से अपने शादी के फैसले पर पछतावा हो.

ये भी पढ़ें- सीप में बंद मोती : भाग 1

‘‘लो, अब मैडम की नई जिद सुनो, कहती हैं कि मम्मीजी के साथ रहना है. अरे भई, जब मम्मी के साथ ही रहना था तो इस बंदे से शादी ही क्यों की थी?’’ प्रथम ने डाइनिंग टेबल पर सलोनी को छेड़ा, तो रमा आश्चर्य से सलोनी की तरफ देखने लगी. योगेश ने भी चौंक कर देखा.

‘पता नहीं वहां जा कर कौन सा तिरिया चरितर दिखाएगी,’ रमा आशंकित हो गई. उस ने बेंगलुरु जाने में बहुत आनाकानी की, लेकिन बहुमत कहो या बहूमत, उस की एक न चली और चारों सदस्य बेंगलुरु आ गए.

पढ़ाई के सिलसिले में कभी होस्टल, तो कभी पीजी में रही सलोनी को घर में रहने के तौरतरीके नहीं आते थे. पूरा घर होस्टल की तरह ही बिखरा रहता था. घर का बुरा हाल देख कर रमा को बहुत कोफ्त होती थी. बाकी घर तो रमा सहेज लेती थी, लेकिन सलोनी की चीजों को हाथ लगाने की उस की हिम्मत नहीं होती थी. इस बात से डरती वह बहू को कुछ बोल नहीं पाती थी कि कहीं उसे बुरा न लग जाए और वह ससुराल छोड़ कर मायके जाने की न सोचने लगे.

ये भी पढ़ें- एक नई पहल : भाग 1

साफसफाई की तो छोडि़ए, रसोई में भी सलोनी दक्ष नहीं थी. शौक कहो या मजबूरी, आएदिन उसे बाहर से पिज्जाबर्गर और्डर करने की आदत थी. सो, यहां भी रोज बाहर से खाना आने लगा.

‘उफ्फ, यह रोजरोज बाहर का खाना. जेब और पेट दोनों का भट्ठा बिठा देगा. लेकिन सलोनी को समझ आए तब न. मैं ने कुछ कह दिया तो खामखां बात का बतंगड़ बन जाएगा,’ यह सोच कर रमा चुप्पी साध लेती.

रमा सलोनी से मन ही मन भयभीत सी रहती थी. घर में सौहार्दपूर्ण वातावरण होते हुए भी एक अनजानी सी दूरी उस ने अपने दोनों के बीच बना रखी थी. सहमीसहमी सी रमा ने खुद को एक खोल में बंद कर के अपने चारों तरफ लक्ष्मणरेखा खींच ली.

रमा ने खुद को तो ऐडजस्ट कर लिया लेकिन पेट तो आखिर पेट ही था. अधिक सहन नहीं कर पाया और एक दिन योगेश की तबीयत खराब हो गई.

‘‘क्या रमा, तुम भी, बहू के आते ही फिल्मों वाली सास बन गईं. एकदम आलसी हो गई हो, आलसी. अरे भई, जरा रसोई में भी झांक लिया करो, यह रोजरोज का मैदामिर्च मेरा पेट अब बरदाश्त नहीं कर रहा. बाहर का खातेखाते मुझे होटल की सी फील आने लगी. अब कुछ घरवाली फीलिंग आने दो,’’ योगेश ने मजाकिया लहजे में कहा.

‘‘अगर सलोनी को बुरा लग गया तो, कहीं वह घर छोड़ कर चली गई तो? जानते हो न, आजकल की लड़कियां कुछ भी टौलरेट नहीं करतीं. न बाबा न, मैं कोई रिस्क नहीं लूंगी. तुम थोड़ा सा बरदाश्त कर लो. अपने घर चल कर सब तुम्हारे हिसाब से बना दूंगी. बरदाश्त न हो, तो कुछ दिन एसिडिटी या हाजमे की दवाएं ले लो,’’ योगेश को समझाती रमा कमरे से बाहर निकल गई. तभी वह प्रथम के कमरे से आती सलोनी की आवाज सुन कर ठिठक गई. सलोनी किसी से फोन पर बात कर रही थी.

‘‘समझने की कोशिश करो, इस तरह तो यहां मेरा दम घुट जाएगा. यह माहौल ज्यादा दिन रहा तो मैं बरदाश्त नहीं कर पाऊंगी.’’ सलोनी हालांकि बहुत धीरेधीरे बोल रही थी लेकिन रमा का तो रोमरोम कान बना हुआ था. सलोनी की बातें सुन कर उसे चक्कर सा आ गया. वह वहीं लौबी में कुरसी पकड़ कर बैठ गई. उन के परिवार की हंसी उड़ाते नातेरिश्तेदार, चटखारे लेते पड़ोसी, उदास, नर्वस सा प्रथम, मुंह छिपाते योगेश, और भी न जाने कितनी ही तसवीरें उस की आंखों के सामने घूमने लगीं.

नहींनहीं, वह इस तरह की स्थिति नहीं आने देगी. अपने परिवार की इज्जत और प्रथम की आने वाली जिंदगी के लिए सलोनी के पांव पकड़ लेगी, लेकिन उसे यह घर छोड़ कर नहीं जाने देगी. रमा ने निश्चय किया और किसी तरह उठ कर सलोनी के कमरे की तरफ बढ़ गई.

‘‘सलोनी बिटिया, मैं तो तुम्हें कुछ कहती भी नहीं, तुम पर किसी तरह की कोई पाबंदी भी हम ने नहीं लगाई. देखो, अगर फिर भी तुम्हें मेरी किसी बात से तकलीफ हुई है तो प्लीज, तुम प्रथम को कोई सजा मत देना. वह तुम से बहुत प्यार करता है. तुम जैसे चाहो वैसे रहो, लेकिन घर छोड़ कर जाने की बात मत सोचना. हम कल ही यहां से चले जाएंगे,’’ रमा सलोनी के आगे गिड़गिड़ा कर बोली.

ये भी पढ़ें- खूबसूरत लमहे : भाग 2

सलोनी हतप्रभ सी उसे देख रही थी. पहले तो उसे कुछ भी समझ में नहीं आया, फिर अचानक उस का ध्यान अपने हाथ में पकड़े मोबाइल की तरफ गया और उसे अपनी मां से होने वाली बातचीत याद हो आई. सारा माजरा समझ में आते ही सलोनी की हंसी छूट गई. वह खिलखिलाते हुए रमा के गले से झूल गई.

‘‘ओह मां, आप कितनी क्यूट हो, अब तक मुझ से इसलिए दूरी बनाए हुए थीं कि कहीं मुझे कुछ बुरा न लग जाए, और मैं नासमझ इसे आप का ऐटीट्यूड समझ रही थी. मां, यह सच है कि हम आजकल की लड़कियां अपने अधिकारों के लिए जागरूक हैं. हम ज्यादती बरदाश्त नहीं करतीं, तो किसी पर ज्यादती करती भी नहीं. परिवार में रहना हमें भी अच्छा लगता है, लेकिन अपने स्वाभिमान की कीमत पर नहीं. शायद आप ने भी आजकल की लड़कियों को ठीक से नहीं समझा. लेकिन इतना पढ़लिख कर आखिर में भी तो बौड़म ही रही न. मैं भी आप को कहां समझ पाई,’’ सलोनी ने प्यार से रमा के गाल खींच लिए.

‘‘लो, कर लो बात. भई, यह तो गजब ही हुआ. सास अपनी बहू से डर रही थी और बहू अपनी सास से. अरे रमा रानी, रिश्तों के समीकरण गणित की तरह नहीं होते कि 2 और 2 हमेशा 4 ही होंगे. यहां 2 और 2, 22 भी हो सकते हैं. जिस तरह से पांचों उंगलियां बराबर नहीं होतीं उसी तरह से यह भी जरूरी नहीं कि जो सब के साथ हुआ वही तुम्हारे साथ भी हो.  समझीं तुम,’’ यह कह कर योगेश ने ठहाका लगाया.

ये भी पढ़ें- मानिनी : भाग 1

‘‘जी पापा, आप एकदम सही कह रहे हैं. चलिए, आज हम सब आप की पसंद की सब्जियां ले कर आते हैं. यों तो यूट्यूब पर कुछ भी बनाना सीखा जा सकता है लेकिन जो रैसिपी मां के हाथ की हो उस का भला किसी से क्या मुकाबला. मां, मुझे भी खाना बनाना सीखना है, सिखाओगी न?’ सलोनी ने रमा के गले में बांहें डाल दीं.

‘‘क्यों नहीं, जरूर,’’ रमा मुसकरा दी.

इस मुसकराहट में डर की परछाईं बिलकुल भी नहीं थी.

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February 01, 2020 at 10:39AM

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