Friday 31 January 2020

आजकल की लड़कियां : भाग 2

‘‘सुनिए, हम प्रथम की शादी  अपनी पसंद की लड़की से करेंगे या फिर प्रथम की?’’ एक रात रमा ने योगेश से पूछा. ‘‘तुम भी न, बिना सिरपैर की बातें करती हो. अरे भई, आजकल बच्चों की शादी की जाती है, उन पर थोपी नहीं जाती. सीधी सी बात है, यदि प्रथम ने किसी को पसंद कर रखा है तो फिर वही हमारी भी पसंद होगी. तुम तो बस उस के मन की थाह ले लो,’’ योगेश ने अपना मत स्पष्ट किया. सुन कर रमा को यह राहत मिली कि कम से कम इस मुद्दे पर तो घर में कोई बवाल नहीं मचेगा.

‘‘प्रथम, तुम्हारी मौसी ने 2-3 लड़कियों के बायोडाटा भेजे हैं. तुम्हें व्हाट्सऐप कर दूं?’’ एक दिन रमा ने बेटे का दिल टटोलने की मंशा से कहा.

‘‘अरे मां, तुम मेरी पसंद तब से जानती हो जब मैं खुद भी कुछ नहीं जानता था, तुम से बेहतर चुनाव मेरा नहीं हो सकता. तुम्हें जो ठीक लगे, करो,’’ प्रथम ने स्पष्ट कह दिया. उस के इस जवाब से  यह तो साफ था कि वह अरेंज मैरिज चाहता है. रमा के दिल से एक बोझ उतरा. लेकिन, अब दूसरा बोझ सवार हो गया.

‘कहीं मेरी पसंद की लड़की प्रथम की पसंद न बन सकी तो? कहीं मुझ से लड़की को पहचानने में चूक हो गई तो? फोटो, बायोडाटा और एकदो मुलाकातों में आप किसी को जान ही कितना पाते हो? अगर कुछ अनचाहा हुआ तो प्रथम तो सारा दोष मुझ पर डाल कर जिंदगीभर मुझे कोसता रहेगा. तो फिर कैसे चुनी जाए सर्वगुणसंपन्न बहू, जो पतिप्रिया भी हो?’ रमा फिर से उलझ गई.

‘हर सवाल के जवाब गूगल बाबा के पास मिल जाते हैं. क्यों न मैं भी उन की मदद लूं.’ रमा ने सोचा और अगले दिन गूगल पर सर्च करने लगी.

‘अच्छी बहू की तलाश कैसे करें?’ रमा ने गूगल सर्च पर टाइप किया और एक क्लिक के साथ ही कुछ सजीधजी भारतीय पहनावे वाली खूबसूरत लड़कियों की तसवीरों के साथ कई सारी वैबसाइट्स के लिंक्स भी स्क्रीन पर आ गए जिन में लिखा था कि अच्छी बहू में क्याक्या गुण होने चाहिए. अच्छी बहू कैसे बना जाए, बहू को सांचे में कैसे ढाला जाए, सासबहू में कैसे तालमेल हो आदिआदि. गूगल ने तो दिमाग में ही घालमेल कर दिया. नैट पर अच्छी बहू खंगालतेखंगालते रमा का सिर चकराने लगा, लेकिन जो रिजल्ट वह चाह रही थी वह उसे फिर भी न मिला. अब तो रमा और भी ज्यादा दुविधा में फंस गई.

ये भी पढ़ें- दूरी : भाग 2

क्यों न किसी अनुभवी से सलाह ली जाए, यह सोच कर उस ने अपनी दूर की ननद माया को फोन लगाया.

‘‘कहो भाभी, कैसी हो? प्रथम के लिए कोई लड़कीवड़की देखी क्या?’’ माया ने फोन उठाते ही पूछा

‘‘अरे, कहां दीदी. लड़कियां तो बहुत हैं लेकिन अपने घरपरिवार में सैट होने वाली लड़की को आखिर कैसे पहचाना जाए. कहीं हीरे के फेर में पत्थर उठा लिया तो?’’ रमा ने अपनी उलझन उन के सामने रख दी.

‘‘अरे भाभी, पराई जाई लड़कियों को तो हमें ही अपने मनमुताबिक ढालना पड़ता है, जरा सा कस कर रखो, फिर देखो, कैसे सिर झुकाए आगेपीछे घूमती हैं,’’ माया ने अपने अनुभव से दावा किया.

लेकिन ज्यादा कसने से वह कहीं बिदक गई तो? माया की बातें सुन कर रमा सोच में पड़ गई. फिर उस ने अपनी मौसेरी बहन विमला को फोन लगाया.

‘‘अरे, विमला दीदी, कैसी हो आप?’’ रमा ने प्यार से पूछा.

‘‘बस, ठीक हूं. तुम कहो. प्रथम के बारे में क्या प्रोग्रैस है, कोई रिश्ता पसंद आया?’’ विमला को जिज्ञासा हो उठी थी.

‘‘देख रहे हैं, आप की नजर में कोई अच्छी लड़की हो, तो बताओ,’’ रमा ने उन्हें टटोला.

‘‘अरे रमा, लड़कियां तो मिल ही जाएंगी, लेकिन एक बात गांठ बांध के रख लेना, बहू पर ज्यादा पाबंदी मत लगाना. खूंटे से बंधे हुए तो जानवर भी नहीं रहते, फिर वह तो जीतीजागती एक इंसान होगी. बस, अपनी बेटी की तरह ही रखना,’’ विमला ने उसे सलाह दी.

ये भी पढ़ें- दूरी : भाग 2

विमला की बात सुनते ही रमा के दिमाग में मिश्रा जी की बहू का किस्सा घूम गया. उसे समझ में नहीं आ रहा था कि बहू को छूट देना अधिक उचित है या उसे थोड़ी सी पाबंदी लगा कर अपने हिसाब से ढालना चाहिए. सबकुछ जलेबी की तरह गोलगोल उलझा हुआ था. शाम होतेहोते उस का दिमाग चक्करघिन्नी हो गया.

एक तो पक्की उम्र में ब्याह, ऊपर से पढ़ीलिखी होने के साथसाथ आत्मनिर्भर भी. न झुकने को तैयार, न सहने को. आजकल की लड़कियों के दिमाग भी न जाने कौन से आसमान में रहते हैं. अपने आगे किसी को कुछ समझतीं ही नहीं. अपनी शर्तों पर जीना चाहती हैं. रमा को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था कि प्रथम के लिए किस तरह की लड़की तलाश करे. कामकाजी या घरेलू? व्यावसायिक डिगरी वाली या सिर्फ उच्चशिक्षित? यह तो बिलकुल भूसे के ढेर में सूई खोजने जैसा कठिन काम हो गया था. काम नहीं, इसे मिशन कहा जाए, तो अधिक उपयुक्त होगा.

अगले भाग में पढ़ें- क्या शादी को निबाह लेगी?

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‘‘सुनिए, हम प्रथम की शादी  अपनी पसंद की लड़की से करेंगे या फिर प्रथम की?’’ एक रात रमा ने योगेश से पूछा. ‘‘तुम भी न, बिना सिरपैर की बातें करती हो. अरे भई, आजकल बच्चों की शादी की जाती है, उन पर थोपी नहीं जाती. सीधी सी बात है, यदि प्रथम ने किसी को पसंद कर रखा है तो फिर वही हमारी भी पसंद होगी. तुम तो बस उस के मन की थाह ले लो,’’ योगेश ने अपना मत स्पष्ट किया. सुन कर रमा को यह राहत मिली कि कम से कम इस मुद्दे पर तो घर में कोई बवाल नहीं मचेगा.

‘‘प्रथम, तुम्हारी मौसी ने 2-3 लड़कियों के बायोडाटा भेजे हैं. तुम्हें व्हाट्सऐप कर दूं?’’ एक दिन रमा ने बेटे का दिल टटोलने की मंशा से कहा.

‘‘अरे मां, तुम मेरी पसंद तब से जानती हो जब मैं खुद भी कुछ नहीं जानता था, तुम से बेहतर चुनाव मेरा नहीं हो सकता. तुम्हें जो ठीक लगे, करो,’’ प्रथम ने स्पष्ट कह दिया. उस के इस जवाब से  यह तो साफ था कि वह अरेंज मैरिज चाहता है. रमा के दिल से एक बोझ उतरा. लेकिन, अब दूसरा बोझ सवार हो गया.

‘कहीं मेरी पसंद की लड़की प्रथम की पसंद न बन सकी तो? कहीं मुझ से लड़की को पहचानने में चूक हो गई तो? फोटो, बायोडाटा और एकदो मुलाकातों में आप किसी को जान ही कितना पाते हो? अगर कुछ अनचाहा हुआ तो प्रथम तो सारा दोष मुझ पर डाल कर जिंदगीभर मुझे कोसता रहेगा. तो फिर कैसे चुनी जाए सर्वगुणसंपन्न बहू, जो पतिप्रिया भी हो?’ रमा फिर से उलझ गई.

‘हर सवाल के जवाब गूगल बाबा के पास मिल जाते हैं. क्यों न मैं भी उन की मदद लूं.’ रमा ने सोचा और अगले दिन गूगल पर सर्च करने लगी.

‘अच्छी बहू की तलाश कैसे करें?’ रमा ने गूगल सर्च पर टाइप किया और एक क्लिक के साथ ही कुछ सजीधजी भारतीय पहनावे वाली खूबसूरत लड़कियों की तसवीरों के साथ कई सारी वैबसाइट्स के लिंक्स भी स्क्रीन पर आ गए जिन में लिखा था कि अच्छी बहू में क्याक्या गुण होने चाहिए. अच्छी बहू कैसे बना जाए, बहू को सांचे में कैसे ढाला जाए, सासबहू में कैसे तालमेल हो आदिआदि. गूगल ने तो दिमाग में ही घालमेल कर दिया. नैट पर अच्छी बहू खंगालतेखंगालते रमा का सिर चकराने लगा, लेकिन जो रिजल्ट वह चाह रही थी वह उसे फिर भी न मिला. अब तो रमा और भी ज्यादा दुविधा में फंस गई.

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क्यों न किसी अनुभवी से सलाह ली जाए, यह सोच कर उस ने अपनी दूर की ननद माया को फोन लगाया.

‘‘कहो भाभी, कैसी हो? प्रथम के लिए कोई लड़कीवड़की देखी क्या?’’ माया ने फोन उठाते ही पूछा

‘‘अरे, कहां दीदी. लड़कियां तो बहुत हैं लेकिन अपने घरपरिवार में सैट होने वाली लड़की को आखिर कैसे पहचाना जाए. कहीं हीरे के फेर में पत्थर उठा लिया तो?’’ रमा ने अपनी उलझन उन के सामने रख दी.

‘‘अरे भाभी, पराई जाई लड़कियों को तो हमें ही अपने मनमुताबिक ढालना पड़ता है, जरा सा कस कर रखो, फिर देखो, कैसे सिर झुकाए आगेपीछे घूमती हैं,’’ माया ने अपने अनुभव से दावा किया.

लेकिन ज्यादा कसने से वह कहीं बिदक गई तो? माया की बातें सुन कर रमा सोच में पड़ गई. फिर उस ने अपनी मौसेरी बहन विमला को फोन लगाया.

‘‘अरे, विमला दीदी, कैसी हो आप?’’ रमा ने प्यार से पूछा.

‘‘बस, ठीक हूं. तुम कहो. प्रथम के बारे में क्या प्रोग्रैस है, कोई रिश्ता पसंद आया?’’ विमला को जिज्ञासा हो उठी थी.

‘‘देख रहे हैं, आप की नजर में कोई अच्छी लड़की हो, तो बताओ,’’ रमा ने उन्हें टटोला.

‘‘अरे रमा, लड़कियां तो मिल ही जाएंगी, लेकिन एक बात गांठ बांध के रख लेना, बहू पर ज्यादा पाबंदी मत लगाना. खूंटे से बंधे हुए तो जानवर भी नहीं रहते, फिर वह तो जीतीजागती एक इंसान होगी. बस, अपनी बेटी की तरह ही रखना,’’ विमला ने उसे सलाह दी.

ये भी पढ़ें- दूरी : भाग 2

विमला की बात सुनते ही रमा के दिमाग में मिश्रा जी की बहू का किस्सा घूम गया. उसे समझ में नहीं आ रहा था कि बहू को छूट देना अधिक उचित है या उसे थोड़ी सी पाबंदी लगा कर अपने हिसाब से ढालना चाहिए. सबकुछ जलेबी की तरह गोलगोल उलझा हुआ था. शाम होतेहोते उस का दिमाग चक्करघिन्नी हो गया.

एक तो पक्की उम्र में ब्याह, ऊपर से पढ़ीलिखी होने के साथसाथ आत्मनिर्भर भी. न झुकने को तैयार, न सहने को. आजकल की लड़कियों के दिमाग भी न जाने कौन से आसमान में रहते हैं. अपने आगे किसी को कुछ समझतीं ही नहीं. अपनी शर्तों पर जीना चाहती हैं. रमा को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था कि प्रथम के लिए किस तरह की लड़की तलाश करे. कामकाजी या घरेलू? व्यावसायिक डिगरी वाली या सिर्फ उच्चशिक्षित? यह तो बिलकुल भूसे के ढेर में सूई खोजने जैसा कठिन काम हो गया था. काम नहीं, इसे मिशन कहा जाए, तो अधिक उपयुक्त होगा.

अगले भाग में पढ़ें- क्या शादी को निबाह लेगी?

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February 01, 2020 at 10:39AM

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