Tuesday 23 November 2021

अच्छे लोग : भाग 1

रिचा ने मम्मीपापा को सहारा दे कर कार से उतारा. फिर उन के आगेआगे मकान की तरफ बढ़ी. मकान सन्नाटे में डूबा था. उस के आगे धूल और गंदगी का साम्राज्य था, जैसे महीनों से वहां सफाई नहीं की गई थी. सच भी था, यह मकान लगभग डेढ़ महीने से बंद पड़ा था.

रिचा ने पर्स से चाबी निका लकर ताला खोला. मकान के अंदर का हाल भी बहुत बुरा था. बंद रहने के बावजूद सारी चीजें धूल से ढकी पड़ी थीं. नमी के कारण एक अजीब भी बदबू हवा में विराजमान थी.

मम्मीपापा को सोफे पर बिठा कर रिचा कुछ सोचने लगी. उस के मम्मीपापा तो जैसे गूंगे और बहरे हो गए थे. वे बिलकुल संज्ञाशून्य थे. आंखें खोईखोई थीं और वे सोफे पर गुड्डेगुडिय़ा की तरह अविचल बैठे हुए थे.रिचा ने जल्दीजल्दी मम्मीपापा के कमरे की थोड़ीबहुत सफाई कर दी. फिर उन्हें उन के कमरे में बैठा कर बाई को फोन कर के उसे जल्दी घर आने के लिए कहा. मम्मीपापा तब तक चुपचाप बैठे रहे.

‘‘पापा, आप अपने को संभालो, इतना सोचने से कोई फायदा नहीं. मम्मी आप लेट जाओ. मैं बाहर से दूधब्रैड ले कर आती हूं. तब तक बाई आ जाएगी. फिर आगे क्या करना, सोचा जाएगा.’’रिचा के बाहर जाने के बाद भी उस के मम्मीपापा वैसे ही बैठे रहे, परंतु अंदर से वे दोनों ही बहुत अशांत थे. उन के हृदय में एक तूफान मचल रहा था. दिमाग में हाहाकार मचा हुआ था. वे समझ नहीं पा रहे थे, उन्हें किस पाप की सजा मिली थी. जीवन में उन्होंने ऐसा कोई काम नहीं किया था जो उन्हें हवालात की सीखचों के पीछे पहुंचा सकता. फिर भी उन्हें सजा मिली थी, एक महीने तक वे पत्नी और बेटे के साथ जेल के अंदर रहे थे. आज जमानत पर छूट कर आए थे. बेटा अभी भी बंद था.

उन के दिमाग में एकजैसे विचार घुमड़ रहे थे-रमाकांत और शारदा का दांपत्य जीवन बहुत सुखमय था. दोनों ही सरकारी सेवा में थे. संतानें 2 ही थीं. बड़ी बेटी रिचा की ग्रेजुएशन के बाद शादी कर दी थी. दामाद अभिनव एक अच्छी कंपनी में एक्जीक्यूटिव था. बेटी ससुराल में सुखी थी.

उन का बेटा प्रियांशु एमटैक करने के बाद नोएडा की एक कंपनी में अच्छी सैलरी पर नौकरी करने लगा था. कहीं कोई दुख या अभाव उन के जीवन में न था. बेटे की नौकरी लगते ही उस के रिश्ते की बातें चलने लगी थीं. रमाकांत और शारदा अच्छी लडक़ी की तलाश में थे, परंतु शादी के पहले अच्छीबुरी लडक़ी का पता कहां चलता है.

प्रियांशु की शादी एक रिश्तेदार की बेटी अखिला से हो गई. परंतु बेटे की शादी के बाद से ही रमाकांत के सुखमय परिवार में जैसे राहुकेतु की कुदृष्टि पड़ गई. जिस लडक़ी को अच्छी बहू समझ कर वे घर में लाए थे, उस ने ससुराल की चौखट में कदम रखते ही अपना रूप दिखाना आरंभ कर दिया.

रमाकांत का परिवार बहुत शांतप्रिय परिवार था. घर का कोई भी सदस्य ऊंची आवाज में बात नहीं करता था, लड़ाईझगड़ा तो बहुत दूर की बात थी. परंतु बहू ने घर में आते ही घर के शांत माहौल को आग लगा दी. घर के अन्य सदस्य उस आग को बुझाने का प्रयत्न करते, परंतु अखिला हर घड़ी उस में ज्वलनशील पदार्थ डालती रहती थी.

अखिला को पता नहीं क्या परेशानी थी, कोई समझ नहीं पा रहा था. घर के किसी काम में वह हाथ नहीं बंटाती थी. सारा दिन कमरे में पड़ी रहती थी. प्रियांशु के दफ्तर जाने के बाद भी वह अपने कमरे से कम ही निकलती थी, सास से नाकभौं सिकोड़ कर बात करती. शारदा बहुत समझदार और सहनशील महिला थीं. वे सोचतीं, बहू नए घर में आई है. नए लोग और नए माहौल में शायद समन्वय नहीं बिठा पा रही होगी. धीरेधीरे सब ठीक हो जाएगा.

परंतु सबकुछ ठीक नहीं हुआ. अखिला ने साफसाफ कह दिया, वह घर के किसी काम में हाथ नहीं बंटाएगी. वह घर की बहू थी, नौकरानी नहीं. सब ने एकदूसरे का मुंह देखा और बिना कुछ बोले जैसे सबकुछ समझ गए. अखिला आलसी और कामचोर थी, परंतु अपने पेट के लिए तो कीड़ेमकोड़े और जानवर भी मेहनत करते हैं. अखिला को कब तक कोई बना कर खिला सकता था. इस के बाद भी सभी आशान्वित थे कि अखिला एक दिन दुनियादारी का निर्वाह करेगी.

रमाकांत आदतन सवाल कम करते थे, परंतु शारदा ने प्रियांशु से पूछा, ‘‘बहू ऐसा क्यों कर रही है?’’‘‘पता नहीं,’’ प्रियांशु ने मुंह लटका कर कहा.‘‘बेटा, तुम उस के पति हो. उस के दिल को टटोल कर देखो. शादी में उस की भी मरजी थी. फिर क्यों घर में अशांति फैला रही है?’’‘‘ठीक है, पता करूंगा,’’ कह कर उस ने बात को टाल दिया.

परंतु बात टली नहीं, बल्कि और बिगड़ती गई. अब रात में प्रियांशु के कमरे से चीखनेचिल्लाने की आवाजें आने लगी थीं. इन आवाजों में अखिला की आवाज ही प्रमुख होती. प्रियांशु का स्वभाव ऐसा नहीं था कि वह किसी से लड़ाई कर सकता. न उस के संस्कारों ने उसे मारपीट करना सिखाया था. फिर अखिला के चीखनेचिल्लाने का कारण क्या था?

रमाकांत और शारदा की समझ में कुछ न आता, परंतु उन के मन में भय पसरने लगा था. क्या प्रियांशु की अखिला के साथ शादी कर उन्होंने कोई गलती की थी. परिवार में रोजरोज की कलह कोई अच्छी बात नहीं थी. सभी अवसादग्रस्त रहने लगे थे.

प्रियांशु मांबाप से कोई बात नहीं बताता था. पता नहीं क्यों? आखिरकार, रमाकांत और शारदा ने तय किया कि वही बेटे से बात करेंगे. अलगे रविवार को सभी लोग नाश्ता कर रहे थे. अखिला उन के साथ न नाश्ता करती थी, न खाना खाती थी. प्रियांशु उस का नाश्ताखाना उस के कमरे में दे आता था.

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रिचा ने मम्मीपापा को सहारा दे कर कार से उतारा. फिर उन के आगेआगे मकान की तरफ बढ़ी. मकान सन्नाटे में डूबा था. उस के आगे धूल और गंदगी का साम्राज्य था, जैसे महीनों से वहां सफाई नहीं की गई थी. सच भी था, यह मकान लगभग डेढ़ महीने से बंद पड़ा था.

रिचा ने पर्स से चाबी निका लकर ताला खोला. मकान के अंदर का हाल भी बहुत बुरा था. बंद रहने के बावजूद सारी चीजें धूल से ढकी पड़ी थीं. नमी के कारण एक अजीब भी बदबू हवा में विराजमान थी.

मम्मीपापा को सोफे पर बिठा कर रिचा कुछ सोचने लगी. उस के मम्मीपापा तो जैसे गूंगे और बहरे हो गए थे. वे बिलकुल संज्ञाशून्य थे. आंखें खोईखोई थीं और वे सोफे पर गुड्डेगुडिय़ा की तरह अविचल बैठे हुए थे.रिचा ने जल्दीजल्दी मम्मीपापा के कमरे की थोड़ीबहुत सफाई कर दी. फिर उन्हें उन के कमरे में बैठा कर बाई को फोन कर के उसे जल्दी घर आने के लिए कहा. मम्मीपापा तब तक चुपचाप बैठे रहे.

‘‘पापा, आप अपने को संभालो, इतना सोचने से कोई फायदा नहीं. मम्मी आप लेट जाओ. मैं बाहर से दूधब्रैड ले कर आती हूं. तब तक बाई आ जाएगी. फिर आगे क्या करना, सोचा जाएगा.’’रिचा के बाहर जाने के बाद भी उस के मम्मीपापा वैसे ही बैठे रहे, परंतु अंदर से वे दोनों ही बहुत अशांत थे. उन के हृदय में एक तूफान मचल रहा था. दिमाग में हाहाकार मचा हुआ था. वे समझ नहीं पा रहे थे, उन्हें किस पाप की सजा मिली थी. जीवन में उन्होंने ऐसा कोई काम नहीं किया था जो उन्हें हवालात की सीखचों के पीछे पहुंचा सकता. फिर भी उन्हें सजा मिली थी, एक महीने तक वे पत्नी और बेटे के साथ जेल के अंदर रहे थे. आज जमानत पर छूट कर आए थे. बेटा अभी भी बंद था.

उन के दिमाग में एकजैसे विचार घुमड़ रहे थे-रमाकांत और शारदा का दांपत्य जीवन बहुत सुखमय था. दोनों ही सरकारी सेवा में थे. संतानें 2 ही थीं. बड़ी बेटी रिचा की ग्रेजुएशन के बाद शादी कर दी थी. दामाद अभिनव एक अच्छी कंपनी में एक्जीक्यूटिव था. बेटी ससुराल में सुखी थी.

उन का बेटा प्रियांशु एमटैक करने के बाद नोएडा की एक कंपनी में अच्छी सैलरी पर नौकरी करने लगा था. कहीं कोई दुख या अभाव उन के जीवन में न था. बेटे की नौकरी लगते ही उस के रिश्ते की बातें चलने लगी थीं. रमाकांत और शारदा अच्छी लडक़ी की तलाश में थे, परंतु शादी के पहले अच्छीबुरी लडक़ी का पता कहां चलता है.

प्रियांशु की शादी एक रिश्तेदार की बेटी अखिला से हो गई. परंतु बेटे की शादी के बाद से ही रमाकांत के सुखमय परिवार में जैसे राहुकेतु की कुदृष्टि पड़ गई. जिस लडक़ी को अच्छी बहू समझ कर वे घर में लाए थे, उस ने ससुराल की चौखट में कदम रखते ही अपना रूप दिखाना आरंभ कर दिया.

रमाकांत का परिवार बहुत शांतप्रिय परिवार था. घर का कोई भी सदस्य ऊंची आवाज में बात नहीं करता था, लड़ाईझगड़ा तो बहुत दूर की बात थी. परंतु बहू ने घर में आते ही घर के शांत माहौल को आग लगा दी. घर के अन्य सदस्य उस आग को बुझाने का प्रयत्न करते, परंतु अखिला हर घड़ी उस में ज्वलनशील पदार्थ डालती रहती थी.

अखिला को पता नहीं क्या परेशानी थी, कोई समझ नहीं पा रहा था. घर के किसी काम में वह हाथ नहीं बंटाती थी. सारा दिन कमरे में पड़ी रहती थी. प्रियांशु के दफ्तर जाने के बाद भी वह अपने कमरे से कम ही निकलती थी, सास से नाकभौं सिकोड़ कर बात करती. शारदा बहुत समझदार और सहनशील महिला थीं. वे सोचतीं, बहू नए घर में आई है. नए लोग और नए माहौल में शायद समन्वय नहीं बिठा पा रही होगी. धीरेधीरे सब ठीक हो जाएगा.

परंतु सबकुछ ठीक नहीं हुआ. अखिला ने साफसाफ कह दिया, वह घर के किसी काम में हाथ नहीं बंटाएगी. वह घर की बहू थी, नौकरानी नहीं. सब ने एकदूसरे का मुंह देखा और बिना कुछ बोले जैसे सबकुछ समझ गए. अखिला आलसी और कामचोर थी, परंतु अपने पेट के लिए तो कीड़ेमकोड़े और जानवर भी मेहनत करते हैं. अखिला को कब तक कोई बना कर खिला सकता था. इस के बाद भी सभी आशान्वित थे कि अखिला एक दिन दुनियादारी का निर्वाह करेगी.

रमाकांत आदतन सवाल कम करते थे, परंतु शारदा ने प्रियांशु से पूछा, ‘‘बहू ऐसा क्यों कर रही है?’’‘‘पता नहीं,’’ प्रियांशु ने मुंह लटका कर कहा.‘‘बेटा, तुम उस के पति हो. उस के दिल को टटोल कर देखो. शादी में उस की भी मरजी थी. फिर क्यों घर में अशांति फैला रही है?’’‘‘ठीक है, पता करूंगा,’’ कह कर उस ने बात को टाल दिया.

परंतु बात टली नहीं, बल्कि और बिगड़ती गई. अब रात में प्रियांशु के कमरे से चीखनेचिल्लाने की आवाजें आने लगी थीं. इन आवाजों में अखिला की आवाज ही प्रमुख होती. प्रियांशु का स्वभाव ऐसा नहीं था कि वह किसी से लड़ाई कर सकता. न उस के संस्कारों ने उसे मारपीट करना सिखाया था. फिर अखिला के चीखनेचिल्लाने का कारण क्या था?

रमाकांत और शारदा की समझ में कुछ न आता, परंतु उन के मन में भय पसरने लगा था. क्या प्रियांशु की अखिला के साथ शादी कर उन्होंने कोई गलती की थी. परिवार में रोजरोज की कलह कोई अच्छी बात नहीं थी. सभी अवसादग्रस्त रहने लगे थे.

प्रियांशु मांबाप से कोई बात नहीं बताता था. पता नहीं क्यों? आखिरकार, रमाकांत और शारदा ने तय किया कि वही बेटे से बात करेंगे. अलगे रविवार को सभी लोग नाश्ता कर रहे थे. अखिला उन के साथ न नाश्ता करती थी, न खाना खाती थी. प्रियांशु उस का नाश्ताखाना उस के कमरे में दे आता था.

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November 24, 2021 at 10:00AM

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