Sunday 29 November 2020

साठ पार का प्यार -भाग 2: सुहानी ने कैसा पैतरा अपनाया

कभी सुहानी के ही पीछे पड़ जाते, ‘‘तुम कामवाली को गरम पानी क्यों देती हो काम करने के लिए? गीजर चला कर बरतन धोती है, गरम पानी से पोंछा लगाती है. उस से बिजली का बिल बढ़ता है. कामवाली को सर्दी की वजह से आने में देर हो जाती तो समीर की भुनभुनाहट शुरू हो जाती. रोज देर से आने लगी है, तुम इसे कुछ कहती क्यों नहीं, लगता है इस ने सुबह कहीं काम पकड़ लिया है?’’

पोंछा लगा कर कामवाली कमरे का पंखा चला देती तो वे हर कमरे का पंखा बंद कर के बड़बड़ाते रहते, ‘मैं तो नौकर हूं न, पंखे बंद करना मेरा काम है. सर्दी हो या गरमी, इसे पंखे जरूर चलाने हैं.’

माली से जब वे अपने हिसाब से काम कराने लगते तो उसे कुछ समझ नहीं आता और वह भाग खड़ा होता. जब सुहानी कई बार फोन कर के मिन्नतें करती तब जा कर वह आता. कामवाली डांट खा कर जबतब छुट्टी कर लेती. प्रैसवाला कईकई दिनों के लिए गायब हो जाता. सुहानी को काम करने वालों को रोकना मुश्किल हो रहा था. पर समीर थे कि अपने निठल्लेपन से बाज नहीं आ रहे थे.

काम वाले जबतब सुहानी से साहब की शिकायत करते रहते. सुहानी समीर को कई बार समझाती, ‘इन के पीछे क्यों पड़े रहते हो समीर. तुम अपने काम से काम रखा करो. इन सब को जैसे मैं इतने सालों से हैंडिल कर रही थी, अब भी कर लूंगी. तुम्हारे ऐसे रवैए से ये सब किसी दिन भाग खड़े होंगे.’

पर समीर को तो लगता कि सब सुहानी को बेवकूफ बनाते हैं. उन के कानों पर जूं न रेंगती. उन के पास तो वक्त ही वक्त था इन सब बातों पर ध्यान देने के लिए. सुहानी कई कामों में लगी रहती. कई सामाजिक कामों से भी उस ने खुद को जोड़ रखा था. वह एक लेडीज क्लब की मैंबर भी थी. उसे समीर की इन बेकार की बातों से उलझन होती. वह चाहती, समीर भी अपनी नियमित दिनचर्या बनाएं, ताकि उन की सेहत भी ठीक रहे और वे किसी सामाजिक संस्था से भी जुड़ें जिस से व्यस्त रहें और से उन की मानसिक सेहत भी ठीक रहे.

सोचतेसोचते सुहानी पार्क में पहुंच गई. रोज वह पास की ही सड़क पर वाक कर लेती थी, पर उस दिन वह घर से थोड़ी दूर पार्क में चली गई थी. वहां हर तरह, हर उम्र के स्त्रीपुरुष थे. कोई दौड़ रहा था, कोई चल रहा था, कोई कसरत कर रहा था.

सुहानी थोड़ी देर बैंच पर बैठ गई.

बस, उसी दिन से सुहानी के दिमाग में एक तरकीब आई समीर को बदलने की. बोलने से तो समीर कभी नहीं मानेंगे, उसे पता था. देखते हैं आगेआगे होता है क्या. सुहानी होंठों ही होंठों में मुसकराई और फिर उठ कर चलने लगी. इस तरह से पूरा घंटा पार्क में बिता कर वह घर वापस आ गई.

‘‘आज तो बहुत देर कर दी, रोज तो आधे घंटे में वापस आ जाती थी,’’ समीर उस के चेहरे को देख कर घूरते हुए बोले.

‘‘आज से पार्क जाना शुरू कर दिया है,’’ सुहानी एक मस्त अंगड़ाई सी ले कर कुरसी पर बैठ कर जूते के फीते खोलती हुई बोली, ‘‘मजा आ गया आज तो, वहां तो बहुत लोग आते हैं हर उम्र के.’’ वह मजे से एक आंख दबा कर आगे बोली, ‘‘फोर्टीज से ले कर सिक्सटीज तक के. इस से ऊपर के भी आते हैं. जल्दी ही नए दोस्त बन जाएंगे, फिर जौगिंग का अपना ही मजा आएगा.’’

वह जूते उठा कर कमरे में चली गई. ‘क्या कह गई थी सुहानी’ समीर उस की कही बात पर मन ही मन अटकलें लगाने लगे. सुहानी यों भी हंसमुख थी. सेहत ठीक थी. बिजी रहने से उस की मानसिक सेहत भी अच्छी रहती थी. पर उस दिन से तो वह और भी खुश व मस्त रहने लगी थी. हर समय गुनगुनाती, हंसतीखिलखिलाती सुहानी को देख कर समीर का ध्यान दूसरी बातों से हट कर सुहानी पर ही केंद्रित हुआ जा रहा था.

वे समझ नहीं पा रहे थे कि सुहानी में इतना बदलाव कैसे आया. सुहानी को दोपहर में खाना खाने के बाद सोने की आदत थी. पर एक दिन सोने के बजाय वह साड़ी प्रैस करने लगी.

‘‘सुहानी, तुम कहीं जा रही हो?’’

‘‘हां,’’ सुहानी साड़ी उठा कर कमरे में तैयार होने चली गई. तैयार हो कर वह जब बाहर निकली तो समीर उसे देख कर चौंक गए.

सुहानी ने यों तो अपनी उम्र को बांध ही रखा था. पर आज तो आलम कुछ अलग ही था. आज तो सुहानी को देख कर उन का दिल भी कुछ खास अंदाज में धड़क गया. स्टाइलिश साड़ी और स्टाइलिश ब्लाउज.

‘‘यह साड़ी कब खरीदी,’’ समीर साड़ी को घूरते हुए बोले, ‘‘मेरे साथ तो कभी नहीं ली?’’

‘‘खरीदी कहां डियर, तुम मुझे इतना चटख रंग कहां लेने देते. वह तो जब पिछली बार पुणे गई थी तो भाभी ने जबरदस्ती दिला दी थी.’’

‘‘तो तुम ने दिखाई क्यों नहीं अभी तक?’’

‘‘मैं ने सोचा कहीं तुम्हें पसंद नहीं आई तो तुम मुझे इस का ब्लाउज भी नहीं सिलवाने दोगे. आज मेरी एक सहेली के घर पर सारी सहेलियां इकट्ठी हो रही हैं.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘बस, ऐसे ही. हंगामा पार्टी है.’’

‘‘हंगामा पार्टी? क्या मतलब? बर्थडे पार्टी, रिसैप्शन पार्टी, मैरिज पार्टी, रिटायरमैंट पार्टी तो सुनी हैं. आजकल के युवाओं की तथाकथित ब्रेकअप पार्टी के बारे में भी पढ़ा है, लेकिन यह हंगामा पार्टी क्या होती है?’’

‘‘मतलब,’’ सुहानी किसी नवयौवना की तरह पलकें झपकाती हुई बोली, ‘‘लव इन सिक्सटीज डियर. तेज म्यूजिक पर डांस करेंगे, मस्ती करेंगे, गाना गाएंगे और…’’

‘‘और?’’

‘‘और उस के बाद केक काटेंगे खाएंगेपिएंगे, बस,’’ कहती हुई सुहानी ने हथेलियां एकदूसरे पर झाड़ दीं.

‘‘मैं यहां अकेला बैठा रहूं और तुम अपनी सहेलियों के साथ हंगामा पार्टी करो,’’ समीर झुंझला कर बोले.

‘‘लव इन सिक्सटीज डियर. मजबूरी है, खुद से प्यार करना सीख रही हूं. यह कोई आसान बात नहीं. जब खुद से प्यार करूंगी तभी तो तुम से…’’ सुहानी ने बात अधूरी छोड़ दी और

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कभी सुहानी के ही पीछे पड़ जाते, ‘‘तुम कामवाली को गरम पानी क्यों देती हो काम करने के लिए? गीजर चला कर बरतन धोती है, गरम पानी से पोंछा लगाती है. उस से बिजली का बिल बढ़ता है. कामवाली को सर्दी की वजह से आने में देर हो जाती तो समीर की भुनभुनाहट शुरू हो जाती. रोज देर से आने लगी है, तुम इसे कुछ कहती क्यों नहीं, लगता है इस ने सुबह कहीं काम पकड़ लिया है?’’

पोंछा लगा कर कामवाली कमरे का पंखा चला देती तो वे हर कमरे का पंखा बंद कर के बड़बड़ाते रहते, ‘मैं तो नौकर हूं न, पंखे बंद करना मेरा काम है. सर्दी हो या गरमी, इसे पंखे जरूर चलाने हैं.’

माली से जब वे अपने हिसाब से काम कराने लगते तो उसे कुछ समझ नहीं आता और वह भाग खड़ा होता. जब सुहानी कई बार फोन कर के मिन्नतें करती तब जा कर वह आता. कामवाली डांट खा कर जबतब छुट्टी कर लेती. प्रैसवाला कईकई दिनों के लिए गायब हो जाता. सुहानी को काम करने वालों को रोकना मुश्किल हो रहा था. पर समीर थे कि अपने निठल्लेपन से बाज नहीं आ रहे थे.

काम वाले जबतब सुहानी से साहब की शिकायत करते रहते. सुहानी समीर को कई बार समझाती, ‘इन के पीछे क्यों पड़े रहते हो समीर. तुम अपने काम से काम रखा करो. इन सब को जैसे मैं इतने सालों से हैंडिल कर रही थी, अब भी कर लूंगी. तुम्हारे ऐसे रवैए से ये सब किसी दिन भाग खड़े होंगे.’

पर समीर को तो लगता कि सब सुहानी को बेवकूफ बनाते हैं. उन के कानों पर जूं न रेंगती. उन के पास तो वक्त ही वक्त था इन सब बातों पर ध्यान देने के लिए. सुहानी कई कामों में लगी रहती. कई सामाजिक कामों से भी उस ने खुद को जोड़ रखा था. वह एक लेडीज क्लब की मैंबर भी थी. उसे समीर की इन बेकार की बातों से उलझन होती. वह चाहती, समीर भी अपनी नियमित दिनचर्या बनाएं, ताकि उन की सेहत भी ठीक रहे और वे किसी सामाजिक संस्था से भी जुड़ें जिस से व्यस्त रहें और से उन की मानसिक सेहत भी ठीक रहे.

सोचतेसोचते सुहानी पार्क में पहुंच गई. रोज वह पास की ही सड़क पर वाक कर लेती थी, पर उस दिन वह घर से थोड़ी दूर पार्क में चली गई थी. वहां हर तरह, हर उम्र के स्त्रीपुरुष थे. कोई दौड़ रहा था, कोई चल रहा था, कोई कसरत कर रहा था.

सुहानी थोड़ी देर बैंच पर बैठ गई.

बस, उसी दिन से सुहानी के दिमाग में एक तरकीब आई समीर को बदलने की. बोलने से तो समीर कभी नहीं मानेंगे, उसे पता था. देखते हैं आगेआगे होता है क्या. सुहानी होंठों ही होंठों में मुसकराई और फिर उठ कर चलने लगी. इस तरह से पूरा घंटा पार्क में बिता कर वह घर वापस आ गई.

‘‘आज तो बहुत देर कर दी, रोज तो आधे घंटे में वापस आ जाती थी,’’ समीर उस के चेहरे को देख कर घूरते हुए बोले.

‘‘आज से पार्क जाना शुरू कर दिया है,’’ सुहानी एक मस्त अंगड़ाई सी ले कर कुरसी पर बैठ कर जूते के फीते खोलती हुई बोली, ‘‘मजा आ गया आज तो, वहां तो बहुत लोग आते हैं हर उम्र के.’’ वह मजे से एक आंख दबा कर आगे बोली, ‘‘फोर्टीज से ले कर सिक्सटीज तक के. इस से ऊपर के भी आते हैं. जल्दी ही नए दोस्त बन जाएंगे, फिर जौगिंग का अपना ही मजा आएगा.’’

वह जूते उठा कर कमरे में चली गई. ‘क्या कह गई थी सुहानी’ समीर उस की कही बात पर मन ही मन अटकलें लगाने लगे. सुहानी यों भी हंसमुख थी. सेहत ठीक थी. बिजी रहने से उस की मानसिक सेहत भी अच्छी रहती थी. पर उस दिन से तो वह और भी खुश व मस्त रहने लगी थी. हर समय गुनगुनाती, हंसतीखिलखिलाती सुहानी को देख कर समीर का ध्यान दूसरी बातों से हट कर सुहानी पर ही केंद्रित हुआ जा रहा था.

वे समझ नहीं पा रहे थे कि सुहानी में इतना बदलाव कैसे आया. सुहानी को दोपहर में खाना खाने के बाद सोने की आदत थी. पर एक दिन सोने के बजाय वह साड़ी प्रैस करने लगी.

‘‘सुहानी, तुम कहीं जा रही हो?’’

‘‘हां,’’ सुहानी साड़ी उठा कर कमरे में तैयार होने चली गई. तैयार हो कर वह जब बाहर निकली तो समीर उसे देख कर चौंक गए.

सुहानी ने यों तो अपनी उम्र को बांध ही रखा था. पर आज तो आलम कुछ अलग ही था. आज तो सुहानी को देख कर उन का दिल भी कुछ खास अंदाज में धड़क गया. स्टाइलिश साड़ी और स्टाइलिश ब्लाउज.

‘‘यह साड़ी कब खरीदी,’’ समीर साड़ी को घूरते हुए बोले, ‘‘मेरे साथ तो कभी नहीं ली?’’

‘‘खरीदी कहां डियर, तुम मुझे इतना चटख रंग कहां लेने देते. वह तो जब पिछली बार पुणे गई थी तो भाभी ने जबरदस्ती दिला दी थी.’’

‘‘तो तुम ने दिखाई क्यों नहीं अभी तक?’’

‘‘मैं ने सोचा कहीं तुम्हें पसंद नहीं आई तो तुम मुझे इस का ब्लाउज भी नहीं सिलवाने दोगे. आज मेरी एक सहेली के घर पर सारी सहेलियां इकट्ठी हो रही हैं.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘बस, ऐसे ही. हंगामा पार्टी है.’’

‘‘हंगामा पार्टी? क्या मतलब? बर्थडे पार्टी, रिसैप्शन पार्टी, मैरिज पार्टी, रिटायरमैंट पार्टी तो सुनी हैं. आजकल के युवाओं की तथाकथित ब्रेकअप पार्टी के बारे में भी पढ़ा है, लेकिन यह हंगामा पार्टी क्या होती है?’’

‘‘मतलब,’’ सुहानी किसी नवयौवना की तरह पलकें झपकाती हुई बोली, ‘‘लव इन सिक्सटीज डियर. तेज म्यूजिक पर डांस करेंगे, मस्ती करेंगे, गाना गाएंगे और…’’

‘‘और?’’

‘‘और उस के बाद केक काटेंगे खाएंगेपिएंगे, बस,’’ कहती हुई सुहानी ने हथेलियां एकदूसरे पर झाड़ दीं.

‘‘मैं यहां अकेला बैठा रहूं और तुम अपनी सहेलियों के साथ हंगामा पार्टी करो,’’ समीर झुंझला कर बोले.

‘‘लव इन सिक्सटीज डियर. मजबूरी है, खुद से प्यार करना सीख रही हूं. यह कोई आसान बात नहीं. जब खुद से प्यार करूंगी तभी तो तुम से…’’ सुहानी ने बात अधूरी छोड़ दी और

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November 30, 2020 at 10:00AM

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