Thursday 29 August 2019

बच्चों की भावना: भाग-2

बच्चों की भावना: भाग-1

अब आगे पढ़ें- 

आखिरी किस्त

अभी अकी को एक सप्ताह और स्कूल जाना था, ठंड इस साल कुछ अधिक थी. सुबह जबरदस्त कोहरा होने लगा. रोज सुबह अकी को इतनी जल्दी स्कूल के लिए तैयार होते देख कर नानी ने स्नेह से कहा, ‘‘बेटी, किसी पास के स्कूल में अकी को दाखिल करवा दे. इतना अधिक परिश्रम छोटे बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास के लिए घातक है.’’

‘‘मां, मैं स्कूल चेंज नहीं कराऊंगी. बहुत नामी और बढि़या स्कूल है.’’

इस का जवाब अनुभव ने दिया, ‘‘स्नेह, नानी ठीक कह रही हैं, मैं ने सोच लिया है कि इस साल रिजल्ट निकलने पर अकी का दाखिला किसी पास के स्कूल में करवा दूंगा,’’ और फिर उस ने पूरी बात स्नेह को विस्तारपूर्वक बताई कि कैसे फटकार लगा कर प्रिंसिपल ने उसे अपमानित किया. ऐसी बात सुन कर स्नेह उदास हो गई कि उस का अकी को एक नामी स्कूल में पढ़ाने का अरमान साकार नहीं हो पाएगा. लेकिन अनुभव के दृढ़ निश्चय और नानी के सहयोग के आगे स्नेह को झुकना पड़ा.

आकृति यह सुन कर बहुत खुश हुई कि अब उसे नए सत्र से पास के किसी स्कूल में जाना होगा. इतनी जल्दी भी नहीं उठना पड़ेगा. स्कूल बस में वह बहुत अधिक परेशान होती थी. बड़े बच्चे बस की सीटों पर छोटे बच्चों को बैठने नहीं देते थे. स्कूल टीचर भी उन्हें कुछ नहीं कहती थीं. उलटे सब से आगे की सीटों पर बैठ जाती थीं.

गरमियों में तो इतना ज्यादा पसीना आता, घबराहट होती कि तबीयत खराब हो जाती थी, लेकिन पापामम्मी तो इस बारे में सोचते ही नहीं. सर्दियों में कितनी ज्यादा ठंड होती है. स्कर्ट पहन कर जाना पड़ता है. ऊपर से कोट पहना देते हैं, लेकिन स्कर्ट पहनने से टांगों में बहुत ज्यादा ठंड लगती है. छोटे बच्चों की परेशानी कोई नहीं समझता.

ठंड बढ़ती जा रही थी. बच्चों की परेशानी को महसूस कर प्रशासन ने सरकारी स्कूलों की छुट्टी समय से पहले घोषित कर दी. अभिभावकों के दबाव में आ कर निजी स्कूलों में भी निर्धारित समय से पहले सर्दियों की छुट्टियां घोषित कर दीं. जिस दिन छुट्टियों की घोषणा की, आकृति अत्याधिक खुशी के साथ झूमती हुई, नाचती हुई स्कूल से वापस आई. जैसे नानी ने फ्लैट का दरवाजा खोला, आकृति नानी से लिपट गई.

‘‘नानी, मेरी प्यारी नानी, आज मैं आजाद पंछी हूं. हमारी कल से पूरे 20 दिन की छुट्टी. अब मैं रोज छोटे काका के संग खेलूंगी,’’ और अपना स्कूल बैग एक तरफ पटक दिया और आईने के सामने कमर मटकाते हुए गीत गाने लगी.

तभी स्नेह ने आवाज लगाई, ‘‘अकी, काका सो रहा है, शोर मत मचाओ.’’

‘‘गाना भी नहीं गाने देते,’’ कह कर अकी बाथरूम में मुंह धोने के लिए चली गई और गीत गाने लगी, ‘‘मैं ने जिसे अभी देखा है, उसे कह दूं, प्रीटी वूमन, देखो, देखो न प्रीटी वूमन, तुम भी कहो न प्रीटी वूमन.’’

अकी का गाना सुन कर स्नेह ने उस की नानी से कहा, ‘‘मम्मी, जा कर अकी को बाथरूम से निकालो, वरना वह 2 घंटे से पहले बाहर नहीं आएगी.’’

नानी ने अकी को बाथरूम में जा कर कहा, ‘‘प्रीटी वूमन, बहुत बनसंवर लिए. अब बाहर आ जाइए. छोटा काका आप को बुला रहा है.’’

‘‘सच्ची,’’ कह कर अकी ने फर्राटे की दौड़ लगाई, ‘‘यह क्या नानी, छोटा काका तो सो रहा है, आप ने मेरा मजाक उड़ा कर सारा मूड खराब कर दिया,’’ अकी ने मुंह बनाते हुए कहा.

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‘‘मूड कैसे बनेगा, मेरी लाड़ो का,’’ नानी ने अकी को अपनी गोद में बिठाते हुए पूछा.

‘‘जब पापा गाना गाएंगे तब मैं पापा के साथ मिल कर गाऊंगी.’’

‘‘वह क्यों?’’

‘‘नानी, आप को नहीं पता, पापा को यह गाना बहुत अच्छा लगता है. मम्मी को देख कर गाते हैं.’’

‘‘अच्छा अकी, पापा का गाना तो बता दिया, मम्मी कौन सा गाना गाती हैं, पापा को देख कर?’’ इस से पहले अकी कुछ कहती, स्नेह तुनक कर बोली, ‘‘मां, तुम यह क्या बातें ले कर बैठ गईं.’’

यह सुनते ही अकी नानी के कान में धीरे से बोली, ‘‘नानी, मम्मी को थोड़ा समझाओ. हमेशा डांटती रहती हैं.’’

छुट्टियों में अकी को बेफिक्र देख कर नानी ने स्नेह से कहा कि बच्चों के कुदरती विकास के लिए जरूरी है कि उन्हें पूरा समय मिले, पढ़ने के साथ खेलने का मौका मिले. क्या तू भूल गई, किस तरह बचपन में तू पड़ोस की लड़कियों के साथ खेलती थी और पूरा महल्ला शोर से सिर पर उठाती थी. हम अपना बचपन भूल जाते हैं कि हम ने भी शैतानियां की थीं. बच्चों पर आदर्श थोपते हैं, जो एकदम अनुचित है.

‘‘मां, तुम भाषण पर आ गई हो,’’ स्नेह ने तुनक कर कहा.

‘‘तुम खुद देखो कि अकी आजकल कितनी खुश है, जितने दिन स्कूल गई, एकदम थकी सी रहती थी, अब एकदम चुस्त रहती है. इसलिए कहती हूं कि अनुभव की बात मान ले.’’

‘‘मम्मी, तुम और अनु एक जैसे हो, एकदूसरे की हां में हां मिलाते रहते हो. मेरी भावनाओं की तरफ सोचते भी नहीं हो. आखिर आप ने मुझे इतना क्यों पढ़ाया. एमबीए के बाद शादी कर दी. मेरा कैरियर भी नहीं बनने दिया. मुश्किल से 1 साल भी नौकरी नहीं की, शादी हो गई. शादी के बाद शहर बदल गया, फिर अकी के जन्म के कारण नौकरी नहीं की. अकी स्कूल जाने लगी, तब बड़ी मुश्किल से अनु को राजी किया. 3-4 साल ही नौकरी की, अब फिर छोटे काका के जन्म पर नौकरी छोड़नी पड़ रही है.’’

‘‘स्नेह, एक बात तुम समझ लो, परिवार के लालनपालन और बच्चों में अच्छी आदतों की नींव डालने के लिए मांबाप को अपनी कई इच्छाओं को मारना पड़ता है. परिवार को सही तरीके से पालना नौकरी करने से अधिक कठिन है. गृहस्थी की कठिन राह से परेशान लोग संन्यास लेते हैं, लेकिन दरदर भटकने पर भी न तो शांति मिलती है और न ही सुख. कठिन गृहस्थी में ही सच्चा सुख है.’’

स्नेह मां के आगे निरुत्तर हो गई और आकृति को घर के पास वाले स्कूल में दाखिल करने को राजी हो गई. सर्दियों की छुट्टियों में वर्माजी की लड़की भी अपने परिवार के साथ रहने आ गई. वर्माजी की नातिन वृंदा आकृति की हमउम्र थी. दोनों सारा दिन एकसाथ धमाचौकड़ी करती रहतीं और नानी, स्नेह, छोटा काका वर्मा परिवार के साथ सोसाइटी के लौन में धूप सेंकते. एक दिन धूप सेंकते वर्माजी ने अपनी लड़की को सलाह दी कि वह भी वृंदा को पास के स्कूल में दाखिल करवा दे. वे आकृति की नानी के गुण गाने लगे कि उन्होंने स्नेह को आकृति के स्कूल बदलने के लिए राजी कर लिया है.

स्नेह मुंह बना कर बोली, ‘‘क्या अंकल आप भी स्कूल पुराण ले कर बैठ गए. बड़ी मुश्किल से तो नानी की कथा बंद की है.’’

‘‘बेटे, इस का जिक्र बहुत जरूरी है. देखो, जब हम स्कूल में पढ़ते थे तब गरमियों और सर्दियों में स्कूल का अलग समय होता था. गरमी में सुबह 7 बजे और सर्दियों में 10 बजे स्कूल लगता था. गरमी में 12 बजे घर वापस आ जाते थे और सर्दी में धूप में बैठ कर पढ़ते थे.’’

‘‘अच्छा,’’ वृंदा ने हैरान हो कर पूछा, ‘‘आप कुरसीमेज क्लास से रोज बाहर लाते थे और फिर अंदर करते थे. अपने सर पर उठाते थे, क्या नानाजी?’’

‘‘नहीं बेटे, हमारे समय में तो मेजकुरसी नहीं होते थे. जमीन पर दरी बिछा कर बैठते थे. धूप निकलते ही मास्टरजी हुक्म देते थे और सारे बच्चे फटाफट दरियां उठा कर क्लासरूम के बाहर धूप में बैठ जाते थे. मजे की बात तो बरसात में होती थी. स्कूल की छत टपकती थी. जिस दिन बारिश होती थी, उस दिन छुट्टी हो जाती थी, मास्टरजी कहते थे, रेनी डे, बच्चो, आज की छुट्टी.’’

यह सुन कर वृंदा और आकृति जोरजोर से हंसने लगीं…रेनी डे, होलीडे, कहतेकहते और हंसतेहंसते दोनों लोटपोट हो गईं.

अब अनुभव कहने लगा, ‘‘वर्मा अंकल के बाद मेरी भी सुनो, मेरा स्कूल 2 शिफ्टों में लगता था. छठी क्लास तक दूसरी शिफ्ट में स्कूल लगता था. खाना खा कर 1 बजे स्कूल जाते थे. 6 बजे वापस आते थे, मजे से सुबह 7-8 बजे सो कर उठते थे, सुबह स्कूल जाने की कोई जल्दी नहीं होती थी.’’

आकृति और वृंदा को स्कूल की बातों में बहुत अधिक रस आ रहा था और वे हंसतेहंसते लोटपोट होती जा रही थीं.

अकी को छुट्टियों में इतना अधिक खुश देख कर स्नेह ने पास के स्कूल का महत्त्व समझा और फाइनल परीक्षा के बाद नए सत्र में घर के पास स्कूल में अकी का दाखिला करा दिया. घर से स्कूल का पैदल रास्ता सिर्फ 5 मिनट का था. 2 दिन में ही अकी इतनी अधिक खुश हुई और स्नेह से कहा, ‘‘मम्मी, यह स्कूल बहुत अच्छा है, मेरी 2 फ्रेंड्स साथ वाली सोसाइटी में रहती हैं. मम्मी, आप को मालूम है, वे साइकिल पर स्कूल आती हैं, मुझे भी साइकिल दिला दो, 2 मिनट में स्कूल पहुंच जाऊंगी.’’

अनुभव ने आकृति को साइकिल दिला दी. अब अकी को न तो टेंशन था सुबह जल्दी उठ कर स्कूल जाने की और न स्कूल बस मिस हो जाने का. सारा दिन वह खुश रहती था. होमवर्क करने के बाद काफी समय छोटे काका के साथ खेलती और बेफिक्र चहकती रहती.

6 महीने में एकदम लंबा कद पा गई आकृति को देख कर स्नेह खुशी से फूली नहीं समाती थी. जो अकी कल तक सारा दिन थकीथकी रहती थी, आज वह कहने लगी, ‘‘मम्मी, मुझे चाय बनाना सिखाओ, मैं आप को सुबह बेड टी पिलाया करूंगी.’’

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सुन कर स्नेह को अपनी मां की कही बातें बारबार याद आतीं कि बच्चों के बहुमुखी विकास के लिए उन का बेफिक्र होना बहुत जरूरी है. उन पर उन की क्षमता से अधिक बोझ नहीं डालना चाहिए. बच्चों की खुशी में ही हमारी खुशी होती है.

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बच्चों की भावना: भाग-1

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आखिरी किस्त

अभी अकी को एक सप्ताह और स्कूल जाना था, ठंड इस साल कुछ अधिक थी. सुबह जबरदस्त कोहरा होने लगा. रोज सुबह अकी को इतनी जल्दी स्कूल के लिए तैयार होते देख कर नानी ने स्नेह से कहा, ‘‘बेटी, किसी पास के स्कूल में अकी को दाखिल करवा दे. इतना अधिक परिश्रम छोटे बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास के लिए घातक है.’’

‘‘मां, मैं स्कूल चेंज नहीं कराऊंगी. बहुत नामी और बढि़या स्कूल है.’’

इस का जवाब अनुभव ने दिया, ‘‘स्नेह, नानी ठीक कह रही हैं, मैं ने सोच लिया है कि इस साल रिजल्ट निकलने पर अकी का दाखिला किसी पास के स्कूल में करवा दूंगा,’’ और फिर उस ने पूरी बात स्नेह को विस्तारपूर्वक बताई कि कैसे फटकार लगा कर प्रिंसिपल ने उसे अपमानित किया. ऐसी बात सुन कर स्नेह उदास हो गई कि उस का अकी को एक नामी स्कूल में पढ़ाने का अरमान साकार नहीं हो पाएगा. लेकिन अनुभव के दृढ़ निश्चय और नानी के सहयोग के आगे स्नेह को झुकना पड़ा.

आकृति यह सुन कर बहुत खुश हुई कि अब उसे नए सत्र से पास के किसी स्कूल में जाना होगा. इतनी जल्दी भी नहीं उठना पड़ेगा. स्कूल बस में वह बहुत अधिक परेशान होती थी. बड़े बच्चे बस की सीटों पर छोटे बच्चों को बैठने नहीं देते थे. स्कूल टीचर भी उन्हें कुछ नहीं कहती थीं. उलटे सब से आगे की सीटों पर बैठ जाती थीं.

गरमियों में तो इतना ज्यादा पसीना आता, घबराहट होती कि तबीयत खराब हो जाती थी, लेकिन पापामम्मी तो इस बारे में सोचते ही नहीं. सर्दियों में कितनी ज्यादा ठंड होती है. स्कर्ट पहन कर जाना पड़ता है. ऊपर से कोट पहना देते हैं, लेकिन स्कर्ट पहनने से टांगों में बहुत ज्यादा ठंड लगती है. छोटे बच्चों की परेशानी कोई नहीं समझता.

ठंड बढ़ती जा रही थी. बच्चों की परेशानी को महसूस कर प्रशासन ने सरकारी स्कूलों की छुट्टी समय से पहले घोषित कर दी. अभिभावकों के दबाव में आ कर निजी स्कूलों में भी निर्धारित समय से पहले सर्दियों की छुट्टियां घोषित कर दीं. जिस दिन छुट्टियों की घोषणा की, आकृति अत्याधिक खुशी के साथ झूमती हुई, नाचती हुई स्कूल से वापस आई. जैसे नानी ने फ्लैट का दरवाजा खोला, आकृति नानी से लिपट गई.

‘‘नानी, मेरी प्यारी नानी, आज मैं आजाद पंछी हूं. हमारी कल से पूरे 20 दिन की छुट्टी. अब मैं रोज छोटे काका के संग खेलूंगी,’’ और अपना स्कूल बैग एक तरफ पटक दिया और आईने के सामने कमर मटकाते हुए गीत गाने लगी.

तभी स्नेह ने आवाज लगाई, ‘‘अकी, काका सो रहा है, शोर मत मचाओ.’’

‘‘गाना भी नहीं गाने देते,’’ कह कर अकी बाथरूम में मुंह धोने के लिए चली गई और गीत गाने लगी, ‘‘मैं ने जिसे अभी देखा है, उसे कह दूं, प्रीटी वूमन, देखो, देखो न प्रीटी वूमन, तुम भी कहो न प्रीटी वूमन.’’

अकी का गाना सुन कर स्नेह ने उस की नानी से कहा, ‘‘मम्मी, जा कर अकी को बाथरूम से निकालो, वरना वह 2 घंटे से पहले बाहर नहीं आएगी.’’

नानी ने अकी को बाथरूम में जा कर कहा, ‘‘प्रीटी वूमन, बहुत बनसंवर लिए. अब बाहर आ जाइए. छोटा काका आप को बुला रहा है.’’

‘‘सच्ची,’’ कह कर अकी ने फर्राटे की दौड़ लगाई, ‘‘यह क्या नानी, छोटा काका तो सो रहा है, आप ने मेरा मजाक उड़ा कर सारा मूड खराब कर दिया,’’ अकी ने मुंह बनाते हुए कहा.

ये भी पढ़ें- बंटी हुई औरत

‘‘मूड कैसे बनेगा, मेरी लाड़ो का,’’ नानी ने अकी को अपनी गोद में बिठाते हुए पूछा.

‘‘जब पापा गाना गाएंगे तब मैं पापा के साथ मिल कर गाऊंगी.’’

‘‘वह क्यों?’’

‘‘नानी, आप को नहीं पता, पापा को यह गाना बहुत अच्छा लगता है. मम्मी को देख कर गाते हैं.’’

‘‘अच्छा अकी, पापा का गाना तो बता दिया, मम्मी कौन सा गाना गाती हैं, पापा को देख कर?’’ इस से पहले अकी कुछ कहती, स्नेह तुनक कर बोली, ‘‘मां, तुम यह क्या बातें ले कर बैठ गईं.’’

यह सुनते ही अकी नानी के कान में धीरे से बोली, ‘‘नानी, मम्मी को थोड़ा समझाओ. हमेशा डांटती रहती हैं.’’

छुट्टियों में अकी को बेफिक्र देख कर नानी ने स्नेह से कहा कि बच्चों के कुदरती विकास के लिए जरूरी है कि उन्हें पूरा समय मिले, पढ़ने के साथ खेलने का मौका मिले. क्या तू भूल गई, किस तरह बचपन में तू पड़ोस की लड़कियों के साथ खेलती थी और पूरा महल्ला शोर से सिर पर उठाती थी. हम अपना बचपन भूल जाते हैं कि हम ने भी शैतानियां की थीं. बच्चों पर आदर्श थोपते हैं, जो एकदम अनुचित है.

‘‘मां, तुम भाषण पर आ गई हो,’’ स्नेह ने तुनक कर कहा.

‘‘तुम खुद देखो कि अकी आजकल कितनी खुश है, जितने दिन स्कूल गई, एकदम थकी सी रहती थी, अब एकदम चुस्त रहती है. इसलिए कहती हूं कि अनुभव की बात मान ले.’’

‘‘मम्मी, तुम और अनु एक जैसे हो, एकदूसरे की हां में हां मिलाते रहते हो. मेरी भावनाओं की तरफ सोचते भी नहीं हो. आखिर आप ने मुझे इतना क्यों पढ़ाया. एमबीए के बाद शादी कर दी. मेरा कैरियर भी नहीं बनने दिया. मुश्किल से 1 साल भी नौकरी नहीं की, शादी हो गई. शादी के बाद शहर बदल गया, फिर अकी के जन्म के कारण नौकरी नहीं की. अकी स्कूल जाने लगी, तब बड़ी मुश्किल से अनु को राजी किया. 3-4 साल ही नौकरी की, अब फिर छोटे काका के जन्म पर नौकरी छोड़नी पड़ रही है.’’

‘‘स्नेह, एक बात तुम समझ लो, परिवार के लालनपालन और बच्चों में अच्छी आदतों की नींव डालने के लिए मांबाप को अपनी कई इच्छाओं को मारना पड़ता है. परिवार को सही तरीके से पालना नौकरी करने से अधिक कठिन है. गृहस्थी की कठिन राह से परेशान लोग संन्यास लेते हैं, लेकिन दरदर भटकने पर भी न तो शांति मिलती है और न ही सुख. कठिन गृहस्थी में ही सच्चा सुख है.’’

स्नेह मां के आगे निरुत्तर हो गई और आकृति को घर के पास वाले स्कूल में दाखिल करने को राजी हो गई. सर्दियों की छुट्टियों में वर्माजी की लड़की भी अपने परिवार के साथ रहने आ गई. वर्माजी की नातिन वृंदा आकृति की हमउम्र थी. दोनों सारा दिन एकसाथ धमाचौकड़ी करती रहतीं और नानी, स्नेह, छोटा काका वर्मा परिवार के साथ सोसाइटी के लौन में धूप सेंकते. एक दिन धूप सेंकते वर्माजी ने अपनी लड़की को सलाह दी कि वह भी वृंदा को पास के स्कूल में दाखिल करवा दे. वे आकृति की नानी के गुण गाने लगे कि उन्होंने स्नेह को आकृति के स्कूल बदलने के लिए राजी कर लिया है.

स्नेह मुंह बना कर बोली, ‘‘क्या अंकल आप भी स्कूल पुराण ले कर बैठ गए. बड़ी मुश्किल से तो नानी की कथा बंद की है.’’

‘‘बेटे, इस का जिक्र बहुत जरूरी है. देखो, जब हम स्कूल में पढ़ते थे तब गरमियों और सर्दियों में स्कूल का अलग समय होता था. गरमी में सुबह 7 बजे और सर्दियों में 10 बजे स्कूल लगता था. गरमी में 12 बजे घर वापस आ जाते थे और सर्दी में धूप में बैठ कर पढ़ते थे.’’

‘‘अच्छा,’’ वृंदा ने हैरान हो कर पूछा, ‘‘आप कुरसीमेज क्लास से रोज बाहर लाते थे और फिर अंदर करते थे. अपने सर पर उठाते थे, क्या नानाजी?’’

‘‘नहीं बेटे, हमारे समय में तो मेजकुरसी नहीं होते थे. जमीन पर दरी बिछा कर बैठते थे. धूप निकलते ही मास्टरजी हुक्म देते थे और सारे बच्चे फटाफट दरियां उठा कर क्लासरूम के बाहर धूप में बैठ जाते थे. मजे की बात तो बरसात में होती थी. स्कूल की छत टपकती थी. जिस दिन बारिश होती थी, उस दिन छुट्टी हो जाती थी, मास्टरजी कहते थे, रेनी डे, बच्चो, आज की छुट्टी.’’

यह सुन कर वृंदा और आकृति जोरजोर से हंसने लगीं…रेनी डे, होलीडे, कहतेकहते और हंसतेहंसते दोनों लोटपोट हो गईं.

अब अनुभव कहने लगा, ‘‘वर्मा अंकल के बाद मेरी भी सुनो, मेरा स्कूल 2 शिफ्टों में लगता था. छठी क्लास तक दूसरी शिफ्ट में स्कूल लगता था. खाना खा कर 1 बजे स्कूल जाते थे. 6 बजे वापस आते थे, मजे से सुबह 7-8 बजे सो कर उठते थे, सुबह स्कूल जाने की कोई जल्दी नहीं होती थी.’’

आकृति और वृंदा को स्कूल की बातों में बहुत अधिक रस आ रहा था और वे हंसतेहंसते लोटपोट होती जा रही थीं.

अकी को छुट्टियों में इतना अधिक खुश देख कर स्नेह ने पास के स्कूल का महत्त्व समझा और फाइनल परीक्षा के बाद नए सत्र में घर के पास स्कूल में अकी का दाखिला करा दिया. घर से स्कूल का पैदल रास्ता सिर्फ 5 मिनट का था. 2 दिन में ही अकी इतनी अधिक खुश हुई और स्नेह से कहा, ‘‘मम्मी, यह स्कूल बहुत अच्छा है, मेरी 2 फ्रेंड्स साथ वाली सोसाइटी में रहती हैं. मम्मी, आप को मालूम है, वे साइकिल पर स्कूल आती हैं, मुझे भी साइकिल दिला दो, 2 मिनट में स्कूल पहुंच जाऊंगी.’’

अनुभव ने आकृति को साइकिल दिला दी. अब अकी को न तो टेंशन था सुबह जल्दी उठ कर स्कूल जाने की और न स्कूल बस मिस हो जाने का. सारा दिन वह खुश रहती था. होमवर्क करने के बाद काफी समय छोटे काका के साथ खेलती और बेफिक्र चहकती रहती.

6 महीने में एकदम लंबा कद पा गई आकृति को देख कर स्नेह खुशी से फूली नहीं समाती थी. जो अकी कल तक सारा दिन थकीथकी रहती थी, आज वह कहने लगी, ‘‘मम्मी, मुझे चाय बनाना सिखाओ, मैं आप को सुबह बेड टी पिलाया करूंगी.’’

ये भी पढ़ें- मधु बना विष

सुन कर स्नेह को अपनी मां की कही बातें बारबार याद आतीं कि बच्चों के बहुमुखी विकास के लिए उन का बेफिक्र होना बहुत जरूरी है. उन पर उन की क्षमता से अधिक बोझ नहीं डालना चाहिए. बच्चों की खुशी में ही हमारी खुशी होती है.

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August 30, 2019 at 08:47AM

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