रात के 2 बजे के करीब अनुभा की आंखें खुलीं तो उस ने देखा, सुगम बिस्तर पर नहीं है. 5-7 मिनट बाद जब सुगम वापस नहीं आया तो अनुभा को कुछ चिंता हुई. वह उठ कर बाहर की तरफ जाने वाले दरवाजे पर गई तो उस ने पाया दरवाजे की सांकल खुली हुई है. सुगम को अचानक बाहर जाने की क्या जरूरत आ पड़ी. अनुभा यह सोच ही रही थी कि पास के कमरे से खुसुरफुसुर की आवाजें आईं. संभवतया सुलभा की बच्ची को कोई परेशानी हुई होगी. यही सोच कर शायद उस ने सामने वाला दरवाजा न खोल कर कमरों को जोड़ने वाला दरवाजा खोलने का निर्णय लिया होगा. निश्चित रूप से कोई बड़ी परेशानी रही होगी. वरना यह दरवाजा तो दिन के समय तक दोनों तरफ से बंद रहता है. आशंकाओं से भरी अनुभा ने कुछ झिझकते हुए दरवाजा खोल दिया.
आंखों के सामने का दृश्य अविश्वसनीय था. सुगम और सुलभा अंतरंग प्रणय की अवस्था में थे. अनुभा को कुछ समझ में नहीं आया की वह क्या करे. उसे चक्कर सा आ गया, वह गिरने लगी. ‘सुगम…’ अनुभा गिरने से पहले पूरी ताकत लगा कर चीखी. अनुभा की चीख में इतनी तेजी तो थी ही कि वह प्रगत प्रताप और जैविका की नींद खोल सके.
‘‘यह तो अनुभा की आवाज है. पेट से है. कहीं कुछ गड़बड़,’’ कहते हुए आशंकित जैविका उठ बैठी.
‘‘चलो,चल कर कर देखते हैं,’’ प्रगत प्रताप बिस्तर छोड़ते हुए बोले.
तेज कदमों से दोनों सुगम के कमरे की तरफ चल दिए. चूंकि आगे वाले दरवाजे का सांकल खुला हुआ ही था, इसलिए ढकेलते ही खुल गया. कमरे में सुगम व अनुभा दोनों को न पा कर वे भी कमरों को जोड़ने वाले दरवाजे की तरफ दौड़े.
फर्श पर अनुभा को लगभग बेहोश व सुगम और सुलभा को साथ खड़ा देख कर प्रगत प्रताप और जैविका को माजरा समझते देर न लगी.
‘‘यह क्या सुगम? कितना नीचे गिर गए हो तुम? अपने बड़े भाई की पत्नी के साथ इस तरह के संबंध रखते हुए तुम्हें शर्म नहीं आती,’’ प्रगत प्रताप सुगम को डांटते हुए बोले.
‘‘सुलभा तुम? तुम तो सुगम से बड़ी हो, उम्र में भी और ओहदे व मानमर्यादा में भी,’’ जैविका सुलभा को डांटते हुए बोली, ‘‘डायन भी सात घर छोड़ कर बच्चे खाती है.’’
‘‘वाह, सुगम, खूब नाम रोशन किया है हमारा. इंग्लिश स्कूल में तुम को शिक्षा दिलवाई थी परंतु देशी सभ्यता और संस्कृति को भूलने को नहीं कहा था. दुनिया को अब क्या मुंह दिखाऊंगा,’’ प्रगत प्रताप की आंखों में आंसू आ गए. आवाज भर्रा गई.
सुगम व सुलभा मुजरिमों की तरह सिर झुकाए खड़े थे. अब तक अनुभा भी कुछकुछ होश में आ गई थी.
प्रगत प्रताप इस शहर के जानेमाने उद्योगपति हैं. इन्होंने अपनी काबिलीयत के दम पर अपने पुरखों से विरासत में मिले ब्याजबट्टे के धंधे को छोड़ कर कारखाना डालने की हिम्मत की. और आज सफलता के उस मुकाम पर हैं जहां पहुंचने की सिर्फ कल्पना ही की जा सकती है. परिवार में पत्नी जैविका और 3 बच्चे हैं. सब से बड़ी लड़की सरला की शादी हो चुकी है जो अपनी ससुराल में सुखी है. उस से छोटा लड़का अगम है. अगम की उम्र 34 साल है. अगम की पत्नी का नाम सुलभा है और दोनों की शादी 5 साल पहले हुई है. इन दोनों की एक बेटी है जिस का नाम विधा है. सब से छोटा बेटा सुगम है जो लगभग 27 साल का है जो यह नई वाली फैक्टरी को संभालता है. सुगम भी शादीशुदा है और अभी पिछले महीने ही शादी की पहली सालगिरह बड़ी धूमधाम से मनाई है. इस की पत्नी अनुभा अभी एक माह की गर्भवती है.
प्रगत प्रताप अपने नाम के अनुरूप प्रगतिशील विचारधारा के तो हैं ही, साथ ही अपने पुरखों द्वारा दी गई सीख का सम्मान करने वाले भी हैं. शायद यह ही कारण है कि नए व्यवसाय को अपनाने के बावजूद उन्होंने अपनी हवेली के नवीनीकरण के समय पुरखों की मान्यता को ध्यान में रखते हुए हवेली की आमूलचूल डिजाइन पुरानी ही रखी. 20 कमरों वाली इस हवेली की खासीयत यह है कि यदि इस के सभी दरवाजे खोल दिए जाएं तो सब कमरे अंदर ही अंदर एकदूसरे से जुड़ जाएं.
इन सब के अतिरिक्त, प्रगत प्रताप की खासीयत और थी. वे बेहद न्यायप्रिय थे. यही कारण था कि उन की फैक्टरियों में एक भी मजदूर मैनेजमैंट विरोधी नहीं था. सभी कर्मचारी उन के फैसलों का सम्मान करते थे.
अगम पिछले 2 दिनों से कारखाने के काम के सिलसिले में शहर से बाहर गया हुआ था. उस का सप्ताहभर बाद लौटने का प्रोग्राम था. पिछले 6 महीनों से कारखाने के विस्तारीकरण का काम चल रहा था. इसी कारण अगम ज्यादातर बाहर ही रहता था.
‘‘क्यों किया तुम ने ऐसा सुगम?’’ अनुभा की रुलाई अब फूट पड़ी थी.
‘‘जवाब दो सुगम, असली गुनाहगार तो तुम अनुभा के ही हो? और सुलभा, तुम अगम को क्या जवाब दोगी? किस मुंह से उस के सामने जाओगी. क्या उस के विश्वास का जवाब यह अविश्वास, फरेब और धोखेबाजी ही है?’’ जैविका की रुलाई भी अब फूट पड़ी थी.
‘‘जवाब दो सुगम, जवाब दो. तुम्हें हमारे होने वाले बच्चे की कसम, बताओ, मुझ में क्या कमी थी जो तुम ने मेरे साथ यह दगाबाजी की,’’ अनुभा बच्चों की तरह बिलख कर रोते हुए सुगम से प्रश्न करती रही.
सुगम व सुलभा मूर्ति की तरह निश्चल खड़े रहे.
‘‘जवाब दो सुगम. तुम्हें अपने होने वाले बच्चे की कसम है,’’ अनुभा ने अपना प्रश्न फिर जोर दे कर दोहरा दिया. अनुभा ने अपना प्रश्न 3-4 बार दोहरा दिया.
‘‘नहीं अनुभा, तुम में या तुम्हारे प्यार में कोई कमी नहीं है. लेकिन कुछ ‘अतिरिक्त’ पाने की चाह में हम दोनों एकदूसरे के प्रति आकर्षित हो गए,’’ सुगम दबी आवाज में सफाई देते हुए बोला.
‘‘क्या हर स्त्री और पुरुष के अंगों की बनावट अलगअलग होती है? कहां से तुम्हें कुछ ‘अतिरिक्त’ मिलेगा? आखिर यह ‘अतिरिक्त’ क्या है? और सब से बड़ा प्रश्न यह ‘अतिरिक्त’ पा कर समाज में कितना सम्मान मिलेगा? समाज में तुम्हारा ओहदा कितना बढ़ जाएगा? अपनी पत्नी के अलावा कितनी और स्त्रियों से संबंध रखे हैं तुम ने? और कितना कुछ ‘अतिरिक्त’ पाया तुम ने. यह जानने के बाद कौन सी संस्था पुरस्कृत करने वाली है तुम्हें? मुझे बताओ तो जरा,’’ प्रगत प्रताप गुस्से से भर कर सुगम से पूछ बैठे.
‘‘सुगम, तुम्हें एक बार भी नहीं लगा कि तुम मुझ से विश्वासघात कर के कितना बड़ा गुनाह कर रहे हो. मैं तुम्हारा साथ और संबंल पाने की खातिर अपने मां, बाप, भाई, बहन सभी को छोड़ कर आई हूं सिर्फ तुम्हारे भरोसे पर…’’ अनुभा रोए जा रही थी.
‘‘गुनाह तो इस कुलटा का भी है. यह भी इस गुनाह में बराबर की साझीदार है,’’ जैविका सुलभा की तरफ इशारा कर के बोलीं.
सुगम अपना अपमान सहन कर रहा था लेकिन जैसे ही जैविका ने सुलभा के प्रति सख्त शब्दों का इस्तेमाल किया तो वह तिलमिला उठा. उस की सुलभा के प्रति यह सहानुभूति शायद तात्कालिक शारीरिक संबंधों की वजह से थी.
‘‘गुनाह, कौन सा गुनाह मम्मी?
2 शादीशुदा स्त्रीपुरुष के बीच आपसी संबंध को तो अदालत भी गुनाह नहीं मानती. इन संबंधों के आधार पर किसी को सजा नहीं मिल सकती है, न ही किसी को परेशान किया जा सकता है,’’ सुगम अब अपनी बेशर्मी को सुप्रीम कोर्ट के आदेश का जामा पहनाने लगा.
सुगम की इस दलील को सुन कर प्रगत प्रताप सुन्न रह गए. उन्हें लगा यह उन के दिए गए संस्कारों की हार है. अब तक अपनेआप को संभाले हुए प्रगत प्रताप और अधिक सहन नहीं कर पाए, फूटफूट कर रो पड़े.
सुगम को अपने मजबूत पिता से इस तरह की प्रतिक्रिया की उम्मीद न थी. वह सोच रहा था. प्रगत प्रताप उसे डांटेंगे और शायद एकदो चांटें भी रसीद कर दें. उस ने अपनी मां जैविका को कई बार रोते हुए देखा था, किंतु अपने पिता का इस प्रकार बिलखबिलख कर रोना वह पहली बार देख रहा था. वह मन ही मन अपनेआप को धिक्कारने लगा. अपने पिता से नजरें मिलाने की हिम्मत उस में नहीं थी.
रोते हुए प्रगत प्रताव व जैविका अनुभा को अपने साथ ले कर कमरे से बाहर निकल गए.
सुगम व सुलभा कुछ समय तक चुपचाप खड़े रहे. शायद दोनों को ही अपनी गलती का एहसास हो गया था.
कुछ मिनटों के बाद सुगम भी वापस कमरे में आ गया. अनुभा पहले ही अपने सासससुर के साथ उन के कमरों में चली गई थी.
दूसरे दिन सुबह हमेशा की तरह प्रगत प्रताप के पास अगम का फोन आया. वह बड़े उत्साह के साथ अपने व्यवसाय की सफलता की बातें बता रहा था. उसे कई छोटेछोटे औडर्स मिल चुके थे. एक बहुत बड़े और्डर के लिए बातचीत चल रही थी. यदि यह और्डर उसे मिल जाता है तो फिर पीछे मुड़ कर नहीं देखना होगा. किंतु इसे पाने के लिए उसे कम से कम एक सप्ताह और रुकना होगा.
प्रगत प्रताप नहीं चाहते थे कि इस घटना के कारण से अगम के व्यवसाय पर कोई उलटा असर पड़े, सो उन्होंने उसे जरूरत के मुताबिक काम करने की सलाह दी.
2 दिनों तक घर में मुर्दनी सी छायी रही. सभी सदस्य एकदूसरे से कटते से रहे. कोई किसी से नजरें मिलाने की स्थिति में नहीं था. सभी अपनेअपने कमरों में बंद थे. कोई भी काम पर नहीं गया. तीसरे दिन नाश्ते की टेबल पर सुगम ने सभी को बुलवाया. सभी की आंखों में एक अजीब तरह की उदासी थी. सुलभा की आंखों से भी पछतावे के आंसू बह रहे थे.
‘‘पिताजी, मैं अपनी गलती स्वीकार करती हूं. मुझ से बहुत ही बड़ी गलती हुई है. मैं ने आप की शिक्षा व सामाजिकता और अनुभा के विश्वास को गहरी चोट पहुंचाई है.’’
मुझे अपनी गलती का अहसास हो गया है मैं अनुभा को ले कर दूसरे घर में शिफ्ट हो जाता हूं, क्योंकि यहां रहने पर मैं हमेशा अपराधबोध से ग्रस्त रहूंगा. इस अवस्था में साथ रहना दोनों परिवारों के लिए ठीक नहीं होगा. मैं अनुभा को वचन देता हूं कि भविष्य में मुझ से इस तरह की कोई गलती नहीं होगी,’’ यह सब कहते समय सुगम की आंखें भीगी हुई थीं.
‘‘लेकिन अगम को क्या कहेंगे?’’ प्रगत प्रताप ने पूछा.
‘‘उस से शहर में हमारा जो दूसरा घर है उस पर कुछ लोग कब्जा करना चाहते थे. सो, आननफानन यह फैसला लेना पड़ा वरना प्रौपर्टी हाथ से चली जाती. उन्हें असली बात मत बताइए वरना कोई भी अपने भाई व पत्नी पर विश्वास नहीं करेगा,’’ सुगम लगभग रोते हुए बोला.
‘‘तुम क्या कहती हो अनुभा? वैसे, पहली गलती तो सभी माफ कर देते है,’’ प्रगत प्रताप ने अनुभा की तरफ देख कर पूछा.
‘‘जैसा आप उचित समझें, पिताजी,’’ कहते हुए अनुभा की आंखों में भी आंसू थे पर घाव तो गहरा था और भरे या न भरे, पता नहीं.
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रात के 2 बजे के करीब अनुभा की आंखें खुलीं तो उस ने देखा, सुगम बिस्तर पर नहीं है. 5-7 मिनट बाद जब सुगम वापस नहीं आया तो अनुभा को कुछ चिंता हुई. वह उठ कर बाहर की तरफ जाने वाले दरवाजे पर गई तो उस ने पाया दरवाजे की सांकल खुली हुई है. सुगम को अचानक बाहर जाने की क्या जरूरत आ पड़ी. अनुभा यह सोच ही रही थी कि पास के कमरे से खुसुरफुसुर की आवाजें आईं. संभवतया सुलभा की बच्ची को कोई परेशानी हुई होगी. यही सोच कर शायद उस ने सामने वाला दरवाजा न खोल कर कमरों को जोड़ने वाला दरवाजा खोलने का निर्णय लिया होगा. निश्चित रूप से कोई बड़ी परेशानी रही होगी. वरना यह दरवाजा तो दिन के समय तक दोनों तरफ से बंद रहता है. आशंकाओं से भरी अनुभा ने कुछ झिझकते हुए दरवाजा खोल दिया.
आंखों के सामने का दृश्य अविश्वसनीय था. सुगम और सुलभा अंतरंग प्रणय की अवस्था में थे. अनुभा को कुछ समझ में नहीं आया की वह क्या करे. उसे चक्कर सा आ गया, वह गिरने लगी. ‘सुगम…’ अनुभा गिरने से पहले पूरी ताकत लगा कर चीखी. अनुभा की चीख में इतनी तेजी तो थी ही कि वह प्रगत प्रताप और जैविका की नींद खोल सके.
‘‘यह तो अनुभा की आवाज है. पेट से है. कहीं कुछ गड़बड़,’’ कहते हुए आशंकित जैविका उठ बैठी.
‘‘चलो,चल कर कर देखते हैं,’’ प्रगत प्रताप बिस्तर छोड़ते हुए बोले.
तेज कदमों से दोनों सुगम के कमरे की तरफ चल दिए. चूंकि आगे वाले दरवाजे का सांकल खुला हुआ ही था, इसलिए ढकेलते ही खुल गया. कमरे में सुगम व अनुभा दोनों को न पा कर वे भी कमरों को जोड़ने वाले दरवाजे की तरफ दौड़े.
फर्श पर अनुभा को लगभग बेहोश व सुगम और सुलभा को साथ खड़ा देख कर प्रगत प्रताप और जैविका को माजरा समझते देर न लगी.
‘‘यह क्या सुगम? कितना नीचे गिर गए हो तुम? अपने बड़े भाई की पत्नी के साथ इस तरह के संबंध रखते हुए तुम्हें शर्म नहीं आती,’’ प्रगत प्रताप सुगम को डांटते हुए बोले.
‘‘सुलभा तुम? तुम तो सुगम से बड़ी हो, उम्र में भी और ओहदे व मानमर्यादा में भी,’’ जैविका सुलभा को डांटते हुए बोली, ‘‘डायन भी सात घर छोड़ कर बच्चे खाती है.’’
‘‘वाह, सुगम, खूब नाम रोशन किया है हमारा. इंग्लिश स्कूल में तुम को शिक्षा दिलवाई थी परंतु देशी सभ्यता और संस्कृति को भूलने को नहीं कहा था. दुनिया को अब क्या मुंह दिखाऊंगा,’’ प्रगत प्रताप की आंखों में आंसू आ गए. आवाज भर्रा गई.
सुगम व सुलभा मुजरिमों की तरह सिर झुकाए खड़े थे. अब तक अनुभा भी कुछकुछ होश में आ गई थी.
प्रगत प्रताप इस शहर के जानेमाने उद्योगपति हैं. इन्होंने अपनी काबिलीयत के दम पर अपने पुरखों से विरासत में मिले ब्याजबट्टे के धंधे को छोड़ कर कारखाना डालने की हिम्मत की. और आज सफलता के उस मुकाम पर हैं जहां पहुंचने की सिर्फ कल्पना ही की जा सकती है. परिवार में पत्नी जैविका और 3 बच्चे हैं. सब से बड़ी लड़की सरला की शादी हो चुकी है जो अपनी ससुराल में सुखी है. उस से छोटा लड़का अगम है. अगम की उम्र 34 साल है. अगम की पत्नी का नाम सुलभा है और दोनों की शादी 5 साल पहले हुई है. इन दोनों की एक बेटी है जिस का नाम विधा है. सब से छोटा बेटा सुगम है जो लगभग 27 साल का है जो यह नई वाली फैक्टरी को संभालता है. सुगम भी शादीशुदा है और अभी पिछले महीने ही शादी की पहली सालगिरह बड़ी धूमधाम से मनाई है. इस की पत्नी अनुभा अभी एक माह की गर्भवती है.
प्रगत प्रताप अपने नाम के अनुरूप प्रगतिशील विचारधारा के तो हैं ही, साथ ही अपने पुरखों द्वारा दी गई सीख का सम्मान करने वाले भी हैं. शायद यह ही कारण है कि नए व्यवसाय को अपनाने के बावजूद उन्होंने अपनी हवेली के नवीनीकरण के समय पुरखों की मान्यता को ध्यान में रखते हुए हवेली की आमूलचूल डिजाइन पुरानी ही रखी. 20 कमरों वाली इस हवेली की खासीयत यह है कि यदि इस के सभी दरवाजे खोल दिए जाएं तो सब कमरे अंदर ही अंदर एकदूसरे से जुड़ जाएं.
इन सब के अतिरिक्त, प्रगत प्रताप की खासीयत और थी. वे बेहद न्यायप्रिय थे. यही कारण था कि उन की फैक्टरियों में एक भी मजदूर मैनेजमैंट विरोधी नहीं था. सभी कर्मचारी उन के फैसलों का सम्मान करते थे.
अगम पिछले 2 दिनों से कारखाने के काम के सिलसिले में शहर से बाहर गया हुआ था. उस का सप्ताहभर बाद लौटने का प्रोग्राम था. पिछले 6 महीनों से कारखाने के विस्तारीकरण का काम चल रहा था. इसी कारण अगम ज्यादातर बाहर ही रहता था.
‘‘क्यों किया तुम ने ऐसा सुगम?’’ अनुभा की रुलाई अब फूट पड़ी थी.
‘‘जवाब दो सुगम, असली गुनाहगार तो तुम अनुभा के ही हो? और सुलभा, तुम अगम को क्या जवाब दोगी? किस मुंह से उस के सामने जाओगी. क्या उस के विश्वास का जवाब यह अविश्वास, फरेब और धोखेबाजी ही है?’’ जैविका की रुलाई भी अब फूट पड़ी थी.
‘‘जवाब दो सुगम, जवाब दो. तुम्हें हमारे होने वाले बच्चे की कसम, बताओ, मुझ में क्या कमी थी जो तुम ने मेरे साथ यह दगाबाजी की,’’ अनुभा बच्चों की तरह बिलख कर रोते हुए सुगम से प्रश्न करती रही.
सुगम व सुलभा मूर्ति की तरह निश्चल खड़े रहे.
‘‘जवाब दो सुगम. तुम्हें अपने होने वाले बच्चे की कसम है,’’ अनुभा ने अपना प्रश्न फिर जोर दे कर दोहरा दिया. अनुभा ने अपना प्रश्न 3-4 बार दोहरा दिया.
‘‘नहीं अनुभा, तुम में या तुम्हारे प्यार में कोई कमी नहीं है. लेकिन कुछ ‘अतिरिक्त’ पाने की चाह में हम दोनों एकदूसरे के प्रति आकर्षित हो गए,’’ सुगम दबी आवाज में सफाई देते हुए बोला.
‘‘क्या हर स्त्री और पुरुष के अंगों की बनावट अलगअलग होती है? कहां से तुम्हें कुछ ‘अतिरिक्त’ मिलेगा? आखिर यह ‘अतिरिक्त’ क्या है? और सब से बड़ा प्रश्न यह ‘अतिरिक्त’ पा कर समाज में कितना सम्मान मिलेगा? समाज में तुम्हारा ओहदा कितना बढ़ जाएगा? अपनी पत्नी के अलावा कितनी और स्त्रियों से संबंध रखे हैं तुम ने? और कितना कुछ ‘अतिरिक्त’ पाया तुम ने. यह जानने के बाद कौन सी संस्था पुरस्कृत करने वाली है तुम्हें? मुझे बताओ तो जरा,’’ प्रगत प्रताप गुस्से से भर कर सुगम से पूछ बैठे.
‘‘सुगम, तुम्हें एक बार भी नहीं लगा कि तुम मुझ से विश्वासघात कर के कितना बड़ा गुनाह कर रहे हो. मैं तुम्हारा साथ और संबंल पाने की खातिर अपने मां, बाप, भाई, बहन सभी को छोड़ कर आई हूं सिर्फ तुम्हारे भरोसे पर…’’ अनुभा रोए जा रही थी.
‘‘गुनाह तो इस कुलटा का भी है. यह भी इस गुनाह में बराबर की साझीदार है,’’ जैविका सुलभा की तरफ इशारा कर के बोलीं.
सुगम अपना अपमान सहन कर रहा था लेकिन जैसे ही जैविका ने सुलभा के प्रति सख्त शब्दों का इस्तेमाल किया तो वह तिलमिला उठा. उस की सुलभा के प्रति यह सहानुभूति शायद तात्कालिक शारीरिक संबंधों की वजह से थी.
‘‘गुनाह, कौन सा गुनाह मम्मी?
2 शादीशुदा स्त्रीपुरुष के बीच आपसी संबंध को तो अदालत भी गुनाह नहीं मानती. इन संबंधों के आधार पर किसी को सजा नहीं मिल सकती है, न ही किसी को परेशान किया जा सकता है,’’ सुगम अब अपनी बेशर्मी को सुप्रीम कोर्ट के आदेश का जामा पहनाने लगा.
सुगम की इस दलील को सुन कर प्रगत प्रताप सुन्न रह गए. उन्हें लगा यह उन के दिए गए संस्कारों की हार है. अब तक अपनेआप को संभाले हुए प्रगत प्रताप और अधिक सहन नहीं कर पाए, फूटफूट कर रो पड़े.
सुगम को अपने मजबूत पिता से इस तरह की प्रतिक्रिया की उम्मीद न थी. वह सोच रहा था. प्रगत प्रताप उसे डांटेंगे और शायद एकदो चांटें भी रसीद कर दें. उस ने अपनी मां जैविका को कई बार रोते हुए देखा था, किंतु अपने पिता का इस प्रकार बिलखबिलख कर रोना वह पहली बार देख रहा था. वह मन ही मन अपनेआप को धिक्कारने लगा. अपने पिता से नजरें मिलाने की हिम्मत उस में नहीं थी.
रोते हुए प्रगत प्रताव व जैविका अनुभा को अपने साथ ले कर कमरे से बाहर निकल गए.
सुगम व सुलभा कुछ समय तक चुपचाप खड़े रहे. शायद दोनों को ही अपनी गलती का एहसास हो गया था.
कुछ मिनटों के बाद सुगम भी वापस कमरे में आ गया. अनुभा पहले ही अपने सासससुर के साथ उन के कमरों में चली गई थी.
दूसरे दिन सुबह हमेशा की तरह प्रगत प्रताप के पास अगम का फोन आया. वह बड़े उत्साह के साथ अपने व्यवसाय की सफलता की बातें बता रहा था. उसे कई छोटेछोटे औडर्स मिल चुके थे. एक बहुत बड़े और्डर के लिए बातचीत चल रही थी. यदि यह और्डर उसे मिल जाता है तो फिर पीछे मुड़ कर नहीं देखना होगा. किंतु इसे पाने के लिए उसे कम से कम एक सप्ताह और रुकना होगा.
प्रगत प्रताप नहीं चाहते थे कि इस घटना के कारण से अगम के व्यवसाय पर कोई उलटा असर पड़े, सो उन्होंने उसे जरूरत के मुताबिक काम करने की सलाह दी.
2 दिनों तक घर में मुर्दनी सी छायी रही. सभी सदस्य एकदूसरे से कटते से रहे. कोई किसी से नजरें मिलाने की स्थिति में नहीं था. सभी अपनेअपने कमरों में बंद थे. कोई भी काम पर नहीं गया. तीसरे दिन नाश्ते की टेबल पर सुगम ने सभी को बुलवाया. सभी की आंखों में एक अजीब तरह की उदासी थी. सुलभा की आंखों से भी पछतावे के आंसू बह रहे थे.
‘‘पिताजी, मैं अपनी गलती स्वीकार करती हूं. मुझ से बहुत ही बड़ी गलती हुई है. मैं ने आप की शिक्षा व सामाजिकता और अनुभा के विश्वास को गहरी चोट पहुंचाई है.’’
मुझे अपनी गलती का अहसास हो गया है मैं अनुभा को ले कर दूसरे घर में शिफ्ट हो जाता हूं, क्योंकि यहां रहने पर मैं हमेशा अपराधबोध से ग्रस्त रहूंगा. इस अवस्था में साथ रहना दोनों परिवारों के लिए ठीक नहीं होगा. मैं अनुभा को वचन देता हूं कि भविष्य में मुझ से इस तरह की कोई गलती नहीं होगी,’’ यह सब कहते समय सुगम की आंखें भीगी हुई थीं.
‘‘लेकिन अगम को क्या कहेंगे?’’ प्रगत प्रताप ने पूछा.
‘‘उस से शहर में हमारा जो दूसरा घर है उस पर कुछ लोग कब्जा करना चाहते थे. सो, आननफानन यह फैसला लेना पड़ा वरना प्रौपर्टी हाथ से चली जाती. उन्हें असली बात मत बताइए वरना कोई भी अपने भाई व पत्नी पर विश्वास नहीं करेगा,’’ सुगम लगभग रोते हुए बोला.
‘‘तुम क्या कहती हो अनुभा? वैसे, पहली गलती तो सभी माफ कर देते है,’’ प्रगत प्रताप ने अनुभा की तरफ देख कर पूछा.
‘‘जैसा आप उचित समझें, पिताजी,’’ कहते हुए अनुभा की आंखों में भी आंसू थे पर घाव तो गहरा था और भरे या न भरे, पता नहीं.
The post प्रायश्चित्त : अनुभा के साथ कुछ ऐसा ही हुआ था appeared first on Sarita Magazine.
February 25, 2019 at 02:36PM
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