Tuesday 30 October 2018

नीड़ का निर्माण फिर से (भाग-2) : मानसी ने क्यों तलाक लेने की ठानी

पूर्व कथा

मानसी की जिंदगी में राज आया था जो अचानक उसे छोड़ चला गया था. ऐसे में मनोहर ने उसे सहारा दिया और दोनों का प्रेमविवाह हो गया. लेकिन मनोहर की शराब पीने की लत से मानसी परेशान थी. ऊपर से सास भी नाखुश रहती थी. ऐसे में मानसी के कहने पर मनोहर ने अलग घर ले लिया जहां मानसी ने अपनी बेटी चांदनी को जन्म दिया. मनोहर को व्यापार में घाटा शुरू हो गया और वे वापस सासससुर के पास आ गए. मानसी की तनख्वाह के पैसे शराब में उड़ा देना, उसे मारना, मनोहर की ये सब आदतें नहीं बदलीं. एक दिन राज का फोन मानसी को आता है. उस से मिल कर सारी पुरानी यादें ताजा हो जाती हैं. अपने प्यार की दुहाई देते हुए राज उसे वापस लौट आने को कहता है. आफिस में मानसी की सहेली अचला उसे ऐसा न करने को कहती हैं. लेकिन मानसी तलाक लेने की ठान लेती हैं. उस के मातापिता, ससुर सब समझाते हैं और आखिर में मनोहर की मरजी पूछी जाती है तो वह रो उठता है.

अब आगे…

‘मैं क्या हमेशा से ऐसा रहा,’ मनोहर बोला, ‘मैं मानसी से बेहद प्यार करता हूं. अपनी बेटी चांदनी को एक दिन न देखूं तो मेरा दिल बेचैन हो उठता है.’

‘जब ऐसी बात है तो उसे दुख क्यों देता है,’ मानसी की मां बोलीं.

‘मम्मी, मैं ने कई बार कोशिश की पर चाह कर भी अपनी इस लत को छोड़ नहीं पाया.’

मनोहर के इस कथन पर सब सोच में पड़ गए कि कहीं न कहीं मनोहर के भीतर भी अपराधबोध था. यह जान कर सब को अच्छा लगा. मनोहर को अपने परिवार से लगाव था. यही एक रोशनी थी जिस से मनोहर को पुन: नया जीवन मिल सकता था.

मानसी की मां उसे एकांत में ले जा कर बोलीं, ‘बेटी, मनोहर उतना बुरा नहीं है जितना तुम सोचती हो. आज उस की जो हालत है सब नशे की वजह से है. नशा अच्छेअच्छे के विवेक को नष्ट कर देता है. मैं तो कहना चाहूंगी कि तुम एक बार फिर कोशिश कर के देखो. उस की जितनी उपेक्षा करोगी वह उतना ही उग्र होगा. बेहतर यही होगा कि तुम उसे स्नेह दो. हो सके तो मां जैसा अपनत्व दो. एक स्त्री में ही सारे गुण होते हैं. पत्नी को कभीकभी पति के लिए मां भी बनना पड़ता है.’

मानसी पर मां की बातों का प्रभाव पड़ा. इस बीच उस की सास ने कुछ तेवर दिखाने चाहे तो मनोहर ने रोक दिया, ‘आप हमारे बीच में मत बोलिए.’

‘क्या तुम शराब पीना छोड़ोगे?’ अपने पिता के यह पूछने पर मनोहर ने सिर झुका लिया.

‘तुम्हारे गुरदे में सूजन है. तुम्हें इलाज की सख्त जरूरत है. मैं तुम्हें दिल्ली किसी अच्छे डाक्टर को दिखाऊं तो तुम मेरा सहयोग करोगे?’ वह आगे बोले.

मनोहर मानसी की तरफ याचना भरी नजरों से देख कर बोला, ‘बशर्ते मानसी भी मेरे साथ दिल्ली चलेगी.’

‘मेरे काम का हर्ज होगा,’ मानसी बोली.

‘देख लिया पापा. इसे अपने काम के अलावा कुछ सूझता ही नहीं,’ मनोहर अपने ससुर की तरफ मुखातिब हो कर कुछ नाराज स्वर में बोला.

‘बेटी, उसे तुम्हारा सान्निध्य चाहिए. तुम पास रहोगी तो उसे बल मिलेगा,’ मानसी के पिता बोले.

मानसी 10 दिन दिल्ली रह कर आई तो मनोहर काफी रिलेक्स लग रहा था. उस ने शराब पीनी छोड़ दी थी. ऐसा मानसी का मानना था लेकिन हकीकत कुछ और थी. मनोहर अब चोरी से नशा करता था.

एक रोज किसी बात पर दोनों में तकरार हो गई. पतिपत्नी की रिश्ते के लिहाज से ऐसी तकरार कोई माने नहीं रखती. मानसी के सासससुर दिल्ली गए थे. मनोहर को बहाना मिला. वह बाहर निकला तो देर रात तक आया नहीं. उस रात मानसी बेहद घबराई हुई थी. ‘अचला, मनोहर अभी तक घर नहीं आया. वह शाम से निकला है,’ वह फोन पर सुबकने लगी.

‘अकेली हो?’ अचला ने पूछा.

‘हां, घबराहट के मारे मेरी जान सूख रही है. उसे कुछ हो गया तो?’

अचला ने अपने पति को जगा कर सारा वाकया सुनाया तो वह कपड़े पहन कर मनोहर की तलाश में बाहर निकला. 10 मिनट बाद मानसी का फिर फोन आया, ‘अचला, मनोहर घर के बाहर गिरा पड़ा है. मुझे लगता है कि वह नशे में धुत्त है. अपने पति से कहो कि वह आ कर किसी तरह उसे अंदर कर दें.’

अगली सुबह मानसी आफिस आई तो वह अंदर से काफी टूटी हुई थी. मनोहर ने उस के विश्वास के साथ छल किया था जिस का उसे सपने में भी भान न था. कुछ कहने से पहले ही मानसी की आंखें डबडबा गईं. ‘बोल, अब मैं क्या करूं. सब कर के देख लिया. 5 साल कम नहीं होते. ठेकेदारी के चलते मेरे सारे गहने बिक गए. जिस पर मैं ने उसे अपनी तनख्वाह से मोटरसाइकिल खरीद कर दी कि कोई कामधाम करेगा…’

अचला विचारप्रक्रिया में डूब गई, ‘तुम्हें परिस्थिति से समझौता कर लेना चाहिए.’

अचला की इस सलाह पर मानसी बिफर पड़ी, ‘यानी वह रोज घर बेच कर पीता रहे और मैं सहती रहूं. क्यों? क्योंकि एक स्त्री से ही समझौते की अपेक्षा समाज करता है. सारे सवाल उसी के सामने क्यों खड़े किए जाते हैं?’

‘क्योंकि स्त्री की स्थिति दांतों के बीच फंसी जीभ की तरह होती है.’

‘पुरुष की नहीं जो स्त्री के गर्भ से निकलता है. स्त्री चाहे तो उसे गर्भ में ही खत्म कर सकती है,’ मानसी की त्योरियां चढ़ गईं.

‘हम ऐसा नहीं कर सकते, क्योंकि कोई भी स्त्री अपनी कृति नष्ट नहीं कर सकती.’

‘यही तो कमजोरी है हमारी जिस का नाजायज फायदा पुरुष उठाता रहा.’

‘तलाक ले कर तुझे मिलेगा क्या?’

‘एक स्वस्थ माहौल जिस की मैं ने कामना की थी. अपनी बेटी को स्वस्थ माहौल दूंगी. उसे पढ़ाऊंगी, स्वावलंबी बनाऊंगी,’ मानसी के चेहरे से आत्म- विश्वास साफ झलक रहा था.

‘कल वह भी किसी पुरुष का दामन थामेगी?’ अचला ने सवालिया निगाह से देखा.

‘पर वह मेरी तरह कमजोर नहीं होगी. वह झूठे आदर्श, प्रथा, परंपरा ढोएगी नहीं, बल्कि उस का आत्मसम्मान सर्वोपरि होगा.’

‘मानसी, तू जवान है, खूबसूरत है, कैसे बच पाएगी पुरुषों की कामुक नजरों से? भूखे भेडि़यों की तरह सब मौका तलाशेंगे.’

‘ऐसा कुछ नहीं होगा. अगर हम अंदर से अविचलित रहें तो मजाल है जो कोई हमारी तरफ नजर उठा कर भी देखे,’ मानसी के दृढ़निश्चय के आगे अचला निरुत्तर थी.

अदालत में मानसी ने जब तलाक की अरजी दी तो एक पल के लिए सभी स्तब्ध रह गए. किसी को भरोसा नहीं था कि मानसी इतने बड़े फैसले को साकार रूप देगी. उधर जब मनोहर को तलाक का नोटिस मिला तो वह भी सकते में आ गया.

‘आखिर उस ने अपनी जात दिखा ही दी. मैं तो पहले ही इस शादी के खिलाफ थी. जिस लड़की का माथा चौड़ा हो उस के पैर अच्छे नहीं होते,’ मनोहर की मां मुंह बना कर बोलीं.

‘तुम्हारे बेटे ने कौन सा अपनी जात का मान रखा,’ मनोहर के पिता उसी लहजे में बोले.

‘तुम तो उसी कुलकलंकिनी का पक्ष लोगे,’ वह तत्काल असलियत पर आ गई, ‘अच्छा है, इसी बहाने चली जाए. बेटे की शादी धूमधाम से करूंगी. मेरा बेटा उस के साथ कभी भी सुखी नहीं रहा,’ टसुए बहाते मनोहर की मां बोलीं.

‘इस गफलत में मत रहना कि तुम्हारा बेटा पुरुष है इसलिए उस के हर गुनाह को लोग माफ कर देंगे. मानसी पर उंगली उठेगी तो मनोहर भी अछूता नहीं रहेगा,’ मनोहर के पिता बोले.

‘मैं यह सब नहीं मानती. बेटा खरा सोना होता है. लड़की वाले दरवाजा खटखटाएंगे,’ मनोहर की मां ऐंठ कर बोलीं.

‘शादी तो बाद में होगी पहले इस नोटिस का क्या करें,’ मनोहर की ओर मुखातिब होते हुए उस के पिता बोले.

मनोहर किंकर्तव्यविमूढ़ बना रहा.

‘यह क्या बोलेगा?’ मनोहर की मां तैश में बोलीं.

‘तुम चुप रहो,’ मनोहर के पिता ने डांटा, ‘यह मनोहर और मानसी के बीच का मामला है.’

मनोहर बिना कुछ बोले ऊपर कमरे में चला गया. कदाचित वह भी इस अनपेक्षित स्थिति के लिए तैयार न था. रहरह कर उस के सामने कभी मानसी तो कभी चांदनी का चेहरा तैर जाता. उसे मानसी खुदगर्ज और घमंडी लगी. जिसे अपनी कमाई पर गुमान था. जब मानसी अलग रहने के लिए जाने लगी थी तो मनोहर और उस के पिता ने उसे काफी समझाया था. परिवार की मानमर्यादा का वास्ता दिया पर वह टस से मस न हुई.

10 रोज बाद मनोहर मानसी के घर आया.

‘मानसी, मैं तुम्हारे पैर पड़ता हूं. घर चलो. लोग तरहतरह की बातें करते हैं.’

मनोहर के कथन को नजरअंदाज करते हुए मानसी की त्योरियां चढ़ गईं, ‘तुम यहां भी आ गए. मैं अब उस घर में कभी नहीं जाऊंगी.’

‘मैं शराब को हाथ तक नहीं लगाऊंगा.’

‘तुम ने आज भी पी है.’

‘क्या करूं, तुम सब के बगैर जी नहीं लगता,’ उस का स्वर भीग गया.

‘मैं हर तरह से देख चुकी हूं. अब कोई गुंजाइश नहीं,’ मानसी ने नफरत से मुंह दूसरी तरफ फेर लिया.

‘तो ठीक है, देखता हूं कैसे लेती हो तलाक,’ मनोहर पैर पटकते हुए चला गया.

कोर्ट के कई चक्कर काटने के बाद जिस दिन मानसी को फैसला मिलने वाला था उस रोज दोनों ही पक्ष के लोग थे. मनोहर व उस के मांबाप. इधर मानसी के मम्मीपापा. मनोहर की मां को छोड़ कर सभी के चेहरे लटके हुए थे. जज ने कहा, ‘अभी भी मौका है, आप अपने फैसले पर फिर से विचार कर सकती हैं.’

मानसी ने कोई जवाब नहीं दिया.

‘सर, यह क्या बोलेगी. औरत पर हाथ उठाने वाला आदमी पति के नाम पर कलंक है. बेहतर होगा आप अपना फैसला सुनाएं,’ मानसी का वकील बोला.

‘आप थोड़ी देर शांत हो जाइए. मुझे इन के मुख से सुनना है,’ जज ने हाथ से इशारा किया.

क्षणांश चुप्पी के बाद मानसी बोली, ‘सर, मनोहर और मेरे बौद्धिक स्तर नदी के दो किनारों की तरह हैं जो कभी भी एक नहीं हो सकते.’

जज ने अपना फैसला सुना दिया. यानी तलाक. मनोहर इस फैसले से खुश न था. उस का जी हुआ कि मानसी का गला घोंट दे. वह मानसी को थप्पड़ मारने जा रहा था कि उस के पिता बीच में आ गए. ‘खबरदार, जो हाथ लगाया. तेरा और उस का रिश्ता खत्म हो चुका है.’

तलाक की खबर पा कर मनोहर के बड़े भाईबहन, जो दूसरे शहरों में थे, आ गए.

‘तू ने जीतेजी हम सब को मार डाला,’ भाई राकेश बोला, ‘क्या मुंह दिखाएंगे समाज में.’

मनोहर की बहन प्रतिमा मानसी के घर आई. मानसी ने उन्हें ससम्मान बिठाया.

‘मानसी, मुझे इस फैसले से दुख है. न मेरा भाई ऐसा होता न ही तुम्हें ऐसा कठोर कदम उठाने के लिए विवश होना पड़ता. मैं उस की तरफ से तुम से माफी मांगती हूं,’ प्रतिमा भरे मन से बोली.

‘दीदी, आप दिल छोटा मत कीजिए. मुझे किसी से कोई गिलाशिकवा नहीं.’

‘मुझे चांदनी की चिंता है. मेरा तो उस से रिश्ता खत्म नहीं हुआ,’ चांदनी के सिर पर स्नेह से हाथ फेरते हुए प्रतिमा बोली.

‘दीदी, खून के रिश्ते क्या आसानी से मिटाए जा सकते हैं,’ मानसी भी भावुक हो उठी.

प्रतिमा उठ कर जाने लगी तो मानसी बोली, ‘चांदनी के लिए आप हमेशा बूआ ही रहेंगी.’

दरवाजे तक आतेआते भरे मन से प्रतिमा बोली, ‘मानसी, कागज पर लिख या मिटा देने से रिश्ते खत्म नहीं हो जाते. तुम्हारे और मनोहर के बीच रिश्तों की एक कड़ी है जिसे मिटाया नहीं जा सकता.’

मनोहर प्राय: अपने कमरे में गुमसुम पड़ा रहता. न समय पर खाता न पीता. अब उस ने ज्यादा ही शराब पीनी शुरू कर दी. पैसा पिता से लड़झगड़ कर ले लेता. पहले जब कभी मानसी रोकटोक लगाती थी तो वह पीना कम कर देता. अब तो वह भी न रही. निरंकुश दिनचर्या हो गई थी उस की. एक दिन शराब पी कर आया तो अपनी मां से उलझ गया :

‘तुम ने मेरी जिंदगी बरबाद की है. तुम ने हमेशा मानसी से नफरत की है. उस के खिलाफ मुझे भड़काया.’

‘उलटा चोर कोतवाल को डांटे. मानसी मेरी नहीं तेरी वजह से गई है. बेटा, जो औरत ससुराल की देहरी लांघती है वह औरत नहीं वेश्या होती है. तेरे सामने तो एक लंबी जिंदगी पड़ी है. तेरा ब्याह अच्छे घराने में कराऊंगी,’ मनोहर की मां की आंखों में अजीब सी चमक थी.

‘नहीं करना है मुझे ब्याह,’ मनोहर धम्म से सोफे पर गिर पड़ा.

मनोहर की हालत दिनोदिन बिगड़ने लगी. एक दिन अपनी मां को ढकेल दिया. वह सिर के बल गिरतेगिरते बचीं.

तंग आ कर उस के पिता ने अपने बड़े बेटे राकेश को बंगलौर से बुलाया.

-क्रमश:

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पूर्व कथा

मानसी की जिंदगी में राज आया था जो अचानक उसे छोड़ चला गया था. ऐसे में मनोहर ने उसे सहारा दिया और दोनों का प्रेमविवाह हो गया. लेकिन मनोहर की शराब पीने की लत से मानसी परेशान थी. ऊपर से सास भी नाखुश रहती थी. ऐसे में मानसी के कहने पर मनोहर ने अलग घर ले लिया जहां मानसी ने अपनी बेटी चांदनी को जन्म दिया. मनोहर को व्यापार में घाटा शुरू हो गया और वे वापस सासससुर के पास आ गए. मानसी की तनख्वाह के पैसे शराब में उड़ा देना, उसे मारना, मनोहर की ये सब आदतें नहीं बदलीं. एक दिन राज का फोन मानसी को आता है. उस से मिल कर सारी पुरानी यादें ताजा हो जाती हैं. अपने प्यार की दुहाई देते हुए राज उसे वापस लौट आने को कहता है. आफिस में मानसी की सहेली अचला उसे ऐसा न करने को कहती हैं. लेकिन मानसी तलाक लेने की ठान लेती हैं. उस के मातापिता, ससुर सब समझाते हैं और आखिर में मनोहर की मरजी पूछी जाती है तो वह रो उठता है.

अब आगे…

‘मैं क्या हमेशा से ऐसा रहा,’ मनोहर बोला, ‘मैं मानसी से बेहद प्यार करता हूं. अपनी बेटी चांदनी को एक दिन न देखूं तो मेरा दिल बेचैन हो उठता है.’

‘जब ऐसी बात है तो उसे दुख क्यों देता है,’ मानसी की मां बोलीं.

‘मम्मी, मैं ने कई बार कोशिश की पर चाह कर भी अपनी इस लत को छोड़ नहीं पाया.’

मनोहर के इस कथन पर सब सोच में पड़ गए कि कहीं न कहीं मनोहर के भीतर भी अपराधबोध था. यह जान कर सब को अच्छा लगा. मनोहर को अपने परिवार से लगाव था. यही एक रोशनी थी जिस से मनोहर को पुन: नया जीवन मिल सकता था.

मानसी की मां उसे एकांत में ले जा कर बोलीं, ‘बेटी, मनोहर उतना बुरा नहीं है जितना तुम सोचती हो. आज उस की जो हालत है सब नशे की वजह से है. नशा अच्छेअच्छे के विवेक को नष्ट कर देता है. मैं तो कहना चाहूंगी कि तुम एक बार फिर कोशिश कर के देखो. उस की जितनी उपेक्षा करोगी वह उतना ही उग्र होगा. बेहतर यही होगा कि तुम उसे स्नेह दो. हो सके तो मां जैसा अपनत्व दो. एक स्त्री में ही सारे गुण होते हैं. पत्नी को कभीकभी पति के लिए मां भी बनना पड़ता है.’

मानसी पर मां की बातों का प्रभाव पड़ा. इस बीच उस की सास ने कुछ तेवर दिखाने चाहे तो मनोहर ने रोक दिया, ‘आप हमारे बीच में मत बोलिए.’

‘क्या तुम शराब पीना छोड़ोगे?’ अपने पिता के यह पूछने पर मनोहर ने सिर झुका लिया.

‘तुम्हारे गुरदे में सूजन है. तुम्हें इलाज की सख्त जरूरत है. मैं तुम्हें दिल्ली किसी अच्छे डाक्टर को दिखाऊं तो तुम मेरा सहयोग करोगे?’ वह आगे बोले.

मनोहर मानसी की तरफ याचना भरी नजरों से देख कर बोला, ‘बशर्ते मानसी भी मेरे साथ दिल्ली चलेगी.’

‘मेरे काम का हर्ज होगा,’ मानसी बोली.

‘देख लिया पापा. इसे अपने काम के अलावा कुछ सूझता ही नहीं,’ मनोहर अपने ससुर की तरफ मुखातिब हो कर कुछ नाराज स्वर में बोला.

‘बेटी, उसे तुम्हारा सान्निध्य चाहिए. तुम पास रहोगी तो उसे बल मिलेगा,’ मानसी के पिता बोले.

मानसी 10 दिन दिल्ली रह कर आई तो मनोहर काफी रिलेक्स लग रहा था. उस ने शराब पीनी छोड़ दी थी. ऐसा मानसी का मानना था लेकिन हकीकत कुछ और थी. मनोहर अब चोरी से नशा करता था.

एक रोज किसी बात पर दोनों में तकरार हो गई. पतिपत्नी की रिश्ते के लिहाज से ऐसी तकरार कोई माने नहीं रखती. मानसी के सासससुर दिल्ली गए थे. मनोहर को बहाना मिला. वह बाहर निकला तो देर रात तक आया नहीं. उस रात मानसी बेहद घबराई हुई थी. ‘अचला, मनोहर अभी तक घर नहीं आया. वह शाम से निकला है,’ वह फोन पर सुबकने लगी.

‘अकेली हो?’ अचला ने पूछा.

‘हां, घबराहट के मारे मेरी जान सूख रही है. उसे कुछ हो गया तो?’

अचला ने अपने पति को जगा कर सारा वाकया सुनाया तो वह कपड़े पहन कर मनोहर की तलाश में बाहर निकला. 10 मिनट बाद मानसी का फिर फोन आया, ‘अचला, मनोहर घर के बाहर गिरा पड़ा है. मुझे लगता है कि वह नशे में धुत्त है. अपने पति से कहो कि वह आ कर किसी तरह उसे अंदर कर दें.’

अगली सुबह मानसी आफिस आई तो वह अंदर से काफी टूटी हुई थी. मनोहर ने उस के विश्वास के साथ छल किया था जिस का उसे सपने में भी भान न था. कुछ कहने से पहले ही मानसी की आंखें डबडबा गईं. ‘बोल, अब मैं क्या करूं. सब कर के देख लिया. 5 साल कम नहीं होते. ठेकेदारी के चलते मेरे सारे गहने बिक गए. जिस पर मैं ने उसे अपनी तनख्वाह से मोटरसाइकिल खरीद कर दी कि कोई कामधाम करेगा…’

अचला विचारप्रक्रिया में डूब गई, ‘तुम्हें परिस्थिति से समझौता कर लेना चाहिए.’

अचला की इस सलाह पर मानसी बिफर पड़ी, ‘यानी वह रोज घर बेच कर पीता रहे और मैं सहती रहूं. क्यों? क्योंकि एक स्त्री से ही समझौते की अपेक्षा समाज करता है. सारे सवाल उसी के सामने क्यों खड़े किए जाते हैं?’

‘क्योंकि स्त्री की स्थिति दांतों के बीच फंसी जीभ की तरह होती है.’

‘पुरुष की नहीं जो स्त्री के गर्भ से निकलता है. स्त्री चाहे तो उसे गर्भ में ही खत्म कर सकती है,’ मानसी की त्योरियां चढ़ गईं.

‘हम ऐसा नहीं कर सकते, क्योंकि कोई भी स्त्री अपनी कृति नष्ट नहीं कर सकती.’

‘यही तो कमजोरी है हमारी जिस का नाजायज फायदा पुरुष उठाता रहा.’

‘तलाक ले कर तुझे मिलेगा क्या?’

‘एक स्वस्थ माहौल जिस की मैं ने कामना की थी. अपनी बेटी को स्वस्थ माहौल दूंगी. उसे पढ़ाऊंगी, स्वावलंबी बनाऊंगी,’ मानसी के चेहरे से आत्म- विश्वास साफ झलक रहा था.

‘कल वह भी किसी पुरुष का दामन थामेगी?’ अचला ने सवालिया निगाह से देखा.

‘पर वह मेरी तरह कमजोर नहीं होगी. वह झूठे आदर्श, प्रथा, परंपरा ढोएगी नहीं, बल्कि उस का आत्मसम्मान सर्वोपरि होगा.’

‘मानसी, तू जवान है, खूबसूरत है, कैसे बच पाएगी पुरुषों की कामुक नजरों से? भूखे भेडि़यों की तरह सब मौका तलाशेंगे.’

‘ऐसा कुछ नहीं होगा. अगर हम अंदर से अविचलित रहें तो मजाल है जो कोई हमारी तरफ नजर उठा कर भी देखे,’ मानसी के दृढ़निश्चय के आगे अचला निरुत्तर थी.

अदालत में मानसी ने जब तलाक की अरजी दी तो एक पल के लिए सभी स्तब्ध रह गए. किसी को भरोसा नहीं था कि मानसी इतने बड़े फैसले को साकार रूप देगी. उधर जब मनोहर को तलाक का नोटिस मिला तो वह भी सकते में आ गया.

‘आखिर उस ने अपनी जात दिखा ही दी. मैं तो पहले ही इस शादी के खिलाफ थी. जिस लड़की का माथा चौड़ा हो उस के पैर अच्छे नहीं होते,’ मनोहर की मां मुंह बना कर बोलीं.

‘तुम्हारे बेटे ने कौन सा अपनी जात का मान रखा,’ मनोहर के पिता उसी लहजे में बोले.

‘तुम तो उसी कुलकलंकिनी का पक्ष लोगे,’ वह तत्काल असलियत पर आ गई, ‘अच्छा है, इसी बहाने चली जाए. बेटे की शादी धूमधाम से करूंगी. मेरा बेटा उस के साथ कभी भी सुखी नहीं रहा,’ टसुए बहाते मनोहर की मां बोलीं.

‘इस गफलत में मत रहना कि तुम्हारा बेटा पुरुष है इसलिए उस के हर गुनाह को लोग माफ कर देंगे. मानसी पर उंगली उठेगी तो मनोहर भी अछूता नहीं रहेगा,’ मनोहर के पिता बोले.

‘मैं यह सब नहीं मानती. बेटा खरा सोना होता है. लड़की वाले दरवाजा खटखटाएंगे,’ मनोहर की मां ऐंठ कर बोलीं.

‘शादी तो बाद में होगी पहले इस नोटिस का क्या करें,’ मनोहर की ओर मुखातिब होते हुए उस के पिता बोले.

मनोहर किंकर्तव्यविमूढ़ बना रहा.

‘यह क्या बोलेगा?’ मनोहर की मां तैश में बोलीं.

‘तुम चुप रहो,’ मनोहर के पिता ने डांटा, ‘यह मनोहर और मानसी के बीच का मामला है.’

मनोहर बिना कुछ बोले ऊपर कमरे में चला गया. कदाचित वह भी इस अनपेक्षित स्थिति के लिए तैयार न था. रहरह कर उस के सामने कभी मानसी तो कभी चांदनी का चेहरा तैर जाता. उसे मानसी खुदगर्ज और घमंडी लगी. जिसे अपनी कमाई पर गुमान था. जब मानसी अलग रहने के लिए जाने लगी थी तो मनोहर और उस के पिता ने उसे काफी समझाया था. परिवार की मानमर्यादा का वास्ता दिया पर वह टस से मस न हुई.

10 रोज बाद मनोहर मानसी के घर आया.

‘मानसी, मैं तुम्हारे पैर पड़ता हूं. घर चलो. लोग तरहतरह की बातें करते हैं.’

मनोहर के कथन को नजरअंदाज करते हुए मानसी की त्योरियां चढ़ गईं, ‘तुम यहां भी आ गए. मैं अब उस घर में कभी नहीं जाऊंगी.’

‘मैं शराब को हाथ तक नहीं लगाऊंगा.’

‘तुम ने आज भी पी है.’

‘क्या करूं, तुम सब के बगैर जी नहीं लगता,’ उस का स्वर भीग गया.

‘मैं हर तरह से देख चुकी हूं. अब कोई गुंजाइश नहीं,’ मानसी ने नफरत से मुंह दूसरी तरफ फेर लिया.

‘तो ठीक है, देखता हूं कैसे लेती हो तलाक,’ मनोहर पैर पटकते हुए चला गया.

कोर्ट के कई चक्कर काटने के बाद जिस दिन मानसी को फैसला मिलने वाला था उस रोज दोनों ही पक्ष के लोग थे. मनोहर व उस के मांबाप. इधर मानसी के मम्मीपापा. मनोहर की मां को छोड़ कर सभी के चेहरे लटके हुए थे. जज ने कहा, ‘अभी भी मौका है, आप अपने फैसले पर फिर से विचार कर सकती हैं.’

मानसी ने कोई जवाब नहीं दिया.

‘सर, यह क्या बोलेगी. औरत पर हाथ उठाने वाला आदमी पति के नाम पर कलंक है. बेहतर होगा आप अपना फैसला सुनाएं,’ मानसी का वकील बोला.

‘आप थोड़ी देर शांत हो जाइए. मुझे इन के मुख से सुनना है,’ जज ने हाथ से इशारा किया.

क्षणांश चुप्पी के बाद मानसी बोली, ‘सर, मनोहर और मेरे बौद्धिक स्तर नदी के दो किनारों की तरह हैं जो कभी भी एक नहीं हो सकते.’

जज ने अपना फैसला सुना दिया. यानी तलाक. मनोहर इस फैसले से खुश न था. उस का जी हुआ कि मानसी का गला घोंट दे. वह मानसी को थप्पड़ मारने जा रहा था कि उस के पिता बीच में आ गए. ‘खबरदार, जो हाथ लगाया. तेरा और उस का रिश्ता खत्म हो चुका है.’

तलाक की खबर पा कर मनोहर के बड़े भाईबहन, जो दूसरे शहरों में थे, आ गए.

‘तू ने जीतेजी हम सब को मार डाला,’ भाई राकेश बोला, ‘क्या मुंह दिखाएंगे समाज में.’

मनोहर की बहन प्रतिमा मानसी के घर आई. मानसी ने उन्हें ससम्मान बिठाया.

‘मानसी, मुझे इस फैसले से दुख है. न मेरा भाई ऐसा होता न ही तुम्हें ऐसा कठोर कदम उठाने के लिए विवश होना पड़ता. मैं उस की तरफ से तुम से माफी मांगती हूं,’ प्रतिमा भरे मन से बोली.

‘दीदी, आप दिल छोटा मत कीजिए. मुझे किसी से कोई गिलाशिकवा नहीं.’

‘मुझे चांदनी की चिंता है. मेरा तो उस से रिश्ता खत्म नहीं हुआ,’ चांदनी के सिर पर स्नेह से हाथ फेरते हुए प्रतिमा बोली.

‘दीदी, खून के रिश्ते क्या आसानी से मिटाए जा सकते हैं,’ मानसी भी भावुक हो उठी.

प्रतिमा उठ कर जाने लगी तो मानसी बोली, ‘चांदनी के लिए आप हमेशा बूआ ही रहेंगी.’

दरवाजे तक आतेआते भरे मन से प्रतिमा बोली, ‘मानसी, कागज पर लिख या मिटा देने से रिश्ते खत्म नहीं हो जाते. तुम्हारे और मनोहर के बीच रिश्तों की एक कड़ी है जिसे मिटाया नहीं जा सकता.’

मनोहर प्राय: अपने कमरे में गुमसुम पड़ा रहता. न समय पर खाता न पीता. अब उस ने ज्यादा ही शराब पीनी शुरू कर दी. पैसा पिता से लड़झगड़ कर ले लेता. पहले जब कभी मानसी रोकटोक लगाती थी तो वह पीना कम कर देता. अब तो वह भी न रही. निरंकुश दिनचर्या हो गई थी उस की. एक दिन शराब पी कर आया तो अपनी मां से उलझ गया :

‘तुम ने मेरी जिंदगी बरबाद की है. तुम ने हमेशा मानसी से नफरत की है. उस के खिलाफ मुझे भड़काया.’

‘उलटा चोर कोतवाल को डांटे. मानसी मेरी नहीं तेरी वजह से गई है. बेटा, जो औरत ससुराल की देहरी लांघती है वह औरत नहीं वेश्या होती है. तेरे सामने तो एक लंबी जिंदगी पड़ी है. तेरा ब्याह अच्छे घराने में कराऊंगी,’ मनोहर की मां की आंखों में अजीब सी चमक थी.

‘नहीं करना है मुझे ब्याह,’ मनोहर धम्म से सोफे पर गिर पड़ा.

मनोहर की हालत दिनोदिन बिगड़ने लगी. एक दिन अपनी मां को ढकेल दिया. वह सिर के बल गिरतेगिरते बचीं.

तंग आ कर उस के पिता ने अपने बड़े बेटे राकेश को बंगलौर से बुलाया.

-क्रमश:

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October 31, 2018 at 11:09AM

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