Tuesday 12 July 2022

भोज में स्पोर्ट्स कौंप्लैक्स- भाग 1: एक आधुनिक परिवार ने दी नई सोच को जन्म

‘‘महादेव, तुम्हारी बात हमारी सम?ा में नहीं आ रही है,’’ सोसाइटी के प्रैसिडैंट के रामलाल गुप्ताजी ने तैश में आ कर कहा. रामलाल गुप्ताजी महादेव के बहनोई चाचा भी थे और उसी सोसाइटी में रहते थे. उन्होंने ही महादेव को मकान खरीदने की सलाह दी थी.

‘‘आप ने ठीक कहा गुप्ताजी. आप की सम?ा में नहीं आएगी, न मैं सम?ा ही सकता हूं. लेकिन आप को इतना बता

दूं कि मैं किसी को भी भोजन

नहीं कराऊंगा.’’

‘‘यह तुम्हारी मरजी. लेकिन, जब तुम्हारे पिता का देहांत हुआ था तो तुम्हारे पिता पंडित दीनानाथ ने जो भोज किया था उस में उन्होंने, ईश्वर मु?ा से ?ाठ न बुलवाए, 500 लोगों को खिलाया था. यह तो तुम से रिश्तेदारी होने की वजह से इतना कह रहा हूं.’’

‘‘वह तो 20-25 साल पहले की बात हो गई. तब न कैंसर था, न कोविड और जब घी रुपए का दो सेर मिलता था.’’

‘‘हम कब इनकार करते हैं. इसी वजह से हम कहते हैं कि तुम 500 लोगों को न सही, दोस्तों, संबंधियों और ब्राह्मणों को तो भोजन कराओ.’’

‘‘मैं नहीं कराऊंगा.’’

‘‘तो तुम्हारे पितरों की आत्माएं भटकती रहेंगी और उन्हें हमेशा असंतोष रहेगा. वे न तुम्हें चैन लेने देंगे और न तुम्हारे कुनबे को. देखो, मैं ने अब पढ़ा

है व्हाट्सऐप पर कि अगर भोजन नहीं कराओगे तो तुम डिप्रैशन में आ सकते हो. इतने लोग आएंगे तो घर में

रौनक होगी.’’

‘‘मु?ो इस की चिंता नहीं है. मेरी बला से वे भटकें या आराम करें. जो नहीं आएंगे, उन की भी चिंता नहीं है.’’

‘‘बेटा, ऐसी कुभाषा मुंह से नहीं निकालते. न जाने ‘ऊपरवाला’ इस की क्या सजा दे. तुम शादीशुदा आदमी हो, ऐसा वचन आगे से कभी मत बोलना,’’ कह कर चाचाजी चले गए.

दीनानाथ गर्ग शहर में ही रहते और बाजार में उन की साडि़यों की एक बड़ी दुकान थी. उन का बड़ा लड़का महादेव मुंबई में एमबीए करने के बाद एक आईटी कंपनी में कार्यरत था. उसे साडि़यों के काम में रुचि नहीं थी. छोटा लड़का सहदेव उन्हीं के साथ रहता था. उस का पढ़ने में कभी मन ही नहीं लगा और वह पिता के पास ही रह कर दुकान का काम देखा करता था.

उस की पत्नी मालती छोटे शहर की थी. वह घर के कामकाज में बहुत होशियार थी और ससुर की सेवा बड़ी निष्ठा से करती थी, बाकी समय किट्टी में लगी रहती थी.

अचानक मुंबई में महादेव को सहदेव का मैसेज मिला कि पिताजी सख्त बीमार हैं. कैंसर की लास्ट स्टेज है और बचने की उम्मीद नहीं है.

जब महादेव और उस की पत्नी बिमला दोनों नागपुर पहुंचे तो पिता अस्पताल में वैंटिलेटर पर थे. उन के देखते ही देखते दीनानाथजी ने अंतिम बार आंखें खोल कर चारों तरफ देखा. फिर उन्हें एक हिचकी आई और उन के प्राणपखेरू उड़ गए.

दाह संस्कार नदी के किनारे महादेव ने किया. सहदेव की भी राय थी कि कम से कम पैसों में काम चलाया जाए और कोई फुजूलखर्ची न हो.

महादेव से दुकान संभल नहीं रही थी. बाजार में बड़ेबड़े शोरूम खुल गए थे और पुराने बाजार में उस की दुकान में ओल्ड फैशन साडि़यां थीं.

अब तेरहवीं के दिन बड़े भोज की बात थी जो सारे रिश्तेदार और सोसाइटी में चर्चा का विषय बन गई थी. दोनों भाई एकमत थे. उस सोसाइटी में लगभग हर कोई अपने बुजुर्ग की मृत्यु पर भोज कराने पर भी पार्किंग में बड़ा सा पंडाल

लगाता था.

जब रामलालजी हो कर चले गए तो महादेव अंदर जा कर पलंग पर बैठ गया. उस ने भाई और दोनों बहुओं को बुलाया और कहा, ‘‘चाचा रूठ कर चले गए हैं और कौन जाने कल वे हमें अपनी पार्टियों में बुलाएं भी न.’’

‘‘हमें किसी का कोई डर नहीं है, न हम किसी के मुहताज हैं,’’ सहदेव ने निडरता से कहा.

‘‘यह तो ठीक है, लेकिन बिमला और मालती, आप दोनों की क्या राय है?’’

‘‘आप जैसा ठीक सम?ों, करें. पुरानी रूढि़यों के पचड़ों में पड़ना मु?ो तो जरा भी नहीं सुहाता. अब मालती की राय और ले ली जाए,’’ बिमला ने कहा.

मालती ने कुछ कहने में संकोच किया तो महादेव ने आग्रह किया, ‘‘देखो मालती, हम दोनों तो बाहर के हो गए. रहना है तुम्हें और सहदेव को. इसलिए कोई ऐसी बात नहीं होनी चाहिए जिस से तुम दोनों को बाद में परेशानी हो और तुम्हारे सर्कल वाले तंग करें.’’

‘‘तंग क्यों करेंगे? ये मिलाप बंद कर देंगे तो हमारा क्या बिगाड़ लेंगे,’’ मालती ने साहस के साथ जवाब दिया. पापा की बीमारी के लिए मु?ो 12 लाख रुपए की दवा खरीदनी थी तो आप ने ही अपने प्लौट को मौर्टगेज कर के लिया न. चाचा फाइनैंस का काम करते हैं तो भी क्या उन्होंने एक पैसा दिया?’’

‘‘वह तो ठीक है. लेकिन करना क्या चाहिए? मैं चाहता हूं कि भोज में जो तीनचार लाख रुपए खर्च हों, वे किसी अच्छे काम में लगाए जाएं,’’ महादेव

ने कहा.

‘‘आप बुरा न मानें तो एक बात कहूं,’’ ससुर की मृत्यु पर पुरोहितों को भोज दिए जाने की बात आई तो छोटी बहू मालती ने कहा, ‘‘पिताजी के पास यह माताजी का जेवर था. अगर बुरा न मानें तो इसे बेच कर एडेड स्कूल में एक स्पोर्ट्स कौंप्लैक्स बनवा दिया जाए,’’ मालती बोली.

‘‘जरूर… और बताओ,’’ बिमला ने कहा.

‘‘अपने यहां जो मेड आती है, उस की बस्ती में पीने के पानी की बड़ी दिक्कत होती है. कुल एक ही टैंकर आता है, उस से काम नहीं चलता. इसलिए मीठे पानी का एक बोरवैल करा दें पिताजी के नाम पर और उस के साथ पानी का कूलर भी लगवा दें.’’

यह सुन कर सभी खुश हो गए. महादेव ने कहा, ‘‘बहू हो तो ऐसी. क्या शानदार सलाह दी है. आम लोगों के लिए पानी की सुविधा हो जाए, यह बहुत बढि़या बात है. बहूरानी, तुम्हारी बात मंजूर है. हां, सहदेव, इस में खर्च कितना पड़ेगा?’’

‘‘कोई 40 हजार रुपया लग जाएगा बोरवैल बनाने में और कूलर 25 हजार रुपए का आएगा. उस का कमरा आदि बनाने में तकरीबन एक लाख रुपए लग जाएंगे,’’ सहदेव ने बताया.

‘‘एक चीज और हो जाए तो गांव का और भी भला हो,’’ मालती ने कहा.

‘‘वह क्या?’’ महादेव ने पूछा.

मालती अंदर कोठरी में गई और जेवरभरा एक डब्बा ले कर आई. उसे दिखाते हुए उस ने कहा, ‘‘पिताजी के पास माताजी का जेवर था. उन्होंने इसे 4 दिनों पहले ही मु?ो दिया था और कहा था कि दोनों बहुएं आपस में बराबरबराबर बांट लेना. कम से कम 20 तोले से ऊपर की चीजें होंगी.’’

‘‘मेरी अच्छी मालती, इस से अच्छा काम और क्या हो सकता है,’’ बिमला ने कहा, ‘‘इस से पिताजी व माताजी, दोनों की यादें जिंदा रहेंगी. मेरे पास मेरी मां के दिए कुछ जेवर हैं, वे भी इसी स्कूल के 4 कमरे बनवाने में लगा दिए जाएंगे,’’ यह कह उस ने मालती को अपनी छाती से लगा लिया. इधर सहदेव भी महादेव के सीने से लग गया.

इतनी देर में सोसाइटी का एक गार्ड आया और जोर से कुंडी खटखटाने लगा.

सहदेव ने दरवाजा खोला और बाहर आ कर पूछा, ‘‘राम प्रसाद, क्या हुआ?’’

‘‘सोसाइटी के लोगों ने अंधेर कर दी.’

‘‘बताएगा भी कुछ कि क्या किया?’’

‘‘आप को और बड़े बाबू साहब को सोसाइटी के क्लब की मैंबरशिप से निकाल दिया और कहा कि अब इस घर से शादीब्याह का, लेनदेन का कोई नाता नहीं रखा जाएगा.

‘‘हां, कोई दीक्षितजी हैं, वे चाचा के घर में बता रहे थे कि गरुड़ पुराण में क्याक्या लिखा है. मोबाइल पर सब ने पढ़ा भी.’’

‘‘बस, इतनी सी बात है. यह तो हम पहले से जानते थे,’’ सहदेव ने कहा.

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‘‘महादेव, तुम्हारी बात हमारी सम?ा में नहीं आ रही है,’’ सोसाइटी के प्रैसिडैंट के रामलाल गुप्ताजी ने तैश में आ कर कहा. रामलाल गुप्ताजी महादेव के बहनोई चाचा भी थे और उसी सोसाइटी में रहते थे. उन्होंने ही महादेव को मकान खरीदने की सलाह दी थी.

‘‘आप ने ठीक कहा गुप्ताजी. आप की सम?ा में नहीं आएगी, न मैं सम?ा ही सकता हूं. लेकिन आप को इतना बता

दूं कि मैं किसी को भी भोजन

नहीं कराऊंगा.’’

‘‘यह तुम्हारी मरजी. लेकिन, जब तुम्हारे पिता का देहांत हुआ था तो तुम्हारे पिता पंडित दीनानाथ ने जो भोज किया था उस में उन्होंने, ईश्वर मु?ा से ?ाठ न बुलवाए, 500 लोगों को खिलाया था. यह तो तुम से रिश्तेदारी होने की वजह से इतना कह रहा हूं.’’

‘‘वह तो 20-25 साल पहले की बात हो गई. तब न कैंसर था, न कोविड और जब घी रुपए का दो सेर मिलता था.’’

‘‘हम कब इनकार करते हैं. इसी वजह से हम कहते हैं कि तुम 500 लोगों को न सही, दोस्तों, संबंधियों और ब्राह्मणों को तो भोजन कराओ.’’

‘‘मैं नहीं कराऊंगा.’’

‘‘तो तुम्हारे पितरों की आत्माएं भटकती रहेंगी और उन्हें हमेशा असंतोष रहेगा. वे न तुम्हें चैन लेने देंगे और न तुम्हारे कुनबे को. देखो, मैं ने अब पढ़ा

है व्हाट्सऐप पर कि अगर भोजन नहीं कराओगे तो तुम डिप्रैशन में आ सकते हो. इतने लोग आएंगे तो घर में

रौनक होगी.’’

‘‘मु?ो इस की चिंता नहीं है. मेरी बला से वे भटकें या आराम करें. जो नहीं आएंगे, उन की भी चिंता नहीं है.’’

‘‘बेटा, ऐसी कुभाषा मुंह से नहीं निकालते. न जाने ‘ऊपरवाला’ इस की क्या सजा दे. तुम शादीशुदा आदमी हो, ऐसा वचन आगे से कभी मत बोलना,’’ कह कर चाचाजी चले गए.

दीनानाथ गर्ग शहर में ही रहते और बाजार में उन की साडि़यों की एक बड़ी दुकान थी. उन का बड़ा लड़का महादेव मुंबई में एमबीए करने के बाद एक आईटी कंपनी में कार्यरत था. उसे साडि़यों के काम में रुचि नहीं थी. छोटा लड़का सहदेव उन्हीं के साथ रहता था. उस का पढ़ने में कभी मन ही नहीं लगा और वह पिता के पास ही रह कर दुकान का काम देखा करता था.

उस की पत्नी मालती छोटे शहर की थी. वह घर के कामकाज में बहुत होशियार थी और ससुर की सेवा बड़ी निष्ठा से करती थी, बाकी समय किट्टी में लगी रहती थी.

अचानक मुंबई में महादेव को सहदेव का मैसेज मिला कि पिताजी सख्त बीमार हैं. कैंसर की लास्ट स्टेज है और बचने की उम्मीद नहीं है.

जब महादेव और उस की पत्नी बिमला दोनों नागपुर पहुंचे तो पिता अस्पताल में वैंटिलेटर पर थे. उन के देखते ही देखते दीनानाथजी ने अंतिम बार आंखें खोल कर चारों तरफ देखा. फिर उन्हें एक हिचकी आई और उन के प्राणपखेरू उड़ गए.

दाह संस्कार नदी के किनारे महादेव ने किया. सहदेव की भी राय थी कि कम से कम पैसों में काम चलाया जाए और कोई फुजूलखर्ची न हो.

महादेव से दुकान संभल नहीं रही थी. बाजार में बड़ेबड़े शोरूम खुल गए थे और पुराने बाजार में उस की दुकान में ओल्ड फैशन साडि़यां थीं.

अब तेरहवीं के दिन बड़े भोज की बात थी जो सारे रिश्तेदार और सोसाइटी में चर्चा का विषय बन गई थी. दोनों भाई एकमत थे. उस सोसाइटी में लगभग हर कोई अपने बुजुर्ग की मृत्यु पर भोज कराने पर भी पार्किंग में बड़ा सा पंडाल

लगाता था.

जब रामलालजी हो कर चले गए तो महादेव अंदर जा कर पलंग पर बैठ गया. उस ने भाई और दोनों बहुओं को बुलाया और कहा, ‘‘चाचा रूठ कर चले गए हैं और कौन जाने कल वे हमें अपनी पार्टियों में बुलाएं भी न.’’

‘‘हमें किसी का कोई डर नहीं है, न हम किसी के मुहताज हैं,’’ सहदेव ने निडरता से कहा.

‘‘यह तो ठीक है, लेकिन बिमला और मालती, आप दोनों की क्या राय है?’’

‘‘आप जैसा ठीक सम?ों, करें. पुरानी रूढि़यों के पचड़ों में पड़ना मु?ो तो जरा भी नहीं सुहाता. अब मालती की राय और ले ली जाए,’’ बिमला ने कहा.

मालती ने कुछ कहने में संकोच किया तो महादेव ने आग्रह किया, ‘‘देखो मालती, हम दोनों तो बाहर के हो गए. रहना है तुम्हें और सहदेव को. इसलिए कोई ऐसी बात नहीं होनी चाहिए जिस से तुम दोनों को बाद में परेशानी हो और तुम्हारे सर्कल वाले तंग करें.’’

‘‘तंग क्यों करेंगे? ये मिलाप बंद कर देंगे तो हमारा क्या बिगाड़ लेंगे,’’ मालती ने साहस के साथ जवाब दिया. पापा की बीमारी के लिए मु?ो 12 लाख रुपए की दवा खरीदनी थी तो आप ने ही अपने प्लौट को मौर्टगेज कर के लिया न. चाचा फाइनैंस का काम करते हैं तो भी क्या उन्होंने एक पैसा दिया?’’

‘‘वह तो ठीक है. लेकिन करना क्या चाहिए? मैं चाहता हूं कि भोज में जो तीनचार लाख रुपए खर्च हों, वे किसी अच्छे काम में लगाए जाएं,’’ महादेव

ने कहा.

‘‘आप बुरा न मानें तो एक बात कहूं,’’ ससुर की मृत्यु पर पुरोहितों को भोज दिए जाने की बात आई तो छोटी बहू मालती ने कहा, ‘‘पिताजी के पास यह माताजी का जेवर था. अगर बुरा न मानें तो इसे बेच कर एडेड स्कूल में एक स्पोर्ट्स कौंप्लैक्स बनवा दिया जाए,’’ मालती बोली.

‘‘जरूर… और बताओ,’’ बिमला ने कहा.

‘‘अपने यहां जो मेड आती है, उस की बस्ती में पीने के पानी की बड़ी दिक्कत होती है. कुल एक ही टैंकर आता है, उस से काम नहीं चलता. इसलिए मीठे पानी का एक बोरवैल करा दें पिताजी के नाम पर और उस के साथ पानी का कूलर भी लगवा दें.’’

यह सुन कर सभी खुश हो गए. महादेव ने कहा, ‘‘बहू हो तो ऐसी. क्या शानदार सलाह दी है. आम लोगों के लिए पानी की सुविधा हो जाए, यह बहुत बढि़या बात है. बहूरानी, तुम्हारी बात मंजूर है. हां, सहदेव, इस में खर्च कितना पड़ेगा?’’

‘‘कोई 40 हजार रुपया लग जाएगा बोरवैल बनाने में और कूलर 25 हजार रुपए का आएगा. उस का कमरा आदि बनाने में तकरीबन एक लाख रुपए लग जाएंगे,’’ सहदेव ने बताया.

‘‘एक चीज और हो जाए तो गांव का और भी भला हो,’’ मालती ने कहा.

‘‘वह क्या?’’ महादेव ने पूछा.

मालती अंदर कोठरी में गई और जेवरभरा एक डब्बा ले कर आई. उसे दिखाते हुए उस ने कहा, ‘‘पिताजी के पास माताजी का जेवर था. उन्होंने इसे 4 दिनों पहले ही मु?ो दिया था और कहा था कि दोनों बहुएं आपस में बराबरबराबर बांट लेना. कम से कम 20 तोले से ऊपर की चीजें होंगी.’’

‘‘मेरी अच्छी मालती, इस से अच्छा काम और क्या हो सकता है,’’ बिमला ने कहा, ‘‘इस से पिताजी व माताजी, दोनों की यादें जिंदा रहेंगी. मेरे पास मेरी मां के दिए कुछ जेवर हैं, वे भी इसी स्कूल के 4 कमरे बनवाने में लगा दिए जाएंगे,’’ यह कह उस ने मालती को अपनी छाती से लगा लिया. इधर सहदेव भी महादेव के सीने से लग गया.

इतनी देर में सोसाइटी का एक गार्ड आया और जोर से कुंडी खटखटाने लगा.

सहदेव ने दरवाजा खोला और बाहर आ कर पूछा, ‘‘राम प्रसाद, क्या हुआ?’’

‘‘सोसाइटी के लोगों ने अंधेर कर दी.’

‘‘बताएगा भी कुछ कि क्या किया?’’

‘‘आप को और बड़े बाबू साहब को सोसाइटी के क्लब की मैंबरशिप से निकाल दिया और कहा कि अब इस घर से शादीब्याह का, लेनदेन का कोई नाता नहीं रखा जाएगा.

‘‘हां, कोई दीक्षितजी हैं, वे चाचा के घर में बता रहे थे कि गरुड़ पुराण में क्याक्या लिखा है. मोबाइल पर सब ने पढ़ा भी.’’

‘‘बस, इतनी सी बात है. यह तो हम पहले से जानते थे,’’ सहदेव ने कहा.

The post भोज में स्पोर्ट्स कौंप्लैक्स- भाग 1: एक आधुनिक परिवार ने दी नई सोच को जन्म appeared first on Sarita Magazine.

July 13, 2022 at 10:09AM

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